इतिहास

द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् यूरोप की दशा | द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् यूरोप की राजनैतिक दशा

द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् यूरोप की दशा | द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् यूरोप की राजनैतिक दशा

द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् यूरोप की दशा

द्वितीय महायुद्ध का अन्त 1945 में हुआ। इस युद्ध में अमेरिका, इंगलैंड और उसके मित्र राष्ट्रों की विजय हुई। जर्मनी तथा उसके साथी राष्ट्रों की पराजय हुई। महायुद्ध के बाद यूरोप के विभिन्न राष्ट्रों की प्रगति का वर्णन नीचे दिया जा रहा है।

  1. रुस-

अन्य राष्ट्रों की अपेक्षा रूस को इस महायुद्ध में अधिक हानि उठानी पड़ी थी। नाजी जर्मनी ने रूस की विशाल भूमि को उजाड़ डाला था और इसके 30 लाख सनिकों को मार डाला था। इतिहासकारों ने रूस के मृत सैनिकों का अनुमान लगाते हुए लिखा था। किन्तु जन-हानि के अधिक होने पर भी रूस को इस युद्ध से लाभ नहीं हुआ। रूस के पड़ोसी राष्ट्रों पर रूस का आतंक छा गया। यह चेतावनी रूस को हर समय मिलती रही कि रूस अभी खतरे से खाली नही है। अतएव रूस अपनी शक्ति निरन्तर बढ़ाता रहा। रूस को हंगरी, रूमानिया, फिनलैंड और इटली से काफी धन मिला था। इसी प्रकार अमेरिका ने भी रूस की काफी सहायता की थी। इसी पूंजी के बल पर रूस ने अपनी ‘चतुर्थ पंचवर्षीय योजना’ बनाई थी और अपने राष्ट्रीय धन की वृद्धि करने के लिये उसने उत्पादन के क्षेत्रों के विकास में समय दिया था। रूस ने अपने सभी उत्पादन क्षेत्रों को पश्चिमी सीमाओं से हटाकर ‘यूराल’ में स्थापित कर दिया था ताकि उनको युद्ध का कोई भी भय न रहे। इस प्रकार रूस ने अपनी शक्ति बढ़ाई। इसलिए आज रूस संसार के महान् राष्ट्रों में गिना जाता है। अपनी शक्ति के बल पर आज रूस युद्ध के छिड़ जाने पर यूरोप के सभी राष्ट्रों को कुचल सकता है।

  1. ब्रिटेन-

ब्रिटेन को भी द्वितीय महायुद्ध में काफी नुकसान उठाना पड़ा। 6 लाख व्यक्ति मारे गये, लगभग 40 लाख घर जल गये और विदेशी राज्यों से लिया गया ऋण भी बहुत बढ़ गया। ब्रिटेन की दशा पर खेद प्रकट करते हुए प्रसिद्ध अर्थशास्त्री •Keynes’ ने लिखा था। युद्ध की समाप्ति होने पर इंगलैंड में चुनाव की दशा निम्नलिखित ढंग से समझी जा सकती है-

(1) युद्ध समाप्त होने पर इंगलैंड में चुनाव के परिणामस्वरूप अनुदार दल (Conservative Party) के स्थान पर उदार दल (Liberal Party) की सरकार बनी। इस दल की सरकार के नेता  ‘मिस्टर एटली'(Allee) थे।

(2) इंगलैंड की नयी सरकार देश की आर्थिक दशा को ठीक करने के लिये देश की सभी खानों पर अधिकार करना चाहती थी। इसके अतिरिक्त सरकार ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण करके भी देश की आर्थिक दशा को ठीक किया।

(3) जनवरी 1947 में कोयले की खानों का राष्ट्रीयकरण किया जिसके फलस्वरूप देश की आर्थिक दशा पर पूर्णरूपेण सरकार का नियंत्रण हो गया।

(4) इसके बाद विद्युत शक्ति, स्टील आदि पर भी सरकार ने अपना नियंत्रण कर लिया। इन प्रयत्नों द्वारा सरकार ने इंगलैंड की आर्थिक दशा को यूरोप के अन्य राष्ट्रों से बहुत अच्छा होगा।

(5) कृषि समाज सुधार, समाज कल्याण, शिक्षा एवं लोकहित के क्षेत्र में भी ब्रिटेन ने दिन दूनी रात चौगुनी मेहनत की। 1951 में ब्रिटेन के अनुदार दल की सरकार होने पर भी इन क्षेत्रों में प्रगति अविरल गति से होती रही। आजकल ब्रिटेन इन क्षेत्रों के विकास के कारण ही उन्नत राष्ट्रों में माना जाता है।

