वर्गीय प्रतिदर्श प्रणाली | वर्गीय प्रतिदर्श के प्रकार | वर्गीय प्रतिदर्श के प्रमुख गुण | वर्गीय प्रतिदर्श के अवगुण | Class Sampling System in Hindi | Types of Classified Samples in Hindi | Main properties of class sample in Hindi | demerits of class sample in Hindi
वर्गीय प्रतिदर्श प्रणाली
(Stratified Sampling Method)
इस प्रणाली को स्तरित प्रतिदर्श प्रणाली के नाम से जाना जाता है। इसमें समग्र को सजातीय वर्गों में विभाजित कर ऐसे प्रत्येक वर्ग से एक निश्चित संख्या में इकाइयाँ दैव-प्रतिदर्श के आधार पर चुन ली जाती हैं।
(1) पार्टन के अनुसार, “इसमें प्रत्येक श्रेणी के अन्तर्गत मामलों का अन्तिम चयन तो संयोग द्वारा ही होता है।”
(2) सिन पाओ याँग के अनुसार, “वर्गीय प्रतिदर्श का अर्थ है समग्र में से उन प्रतिदर्शों को लेना जिनकी विशेषताएं हैं- कृषि के प्रकार, खेतों का आकार, भूमि- स्वामित्व, शैक्षिक स्तर, आय, लिंग, सामाजिक वर्ग आदि। उप-प्रतिदर्शों के अन्तर्गत आनेवाले इन तत्वों को एक साथ लेकर प्रारूप अथवा श्रेणी के रूप में वर्गीकरण किया जाता है।”
अनुसंधानकर्ता सर्वप्रथम समग्र की समस्त विशेषताओं से अवगत होता है। फिर, सम्पूर्ण को वर्गों में बाँट देता है। अब प्रत्येक वर्ग से प्रतिदर्श का चयन करता है। सभी वर्गों से प्रतिदर्श चुनकर उन्हें मिला दिया जाता है जिससे पूर्ण प्रतिदर्श प्राप्त हो जाता है। इकाइयों का चयन करते समय प्रत्येक वर्ग से उसी अनुपात में इकाइयाँ ली जाती हैं जिस अनुपात में यह वर्ग उस समूह या सम्पूर्ण में उपस्थित रहता है।
वर्गीय प्रतिदर्श के प्रकार (Kind of Stratified Sampling)
(i) समानुपातिक वर्गीय प्रतिदर्श (Proportionate stratified Sampling)- इसमें हरेक वर्ग में से उसी अनुपात में इकाइयाँ चुनी जाती हैं जिस अनुपात में वर्ग की समस्त इकाइयाँ समग्र में सम्मिलित हैं।
(ii) असमानुपातिक वर्गीय प्रतिदर्श (Disproportionate Stratified Sampling)- प्रत्येक वर्ग में समान संख्या में इकाइयों का चयन करते हैं भले ही सम्पूर्ण समूह में उनकी संख्या कुछ भी हो।
(iii) भारयुक्त वर्गीय प्रतिदर्श (Weighted Stratified Sampling)- प्रत्येक वर्ग से ‘इकाइयों को समान संख्या में चुनते हैं और बाद में अधिक संख्या वाले वर्गों की इकाइयों को अधिक भार देकर उनका प्रभाव बढ़ा देते हैं।
वर्गीय प्रतिदर्श के प्रमुख गुण (Merits of Stratified Sampling)
(i) वर्ग प्रतिनिधित्व – प्रत्येक वर्ग की प्रतिदर्श में उचित प्रतिनिधित्व मिल जाता है जिससे निष्कर्षों की सार्थकता में वृद्धि हो जाती है।
(ii) समूह प्रतिनिधित्व- विभिन्न वर्गों का विभाजन सतर्कतापूर्वक करने पर थोड़ी-औरथोड़ी इकाइयों का चयन करने पर भी सम्पूर्ण समूह का प्रतिनिधत्व हो जाता है।
(iii) इकाइयों से सम्पर्क- क्षेत्रीय दृष्टि से वर्गीकरण करने पर इकाइयों से सम्पर्क सफलतापूर्वक स्थापित किया जा सकता है।
(iv) इकाइयों का प्रतिस्थापन- इकाइयों के प्रतिस्थापन में सुगमता रहती है। यदि एक इकाई से सम्पर्क स्थापित नहीं हो पाता तो उसी वर्ग की दूसरी इकाई से काम निकाल लिया जाता है।
(v) धन, श्रम और समय की बचत- इसके अन्तर्गत वर्ग या स्तरों में से इकाइयों को इस प्रकार चुना जाता है कि निदर्शन की सभी इकाइयाँ एक भौगोलिक क्षेत्र में ही केन्द्रित हों। इससे धन, श्रम और समय तीनों की बचत होती है।
वर्गीय प्रतिदर्श के अवगुण (Demerits)
(i) भारित करने का दुष्प्रभाव- असमानुपातिक चयन में, भारित करते समय, पक्षपात हो जाने पर प्रतिदर्श प्रतिनिधित्वपूर्ण हो सकता है।
(ii) समानुपातिक गुण का अभाव- विभिन्न वर्ग के आकार में अधिक भिन्नता होने पर समानुपातिक गुण का अभाव हो जाता है।
(iii) प्रतिनिधित्व का अभाव-चयनित निदर्शन में किसी विशेष वर्ग की इकाइयों को अत्यधिक या अत्यल्प प्रतिनिधित्व मिलने पर निदर्शन या प्रतिदर्श प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं रह पाता।
(iv) अस्पष्टता- वर्ग का स्वरूप अस्पष्ट होने पर यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि इकाई को किस वर्ग में रखा जाये।
सावधानियाँ (Precautions)
इस प्रणाली को प्रयुक्त करते समय निम्नलिखित सावधानियाँ रखनी चाहिये।-
(i) सुनिश्चितता- वर्ग सुनिश्चित और स्पष्ट हों जिससे सम्पूर्ण की सभी इकाइयाँ किसी न किसी वर्ग के अन्तर्गत हो सकें।
(ii) इकाइयों का चयन– प्रत्येक वर्ग से उतनी इकाइयों का चयन हो जिस अनुपात में वे समग्र में हैं।
(iii) इकाइयों की एकरूपता-एक वर्ग के अन्तर्गत सभी इकाइयों में एकरूपता हो।
(iv) समग्र के गुणों का ज्ञान होना चाहिये नहीं तो वर्गों के विभाजन में अशुद्धियाँ हो जाती हैं।
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