द्वितीय महायुद्ध की प्रगति | Progress of World War II in Hindi
द्वितीय महायुद्ध की प्रगति
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पोलैण्ड की समाप्ति-
हेजन’ ने लिखा है कि जर्मन सेना ने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया। “वारसा'” नगर पर खूब बम वर्षा हुई। इधर इंगलैंड ने भी युद्ध की उद्घोषणा कर दी किन्तु जर्मनी में इस पर कोई ध्यान नहीं दिया। उधर रूस ने भी पूर्व की ओर से पोलैण्ड पर आक्रमण किया। इस प्रकार रूस तथा जर्मनी ने पोलैंड पर विजय प्राप्त की। 28 सितम्बर, 1939 को रुस तथा जर्मनी ने सन्धि करके पोलैण्ड को आपस में बाँट लिया।
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फिनलैंड में युद्ध-
यद्यपि रूस ने जर्मनी से सन्धि कर ली थी किन्तु फिर भी रूस को भय था कि कहीं फिनलैंड के मार्ग से होकर जर्मनी ‘लेनिनग्राड’ पर आक्रमण न करे। इसी भय से प्रेरित होकर रूस ने फिनलैण्ड का वह भू-भाग जीत लिया जिससे होकर ‘लेनिनग्राड’ पर जर्मनी के आक्रमण का भय था। इसके बाद रूस ने फिनलैंड से सन्धि कर ली। कुछ ही दिनों बाद रूस ने बाल्टिक सागर के गणराज्य एस्थोनिया (Estonia), लेटविया (Latvia) और लिथुआनिया (Lithuania) को भी हड़प लिया। इस प्रकार फिनलैंड के युद्धों के परिणामस्वरूप रूस को उससे भी अधिक मिल गया जो वह चाहता था।
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पूर्वी यूरोप पर अधिकार-
1 सितम्बर, 1939 को जर्मनी ने पोलैंड को सीमा में प्रवेश किया था। एसा विश्वास किया जा रहा था कि विश्व के राष्ट्रों के बड़े-बड़े नगर शीघ्र ही धूल में मिला दिये जायेंगे। किन्तु कुछ दिनों तक पूर्ण शान्ति रही। 1940 की बसंत ऋतु के आरम्भ होते ही युद्ध के बादल उमड़ पड़े।
(1) जर्मनी ने डेनमार्क तथा नार्वे को अपना लक्ष्य बनाया। हिटलर का विचार था कि डेनमार्क उसकी मक्खन, अण्डे, माँस आदि से सहायता करेगा और नार्वे पर अधिकार करके वह ब्रिटेन पर सीधा आक्रमण कर सकेगा। 9 अप्रैल को डेनमार्क पर अधिकार कर लिया गया। इसके पश्चात् नार्वे पर भी अधिकार कर लिया गया।
(2) नार्वे तथा डेनमार्क पर अधिकार करके हिटलर ने बेल्जियम तथा हालैंड पर भी अधिकार कर लिया। अब वह फ्रांस पर आक्रमण करने का विचार करने लगा बेल्जियम और हालैंड पर जर्मनी का अधिकार हो जाने के फलस्वरूप इंगलैंड में चम्बरलेन की सरकार का अन्त हो गया और उसके स्थान पर चर्चिल के नेतृत्व में एक मिली-जुली सरकार का निर्माण हुआ।
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फ्रांस पर आक्रमण-
जर्मनी ने बेल्जियम के मार्ग से फ्रांस पर आक्रमण किया और कुछ ही समय में पेरिस नगर पर अधिकार कर लिया। फ्रांस की सरकार का पतन हो गया। ब्रिटेन के प्रधानमन्त्री ‘चर्चिल’ ने फ्रांस को बचाने का बहुत प्रयास किया किन्तु वह सफल न हो सका। अन्त में जर्मनी के साथ फ्रांस की सन्धि हो गई जिसके अनुसार-
(1) फ्रांस का बहुत बड़ा प्रदेश, जिसमें सारा एटलांटिक सागर एवं चैनल का समुद्री किनारा भी सम्मिलित था, जर्मनी में सम्मिलित कर लिया गया।
(2) जो जर्मन फौजें फ्रांस के ऊपर अधिकार करने में पड़ी हुई थी उनका खर्चा फ्रांस को देना पड़ा।