  1. फ्रांस-

द्वितीय महायुद्ध में फ्रांस को भारी क्षति हुई। इस युद्ध में फ्रांस के 5 लाख घर नष्ट हो गये जिसके कारण 7 1/2 लाख परिवारों को बेघर होना पड़ा। सैकड़ों मील रेलवे लाइन नष्ट-भ्रष्ट हो गई। 50,000 कारखाने और सैकड़ों मोलें जलकर राख हो गई। सबसे बड़े खेद का विषय यह है कि युद्ध के बाद फ्रफ्राकी आर्थिक दशा को ठीक करने वाला कोई प्रभावशाली नेता भी फ्रांस की भूमि पर शेष न रहा।

युद्धोपरांत देश में “फैलिक्स ग्वान” (Felis Guan) के नेतृत्व में ‘चतुर्थ रिपब्लिक’ की स्थापना हुई। इस सरकार ने उपनिवेशों की शासन प्रणाली को फ्रांस की शासन प्रणाली से जोड़ना चाहा। किन्तु इस समय देश के नेताओं में राष्ट्रीयकरण की नीति पर एक मतभेद था। एक वर्ग पक्ष में था और दूसरा विपक्ष में। अतएव फ्रांस में आर्थिक प्रगति बड़ो धीमी थी। राजनैतिक दृष्टि से भी फ्रांस में अराजकता फैली रही। देश के विभिन्न राजनीतिक दल एक-दूसरे से लड़ते-झगड़ते रहे। साम्यवादी दल अपनी शक्ति बढ़ाने में संलग्न था। इस प्रकार युद्धोत्तर फ्रांस उन्नति के पथ पर नहीं था। यदि अमरिका यूरोप के पुनरुत्थान में सहयोग न देता तो फ़ांस में ‘साम्यवादी दल’ अपना आतंक जमा लेता।

  1. इटली-

युद्ध के बाद इटली को आत्म-सम्मान का अभाव रहा। वह आत्मग्लानि के मानसिक दुख से उदासीन रहा। युद्ध के उपरान्त इटली में मित्र राष्ट्रों की एक संयुक्त सैनिक कौंसिल (Joint Allied Military Council) की स्थापना की गई थी। इसमें अमेरिका और विशेषकर ब्रिटेन का प्रमुख हाथ था। इस कौंसिल का प्रमुख ध्येय इटली में फासिस्ट दल को समाप्त करके ‘रिपब्लिक’ की स्थापना करना था। युद्ध के बाद इटली में भी साम्यवादी दल अपना आतंक जमाने की सोचता रहा। किन्तु फ्रांस की भाँति अमेरिका ने इटली की भी सहायता की जिसके फलस्वरूप इटली में अब पूर्णतया शांति हैं।

  1. स्पेन-

इतिहासकारों का ऐसा कथन है कि द्वितीय महायुद्ध का श्रीगणेश स्पेन के गृहयुद्ध, से हुआ. किन्तु स्मरण रहे कि इस महायुद्ध में स्पेन उदासीन रहा। आरम्भ में स्पेन प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जर्मनी की सहायता करता रहा किन्तु जब युद्ध की गति में परिवर्तन आने लगा तो वह उदासीनता की नीति का अनुसरण करने लगा। अन्त में उसका कुछ झुकाव मित्र राष्ट्रों की ओर रहा। उदासीन रहते हुए भी युद्ध की समाप्ति पर स्पेन विषम आर्थिक परिस्थितियों से घिरा हुआ था। अपनी विषम परिस्थितियों से घिरा होने के कारण स्पेन इच्छा रखते हुए भी संयुक्त राष्ट्र संघ का सदस्य न हो सका था किन्तु बाद में रूस का सहयोग प्राप्त करके वह संयुक्त राष्ट्र संघ में अपना कुछ स्थान पा सका। मई 1949 में संयुक्त राष्ट्र संघ की ‘जनरल एसेम्बली’ की मीटिंग हुई जिसमें यह उद्घाषित किया गया कि प्रत्येक राष्ट्र अपनी इच्छा के अनुसार स्पेन से सम्बन्ध रखने में स्वतंत्र है। इसके बाद स्पेन ने अर्जेन्टाइना, फ्रांस तथा ग्रेट ब्रिटेन से व्यापारिक सम्बन्ध स्थापित कर लिये।

  1. पुर्तगाल-

स्पेन की भाँति पुर्तगाल भी युद्ध की लपटों से दूर रहा। वह भी दोनों ओर का मित्र बना रहा। अतएव युद्धोपरांत पुर्तगाल की आर्थिक दशा अच्छी बनी रही। अपनी चतुरता के कारण ही पुर्तगाल एशिया के प्रदेशों में अपने अड्डे जमाये हुए हैं। इंगलैंड और फ्रांस भारत से अपने-अपने अड्डों को छोड़कर चले गये किन्तु पुर्तगाल ‘गोआ’ आदि बस्तियों पर डटा रहा।

