अनुसंधान क्रियाविधि

द्वितीयक समंकों से आशय | द्वितीयक समंकों के स्रोत | द्वितीयक सामग्री के स्रोतों का वर्णन

द्वितीयक समंकों से आशय | द्वितीयक समंकों के स्रोत | द्वितीयक सामग्री के स्रोतों का वर्णन | Meaning of secondary data in Hindi | Sources of Secondary Data in Hindi | Description of sources of secondary material in Hindi

द्वितीयक समंकों से आशय

(Meaning of Secondary data)

यह वह आँकड़े हैं जो अध्ययनकर्ता को प्रकाशित या अप्रकाशित प्रलेखों, रिपोर्ट्स सांख्यिकी या पांडुलिपि, पत्र-डायरी आदि से मिलते हैं। इन तथ्यों या आँकड़ों या समंकों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इन्हें अध्ययनकर्त्ता स्वयं प्राप्त नहीं करता, वरन् वह दूसरों के द्वारा उसे प्राप्त होते हैं और अध्ययनकर्ता इनका प्रयोग अपनी सुविधा के अनुसार कर लेता है। द्वितीयक सूचनाओं को भी दो भागों में विभाजित किया जा सकता है- (1) आत्म प्रलेख-जैसे आत्मकथा, डायरी, पत्र आदि तथा (2) सार्वजनिक प्रलेख-जैसे रिकार्ड, पुस्तकें, जनगणना रिपोर्ट, अनेक कमेटियों की रिपोर्ट, समाचार-पत्र या पत्रिकाओं में प्रकाशित प्रलेख आदि। इसके अतिरिक्त शिलालेख, स्तूप भिन्न खुदाइयों से मिले अस्थि-पंजर आदि द्वितीय सूचनायें मानी जा सकती हैं।

द्वितीयक समंकों के स्रोत

(Sources of Secondary Data)

द्वितीयक सामग्री के सभी स्रोतों को दो भागों में बांटा जा सकता है-

(1) व्यक्तिगत स्रोत तथा (2) सार्वजनिक प्रलेख स्रोत।

(1) व्यक्तिगत प्रलेख (Personal Documents)

इस सामग्री में वह सारी की सारी लिखित सामग्री सम्मिलित है जो व्यक्ति अपने विषय में या सामाजिक घटनाओं के सम्बन्ध में अपने दृष्टिकोण से लिखता है। इसके लिये यह आवश्यक नहीं है कि यह सामग्री व्यक्ति द्वारा वैज्ञानिक ढंग से लिखी गई हों या अनुसन्धानकर्ता के विषय से सम्बन्धित है। व्यक्तिगत प्रलेखों में लेखक के अपने मनोभाव, दृष्टिकोण, विचार एवं आदर्श ही होते हैं। परन्तु फिर भी यदि लेखक के यह मनोभाव या आन्तरिक जीवन अथवा किसी सामाजिक संस्था या घटना पर प्रकाश डालते हैं तो वह स्वयं ही अनुसन्धान के महत्वपूर्ण स्रोत वन जाते हैं। इन प्रलेखों से लेखक के जीवन पर ही प्रकाश नहीं पड़ता वरन् उस समाज की घटनाओं पर प्रकाश पड़ता है, जिनकी लेखक स्वयं एक इकाई होता है। व्यक्तिगत प्रलेखों में निम्न मुख्य हैं-

(1) जीवन इतिहास (Life Histories)- जीवन इतिहास का मतलब किसी व्यक्ति की विस्तृत आत्मकथा से सम्बन्ध होता है। ये आत्म-कथायें महान् व्यक्तियों या विख्यात व्यक्तियों द्वारा लिखी जाती हैं परन्तु चाहे जो कुछ भी हो इनमें लेखक के व्यक्तिगत जीवन के अतिरिक्त उस समाज का तथा उन सामाजिक घटनाओं का सीधा सम्बन्ध होता है जिनका लेखक स्वयं एक अंग होता है। इसके अलावा इनमें ऐसी अनेक गुप्त बातों का भी वर्णन मिल जाता है, जिनको अनुसन्धानकर्त्ता स्वयं प्राप्त नहीं कर सकता। उदाहरण के लिये-चर्चिल की आत्मकथा द्वितीय महायुद्ध का महत्वपूर्ण चित्रण हैं इस प्रकार हम देखते हैं कि आत्मकथा द्वितीय सामग्री का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

