इतिहास

बाबर के आक्रमण के पूर्व भारत की राजनैतिक दशा | बाबर के आक्रमण के पूर्व भारत की सैनिक संगठन | बाबर के आक्रमण के पूर्व भारत की सामाजिक दशा | बाबर के आक्रमण के पूर्व भारत की प्राकृतिक स्थिति | बाबर के आक्रमण के पूर्व भारत की आर्थिक स्थिति

बाबर के आक्रमण के पूर्व भारत की राजनैतिक दशा | बाबर के आक्रमण के पूर्व भारत की सैनिक संगठन | बाबर के आक्रमण के पूर्व भारत की सामाजिक दशा | बाबर के आक्रमण के पूर्व भारत की प्राकृतिक स्थिति | बाबर के आक्रमण के पूर्व भारत की आर्थिक स्थिति

बाबर के आक्रमण के पूर्व भारत की राजनैतिक दशा

उत्तर भारत की राजनीतिक स्थिति- 1526 ई. में भारत की राजनीतिक अवस्था अत्यंत दयनीय थी। दिल्ली सल्तनत अपनी अंतिम सांस ले रहा था। पूरे भारत में अनेक छोटे-बड़े राज्यों का उदय हो चुका था। इनमें आपसी एकता एवं संगठन न होकर आपसी प्रतिस्पर्द्धा एवं वैमनस्य की भावना थी। ये सदैव एक दूसरे को पराजित एवं अपमानित करने का स्वप्न देखा करते थे। किसी भी महत्वाकांक्षी आक्रमणकारी के लिए ऐसी स्थिति काफी उपयुक्त थी। भारत की तत्कालीन राजनीतिक परिस्थिति का वर्णन प्रो. ईश्वरी प्रसाद ने सही ढंग से किया है। उनके शब्दों में, “सोलहवीं शताब्दी के प्रारंभ में भारत छोटे-छोटे राज्यों का एक संघ था। शक्तिशाली और दद संकल्पवाले आक्रमणकारी के लिए उसकी विजय एक अनायास शिकार थी।” इतिहासकार रशब्रुक विलियम्स तो भारत को राजनीतिक इकाई ही नहीं मानते हैं। उनके अनुसार, 15वीं शताब्दी के अंतिम चरण में भारत का कोई इतिहास ही नहीं है; क्योंकि भारत पृथक राज्यों का एक समूह था। इन सभी उद्धरणों से यह स्पष्ट हो जाता है कि बाबर के आक्रमण के समय भारत राजनीतिक विशंखलता के दौर से गुजर रहा था।

स्वयं बाबर ने भी भारत की तत्कालीन स्थिति (प्राकृतिक, आर्थिक एवं राजनीतिक) का वर्णन अपनी आत्मकथा तुजुक-ए-बाबरी (बाबरनामा) में किया है। उसके अनुसार, हिन्दुस्तान की राजधानी दिल्ली है। सुल्तान शहाबुद्दीन गोरी के समय से लेकर फिरोजशाह के समय तक, हिन्दुस्तान का अधिकतर भाग दिल्ली के सम्राटों के अधिकार में रहा। उस समय जब मैने देश विजय किया, पांच मुसलमान राजा तथा दो काफिर शासन कर रहे थे। यद्यपि, यहाँ पहाड़ी तथा जंगली प्रदेशों में छोटे-छोटे तथा महत्वहीन अनेक राजा और राय थे, किन्तु ये मुख्य थे और एकमात्र महत्वपूर्ण थे।” बाबर ने जिन पाँच ‘मुसलमान’ और दो ‘काफिर राज्यों का उल्लेख किया है, वे थे दिल्ली, गुजरात, बहमनी, मालवा, बंगाल (मुसलमान राज्य) तथा विजयनगर और मेवाड़ (काफिर राज्य)।

