शिक्षाशास्त्र

एकीकरण तथा विभेदीकरण और शिक्षा  | एकीकरण का अर्थ | सामाजिक एकीकरण का अर्थ | सामाजिक एकीकरण के साधन | सामाजिक एकीकरण और शिक्षा

एकीकरण तथा विभेदीकरण और शिक्षा  | एकीकरण का अर्थ | सामाजिक एकीकरण का अर्थ | सामाजिक एकीकरण के साधन | सामाजिक एकीकरण और शिक्षा

एकीकरण तथा विभेदीकरण और शिक्षा 

समाज विभिन्न व्यक्तियों का इकाई रूप एक समूह होता है। समाज का निर्माण विभिन्न व्यक्तियों के एक साथ मिलने पर होता है। ऐसे व्यक्ति निजी तौर पर कुछ न कुछ भेद अथवा भिन्नता रखते हैं जिसको समाज के संगठन के समय भूल जाना पड़ता है। फिर भी स्वाभाविक तौर पर उनकी भिन्नता समाज में प्रकट होती है। उदाहरण के लिए भारतीय समाज या अमरीकी समाज एक होते हुए भी गरीब-अमीर उच्च एवं निम्न जैसी विभिन्न इकाइयों से युक्त होता है। अब स्पष्ट है कि समाज में एक ओर एकता या एकीकरण होता है तो दूसरी ओर समूह के लोगों में विभेदीकरण भी पाया जाता है। इसीलिए तो प्रो० मैक-आइवर ने समाज को सम्बन्धों का एक जटिल जाल माना है। दूसरे शब्दों में समाज में एकीकरण और विभेदीकरण दोनों स्थितियाँ पाई जाती हैं। इन पर शिक्षा का प्रभाव पड़ता है। शिक्षा का स्वरूप भी समाज की इन दो प्रक्रियाओं और स्थितियों से प्रभावित होता है। अतः इन सब पर हमें प्रकाश डालना है।

एकीकरण का अर्थ

एकीकरण का सरल अर्थ है “एक में करना” अथवा एक पूर्ण बनाना। जब भिन्न अंगों को एक साथ मिलाने की प्रक्रिया होती है तो उसे एकीकरण कहते हैं। इस सम्बन्ध में प्रो० जेम्स ड्रेवर ने लिखा है कि “एकीकरण अधिकतर सामान्यतया वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा आंगिक, मनोवैज्ञानिक, या सामाजिक सामग्री जोड़ी जाती है और एक उच्चतर स्तर पर एक जटिल सम्पूर्ण में संगठित की जाती है।”

ऊपर के कथन से हमें स्पष्ट होता है कि एकीकरण संगठन की एक प्रक्रिया होती है और इस एकीकरण के कारण सभी अंगों का एक जटिल स्वरूप या ढाँचा बन जाता है जो एक पूर्ण इकाई दिखाई देती है। इसके अलावा एकीकरण की प्रक्रिया से उच्चस्तरीय संगठन बनता है। अतः यह निष्कर्ष निकलता है कि एकीकरण जटिल, उच्चस्तरीय एवं सम्पूर्ण रूप में संगठन की प्रक्रिया होती है।

सामाजिक एकीकरण का अर्थ

मनुष्य जन्मतः एवं स्वभावतः एक सामाजिक प्राणी होता है। वह दूसरों से सम्पर्क- सहयोग करता है जिससे सभी की आवश्यकताएँ पूरी होती हैं। इस प्रकार मनुष्य का समूह या सप्रयोजन संगठन बनता है। समाज में व्यक्ति, समूह और संस्थाएँ तथा इनकी व्यवस्थाएँ होती हैं। अब स्पष्ट है कि समाज एक सावयवी रचना है। समाज का निर्माण व्यक्ति विभिन्न प्रकार की संस्थाएँ एवं व्यवस्थाएँ बनाकर करता है और ये ही संस्थाएँ एवं व्यवस्थाएँ समाज के अंग या अवयव होती है। मनुष्य चूँकि इन अवयवों का निर्माण अपने परस्पर के व्यवहारों एवं सम्बन्धों से करते हैं इसलिए निश्चय ही वे इन अवयवों को एकीकृत करने का प्रयास करते हैं। अतः ऐसे प्रयास को या प्रक्रिया को हम सामाजिक एकीकरण कहेंगे। दूसरे शब्दों में सामाजिक एकीकरण का अर्थ उस सामाजिक प्रक्रिया से लिया जाता है जिसके द्वारा समाज के विभिन्न अवयव एक सूत्र में जोड़े जाते हैं अथवा एक सम्पूर्ण प्रणाली में समाज की विभिन्न संस्थाएँ और व्यवस्थाएँ संगठित की जाती हैं।

उदाहरण लिये समाज के व्यक्ति परिवार, जाति, समुदाय, वर्ग, धर्म, राज्य आदि संस्थाएँ बनाकर जीवन व्यतीत करते हैं। विवाह, शासन, व्यवसाय, ममिति, संघ आदि की व्यवस्थाएँ करते हैं। ये सब अलग-अलग होते हैं परन्तु सभी परस्पर जोड़े जाते हैं अन्यथा समाज का संगठन नहीं हो पाता है। अतः जब मनुष्य सभी संस्थाओं और व्यवस्थाओं का अपने हित के विचार से एक साथ संगठन करता है तो हम वहाँ सामाजिक एकीकरण पाते हैं।

