अनुसंधान क्रियाविधि

प्रतिदर्श का महत्व | श्रेष्ठ प्रतिदर्श की प्रमुख विशेषतायें | प्रतिदर्श पद्धति के गुण | प्रतिदर्श पद्धति के दोष

प्रतिदर्श का महत्व | श्रेष्ठ प्रतिदर्श की प्रमुख विशेषतायें | प्रतिदर्श पद्धति के गुण | प्रतिदर्श पद्धति के दोष | Importance of sampling in Hindi | Salient features of the best sample in Hindi | Properties of sampling method in Hindi | defects of sampling method in Hindi

प्रतिदर्श का महत्व

(Importance of Sampling)

अनुसंधान में प्रतिदर्श एक महत्वपूर्ण साधन है। इसके प्रमुख लाभ निम्नलिखित हैं-

(1) मितव्ययिता (Saving) – प्रतिदर्श में समय और धन की बचत होती है। इससे जनगणना-विधि की तुलना में श्रम एवं शक्ति भी कम लगती है।

(2) विस्तार और गहनता (Width and Intensity) – सीमित इकाइयों के अध्ययन की विधि अपनाने के कारण अनुसंधानकर्ता के लिये विस्तृत क्षेत्र का अध्ययन करना सरल हो जाता है। इससे सूचनाओं के संकलन में भी गहराधी तक पैठ हो जाती है।

(3) परिणामों की शुद्धता (Accuracy of Results) –प्रतिदर्श के लाभ देखते हुये भी परिणामों की शुद्धता पर इसके विपरीत प्रभाव को नहीं पड़ने दिया जाता। यह तथ्य है कि यदि  उचित रूप से प्रतिदर्श का प्रयोग किया जाये तो परिणामों की शुद्धता लगभग शत-प्रतिशत होगी। ऐसी तकनीकों की सफलतापूर्वक खोज की जा चुकी है जिनकी सहायता से सांख्यिकीय विधियों से प्रतिदर्श की त्रुटि की गणना की जा सकती है।

(4) व्यावहारिक (Convenient)-  छोटा प्रतिदर्श व्यावहारिक दृष्टि से अधिक उचित होता है। सामाजिक अनुसंधानों में मानव-इकाइयों की अपनी इच्छानुसार नहीं मोड़ा जा सकता। विशेषकर सामाजिक अनुसंधानों में लघु प्रतिदर्श अधिक उपयोगी होता है। यह प्रबन्धात्मक और प्रशासनिक रूप से भी सुगम होता है।

(5) वैज्ञानिकता- यह वैज्ञानिकता के आधार पर अधिक संगत प्रतीत होता है। इसका कारण यह है कि उपलब्ध दत्तों या तथ्यों की दूसरे प्रतिदर्शों की सहायता से जाँच-परख सम्भव है। यदि यदृच्छया प्रतिदर्श के आधार पर किसी प्रतिदर्श का चयन किया जाता है तो त्रुटियों का पर्याप्त सीमा तक अनुमान किया जा सकता है।

(6) समय की बचत (Time-saving) – प्रतिदर्श के प्रयोग से अनुसंधानकर्ता के समय में वचत होती है, क्योंकि इसमें सीमित इकाइयों का अध्ययन किया जाता है।

(7) धन की बचत (Money-saving) – अत्यन्त सीमित इकाइयों का अध्ययन करने के कारण कम मात्रा में धन का व्यय होता है।

श्रेष्ठ प्रतिदर्श की प्रमुख विशेषतायें

(Characteristics of a Good Sampling)

अनुसंधान में श्रेष्ठ प्रतिदर्श अपरिहार्यता है, क्योंकि इसी पर तथ्यों का संकलन और निष्कर्ष आधारित है। श्रेष्ठ प्रतिदर्श की मुख्य विशेषतायें निम्नलिखित हैं –

(1) समग्र का प्रतिनिधित्व (Representation of Universe) – श्रेष्ठ प्रतिदर्श का प्रथम आवश्यक गुण है कि वह समग्र की समस्त विशेषताओं का पूर्ण प्रतिनिधित्व करे।

(2) उपयुक्त आकार (Adequate Size) – यद्यपि श्रेष्ठ प्रतिदर्श के आकार के सन्दर्भ मे कोई निश्चित नियम नहीं है फिर भी यह कहा जा सकता है कि समस्या और समग्र की प्रकृति के अनुसार इकाइयों की उपयुक्त संख्या होनी चाहिये।

(3) निष्पक्षता (Unbiasedness) – कोई भी श्रेष्ठ प्रतिदर्श पूर्वाग्रहरहित होना चाहिये जिससे यह सम्पूर्ण का समुचित प्रतिनिधित्व कर सके। अनुसंधानकर्त्ता प्रतिदर्श में अपनी रुचि, सुविधा और स्वेच्छा द्वारा अनावश्यक हस्तक्षेप न करे, इस बात पर ध्यान देना आवश्यक है।

(4) तर्क पर आधारित (Based on Logic)- प्रतिदर्श तर्क पर आधारित होना चाहिये। इसके बिना प्रतिदर्श निष्पक्ष और प्रतिनिधित्वपूर्ण नहीं हो सकता। प्रतिदर्श की विधि का चयन भी सर्वाधिक उपयुक्त को ध्यान में रखकर करना चाहिये।