दिल्ली- दिल्ली पर लोदीवंश के सुलतान इब्राहीम लोदी (1517-26), का शासन था। यद्यपि दिल्ली सल्तनत की सत्ता कमजोर पड़ चुकी थी, साम्राज्य सिकुड़कर छोटा हो चुका था, तथापि अभी भी दिल्ली भारतीय राजनीति की धुरी थी। प्रत्येक महत्वाकांक्षी शासक दिल्ली पर अधिकार कर भारत का सम्राट बनना चाहता था। दिल्ली का शासक इब्राहीम लोदी सर्वथा अयोग्य शासक था। उसकी दंभपूर्ण नीतियों, क्रूरता और हठधर्मी ने अफगान सरदारों को उससे विमुख कर दिया था। विभिन्न अफ्गान् सरदार, नुहानी (लोहानी), नियाजी, फर्मूली इत्यादि इब्राहीम को सत्ता पलटने का प्रयास करने लगे थे। फलस्वरूप, इब्राहीम ने क्रूरतापूर्वक इन विद्रोही अफगान सरदारों को दबाने का प्रयास किया, परंतु इसमें वह सफल नहीं हो सका । इब्राहीम की क्रूरतापूर्ण नीतियों से उसके विश्वासपात्र सरदार भी विक्षुब्ध होकर उसके विरोधी बन गए। विहार के सूबेदार दरिया खाँ लोहानी ने अपनी स्वतंत्र सत्ता स्थापित कर ली। इब्राहीम के चाचा आलम खां लोदी ने तो कुछ अफगान सरदारों का समर्थन प्राप्त कर दिल्ली की गद्दी पर ही दावा पेश कर दिया। पंजाब का सूबेदार दौलत खा भी स्वतंत्र शासक बन बैठा । इतना ही नहीं, उसने आलम खाँ को अपने पक्ष में मिलाकर बाबर को भारत पर आक्रमण करने का निमंत्रण भी दिया। ऐसी स्थिति किसी भी महत्वाकांक्षी आक्रमणकारी के लिए सर्वथा उपयुक्त थी।

गुजरात गुजरात पहले दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत एक राज्य था। तैमूर के आक्रमण से उत्पन्न राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर 1401 ई० में तातार खाँ ने इसे सल्तनत से स्वतंत्र कर लिया। महमूद बेगड़ा के शासनकाल में इस राज्य का चतुर्दिक विकास हुआ। बाबर के आक्रमण के समय गुजरात का सुलतान मुजफ्फरशाह द्वितीय था। उसे राणा साँगा के साथ युद्ध में पराजित होना पड़ा था। पीरात ।। सिकंदरी से ज्ञात होता है कि आलम खाँ ने इब्राहीम लोदी के विरुद्ध गुजरात के सुलतान से सहायता की मांग की थी। 1526 ई० में मुजफ्फरशाह द्वितीय की मृत्यु हुई त्था बहादुरशाह गुजरात का शासक बना। एक महत्वाकांक्षी एवं योग्य शासक था।

बहमनी राज्य- दक्षिण भारत में सबसे अधिक प्रभावशाली मुसलमान राज्य बहमनी था। तुगलकवंश की सत्ता दक्षिण में कमजोर पड़ते देखकर 1436 ई० में अलाउद्दीन हसन बहमनशाह ने बहमनी के स्वतंत्र राज्य की स्थापना दिल्ली सल्तनत के अवशेषों पर की थी। पंद्रहवीं शताब्दी में बहमनी राज्य का उत्तरोत्तर विकास होता गया। मुहम्मदशाह तृतीय के वजीर महमूद गावाँ के प्रयासों से बहमनी राज्य की शक्ति और प्रतिष्ठा में अभूतपूर्व वृद्धि हुई । मुहम्मदशाह के उपरांत बहमनी राज्य की शक्ति कमजोर पड़ने लगी। 1526 ई० में बहमनी के सुलतान कलीमुल्लाशाह की मृत्यु के साथ ही बहमनी राज्य का अस्तित्व समाप्त गया। इसके अवशेषों पर दक्षिण में क्रमश: पाँच राज्यों-बीजापुर (आदिलशाही राज्य-1489-1686), अहमदनगर (निजामशाही राज्य – 1490-1600), बरार (वररी इमादशाही राज्य-1490-1574), गोलकुंडा (कुतुबशाही राज्य-1512-1607), तथा बीदर (बरीदशाही राज्य-1526-1590), का उदय हुआ। बहमनी राज्य के विषय में बाबर लिखता है कि इस राज्य के विभिन्न भागों पर सुलतान के शक्तिशाली सरदारों ने अधिकार जमा लिया है। राजकुमार को अगर किसी चीज की आवश्यकता होती है, तो उसे अपने ‘अमीरों’ से माँगना पड़ता है।

