अनुसंधान क्रियाविधि

शोध प्रबन्ध लेखन की प्रविधि | Techniques of Writing Report in Hindi

शोध प्रबन्ध लेखन की प्रविधि | Techniques of Writing Report in Hindi

शोध प्रबन्ध लेखन की प्रविधि

(Techniques of Writing Report)

शोध प्रबन्ध की धारा प्रवाह गति स्थिर रखने के लिये सामग्रियों की व्यवस्था तथा अभिव्यक्ति की शैली तथा रूप की ओर ध्यान देना आवश्यक है। शोध विवरण के प्रत्येक लेखन की तकनीकी का अनुसरण करे, यदि उसे अपनी रचना को प्रभावशाली तथा उपदेशात्मक बनाना है। ऐसी तकनीकी की पर्यवेक्षण मुख्य रूप से निम्न निर्णयों पर केन्द्रित है, जिनका ध्यान रखना आवश्यक है-

(i) उद्धरित सामग्री (Reproduced Material)-

किसी भी लेख अथवा प्रतिवेदन में उद्धरणों का विशेष महत्वपूर्ण स्थान होता है किन्तु यदि प्रतिवेदन में उद्धरण अधिक भरे होंगे तो ऐसा प्रतीत होगा कि वह अनुसन्धान का प्रतिवेदन न होकर अनुसन्धानकर्ता का नोट बन गया है जिसमें उसने अनेक लोगों की बातें तो उद्धत कर दी हैं किन्तु उसका अपना भाग नहीं के बराबर है। अतः उद्धरण अत्यन्त आवश्यक एवं कम होने चाहिए। केवल उपयुक्त सामग्री का उद्धरण उचित सन्दर्भ में होना चाहिए। सम्बन्धित सामग्री ऐसी होनी चाहिए जो कि सर्वमान्य प्रकाशनों तथा विवरणों, प्रपत्रों, बृहद् कोषों, वार्षिक प्रकाशन ग्रन्थ आदि प्रमाणीकृत स्रोत से प्राप्त की जानी चाहिए।

शोध प्रबन्ध में केवल दीर्घ तथा स्थूल उद्धरणों का विवेचन करना आवश्यक है परन्तु उसका उद्देश्य अथवा भाव लुप्त नहीं हो जाना चाहिए। प्रत्येक उदाहरण के सम्बन्ध में एक ऐसी पद टिप्पणी दी जाती है अथवा प्रत्यक्ष रूप से वर्णन किया जाता है जो कि शोध प्रबन्ध के प्रमुख भाग में विद्यमान है।

उद्धहरण लघु (Short) तथा बड़े (Long) दो प्रकार के होते हैं तीन टंकन की  हुई पंक्तियों में उद्धरण लघु तथा तीन टंकन की पंक्तियों से अधिक उद्धहरण को बड़ा उद्धरण कहते हैं। बड़े उद्धरण को पृथक अनुच्छेद के रूप में सम्मिलित कर लिया जाता है और एक ही स्थान को छोड़कर टंकन कर दिया जाता है। इस दशा में किसी प्रकार के उद्धरण चिन्हों का प्रयोग नहीं किया जाता है। सम्बन्धित अधिकारियों को समुचित क्षेत्र प्रदान करके विद्वानों के भाषणों (Lectures) अथवा वार्तालापों में छपे गये कथनों का उद्धरण भी दिया जा सकता है। शोध प्रबन्ध में समावेश करने से पूर्व यह आवश्यक है कि इस प्रकार से उद्धहरणों की स्वीकृत तथा अनुमोदन कर दिया जाये।

(ii) सन्दर्भ पद टिप्पणी (Foot-Notes) :