जीवन इतिहास को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है- (i) स्वतः लिखित आत्मकथा- इसमें एक व्यक्ति स्वयं अपने जीवन का रिकार्ड रखने के लिये अपनी आत्मकथालिखता है। यह अधिकांश निष्पक्ष होती है, (ii) ऐच्छिक आत्मकथा- यह आत्मकथा किसी प्रकाशक या अन्य व्यक्ति के कहने पर एक व्यक्ति इच्छानुसार लिखता है तथा (iii) संकलित जीवन इतिहास- यह इतिहास किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा लिखा जाता है। इसमें मुख्य व्यक्ति के व्याख्यान लिखित रचनाओं, साक्षात्कार के समय की गई बातों तथा पात्रों आदि से लेखक सूचना प्राप्त करता है और मूल व्यक्ति की आत्मकथा लिखता है। परन्तु जीवन इतिहास चाहे वह किसी भी प्रकार क्यों न हो सामाजिक शोध में महत्वपूर्ण होता है। आत्मकथाओं में प्रायः लेखक अपने व्यक्तित्व को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत करते हैं और साथ-साथ अपने जीवन के अनेक ऐसी घटनाओं को छिपा जाते हैं जिनसे  उनके व्यक्तिगत जीवन पर लोगों का गलत प्रभाव पड़ता है। सभी राजनीतिक व्यक्ति अपनी पार्टी का प्रचार-मात्र हैं। अतः आत्मकथाओं से तथ्यों को एकत्र करने के लिये शोधकर्ता को काफी सावधान रहना चाहिये।

(2) डायरी (Diary)-  बहुत से व्यक्ति अपनी दैनिक डायरी लिखते हैं जिनमें वे अपनी दैनिक घटनाओं तथा अपनी जीवन सम्बन्धी घटनाओं के प्रति अपनी प्रक्रियाओं और भावनाओं का उल्लेख करते हैं, इसमें व्यक्ति केवल अपने सम्बन्ध में ही नहीं वरन् उन व्यक्तियों के सम्बन्ध में भी लिखता है जो उसके सम्पर्क में आते हैं। चूँकि डायरी उसकी स्वयं की होती है। अतः उसमें वह अनेक गोपनीय बातें भी लिख देता है। इसमें वह यह सब कुछ लिखता है जो कि वह दिल में अनुभव करता है। इसीलिए गोपनीय तथा आन्तरिक तथ्यों को जानने के लिये डायरी एक उत्तम साधन है तथा क्रमबद्ध लिखी हुई डायरी जीवन इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण एवं विश्वसनीय आधार है। सामाजिक शोध में डायरी जीवन इतिहास का सबसे महत्वपूर्ण एवं विश्वसनीय आधार है। सामाजिक शोध में डायरी आत्मकथाओं से अधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि इनको प्रकाशित कराने के प्रयोजन से नहीं लिखा जाता है ये तथ्यों के अधिक करीब होती हैं। इनमें घटनाओं का सही रूप होता है और तोड़ा-मोड़ा नहीं जाता है। परन्तु फिर भी डायरियों में अनेक दोष भी हैं। जैसे- (क) जीवन के संघर्षात्मक एवं तनावपूर्ण अंशों को नाटकीय ढंग से लिखा जाता है, (ख) क्रमबद्धता न होने के कारण अनेक ऐसी घटनायें उत्पन्न हो जाती हैं, जिनसे एक ही प्रकार की घटनाओं का सम्बन्ध स्थापित करना कठिन हो जाता है, (ग) डायरी स्वयं के लिये लिखी जाती है, जिससे घटना का संकेत मात्र मिलता है और शोधकर्ता को अपने अनुमान के अनुसार कार्य करना पड़ता है, (घ) कभी-कभी डायरी के लेखक साहित्यिक भाषा का भी प्रयोग करते हैं जिससे घटनाओं की स्वाभाविकता नष्ट हो जाती है। परन्तु फिर भी डायरियों द्वारा प्राप्त सूचनायें अन्य प्रलेखों की अपेक्षा अधिक विश्वनीय हैं।