मालवा- बाबर के अनुसार, एक अन्य महत्वपूर्ण मुसलमान राज्य मालवा का था । मालवा का राज्य मांडू के नाम से भी विख्यात था। आरंभ में यहाँ पर परमारवंशी राजपूत राज्य करते थे, परंतु 1310 ई० में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति आइन-उल-मुल्क मुल्तानी ने मालवा पर विजय प्राप्त की । अलाउद्दीन ने उसे ही मालवा का प्रांतपति नियुक्त किया। 1310 से 1398 ई. तक मालवा पर दिल्ली के सुलतानों का नियंत्रण बना रहा। तैमूर के आक्रमण के पश्चात् दिलावर खाँ गोरी स्वतंत्र शासक बन बैठा। हुसंगशाह ने सुलतान को उपाधि धारण की तथा पूर्णतः स्वतंत्र रूप से 1406 ई० में मालवा का शासक बन बैठा । उसने अपने राज्य की सीमा बढ़ाने का प्रयास किया। 1436 ई० में मालवा में खिलजियों का शासन आरंभ हुआ। बाबर भी इस बात का उल्लेख करता है कि मालवा का शासक खिलजीवंश का था। बाबर मालवा के शासक सुलतान महमूद का उल्लेख करता है । राणा सांगा से महमूद का संघर्ष हुआ। राणा ने मालवा के अनेक भागों पर अधिकार कर लिया। आंतरिक विरोधों के कारण भी बाबर के आक्रमण के समय मालवा राज्य की स्थिति दयनीय बन चुकी थी।

बंगाल- बाबर द्वारा वर्णित अंतिम मुसलमान राज्य बंगाल का था। बंगाल के शासक आरंभ से ही दिल्ली सल्तनत की सत्ता नाममात्र को स्वीकार करते थे। मुहम्मद-बिन-तुगलक के राज्यकाल में 1340 ई० में शम्सुद्दीन ने बंगाल में अपने-आपको एक स्वतंत्र शासक की हैसियत से प्रतिष्ठित कर लिया था। फिरोजशाह ने बंगाल को पुनः अपने नियंत्रण में लाने का प्रयास किया; परंतु सफल नहीं हो सका। 1493 ई० में अलाउद्दीन हुसैनशाह ने बंगाल में हुसैनशाही राज्य की स्थापना की। उसके समय में बंगाल की शक्ति और प्रतिष्ठा में अभूतपूर्व वृद्धि हुई। बाबर के आक्रमण के समय बंगाल में नुसरतशाह का शासन था। उसने अपना राज्य बिहार में तिरहुत तक बढ़ा लिया था। बंगाल की राजनीतिक परिस्थिति का उल्लेख करते हुए बावर कहता है कि बंगाल में वंशपरंपरा के अनुसार गद्दी प्राप्त करने की प्रथा बहुत कम थी। जो व्यक्ति राजा का वध कर गद्दी हथिया लेता था उसे ही प्रजा राजा के रूप में स्वीकार कर लेती थी। बंगाल की जनता राजा के प्रति नहीं, बल्कि सिंहासन के प्रति बफादार थी लेकिन सुलतान अलाउदीन के पश्चात बंगाल में वंशपरंपरा से गद्दी मिलने लगी। नुसरतशाह को राजगद्दी वंशपरंपरा से प्राप्त हुई थी। बाबर के कथनानुसार, इन पाँचों राज्यों के शासक प्रतापी मुसलमान शासक थे। उनके पास विशाल सेनाएँ थीं।