(3) फ्रांस ने वादा किया कि वह जर्मनी को बहुत सारा भोजन, रसद व युद्ध का सामान देगा।
(4) फ्रांस में जो जर्मन कैदी बन्द थे उनको छोड़ दिया गया। लेकिन जो फ्रांसीसी सैनिक जर्मनी में कैद थे उनको कारखानों अथवा शस्त्रागारों में काम करने के लिये रोक लिया गया।
(5) फांस की सरकार की पार्थना पर यह तय किया कि फ्रांस का जहाजी बेड़ा ब्रिटन के विरूद्ध प्रयोग नहीं किया जायेगा।
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इटली में युद्ध–
फ्रांस के हार जाने पर इटली भी युद्ध में कूद पड़ा । इटली के अधिनायक मुसोलिनो ने फांस से नाइस (Nice), सैवाय (Suvoy) तथा कोर्सिका (Corsica) के प्रान्त माँगे। किन्तु जर्मनी ने इस सम्बन्ध में उसकी कोई मदद न की, इसलिये उसे निराश होना पड़ा।
इइटली ने उत्तरी अमेरिका में ग्रेट ब्रिटेन के साथ युद्ध आरम्भ किया। उसने बालकान प्रदेश में अल्बानिया के राज्य को जीत लिया और ग्रीस पर आक्रमण कर दिया, किन्तु इंगलैंड की सेनाओं ने उसको हरा दिया। इसके बाद जमनी सेनाओं ने अंग्रेजों को ‘कीट’ के युद्ध में हराया।
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इंगलैंड से युद्ध-
बहुत दिनों तक ग्रेट ब्रिटेन इटली तथा जर्मनी से अकेला ही लड़ता रहा। अमरीका आदि राष्ट्रों का विचार था कि इंगलैंड युद्ध में हार जायेगा। किन्तु चर्चिल के अदम्य उत्साह ने अंग्रेजों का साहस नहीं टूटने दिया। उसने अपने देशवासियों से “खून, श्रम, आँसू तथा पसीने” की मांग की। चर्चिल की अपील ने जादू का काम किया। सम्पूर्ण अंग्रेज जनता तन, मन और धन से युद्ध में सहायता देने को तैयार हो गई।
1940 में जर्मनी ग्रेट ब्रिटेन पर आक्रमण किया। अनेकों ब्रिटिश हवाई जहाजों को नष्ट कर दिया गया। चर्चिल ने स्वयं कहा था कि “मानव इतिहास में इतने थोड़े लोगों ने इतना बड़ा काम कभी नहीं किया।” इस पर भी 1941 के बसंत तक अंग्रेज जाति युद्ध से भयभीत न हुई।
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अमेरिका का दृष्टिकोण-
अभी तक अमेरिका सोच रहा था कि यह युद्ध यूरोप का है। वह युद्ध में भाग लेने के विरुद्ध था। अमेरिका की कांग्रेस ने एक अधिनियम पास किया था जिसकी तटस्थता अधिनियम (Neutrality Act) कहते थे, जिसके अनुसार कोई भी देश अमेरिका से सामान खरीद सकता था। अमेरिका किसी भी युद्ध ग्रस्त देश को भोजन अथवा शस्त्रास्त्र बेच सकता था। शर्त केवल यह थी कि माल अमेरिका में ही लेना पड़ता था और उसके ले जाने का उत्तरदायित्व खरोदने वाले राष्ट्र पर ही था। ग्रेट ब्रिटेन ने अमेरिका से बहुत सा माल खरीदा और अपनी सेना के बल पर जर्मनी को कोई माल नहीं खरीदने दिया।
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फ्रांस और इंगलैंड में मतभेद-
1940 में इंगलैंड ने ओरान (Oran) में स्थित जहाजी बड़े को इसलिये नष्ट कर दिया कि कहीं वह जर्मनी के हाथ न पड़ जाये। इस दुर्घटना से फ्रांस तथा इंगलैंड में मतभेद बढ़ गया। किन्तु अमेरिका का रुख ब्रिटेन की ओर झुक गया और वह इंगलैंड की ओर सहानुभूति करने लगा। अब अमेरिका यह सोचने लगा था कि यदि इंगलैंड हार गया तो अमेरिका पर भी हिटलर का आक्रमण होगा।