समाज का एक विशिष्ट रूप राष्ट्र होता है। राष्ट्र शिक्षित एवं राजनैतिक रूप से चेतन व्यक्तियों का संगठन होता है जिसका लक्ष्य समूह अथवा समाज को प्रोन्नत करना है। सामाजिक अनुरूपता समाज की वह विकसित स्थिति है जब उसके सभी सदस्य परस्पर मिलजुल कर रहते हैं और समान आदर्शों का व्यवहार में प्रयोग करते हैं जिससे सभी व्यक्ति समष्टि का रूप धारण करते हैं। यही स्थिति राष्ट्र के निर्माण में मिलती है। राष्ट्र के लोगों में कोई भेदभाव नहीं होता है, विभिन्न प्रदेशों की बोलियाँ भिन्न होती हैं फिर भी एक राष्ट्रभाषा का प्रयोग होता है। इसी प्रकार सर्वधर्म सम्मान की भावना राष्ट्र के लोगों में मिलती है। संस्कृति की एकता भी राष्ट्र में होती है। वर्ग भेद वैयक्तिक दृष्टि से दिखाई देता है, सामाजिक और राष्ट्रीय दृष्टि से कोई अन्तर नहीं होता है। आज भारतीय राष्ट्रीयता में इसी प्रकार के लक्ष्य दिखाई दे रहे हैं। इसको प्रदान करने के लिए, इस समभावनायुक्त राष्ट्रीय एकीकरण के विकास में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका पाई जाती है। शिक्षा का उद्देश्य, पाठ्यक्रम और शिक्षाविधि राष्ट्रीय संसाधनों पर आधारित होते हैं और तदनुरूप इन पर निर्माण भी किया जाता है। शिक्षा सर्वहितकारी होती है और सभी को बिना भेदभाव के दी जाती है इस विचार से कि देश के सभी लोग अपनी क्षमताओं का अधिकतम विकास करके राष्ट्रीय विकास में पूरा योगदान कर सकें।

सामाजिक एकीकरण के साधन

सामाजिक एकीकरण मनुष्यों के द्वारा किये गये व्यवहारों एवं व्यवहारों को उत्तेजित करने वाले तत्वों से सम्पन्न होता है। ऐसी स्थिति में हमें सामाजिक एकीकरण के साधनों पर भी विचार करना चाहिये। समाजशास्त्रियों के द्वारा हमें निम्नलिखित साधन बताये गये हैं-

  1. समान भाषा (Common Language)- जैसे अपने देश और अन्य देशों में राष्ट्र भाषा होती है जिसे समान रूप में सभी प्रयोग करते हैं।
  2. धर्म (Religion)- जो सभी सदस्यों को समान भावना से बाँधे रहता है।
  3. पड़ोसी जीवन (Proximate Living)- जिससे लोगों में सम्पर्क एवं सम्बन्ध दृढ़ होता है।
  4. अन्तर्सम्बन्ध (Inter-relationships)- जो परिवार, जाति, समुदाय के लोगों में पाया जाता है।
  5. शासन (Government)- जिसके अन्तर्गत सभी सदस्य नागरिक बनाये जाते हैं।
  6. व्यापारिक संस्थाएँ (Business Institutions)- जिसके कारण आवश्यकताओं की पूर्ति होती है।
  7. संस्कृति (Culture)- जो सम्पूर्ण सामाजिक विरासत है।
  8. शिक्षा (Education)- जो लोगों में सामाजिक एकीकरण की चेतना उत्पन्न करती है।

सामाजिक एकीकरण और शिक्षा

ऊपर के विचारों से ज्ञात होता है कि शिक्षा और शिक्षा की संस्थाएँ एवं अभिकरण सामाजिक एकीकरण के साधन हैं। आज के व्यापक मानव समाज में शिक्षा एक अत्यन्त शक्तिशाली साधन माना जाता है। शिक्षा मनुष्य का अनुभव और ज्ञान है जिसके माध्यम से सामाजिक एकीकरण का संप्रत्यय ग्रहण किया जाता है। शिक्षा की प्रक्रिया मनुष्य को एकीकरण के प्रति सचेतन बनाती है, प्रयत्नशील करती है क्योंकि उसे सामाजिक भावना की अनुभूति एवं अवबोधना होती है।

सामाजिक एकीकरण में शिक्षक, शिक्षार्थी एवं शिक्षालय और शिक्षालय सामग्रियां अपना-अपना योगदान करते हैं। यहाँ हम इन पर कुछ विस्तार के साथ विचार कर लें तो स्थिति स्पष्ट हो जावेगी।