प्रत्येक उद्धहरण की पद टिप्पणी होनी चाहिए जिसमें इस बात का संकेत हो कि उसे किन स्रोतों से प्राप्त किया गया है। शोध प्रबन्ध के लिए आवश्यक है कि मान्यता प्राप्त स्रोतों तथा अधिकारियों के सम्बन्ध में आभार प्रदर्शन तथा संख्यात्मक कर दिया जाये। उद्धरण दो प्रकार के होते हैं-छोटे तथा बड़े और दोनों को देने के दो ढंग है-एक तो अनुसन्धानकर्त्ता अपने शब्दों में उनके भाव को व्यक्त कर देता है तथा फुटनोट में उसका सन्दर्भ दे देता है। दूसरा, स्वयं मूल लेखक के शब्दों में ही देता है तथा फुटनोट में सन्दर्भ भी देता है। जैसा अवसर होता है अनुसन्धानकर्ता वैसा ही करता है।

प्रत्येक पद टिप्पणी को प्रसंग अथवा उद्धरण को (Index for Foot-Notes) क्रमानुसार इंगित किया जाता है जो कथन के अन्त में आता है अथवा कभी-कभी लेखक के नाम के अनुसार अथवा एक विशेष शीर्षक में दिया जाता है जैसा भी  उचित हो। शोध प्रबन्ध के मुख्य भाग में पद टिप्पणी की सूची (List of Foot-Notes) बनाने की अनेक विधियाँ हैं। सर्वाधिक अनुमोदित विधि यह है कि प्रमुख भाग में पृष्ठानुसार उसी पृष्ठ के अन्त में आये हुए उद्धहरणों की सूची बना दी जाये। प्रत्येक पद टिप्पणी को पाँच स्थान तक ही सीमित रखा जाता है तथा एक स्थान छोड़कर भी टंकन किया जाता हैं। इसके ऊपर ही पृष्ठांकित उद्धरण के अनुकूल संख्या लिखी जाती है। जब दो स्थानों का अन्तर रहता है। प्रत्येक पृष्ठ के अन्त में पद-टिप्पणी को मुख्य भाग से डेढ़ इंच पंक्ति द्वारा पृथक् रखा जाता है। सूची के प्रत्येक पद-टिप्पणी में निम्न तथ्य रहेंगे-

(i) लेखक का नाम, प्रथम नाम अथवा हस्ताक्षर के पश्चात् तथा उसका अन्तिम नाम लघु विराम सहित।

(ii) प्रकाशन का वर्ष।

(iii) प्रकाशन का स्थान, जिसके पश्चात् कोलन लिखा हो।

(iv) कृति का शीर्षक जिसके नीचे पंक्ति खिंची हो तथा तत्पश्चात् लघु विराम

(v) प्रकाशन संस्था का नाम जिसके पीछे लघु विराम का प्रयोग किया जाता है।

(vi) निश्चित पृष्ठ संख्या अथवा संस्थाएँ जिनके पश्चात् विराम चिन्ह लगा हो।

सारणी अथवा आकृति की पद-टिप्पणी (Foot-note for Table) को एक ही स्थान छोड़कर अंकित करना चाहिए। ये पाँच स्थानों तक सीमित रहनी चाहिए। जब किसी भी उद्धरण में दो या अधिक स्रोतों को प्रमुख भाग में प्रसंग दिया जाये तो केवल एक प्रकार के विशिष्ट विराम द्वारा ही सभी प्रसंगों का उल्लेख पृथक्-पृथक् किया जाता है। ग्रन्थ सूची तथा पद-टिप्पणियों में पुनावृत्तियों से बचने के लिए कुछ संक्षिप्त तत्वों का प्रयोग किया जाता है। लगातार एक ही कृति के प्रसंगों का उद्धरण करने में लेटिन भाषा के संक्षिप्त आइविड (Ibid) अर्थात् वही का प्रयोग किया जाता है। यदि पृष्ठ संख्या भिन्न हो तो संक्षिप्त तत्व के तुरन्त पश्चात् पृष्ठ संख्या अंकित होनी चाहिए। टाइप की हुई रचनाओं में तो पंक्तियों के नीचे रेखा खींच दी जाती है परन्तु छपीक्षहुई रचनाओं में तिरछे कर दिये जाते हैं।

