शिक्षाशास्त्र

नगरीकरण का तात्पर्य | नगरीकरण और शिक्षा | नगरीकरण का शिक्षा पर प्रभाव | नगरीकरण पर शिक्षा का प्रभाव

नगरीकरण का तात्पर्य | नगरीकरण और शिक्षा | नगरीकरण का शिक्षा पर प्रभाव | नगरीकरण पर शिक्षा का प्रभाव

समाज एक क्रियाशील मानवीय संगठन है। अतएव निश्चय ही मानवीय क्रियाएँ समाज में होंगी। समाज के दो रूप हमें दिखाई देते हैं ग्रामीण समाज तथा नगरी समाज (Rural Society and Urban Society)| वस्तुतः किसी भी भूखण्ड के दो रूप होते हैं-ग्राम और नगर। ग्राम वह स्थान है जहाँ प्राकृतिक ढंग से जीवन व्यतीत करने को मिलता है, सीमित सुविधाएँ होती हैं और यांत्रिक रहन-सहन नहीं होता है। नगर ग्राम से बड़े स्थान होते हैं क्योंकि वहाँ जीवन की सभी सुखद सुविधाएँ सुलभ होती हैं। नगर का रहन-सहन कृत्रिम होता है और यंत्रवत् काम करना पड़ता है। अतएव ग्रामीण एवं नगरी जीवन संस्कृति के दो स्वरूप हैं, समाज के दो पहलू हैं। समाज की गतिशीलता, हलचल, परिवर्तन अदि नगरी जीवन को अधिक प्रभावित करते हैं। ग्राम के जीवन की सुविधाओं के न मिलने से ही नगरों का निर्माण मानव प्राणी ने किया और एक नए ढंग से जीवन व्यतीत करने का प्रयत्न किया। इसे ही समाजशास्त्र की शब्दावली में नगरीकरण कहा जाता है। शिक्षा नगरीकरण में योग देती है। अतएव यहाँ पर हमें नगरीकरण एवं शिक्षा के बारे में कुछ विस्तार के साथ जानना जरूरी है।

नगरीकरण का तात्पर्य

नगर शब्द से ‘नगरीकरण’ शब्द बना है। नगर शब्द की उत्पत्ति ‘नय्’ धातु से हुई जान पड़ती है जिसका अर्थ आगे ले जाना होता है। अग्र उपसर्ग लगाने से ‘नयन’ शब्द- बनता है जिसका तद्भव नगर शब्द होता है। अब स्पष्ट है कि नगर ऐसा स्थान है जो जीवन को आगे ले जाता है। (City is the place which leads life forward).

अंग्रेजी का City शब्द फ्रेंच भाषा के City शब्द से बना हुआ है जिसका तात्पर्य स्थान विशेष से लिया जाता है जहाँ पर लोग व्यापार, व्यवसाय, धर्म, शासन, उद्योग आदि के लिए एकत्र होते हैं। नगर के अंग्रेजी भाषा में Town शब्द है जिसका मूल शब्द Tun है, और Tun शब्द का अर्थ घेरा या बाड़ा (Enclosure) होता है। इस प्रकार Town शब्द का अर्थ ऐसे स्थान से होता है जो घेरा हुआ हो अथवा सीमित और सुरक्षित हो। अब तात्पर्य ऐसे स्थान या सुरक्षित, तथा सीमाबद्ध स्थल से है जहाँ लोग व्यापार, व्यवसाय, धर्म, शासन, उद्योग के लिए रहें और तदनुकूल जीवन व्यतीत करें।”

नगर में लोग समाज बनाकर रहते हैं और एक सभ्य एवं संस्कृत जीवन व्यतीत करते. हैं ऐसा सामाजिक जीवन के विकास के अध्ययन से ज्ञात होता है। नगर में इस प्रकार से समाज बनाने, रहने और जीवन व्यतीत करने की प्रक्रिया है जिसका सम्बन्ध सामाजिक उद्विकास, सामाजिक गतिशीलता और सामाजिक परिवर्तन से होता है।

नगरीकरण और शिक्षा

नगरीकरण की प्रक्रिया शिक्षा की प्रक्रिया से सम्बन्धित होती है। नगर का जीवन  संस्कृत होता है। शिक्षा संस्कृति का अंग है। अतएव शिक्षा प्राप्त करने के कारण ही लोगों के द्वारा नगरीकरण होता है। इसके विपरीत नगरीकरण का प्रभाव शिक्षा के स्वरूप, विकास और संस्थाओं पर भी पड़ता है। शिक्षा और नगरीकरण इस प्रकार एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। अतः हमें इस प्रभाव को अच्छी तरह समझना चाहिए।