  1. जर्मनी-

द्वितीय महायुद्ध में जर्मनी की पराजय हुई थी। अतएव युद्ध से जर्मनी की भारी हानि हुई। जर्मनी के आत्मसमर्पण के बाद इंगलैंड, फ्रांस, अमेरिका और रूस ने जर्मनी को आपस में बाट लिया। जर्मनी की राजधानी ‘बर्लिन’ में उक्त चारों बड़े राष्ट्रों की संयुक्त सरकार स्थापित की गई। किन्न रूस और पश्चिमी राष्ट्रों में मतभेद होने के कारण इस संयुक्त सरकार का कार्य चलना सम्भव न हो सका। विजयी राष्ट्र जर्मनी की सनिक शक्ति को कुचलना चाहते थे और जर्मनी के नाजी दल के नेताओं को भी समाप्त करना चाहते थे। इन महान राष्ट्रों के लिये ये दोनों ही कार्य बडे सरल थे। उन्होंने जर्मनी की सैनिक-शक्ति को कुचल डाला और नाजी दल के प्रमुख नेताओं की जीवन लीला भी समाप्त कर दी। किन्तु जर्मनी की आर्थिक दशा को सुधारना एक जटिल समस्या थी। आर्थिक समस्याओं के कारण जर्मनी विजयी राष्ट्रों को युद्ध के हरजाने की रकम भी अदा करने में असमर्थ था। रूस और पश्चिमी राष्ट्रों में मतभेद होने के कारण भी जर्मनी की आर्थिक समस्या का हल नहीं हो सकता था।

रूस को विरुद्ध देखकर इंगलैंड और अमेरिका ने अपनी नीति में परिवर्तन कर दिया। अब वे आगामी युद्ध में जर्मनी को अपनी ओर मिलाने के स्वप्न देखने लगे। अतएव इंगलैंड, अमेरिका ने जर्मनी के विनाश करने की बात छोड़कर जर्मनी को एक उन्नत एवं सम्पन्न राष्ट्र बनाने की योजना बना डाली। इस योजना के परिणामस्वरूप 1951 में जर्मनी का उत्पादन बढ़ गया और उसकी दशा युद्ध से पूर्व की आर्थिक दशा के बराबर हो गई। पूर्वी जर्मनी में रूस भी राष्ट्रीयकरण की नीति द्वारा अपने जर्मन क्षेत्र में उत्पादन की वृद्धि कर रहा था।

1948 में पश्चिमी जर्मनी की अलग विधान स्वयं बनाने की अनुमति प्रदान की गई। जर्मनी में नये विधान के अनुसार सरकार की स्थापना की गई। वास्तव में जर्मनी पश्चिमी और पूर्वी राष्ट्रों के बीच एक शीत युद्ध का क्षेत्र बना हुआ था। पश्चिमी राष्ट्र जर्मनी को साम्यवाद के विरुद्ध एक दृढ़ राज्य बनाना चाहते थे। इसलिये उन्होंने जर्मनी की उन्नति के लिये भारी धनराशि व्यय की। इसके विपरीत ‘रूस’ जर्मनी को अपने प्रभाव का केन्द्र बनाना चाहता था। इस प्रकार युद्ध के बाद जर्मनी अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का केन्द्र बन गया और उसकी उन्नति का मार्ग अवरुद्ध हो गया। जैसा कि ‘हेजन’ ने लिखा है।

  1. चेकोस्लोवाकिया-

युद्ध से पूर्व चेकोस्लोवाकिया जर्मनी के अधिकार में था और युद्ध के अन्त तक उसी के अधिकर में रहा। युद्ध की समाप्ति पर चेकोस्लोवाकिया को वे सभी प्रान्त लौटा दिये गये जो उससे ले लिये गये थे। चेकोस्लोवाकिया के कुछ नेता लोग युद्ध के समय अमेरिका चले गये थे। युद्ध की समाप्ति पर वे अपने प्रान्त को लौट आये। उन्होंने चेकोस्लोवाकिया में एक ‘साम्यवादी सरकार’ की स्थापना की क्योंकि चेकोस्लोवाकिया का झुकाव रूस की ओर था। रूस ने समय-समय पर चेकोस्लोवाकिया की सहायता की थी। रूस के नेतृत्व को मान लेने से चेकोस्लोवाकिया में साम्यवादी दल का प्रभाव बढ़ गया और “गाटवाल्ड” (Goluwald) के नेतृत्व में वहां पर पूर्णरूपेण साम्यवादी दल की सरकार की स्थापना हो गई। सभी उद्योग-धन्धों पर सरकार का नियन्त्रण हो गया व विरोधी नेताओं का वध कर दिया गया। इस प्रकार युद्धोपरान्त चेकोस्लोवाकिया को अपनी स्वतन्त्रता से हाथ धोना पड़ा।

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Pankaja Singh

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