जब उद्धरण उसी प्रसंग के क्रमानुसार तिरछे कर दिये जाते हैं। लेटिन शब्द ओप0सिट 0 (Op. cit) अर्थात् पूर्वाकित, जिसका अर्थ है वही रचना जिसका पूर्व उद्धरण हो, का प्रयोग किया जाता है। विशेषतः उस अवस्था में जबकि विभिन्न पृष्ठों के प्रसंगों का उसमें समावेश किया गया हो, पृष्ठ संख्या दी जाती है तथा लेख का अन्तिम नाम संक्षिप्त शब्द से पहले आता है। जब किसी भी रचना के प्रसंग के अनुसार उल्लेख नहीं होता परन्तु उन सभी ग्रन्थ तथा पृष्ठ के अनुकूल होता है तो लैटिन भाषा का संक्षिप्त लोक0 सिट0 (Loc. Cit) (जिसका अर्थ है उद्धरित स्थान) प्रयोग होता है। लेखक का अन्तिम नाम संक्षिप्त शब्द के पूर्व आता है।

पद-टिप्पणी (Foot-Notes) के निम्न उद्देश्य होते हैं-

(i) कुछ प्रत्यक्ष उदहारण सन्दर्भ को स्पष्ट करते हैं।

(ii) कुछ उसी प्रतिवेदन के अन्य भाग के सन्दर्भ को स्पष्ट करते हैं।

(iii) कुछ उदाहरण के मूल स्रोत को स्पष्ट करते हैं।

(iii) सन्दर्भ ग्रन्थावली (List of Bibliography) :

अध्ययनकर्ता द्वारा ग्रन्थाकार सूची में सभी प्रसंगों तथा सम्बन्धित क्षेत्र के सभी स्रोतों को सूचीबद्ध किया जाता है तथा शोध प्रबन्धों में पद-टिप्पणी के रूप में सम्मिलित किया जाता है। शोध सम्बन्धी परियोजना के प्रारम्भ करने से पूर्व ही अस्थाई ग्रन्थावली सूची का निर्माण कर लिया जाता है। इस प्रकार के सन्दर्भ को एकत्र करने के लिए आवश्यक विधि यह है कि अलग-अलग चिटॅ अथवा कार्ड बना लिये जायें जिनका आकार 5×3 हो। इन कार्डों को क्रमानुसार वर्गीकरण करके उन कार्डों को वर्गादारों के अक्षरों में व्यवस्थित कर दिया जाये। पुस्तकालय में पढ़ते समय जब भी किसी सन्दर्भ का उल्लेख करना पड़े तो उसके लिए विना भरे कार्ड सदैव रहने चाहिए। शोध प्रबन्ध के अन्त में वांछित सन्दर्भ में ग्रन्थावली सूची की रचना करने के लिए ऐसे कार्डों को सुरक्षित रखना चाहिए जिससे समय पर उनका प्रयोग हो सके।

सन्दर्भ ग्रन्थावली का सन्दर्भ निम्नलिखित विधि द्वारा लिखा तथा उन्हें वर्णमाला के अनुसार व्यवस्थित किया जाता है-

(i) लेख का नाम-उसका अन्तिम नाम पहले और फिर नाम के अन्तिम अक्षर, तत्पश्चात् पूर्ण विराम चिन्ह लगा हो प्रकाशन वर्ष में।

(ii) टंकन की हुई शोध प्रबन्ध में अध्ययन का शीर्षक जो रेखांकित हो तथा जिसके अन्त  में पूर्ण विराम चिन्ह हो (छपी हुई रचना में तिरछा) लिखा जाना चाहिए।

(iii) प्रकाशन का स्थान जिसके साथ अर्द्ध विराम चिन्ह लगा हो।

(iv) प्रकाशक का नाम जिसके साथ पूर्ण विराम चिन्ह लगा हो।

(v) यदि आवश्यक हो तो पूर्ण पृष्ठ (जिसके अन्त में पूर्ण विराम चिन्ह हो) लघु टिप्पणी प्रयुक्त कथन निरन्तर पंक्ति के रूप में आ सकते हैं।

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Pankaja Singh

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