(1) अमेरिका का राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट (Franklin D. Roosevelty ब्रिटेन की सहायता का इच्छुक था। उसने 50 अमरीकी विध्वंसक युद्धपोत ब्रिटेन को दे दिये जिसके बदले में ग्रेट ब्रिटेन ने अमरीकी किनारे पर अपने नौ-सैनिक तथा हवाई युद्धस्थल गिरवी रख दिये।
(2) 1941 में अमेरिका ने उधार पट्टा नियम (Lend-Lease Act) पास कर दिया जिसके अनुसार संयुक्त राष्ट्र अमेरिका किसी भी देश को भोजन तथा शस्त्रास्त्र भेजेगा जो जर्मनी एवं इटली से युद्ध करेगा। ये वस्तुयें कर्ज के रूप में इन देशों को भेजी गई किन्तु उनके मूल्य चुकाने पर कोई भी समझौता नहीं हुआ। इस उधार पट्टे के नियम के अनुसार सभी राष्ट्रों ने एक-दूसरे की सहायता की।
(3) अगस्त 1941 में चर्चिल एवं रूजवेल्ट को भेंट एटलान्टिक सागर में एक अंग्रेजी युद्धपोत में हुई। उन्होंने एक प्रमाण पत्र तैयार किया जिसको ‘एटलान्टिक अधिकार पत्र’ (Atlantic Charter) कहते हैं। चार्टर के अनुसार उन उद्देश्यों पर प्रकाश डाला गया जिनके लिये युद्ध लड़ा जा रहा था।
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रूस और जर्मनी में युद्ध-
हिटलर रूस का ‘मित्र’ था किन्तु साथ ही साथ वह अपनी शक्ति को बढ़ाना चाहता था। उसका विचार था कि यदि रूस के महान साधन स्त्रोत पर जर्मनी का अधिकार हो जायेगा तो जर्मनी ब्रिटेन पर बड़े जोर से आक्रमण कर सकेगा। इस विचार को ध्यान में रखते हुए जर्मनी ने जून 1041 में रूस पर आक्रमण कर दिया यद्यपि रूस और जर्मनी के बीच अगस्त, 1939 में अनाक्रमण समझौता (Non-aggression pact) हो चुका था। थोड़े ही दिनों में रूस को बहुत बड़ा प्रदेश जर्मनी के हाथ में आ गया किन्तु ब्रिटेन तथा अमेरिका रूस की टैंकों, तोपों और बन्दकों से सहायता करते रहे। किन्तु फिर भी जर्मनी का प्रभाव बढ़ता ही गया। उसके सैनिकों ने ‘स्टालिनग्राड’ को घेर लिया किन्तु रूस के दूसरे शीत काल में युद्ध का पासा पलट गया। रूस की कुछ हिम्मत बढ़ी और जर्मनी की सेना जो लेनिनग्राड को घेरे पड़ी थी स्वयं ही घिर गई। ‘काकेशस’ से जर्मनी को खदेड़ दिया गया। क्रीमिया और ‘यूक्रेन’ भी जर्मनी से छीन लिये गये। रूस की भयंकर सर्दी में जर्मन सेना अपने कार्य को ठीक प्रकार पूर्ण न कर सकी। कुछ समय के बाद ही जर्मन सेना को रूस से निकाल दिया गया। इस प्रकार हिटलर रूस में अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर सका।
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जापान का युद्ध में प्रवेश-
जापान इटली और जर्मनी के धुरी संघ (Rome-Berlin- Tokyo AxIS) का सदस्य था। वह प्रशान्त महासागर में अमेरिका की बस्तियों पर आक्रमण करने की तैयारी कर रहा था। किन्तु साथ ही वाशिंगटन में अमेरिका तथा जापान में संधि की बातें भी चल रही थी। इसी बीच में जापान के हवाई बेड़े ने ‘हवाई’ द्वीप में स्थित ‘पर्ल हारबर’ (Pearl Harhour) नामक बन्दरगाह पर 7 दिसम्बर, 1941 को बिना पूर्व चेतावनी दिये बम वर्षा आरम्भ कर दी और बड़े जोर से आक्रमण किया। जापान का लक्ष्य अमेरिका की जल शक्ति को नष्ट करना था। इस प्रकार जापान भी रणस्थल में उतर पड़ा।