नगरीकरण का शिक्षा पर प्रभाव-

नगरीकरण का प्रभाव शिक्षा के स्वरूप, शिक्षा. के पाठ्यक्रम, शिक्षालय एवं शिक्षक तथा शिक्षार्थी पर पड़ता है। कुछ विस्तार के साथ हम इसे यहाँ प्रकट कर रहे हैं-

(i) शिक्षा के स्वरूप पर नगरीकरण का प्रभाव- नगरीकरण समाज को सभ्य एवं संस्कृत बनाने का एक प्रयास है। नगर के निवासी ग्रामीणों से अधिक शिक्षित, कला- कौशल में चतुर, ज्ञान-विज्ञान, तकनीकी में आगे पाये जाते हैं। वास्तव में नगर निवासी सविधिक शिक्षा ग्रहण करने की सुविधा अधिक पाते हैं। फलस्वरूप नगरीकरण के कारण शिक्षा मनुष्य का संस्कृतिकरण कहलाती है। इसका लक्ष्य मनुष्य बनाना एवं सभ्य बनाना होता है। इससे भी आगे शिक्षा को नागरिकों का प्रशिक्षण माना जाता है। और शिक्षा का लक्ष्य समाज-कुशल नागरिक का निर्माण होता है।

(ii) शिक्षा के पाठ्यक्रम पर नगरीकरण का प्रभाव- नगरीकरण की प्रक्रिया का प्रभाव शिक्षा के पाठ्यक्रम पर भी पर्याप्त पड़ता है। शिक्षा का पाठ्यक्रम जीवन की आवश्यकताओं के आधार पर बनता है। जैसा नगर होता है वैसी ही शिक्षा होती है। नगर यदि खेतिहर है तो शिक्षा के पाठ्यक्रम में कृषि की शिक्षा के लिये व्यवस्था होगी, नगर यदि तकनीकी वैज्ञानिक, औद्योगिक विकास का केन्द्र होगा तो पाठ्यक्रम में भी इनसे सम्बन्धित विषय रखे जावेंगे। नगर प्रशासन एवं राजनीति का केन्द्र होता है। ऐसी दशा में शिक्षा के पाठ्यक्रम में प्रशासन एवं राजनीतिक विषय रखे जाते हैं। समाजशास्त्र का विषय भी इसी दृष्टि से पाठ्यक्रम में रखा जाता है। भारत में विज्ञान, तकनीकी विषय, कौशल के विषय पाठ्यक्रम में इसी नगरीकरण के प्रभाव से रखे गये हैं। बहु उद्योगी पाठ्यक्रम की रचना नगरीकरण के कारण हुई है।

(iii) शिक्षा की विधि पर नगरीकरण का प्रभाव- नगरीकरण का प्रभाव शिक्षा विधि पर भी पड़ता है। नगरों में प्रयोगशाला की व्यवस्था सुलभ होती है, बहुत से यंत्र सुलभ होते हैं और इसलिए प्रयोगशाला विधि, यांत्रिक विधि, श्रव्य-दृश्य विधि से शिक्षा देने की व्यवस्था होती है। आधुनिक समय में Mass Media of Education नगरीकरण का ही प्रभाव कहा जाता है।

(iv) शिक्षालय, शिक्षक एवं शिक्षार्थी पर नगरीकरण का प्रभाव- नगरों में ग्रामों की अपेक्षा अधिक विद्यालय होते हैं। शिशु, बालक, किशोर, युवा, प्रौढ़ सभी के लिए विद्यालय होते हैं। सामान्य शिक्षा, तकनीकी शिक्षा, व्यावसायिक शिक्षा, औद्योगिक महाविद्यालय, विश्वविद्यालय, पत्राचार विद्यालय, सायं रात्रि विद्यालय नगर में चलते हैं। ऐसी सुविधा नगरीकरण से ही सुलभ होती है। इससे शिक्षा का विकास भी सर्वाधिक होता है।