उपर्युक्त वर्णित पांच मुसलमान राज्यों के अतिरिक्त बाबर दो काफिरों’ के राज्यों का भी उल्लेख करता है। उसका कहना है, “काफिर शासकों में राज्य तथा सेना की दृष्टि से सबसे अधिक शक्तिशाली विजयनगर का राज्य है। दूसरा राणा सांगा है, जिसने अपना महत्वपूर्ण स्थान हाल ही में अपनी वीरता तथा तलवार के बल से प्राप्त किया है। प्रारंभ में यह चित्तौड का स्वामी था। मांडू राज्य के राजकुमारों के मध्य संघर्ष होने के समय उसने अनेक प्रांत छीन लिए जो मां के आश्रित थे; रंतपुर (रणथंभौर), सारंगपुर, भिलसा तथा चंदेरी।” इस प्रकार, बाबर के अनुसार दो ही प्रमुख हिंदू राज्य थे विजयनगर तथा मेवाड़ के राज्य।

विजयनगर- बाबर के अनुसार, ‘पगान’ (हिंदू) राज्यों में “राज्य एवं सैनिक दृष्टि से विजयनगर का राजा सर्वाधिक महत्वपूर्ण” था। विजयनगर राज्य की स्थापना मुहम्मद बिन तुगलक के समय में दक्षिण भारत में हुई थी। इस राज्य की स्थापना का श्रेय हरिहर और बुक्का को दिया जाता है। 1336 से 1565 के मध्य विजयनगर में क्रमश: तीन राजवंशों-संगमवंश (1336-1485), सालववंश (1485-1505) और तुलववंश (1505-1565) ने शासन किया। बाबर जिस समय भारत की राजनीति में प्रवेश कर रहा था उस समय विजयनगर का महानतम शासक कृष्णदेव राय (1509-29) राज्य कर रहा था। उसने अपने सैनिक अभियानों द्वारा राज्य की सीमा का विस्तार किया। इसके अतिरिक्त, कृष्णदेव राय ने प्रशासनिक व्यवस्था भी सुदढ़ की। उसके समय में विजयनगर हिंदू-सभ्यता एवं संस्कृति का केंद्र बन गया। अरब और यूरोपीय यात्रियों ने विजयनगर के शासक तथा राज्य की आर्थिक, प्रशासनिक एवं कलात्मक प्रगति की प्रशंसा की है। कृष्णदेव के पश्चात् इस राज्य का पतन तेजी से आरंभ हुआ।

मेवाड़- विजयनगर के अतिरिक्त हिंदू राज्यों में मेवाड़ का स्थान सबसे अधिक महत्वपूर्ण था। मेवाड में सिसोदिया राजपूतों का शासन था। मेवाड़ की राजधानी चित्तौड़ पर 1303 ई० में अलाउद्दीन खिलजी ने अधिकार किया; परंतु वह इस पर ज्यादा समय तक अधिकार बनाए नहीं रख सका । हम्मीरदेव ने अपने पराक्रम से मेवाड़ पर से तुर्की आधिपत्य को समाप्त कर दिया। राणा कुंभा के समय में मेवाड़ की शक्ति और प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई । बाबर के आक्रमण के समय मेवाड़ का शासक राणा सांगा (संग्रामसिंह) था । वह एक महान योद्धा था। उसके सैनिक गुणों और वीरता की कद्र सभी तत्कालीन शासक करते थे। उसके पास एक विशाल सेना थी। सभी राजपूत शासक उसकी वीरता का लोहा मानते थे । रशब्रुक विलियम्स के अनुसार, “उसके (राणा सांगा के) शासनकाल में मेवाड़ वैभव के चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया था। 80,000 घोड़े सर्वोत्तम कोटि के 7 राजा तथा 104 सरदार, 500 युद्ध के हाथियों सहित युद्धक्षेत्र में उसका अनुसरण करते थे।” दिल्ली सल्तनत का पतन निकट देखकर राणा सांगा उस पर आघात कर अफगानों की सत्ता समाप्त करने एवं ‘हिंदू राज्य की स्थापना का स्वप्न देख रहा था। अफगानों की सत्ता समाप्त करने के लिए वह मुगलों की सहायता लेने से भी नहीं हिचकिचाया। उसने बाबर के पास इब्राहीम लोदी पर आक्रमण करने के लिए अपना दूत भेजा तथा बाबर को लोदी के विरुद्ध सहायता करने का वचन दिया, परंतु उसकी अभिलापा पूरी नहीं हो सकी।