पर्ल हारबर पर आक्रमण होते ही अमेरिका ने युद्ध की घोषणा कर दी। ग्रेट ब्रिटेन ने अमेरिका का साथ दिया। साथ ही साथ अमेरिका ने जर्मनी और इटली के विरुद्ध भी युद्ध की घोषणा कर दी। इस प्रकार ग्रेट ब्रिटेन तथा उसके राज्य (Dominions), अमेरिका, रूस तथा चीन एक ओर से और दूसरी ओर से जर्मनी, इटली और जापान रण प्रांगण में उतर पड़े।
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जापान की पराजय-
प्रशान्त महासागर में युद्ध करने के लिये न तो ब्रिटेन तैयार था न अमेरिका। अतएव आरम्भ में जापान की जीत हुई। पहले जापान ने हाँग-कांग पर अधिकार किया। इसके बाद फिलिपाइन द्वीप समूह. मलाया, सिंगापुर और बर्मा पर भी जापान का अधिकार हो गया। शोघ ही आशा की जाने लगी कि जापान भारत एवं आस्ट्रेलिया पर भी आक्रमण करेगा। बर्मा से बढ़ कर जापानी सेना भारतीय सीमा पर भी पहुंच चुकी थी किन्तु उसको वापस खदेड़ दिया गया। जापानी सेनाओं को आगे बढ़ने से रोकने के सब साधन प्रस्तुत किये गये । यद्यपि ब्रिटेन के लिये सुदूर पूर्व में सेना भेजना सम्भव नहीं था किन्तु फिर भी ज्यों-त्यों करके लार्ड लुई माउण्टवेटन ने अपने सैनिक बल से बर्मा पर अधिकार कर लिया और फिलिपाइन द्वीप समूह को भी खाली करा लिया गया। अन्य प्रदेशों की खाली कराने की योजना बनाई गई किन्तु जर्मनी को परास्त करने की समस्या के कारण पूर्व में सारी शक्ति नहीं लगाई जा सकती थी।
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अफ्रीका में युद्ध-
उत्तरी अफ्रीका में भारी युद्ध हुआ। इटली ने अबीसीनिया पर अधिकार कर लिया था। अबीसीनिया इटली से खाली करा लिया गया। इटली और जर्मनी की संयुक्त सनायें लीबिया प्रदेश में ‘मिस्त्र’ पर आक्रमण करने के लिये पड़ी हुई थीं। दो बार ‘मित्र राष्ट्रों‘ की सेनाओं ने उनको भगाना चाहा किन्तु असफलता ही मिली। अन्त में नवम्बर 1942 में अंग्रेजी सेना ने जनरल मोन्टगोमरी के नेतृत्व में शत्रुओं को लीबिया से निकाल बाहर किया। इस विजयी सेना को इतिहास में रेगिस्तानी चूहे (Desert Rats) कहते हैं। इसी समय अमेरिका के सैनिक अफसर जनरल ‘आइजनहावर’ (Eisenhower) ने भी अफ्रीका में अपनी सेनायें बढ़ा दी। इस सेना का मिलन भी मोन्टगोमरी की सेना से हो गया। इन दोनों सेनाओं ने मिलकर ट्यूनिस में जर्मन सेनाओं को घेर लिया। अन्त में ट्यूनिस तथा ‘विजय’ पर मित्र राष्ट्रों का अधिकार हो गया। इस घटना के घटित होते ही सारे अफ्रीका महाद्वीप से इटली तथा जर्मनी के सैनिक निकाल दिये गये। अफ्रीका के उत्तरी भाग को जीतने के बाद मित्र-राष्ट्र यूरोप पर भी आक्रमण कर सकते थे।
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इटली की पराजय-
1943 की ग्रीष्म ऋतु में अमेरिकन फौजों ने कठिन युद्ध के बाद ‘सिसलो’ को जीत लिया और ‘मेसिना’ (Messina) के जलडमरूमध्य को पार करके इटली पर आक्रमण कर दिया। इसी समय इटली की जनता ने मुसोलिनी के विरुद्ध विद्रोह कर दिया। मुसोलिनी ने भागकर जर्मनी में शरण ली। उसके स्थान पर मार्मल बैडोग्लियो (Badoglio) की सरकार बनी। इसी सरकार ने 1943 में मित्र राष्ट्रों के सम्मुख बिना शर्त के आत्म-समर्पण कर दिया। जर्मन सैनिकों को इटली से निकाल दिया गया । इटली ने जर्मनी के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। इसी समय मुसोलिनी को पुनः पकड़कर लाया गया और इटली के निवासियों द्वारा ही ‘मिलान’ के निकट एक गाँव में उसे गोली से 1945 में मार डाला गया।