(i) सामाजिक एकीकरण और शिक्षक- सामाजिक एकीकरण का विकास शिक्षक के द्वारा होता है और किया जाना चाहिये। इसके लिये शिक्षक को जातिवादी, सम्प्रदायवादी, क्षेत्रवादी और प्रदेशवादी भावों को दूर रखना चाहिये। उसके द्वारा व्यापक भावों के साथ समान व्यवहार छात्रों एवं अन्य लोगों के साथ होना चाहिये। शिक्षा कार्य करते समय उसे पूरे मानव समाज के हित को ध्यान में रखना चाहिये। इसके लिये देश- विदेश का भ्रमण छात्रों के साथ रना और समाज के विभिन्न के लोगों से सम्बन्ध एवं सम्पर्क स्थापित करना चाहिये। उसे विभिन्न सामाजिक उत्सवों में भाग लेना चाहिये तथा संस्थाओं का सदस्य बनना चाहिये तथा सामाजिक क्रियाओं में योगदान करना चाहिये । इस प्रकार वह समाज का सक्रिय, सचेतन एवं सहकारी सदस्य बनकर सामाजिक एकीकरण ला सकता है।

(ii) सामाजिक एकीकरण और शिक्षार्थी- सामाजिक एकीकरण में शिक्षार्थी का योगदान भी सराहनीय होता है। शिक्षार्थी विद्यालय में तथा उसके बाहर विभिन्न समितियों को बनावे और सामाजिक कार्यक्रमों को पूरा करे। इनमें भाग लेते समय बिना किसी भेदभाव के उसका व्यवहार और आचरण होना चाहिये। छोटी-छोटी टुकड़ियों में समाज के लोगों के साथ सम्पर्क स्थापित करना चाहिये तथा सामाजिक सेवा शिविर की योजना करनी चाहिये । आजकल समाज शिक्षा या प्रौढ़ शिक्षा में साक्षरता का प्रचार भी शिक्षार्थी कर सकता है और सामाजिक एकीकरण ला सकता है। गन्दी बस्तियों में सफाई की योजना भी शिक्षार्थी कर सकते हैं। अन्य वर्गों में भी सामाजिक सेवाओं की योजना की जा सकती है। ‘सेवा समिति’, ‘मुहल्ला कल्याण समिति’, ‘खेल गोष्ठी’ आदि को बना कर शिक्षार्थी सामाजिक एकीकरण ला सकते हैं।

(iii) सामाजिक एकीकरण और शिक्षालय- शिक्षालय की व्यवस्था सम्भावना के साथ चलनी चाहिये । विद्यालय के समुदाय केन्द्रित बनाने की योजना इस दिशा में अच्छी है। समाज के सभी उत्सवों एवं कार्यक्रमों में विद्यालय के सदस्य भाग लेवें। इससे एकीकरण जल्दी होता है। शिक्षालय का पाठ्यक्रम भी समाजसम्बन्धी विषयों को शामिल करे। हो सके तो इनके साथ व्यावहारिक क्रियाएँ भी कराई जावें। कौशल उद्योग, तकनीकी विषयों के अध्ययन-अध्यापन से व्यावहारिक तौर पर सामाजिक एकीकरण लाया जा सकता है। शिक्षालय सभी वर्ग, जाति, धर्म एवं सम्प्रदाय के लोगों को एक साथ एक रीति से शिक्षा देकर सामाजिक एकीकरण का आदर्श स्थापित करता है।

(iv) सामाजिक एकीकरण और शिक्षण-सामग्रियां आधुनिक युग में कुछ  शिक्षण सामग्रियों को प्रयोग किया जाता है जिसे “शिक्षा के समूह साधन” (Mass Media of Education) कहा जाता है। इसके अन्तर्गत रेडियो, टेलीविजन, चलचित्र, समाचार-पत्र, पोस्टर आदि शामिल किये जाते हैं। रेडियो की वार्ताएँ, टेलीविजन के सचित्र एवं सवाक् प्रदर्शन, चलचित्र के प्रदर्शन, समाचार-पत्र द्वारा प्रचार एवं विस्तार तथा पोस्टर द्वारा प्रदर्शन और प्रचार आज शिक्षालय एवं उसके बाहर भी होता है। इन सब का लक्ष्य सामाजिक एकीकरण एवं सामूहिक भावना का विकास होता है।

(v) निष्कर्ष- उपर्युक्त विचारों से स्पष्ट है कि शिक्षा सामाजिक एकीकरण का एक शक्तिशाली साधन और कारक है। इस सम्बन्ध में अमरीका की नेशनल रिसोर्सेज कमेटी ने लिखा है, “ससार के इतिहास में इसके पूर्व कभी भी लोगों के समूह सामाजिक पृष्ठभूमियों में इतने भिन्न होते हुए भी इतने समीपी सम्पर्कों में नहीं आये थे जैसे वे आज अमरीकी शहरों में हैं।”

यह तथ्य केवल अमरीका के बारे में ही सत्य नहीं है बल्कि सभी शिक्षित देशों के समाज की स्थिति इसी प्रकार की होती है। जहाँ शिक्षा होगी वहाँ सामाजिक एकीकरण भी होता है। यह इस प्रकार एक पूर्ण सत्य है कि शिक्षा सामाजिक एकीकरण का एक महत्वपूर्ण कारक होती है।

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Pankaja Singh

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