इन राज्यों के अतिरिक्त बाबर अन्य राज्यों के विषय में मौन है। वह सिर्फ इतना ही कहता है, “हिंदुस्तान की सीमा और इसके अंतर्गत अनेक ‘राय’ और ‘राजा’ थे जिनमें से अनेकों ने दूरी अथवा आवागमन के साधनों के अभाव का लाभ उठाकर मुसलमान शासकों की सत्ता कभी स्वीकार नहीं की।” वस्तुतः बाबर के आक्रमण के समय भारत में अन्य महत्वपूर्ण राज्य भी थे जिन्होंने तत्कालीन भारतीय राजनीति में अहम भूमिका निभाई। ऐसे राज्यों में पंजाब, सिंध, मुल्तान, कश्मीर, जौनपुर, बिहार, उड़ीसा, खानदेश एवं राजपूताना के राज्य थे।

पंजाब- पंजाब दिल्ली सल्तनत के अंतर्गत था; परंतु, दिल्ली की कमजोरी का लाभ उठाकर वहाँ का प्रांतपति स्वतंत्र शासक की हैसियत से शासन कर रहा था। बाबर के आक्रमण के समय पंजाब का गवर्नर दौलत खाँ लोदी था। वह इब्राहीम लोदी की नीतियों से क्षुब्ध था। इसलिए जब इब्राहीम ने बिहार के सूबेदार दरिया खाँ लोहानी के विद्रोह को दबाने के लिए दौलत खाँ को बुलवाया तब वह स्वयं नहीं गया, बल्कि अपने पुत्र दिलावर खाँ को दिल्ली भेज दिया। इब्राहीम लोदी ने दिलावर खाँ से अनुचित व्यवहार किया तथा उसे गिरफ्तार करने का प्रयास किया। किसी प्रकार दिलावर खा दिल्ली से भागकर अपने पिता के पास पंजाब पहुँच सका। इब्राहीम के इस व्यवहार ने दौलत खाँ को भयभीत कर दिया। अपनी सुरक्षा के लिए उसने बाबर से सहायता की याचना कर उसके पास अपना दूत भेजा।

सिंघ- सिंध पर पहले दिल्ली के सुलतानों का अधिकार था परंतु मुहम्मद बिन तुगलक के शासनकाल में फैली अव्यवस्था का लाभ उठाकर सिंघ दिल्ली से स्वतंत्र हो गया। सिंघ पर सुमरावंश के अमीरों ने सत्ता स्थापित की, परंतु वहाँ की आंतरिक स्थिति नहीं सुधर सकी। अमीरों के आपसी वैमनस्य से राज्य कमजोर हो चला था। सिंध की आंतरिक स्थिति का लाभ उठाकर कांधार का गवर्नर शाहबेग अरगो सिंध पर अधिकार करना चाहता था। कांधार से बाबर द्वारा निकाले जाने पर शाहबेग ने सिंध पर अधिकार कर लिया। बाबर के आक्रमण के समय शाहहुसैन सिंध का शासक था।