(3) पत्र (Letters)- अधिकांश पत्र व्यक्तिगत होते हैं। अतः इनके द्वारा हमें एक व्यक्ति की आन्तरिक भावनाओं, विचारों का ज्ञान प्राप्त होता है। यह पत्र तलाक, पारिवारिक तनाव, प्रेम मित्रता, व्यावहारिक सम्बन्ध, यौन सम्बन्ध आदि कोमल सामाजिक सम्बन्धों पर प्रभाव डालते है। इन पत्रों का स्रोत के रूप में प्रयोग करना कभी-कभी कई कारणों से ठीक नहीं है- (क) व्यक्तिगत पत्रों को प्राप्त करना शोधकर्ता के लिये कठिन कार्य होता है, क्योंकि अधिकांश प्रेम या यौन पत्र, लेखक स्वयं या जिसको लिखे जाते हैं वह नष्ट कर देता है और अगर हो भी तो वे लोग देने से इन्कार कर देते हैं, (ख) घटनाओं का विस्तृत विवरण नहीं मिलता है, (ग) घटनाओं का क्रम केवल एक पक्ष के पत्रों से ही नहीं मालूम किया जा सकता है। इसके पत्रों के उत्तर का होना भी आवश्यक है, (घ) पत्र तभी विश्वसनीय स्रोत हो सकते हैं जबकि उनके लिखने वालों में   घनिष्ठ सम्बन्ध हो। प्रेम सम्बन्धी पत्रों में वास्तविकता कम और भावनात्मकता अधिक होती है। अतः पत्रों द्वारा तथ्यों को प्राप्त करना एक कठिन कार्य है।

(4) संस्मरण (Memories) – मनुष्यों द्वारा अपने जीवन की अनेक घटनाओं, यात्राओं आदि का संस्मरण बहुधा अनुसन्धान की सामग्री प्रदान करता है। हेनसांग आदि का संस्मरण आज भी भारतीय इतिहास की एक निधि है। परन्तु फिर भी इन संस्मरणों में लेखक कुछ घटनाओं विशेष का चित्रण अपने ढंग से करता है, जिससे यह एक वास्तविक एवं विश्वसनीय स्रोत का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाते हैं।

(II) सार्वजनिक प्रलेख (Public Documents)

यह प्रलेखनीय स्रोतों का दूसरा महत्वपूर्ण भेद है। सार्वजनिक प्रलेख में रिकार्ड्स आते हैं जो सरकारी या गैर-सरकारी संस्था द्वारा तैयार किये जाते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं – (क) प्रकाशित – जैसे कम्पनियों, सरकारी विभागों तथा अन्य संस्थाओं के वे प्रलेख जो सार्वजनिक नहीं होते और गोपनीय रखे जाते हैं। (ख) प्रकाशित रिपोर्ट्स – जो किसी संस्था द्वारा सार्वजनिक हित से सम्बन्धित किसी विषय की रिपोर्ट होती है तथा प्रत्येक व्यक्ति पढ़ सकता है। इन प्रलेखों को निम्न भागों में विभाजित किया गया है-

(1) प्रकाशित प्रलेख (Published Documents) – सरकार द्वारा केवल उन्हीं पर प्रलेखों को प्रकाशित किया जाता है जो साधारण जनता द्वारा प्रयोग किये जा सकते हैं। प्रमुख सार्वजनिक प्रलेख निम्नलिखित हैं।

(क) रिकार्ड (Record) – सरकारी तथा गैर-सरकारी संगठन या संस्थायें विभिन्न सूचनाओं का रिकार्ड रखती है। उदाहरणार्थ- समाज विरोधी तत्वों, वदनाम चरित्रों और अपराधियों के रिकार्ड सरकार के पास रहते हैं। इन रिकार्डों की जानकारी अनुसंधानकर्ता अपने अध्ययन हेतु प्राप्त कर सकता है। कुछ सरकारी समितियाँ तथा सम्मेलन भी अपनी रिपोर्ट प्रकाशित करते रहते हैं।