शिक्षालय के समान शिक्षक पर भी नगरीकरण का प्रभाव पाया जाता है। नगर के अध्यापक अधिक योग्यता, अनुभव और ज्ञान रखते हैं क्योंकि नगरों में शिक्षण एवं प्रशिक्षण की सुविधाएँ एवं संस्थाएँ अधिक संख्या में होती हैं। नगरों के अध्यापकों में परस्पर सम्पर्क सरलता एवं शीघ्रता से होता है इससे भी ज्ञान-प्रशिक्षण का विकास सम्भव होता है। फलस्वरूप अध्यापक शिक्षा की प्रगति में अधिक योगदान करते हैं। शिक्षकों के संघ के निर्माण से उनको अपने अधिकारों एवं लाभों की माँग करने में सहायता मिलती है। इससे उनमें सामाजिक चेतना आती है और सामाजिक प्रगति की ओर वे बढ़ते हैं।

शिक्षार्थी पर भी नगरीकरण का प्रभाव देखा जाता है। जनतन्त्र की भावना छात्रों में नगरीकरण के प्रभाव से आती है और इसके फलस्वरूप उनमें नागरिक चेतना, राष्ट्रीय चेतना एवं सामाजिक चेतना आती है और वे केवल शैक्षिक सुधार के लिए ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय एवं सामाजिक सुधार के लिए भी प्रयलशील होती हैं। नगरीकरण के कारण ही “छात्र एकता” स्थापित हुई है और वे शिक्षा की सर्वोत्तम व्यवस्था की माँग करते हैं। शिक्षार्थी समाज का नेतृत्व करता है और भविष्य का योग्य नागरिक बनता है। नगरीकरण के कारण औद्योगिक क्रान्ति हुई जिसमें छात्रों का योगदान पाया जाता है।

निष्कर्ष- ऊपर के विचारों से यह स्पष्ट हो जाता है कि शिक्षा, शिक्षालय, शिक्षक एवं शिक्षार्थी सभी नगरीकरण से प्रभावित होते हैं और इनका अधिकतम विकास होता है। वे प्रगति करते हैं और समाज को ऊपर ले जाने में समर्थ होते हैं।

नगरीकरण पर शिक्षा का प्रभाव-

नगरीकरण का सम्बन्ध समाज के संगठन एवं जीवन से होता है जो एक विशेष स्थान पर होता है। नगरीकरण के अन्तर्गत सामाजिक एवं नागरिक भावना, नैतिक गतिशील जीवन, संघ-निर्माण, सामाजिक सहिष्णुता, सन्तुलित व्यक्तित्व का विकास, सामाजिक विभिन्नता और एकता की स्थापना शामिल होती है। शिक्षा समाजीकरण एवं संस्कृतिककरण की प्रक्रिया होती है जो सम्पूर्ण जीवन में चलती रहती है। अब स्पष्ट है कि नगरीकरण यदि समाजीकरण के अन्तर्गत होता है तो निश्चय ही शिक्षा के द्वारा नगरीकरण और इसके अन्तर्गत आने वाली चीजें सम्पन्न होती हैं।

(i) शिक्षा के द्वारा नगरी संस्कृति का विकास- संस्कृति के दो स्तर पाये जाते हैं नगरी तथा ग्रामीण। दोनों स्तरों में कुछ न कुछ भिन्नता अवश्य पाई जाती है। नगरी संस्कृति उच्चस्तरीय होती है। शिक्षा के कारण ही ऐसा होता है। जितनी अधिक शिक्षा होगी उतनी ही अधिक संस्कृति उच्चस्तरीय होती है। इस प्रकार नगरी संस्कृति का विकास शिक्षा के द्वारा होता है।

(ii) शिक्षा के द्वारा लोगों के सम्बन्धों एवं सम्पकों में विकास- शिक्षा मनुष्य को आगे बढ़ाती है एवं प्रगतिशील चिन्तन के योग्य बनाती है। शिक्षित व्यक्ति अधिक लोगों से सम्बन्ध एवं सम्पर्क रखते हैं। इससे उनमे अन्तर्सास्कृतिक, अन्तर्रामाजिक, अन्तर्जातीय सबन्ध हो जाता है। भेदभाव मिटता है और सामाजिक एकीकरण सम्भव होता है। ये सभी लक्षण नगरीकरण के होते हैं अतः इस सन्दर्भ में नगरीकरण पर शिक्षा का प्रभाव देखा जाता है।