मुल्तान- सीमावर्ती क्षेत्र में मुल्तान का राज्य भी एक महत्वपूर्ण राज्य था। इस राज्य की सीमा सिंध से सटी हुई थी। अत:, सिंध की राजनीतिक घटनाओं का प्रभाव मुल्तान पर भी पड़े बिना नहीं रहा। मुल्तान ने भी सिंध के ही समान अपने-आपको दिल्ली से स्वतंत्र कर लिया, परंतु जब सिंध पर शाहबेग अरगो ने अधिकार कर लिया, तब मुल्तान की स्वतंत्रता खतरे में पड़ गई। सिंघ के शासक शाहहुसैन ने मुल्तान को अपने राज्य में सम्मिलित कर लिया।

कश्मीर- सीमावर्ती क्षेत्र का एक अन्य महत्वपूर्ण राज्य कश्मीर का था। 1339 ई. में लोहरवंश के हिंदू शासन को समाप्त कर शाह मिर्जा ने इस्लामी राज्य की स्थापना यहाँ की थी। कश्मीर का सबसे प्रभावशाली सुलतान जैनुल आबिदीन (1417-1470) था। उसकी मृत्यु के पश्चात् वहाँ की स्थिति बिगड़ गई। राजगद्दी प्राप्त करने के लिए अनवरत संघर्ष एवं षड्यंत्र होते रहते थे। राज्य की स्थिति अत्यंत ही कमजोर हो चली थी। बाबर के आक्रमण के समय कश्मीर का सुलतान मुहम्मदशाह था।

जौनपुर- दिल्ली सल्तनत से स्वतंत्र होनेवाला पहला राज्य जौनपुर का शर्की राज्य था। इस राज्य का संस्थापक ख्वाजाजहाँ (मलिक-उस शर्क) था परंतु जौनपुर का प्रथम स्वतंत्र सुलतान मुबारकुशाह था। दिल्ली के सुलतान सदैव ही इसे वापस पाने का प्रयास करते रहे। अतः, दिल्ली और जौनपुर में लंबे समय तक संघर्ष चला । फलस्वरूप, जौनपुर राज्य की शक्ति कमजोर पड़ती गई। इसका लाभ उठाकर बहलोल लोदी ने पुनः जौनपुर पर अधिकार कर लिया। सिकंदर लोदी ने जौनपुर के अंतिम शासक हुसैनशाह को परास्त कर जौनपुर को दिल्ली सल्तनत में मिला लिया। जौनपुर की स्वतंत्र सत्ता समाप्त कर दी गई । इब्राहीम लोदी के समय जौनपुर का शासक नसीर खाँ लोहानी था परंतु अन्य अफगान अमीरों की तरह वह भी इब्राहीम का विरोधी था।

बिहार- बिहार में भी दिल्ली सल्तनत से स्वतंत्र राज्य की स्थापना हो चुकी थी। बिहार का शासक एक अफगान सरदार दरिया खा लोहानी था। उसने दिल्ली सल्तनत का प्रभाव बिहार एवं इसके निकटवर्ती इलाकों से समाप्त कर दिया। उसके पुत्र बहार खाँ ने दिल्ली सल्तनत से अपना संबंध पूरी तरह तोड़ लिया एवं एक स्वतंत्र शासक की हैसियत से राज्य करने लगा। बहार खाँ भी इब्राहीम लोदी का विरोधी बन चुका था।

उडीसा- उड़ीसा के स्वतंत्र राज्य की स्थापना 11वीं शताब्दी में अनंतवर्मन चोल ने की थी। इस राज्य को शक्ति और प्रतिष्ठा में वास्तविक वृद्धि 15 वीं शताब्दी में स्थापित कपिलेंद्र के राजवंश के शासन के दौरान दुई। उसने विजयनगर और बहमनी राज्यों से संघर्ष कर अपनी स्थिति सुदृढ़ की। कपिलेंद्र के उत्तराधिकारी दुर्बल शासक हुए। उनके समय में राज्य की स्थिति दुर्बल पड़ गई। विजयनगर और बंगाल के साथ अनवरत संघर्ष से उड़ीसा की शक्ति क्षीण पड़ गई। बाबर के समय उड़ीसा का राजा प्रतापरुद्र था (1497-1540) ।