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जर्मनी पर आक्रमण-
जर्मनी पर सीधा आक्रमण करने के लिये तैयारी की जाने लगी। इंगलैंड के दक्षिण में ब्रिटन तथा उसके राज्यों और अमेरिका की मिली-जुली सेना एकत्रित हो गयी। इस विशाल सेना के अध्यक्ष जनरल ‘आइजनहावर’ नियुक्त हुए। ब्रिटेन तथा अमेरिका के हवाई जहाजों ने रात-दिन जर्मनी में नगरों पर, रेलों पर, नहरों पर बम वर्षा की। इसके परिणामस्वरूप जर्मनी के यातायात के साधन नष्ट हो गये। जर्मनी अपनी रक्षा के उपाय करने लगा। इसी बीच फ्रांस पर आक्रमण कर दिया गया। ‘नोरमण्डी’ पर जून 1944 में आक्रमण कर दिया। धीरे-धीरे मित्र राष्ट्रीय सेनायें दक्षिण में ‘लोयर’ तक तथा पूर्व में ‘सीन’ तक पहुँच गयी। इसके बाद ‘पेरिस’ पर आक्रमण को तैयारी की गई।
धीरे-धारे अमेरिका और ब्रिटेन की सेनाओं ने फ्रांस से जर्मनी को निकाल दिया। इसी समय रुस ने पूर्व में जर्मनी के ऊपर आक्रमण कर दिया। जर्मनी की दशा चिन्ताजनक हो गई। जर्मनी को चारों ओर से घेर लिया गया। जर्मनी का साथी राष्ट्र इटली भी हरा दिया गया था। हिटलर के दो बड़े साथी गोरिग’ (Govering) तथा ‘हिमलर’ ने हिटलर का साथ छोड़ दिया। 30 अप्रैल, 1945 को यह सुना गया था कि हिटलर ने अपनी स्त्री तथा कुछ सरदारों सहित आत्महत्या कर ली। इस पर जर्मनी ने बिना किसी शर्त के आत्म-समर्पण कर दिया। इस प्रकार द्वितीय महायुद्ध का अन्त हुआ। बर्लिन पर मित्र राष्ट्रों का अधिकार हो गया। जर्मन सरकार के सभी नेता पकड़ लिये गये।
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युद्ध का अन्त-
जर्मनी के आत्म-समर्पण करने के बाद ब्रिटेन तथा अमेरिका ने अपनी सारी शक्ति जापान के विरुद्ध युद्ध में लगा दी। इससे पूर्व ही लार्ड लुई माउण्टबेटन ने बर्मा पर अधिकार कर लिया था और जनरल ‘मेक्आर्थर’ ने फिलिपाइन द्वीप समूह पर अधिकार कर लिया था। इसी बीच अमरिका में अणुबम का अनुसंधान सफल हुआ और अणुबम तैयार हो गये। 6 अगस्त, 1945 को अमेरिका के हवाई जहाज ने जापान के नगर ‘हिरोशिमा’ पर अणुबम गिराया। फलतः लगभग सारा नगर नष्ट हो गया। 1 लाख व्यक्ति मारे गये। इसका परिणाम भयंकर हुआ। किन्तु इतने विनाश पर भी जापान ने आत्म-समर्पण नहीं किया। 9 अगस्त, 1945 को एक अणुबम ‘नागासाकी‘ नामक नगर पर गिराया गया। इसके परिणाम भी भयंकर हुए। अब जापान के सामने आत्म समर्पण के अतिरिक्त कोई भी चारा नहीं था। अतएव उसने हथियार डाल दिये और मित्र राष्ट्रों को सभी बातों को स्वीकार कर लिया।
जापान के हथियार डालते ही एशिया में भी युद्ध समाप्त हुआ। इस प्रकार विश्व ने एक एसे महान युद्ध से मुक्ति पाई जिसमें डेढ़ करोड़ से भी अधिक मनुष्य मृत्यु को प्राप्त हुए। अब विश्व के निराश राष्ट्रों की आँख संयुक्त राष्ट्र संघ के निर्माण करने वाले नेताओं की ओर लगी हुई थीं।
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