(ख) पत्र-पत्रिकाओं की रिपोर्ट (Report of Newspapers and Magazines) – विभिन्न साप्ताहिक, पाक्षिक, मासिक, द्वैमासिक, अर्द्धवार्षिक और वार्षिक पत्रिकायें प्रकाशित होती रहती हैं, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और अन्तर्राष्ट्रीय घटनाओं का विवरण मिलता है।

(ग) प्रकाशित आँकड़े (Published Statistics) – सरकारी और गैर-सरकारी संस्थायें समय-समय पर आँकड़े प्रकाशित करती हैं। उदाहरण के लिये सूचना मन्त्रालय द्वारा समय-समय पर महत्वपूर्ण आँकड़े प्रकाशित किये जाते हैं जिनसे पता चलता है कि हमारे देश ने विभिन्न क्षेत्रों में क्या किया है तथा हम किस गति से प्रगति के पथ पर अग्रसर हैं। ‘भारत’ (India) तथा ‘आर्थिक-समीक्षा’ प्रत्येक वर्ष प्रकाशित होता है जिसमें प्रायः समस्त विषयों पर आँकड़ों का संकलन होता है।

(घ) विविध सामग्री (Miscellaneous Material) – पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों तथा उपन्यासों में अनेक प्रकार की प्रकाशित सामग्री को अनुसंधानकर्ता अपने-अपने अनुसंधान में प्रयुक्त कर सकता है। अनेक उपन्यास जिनका उद्देश्य तत्कालीन सामाजिक, धार्मिक तथा अन्य इसी प्रकार की समस्याओं को प्रस्तुत कर उनका समाधान बताना होता है, सामाजिक अनुसंधानकर्ता के लिये उपयोगी होते हैं। चलचित्र सामाजिक बुराइयों का अनावरण करने के लिये किये गए प्रयत्नों को प्रकट करते हैं। इनसे सम्बन्धित जानकारी प्राप्त होने में सुविधा प्राप्त होती है।

(2) अप्रकाशित प्रलेख (Unpublished Documents) – प्रमुख अप्रकाशित प्रलेख निम्नलिखित हैं-

(क) गोपनीय रिकार्ड (Confidential Records)- ये रिकार्ड जनहित, सुरक्षा तथा व्यवस्था और देश के हितों के दृष्टिगत प्रकाशित नहीं किये जा सकते। न्यायालयों के रिकार्ड तथा सैनिक कार्यालयों के रिकार्ड, विभिन्न बैंकों और कम्पनियों के गोपनीय रिकार्ड प्रकाशित नहीं किये जाते। इस प्रकार की सूचना केवल उसी स्थिति में प्रदान की जा सकती है, जब यह विश्वास हो जाता है कि इस प्रकार माँगी गई सूचनाओं का उद्देश्य इन्हें केवल अनुसंधान कार्य में प्रयुक्त करना है।

(ख) शोध रिपोर्ट (Research Reports) – इस प्रकार की रिपोर्ट विद्यार्थियों द्वारा विश्वविद्यालयों में एम0ए0 या पी-एच0डी0 की डिग्री प्राप्त करने के लिये प्रस्तुत की जाती है। प्रायः ये विश्वविद्यालय के पुस्तकालय की शोभा मात्र बनकर रह जाती हैं।

(ग) दुर्लभ हस्तलेख (Rare Manuscripts) – कुछ हस्तलेख, जो प्रतिभाशाली विचारकों आदि द्वारा लिखे जाते हैं कुछ विपरीत परिस्थितियों, जैसे- लेखक की अकस्मात मृत्यु, प्रकाशक की अरुचि आदि के कारण अप्रकाशित रह जाते हैं। समय व्यतीत हो जाने के परिणामस्वरूप ये विकृत भी हो जाते हैं। अनेक दुर्लभ हस्तलेख विभिन्न संग्रहालयों में उपलब्ध हो सकते हैं, जो अनुसंधान हेतु प्रयुक्त किये जा सकते हैं।

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Pankaja Singh

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