(iii) शिक्षा के द्वारा सामाजिक विभिन्नता का विकास- नगर अनेक संस्थाओं, समितियों, व्यवसायों, व्यापारों एवं कार्यों का स्थान होता है। सभी लोग इस प्रकार भिन्न रुचि का विकास करते हैं और उनमें एकरूपता न होकर बहुरूपता पाई जाती है। इससे अधिक वैयक्तिक भावना भी लोगों में आ जाती है। इसका कारण विभिन्न प्रकार की शिक्षा होती है। अतः स्पष्ट है कि शिक्षा नगरीकरण को प्रभावित करती है जो सामाजिक विभिन्त्रता के विकास के रूप में पाई जाती है।

(iv) शिक्षा के द्वारा सामाजिक गतिशीलता का विकास- आज नगरों में जाति-पाँति के बन्धन टूट रहे हैं, लोगों में अन्तर्जातीय विवाह सम्बन्ध हो रहे हैं, स्त्रियाँ आगे बढ़ रही हैं, हरिजन एवं अनुसूचित जातियों के लिये सरकार की ओर से आरक्षण हो रहा है, मौलिक अधिकारों की माँग समाज के लोग करते जाते हैं, ये सब समाज की गतिशीलता व्यावहारिक ढंग से प्रकट कर रहे हैं। लोगों को धारणाओं, विचारधाराओं, मान्यताओं में परिवर्तन हो रहे हैं। ये नगरीकरण के विभिन्न स्वरूप हैं और शिक्षा के फलस्वरूप होते हैं। अतः नगरीकरण पर शिक्षा का प्रभाव पाया जाता है।

(v) नैतिक भावना का विकास- शिक्षा एक प्रकार से उच्चतर समायोजन भी होती है। ऐसी स्थिति में वह नैतिक भावना का विकास करती है। नगर में सुरक्षा एवं सुव्यवस्था के कारण लोगों में अपराधवृत्ति कम पाई जाती है। लोगों में एक दूसरे के लिए श्रद्धा-सम्मान होता है। जब नगर का पतन होता है अपराध, व्यभिचार, जालसाजी, अनैतिकता अधिक बढ़ती जाती है। नैतिक शिक्षा इसे रोक सकती है। अतः स्पष्ट है कि नैतिक भावना के विकास और नगरीकरण पर शिक्षा का प्रभाव पड़ता है।

नगरीकरण और सामाजिक गतिशीलता- नगरीकरण का सम्बन्ध सामाजिक गतिशीलता के साथ गहरा होता है इसलिए उस पर गहरा प्रभाव भी पड़ता है। नगरीकरण से सामाजिक गतिशीलता तीव्रगामी हो जाती है जिससे लोगों के जीवन में बहुत अन्तर आ जाता है। नगरों में व्यापार, सेवा, व्यवसाय आदि करने वालों में स्थानान्तरण होता है जैसे आज गाँव छोड़कर लोग नगर में बसते जा रहे हैं। यह भी नगरीकरण का प्रभाव है। सामाजिक जीवन के स्तर ऊँचे उठते हैं यदि नगरीकरण होता है। इससे आर्थिक जीवन, जीवन के साधन जुटाने, आर्थिक उत्पादन आदि में भारी गतिशीलता आ जाती है। लोग धनोपार्जन की क्रिया में व्यस्त पाये जाते हैं। वैसे ही मनोवृत्ति, शिक्षा-दीक्षा की होती है। नगरीकरण का प्रभाव सामाजिक गतिशीलता पर यहाँ भी मिलता है।

परन्तु अधिक नगरीकरण से कई समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। उदाहरण के लिए शहरों के आवास की कमी हो जाती है, जो मकान रहते हैं उनका किराया व मूल्य बढ़ जाता है, जीवन की सुविधाएँ मँहगे दामों में मिलती हैं जिससे गरीब व्यक्ति अद्यःपोषित होता है। गाँवों की ओर शहरों को बढ़ाने का प्रयास होता है जिससे गाँवों की जमीन की उपज समाप्त हो जाती है और खाद्यान्न का संकट होता है। इससे दूसरों से माँगना पड़ता है। साथ ही लोगों में चोर-बाजारी, तस्करी, माँगने की प्रवृत्ति, टैक्स न देने, आमदनी छिपाने आदि की प्रवृत्ति भी पाई जाती है।

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Pankaja Singh

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