(5) साधनों के अनुसार (According to Resources) – यदि प्रतिदर्श का चयन साधनों के अनुसार होगा तो यह प्रतिनिधित्वपूर्ण भी होगा और सरलतापूर्वक भी होगा।

(6) उद्देश्य (Purposive) – निदर्शन या प्रतिदर्श अनुसंधान के उद्देश्य को पूर्ण करने वाला होना चाहिये।

(7) सजातीयता (Homogeneity) – प्रतिदर्श में समग्र की इकाइयों की प्रकृति सजातीय होनी चाहिये।

प्रतिदर्श पद्धति के गुण-दोष

(Merits and Demerits of Sampling Method)

सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक परिस्थितियों और तत्सम्बन्धित घटनाओं की जटिलता के कारण जनगणना (Census) पद्धति के स्थान पर प्रतिदर्श की पद्धति दिन-प्रतिदिन अधिक व्यवहार में लायी जा रही है।

रोजेन्डर का कथन है, “यदि सावधानी से चयन किया जाये तो प्रतिदर्श न केवल पर्याप्त सस्ता रहता है, बल्कि ऐसे निष्कर्ष देता है जो पूर्ण सत्य होते हैं और कभी-कभी संगणना के परिणामों की अपेक्षा अधिक सत्य होते हैं अतः सावधानीपूर्वक चयनित प्रतिदर्श वास्तव में एक त्रुटिपूर्वक नियोजित एवं क्रियान्वित संगणना से अधिक श्रेष्ठ होता है।”

गुण (Merits)

(1) समय की बचत (Time Saving)- प्रतिदर्श में समग्र के स्थान पर उसकी सीमित इकाइयों का अध्ययन किया जाता है जिससे पर्याप्त समय की बचत हो जाती है।

(2) धन की बचत (Money Saving)- इस पद्धति में कुछ इकाइयों का ही अध्ययन किया जाता है जिससे सम्बन्धित व्यय भी कम होता है।

(3) परिणामों की परिशुद्धता (Accuracy of Result)- इस पद्धति में समग्र या समूह का प्रतिनिधित्व करने वाली इकाइयों को अध्ययन हेतु चुनते हैं। जिससे परिणामों में अधिक शुद्धता की सम्भावना रहती है।

(4) गहन अध्ययन (Intensive Study)- जनगणना में अनुसंधानकर्ता अनेक इकाइयों का अध्ययन करता है जिससे अध्ययनरत ही रह जाता है। इससे भिन्न, प्रतिदर्श में सीमित ईकाइयों का अध्ययन करने के कारण अध्ययन की गहनता में वृद्धि हो जाती है।

(5) अनिवार्यता (Must)- जब समग्र विस्तृत तथा जटिल होता है तो प्रतिदर्श पद्धति अनिवार्य हो जाती है।

(6) लचीलापन (Flexibility)- प्रदेश की संख्या अनुसंधान और समग्र की प्रवृत्ति के अनुसार कभी-कभी कम या कुछ अधिक भी की जा सकती है।

(7) प्रबन्धकीय सुविधा (Convenience of Management)- प्रतिदर्श में माध्यम से अध्ययन करने पर कम इकाइयों के कारण कार्यकर्ताओं की बहुतकम संख्या की आवश्यकता होती है। सूचना सीमित व्यक्तियों से प्राप्त करने के कारण साधन भी सफलतापूर्वक उपलब्ध हो जाते हैं। सूचना के मिलने में विलम्ब या असुविधा भी नही होती है।

दोष (Demerits)

(1) प्रतिदर्श-पालन की समस्या (Problem of Sticking to Sampling)- यह पद्धति इस बात पर बल देती है कि केवल प्रतिदर्श के लिये चयनित इकाइयों का अध्ययन किया जाये।

(2) पक्षपात (Bais)- प्रतिदर्श या निदर्शन का चयन निष्पक्ष नहीं हो पाता जिससे इस पद्धति के परिणामों के सत्य, तटस्थ और पक्षपात रहित होने की आशा नहीं की जा सकती।

(3) प्रारम्भिक एवं विशेष ज्ञान (Basic and Special Knowledge)- प्रतिदर्श का चुनाव करना जटिल कार्य है। अनुसंधान के लिये चयनित इकाइयों की प्रकृति और उनसे सम्बन्धित अन्य प्रारम्भिक बातों का ज्ञान आवश्यक होता है।

(4) उचित प्रतिनिधित्व का अभाव (Lack of Proper Representation) – उचित प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतिदर्श का चयन करना एक गम्भीर समस्या है, क्योंकि सामाजिक और राजनीतिक इकाइयाँ परस्पर भिन्न और विविध होती हैं। अधिक भिन्नतायें होने पर प्रतिनिधित्वपूर्ण प्रतिदर्श का चयन कठिन होता है। जब प्रतिदर्श उचित प्रतिनिधित्व नहीं करता तो उसके निष्कर्षों की विश्वसनीयता और प्रमाणिकता पर कम विश्वास होता है।

(5) विशिष्ट ज्ञान की आवश्यकता (Need of Special Knowledge)- प्रतिदर्श की तकनीक का विशिष्ट ज्ञान रखने वाला व्यक्ति ही इसे प्रयोग में ला सकता है। अन्यथा अनुसंधान में इसे प्रयुक्त करने पर गम्भीर त्रुटि हो सकती है।

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Pankaja Singh

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