खानदेश- पूर्ववर्णित दक्षिण भारतीय राज्यों के अतिरिक्त दक्षिण का एक अन्य प्रभावशाली राज्य खानदेश था। इस राज्य का भौगोलिक महत्व अधिक था क्योंकि गुजरात और मध्य भारत से दक्षिण का मार्ग इसी से गुजरता था। यह राज्य ताप्ती नदी की घाटी में विस्तृत था।

फीरोज तुगलक के शासनकाल तक खानदेश पर तुर्की सुलतानों का अधिकार रहा। उसके बाद खानदेश के सूबेदार मलिक राजा फरूकी ने स्वतंत्र राज्य की स्थापना कर ली। खानदेश का गुजरात के शासकों से बराबर संघर्ष चलता रहता था। 16वीं शताब्दी के आरंभ से खानदेश की शक्ति कमजोर पड़ने लगी। गद्दी के अनेक दावेदार उठ खड़े हुए। खानदेश की आंतरिक राजनीति में गुजरात एवं अहमदनगर के राज्य हस्तक्षेप करने लगे। 1520 ई० में महमूद प्रथम खानदेश का शासक बना। उसके समय में खानदेश की स्थिति और बिगड़ने लगी।

राजपूताना- बाबर के आक्रमण के समय राजपूताना (राजस्थान) में भी अनेक शक्तिशाली राज्यों का उदय हो चुका था। इन राज्यों में तीन राज्य महत्वपूर्ण थे मेवाड़, मारवाड़ तथा आमेर। मेवाड़ के शासक राणा सांगा का उल्लेख स्वयं बाबर करता है। मारवाड़ (जोधपुर) पर राठौर राजपूतों का शासन था। मारवाड़ के प्रभावशाली शासकों ने युद्ध के बल पर अपनी शक्ति बड़ाई । मारवाड़ के शासकों ने ही बीकानेर के राज्य की भी स्थापना की। बाबर के आक्रमण के समय मारवाड़ का शासक राव गंगाजी था। उसने बाबर के विरुद्ध राणा सांगा की सहायता की। मारवाड़ के अतिरिक्त आमेर (जयपुर) का राज्य भी एक शक्तिशाली राज्य था। यहाँ पर कछवाहा राजपूतों का शासन था। बूंदी में हाड़ा राजपूत शासन करते थे। इस प्रकार, राजस्थान में अनेक स्वतंत्र शक्तिशाली राज्य थे जो दिल्ली सल्तनत के नियंत्रण से बाहर थे।

कामरूप (आसाम)- कामरूप, असम अथवा कामत राज्य का उदय ब्रह्मपुत्र घाटी में 13वीं शताब्दी में हुआ था। 16वीं शताब्दी में यहाँ कूचवंश का शासन आरंभ हुआ। इस समय कामरूप राज्य दो भागों में विभक्त हो गया-कूचबिहार तथा कूचहाजो। इस विभाजन ने दोनों राज्यों में आपसी प्रतिस्पर्धा एवं संघर्ष बढ़ा दिया। फलस्वरूप, कामरूप की स्थिति दुर्बल बन गई।

उपर्युक्त विवेचना से यह स्पष्ट हो जाता है कि 16वीं शताब्दी के आरंभिक चरण में संपूर्ण भारत छोटे-छोटे राज्यों का एक समूह था। प्रत्येक राज्य अपनी शक्ति और सीमा के विस्तार में लगा हुआ था। दिल्ली सल्तनत की सत्ता नाम मात्र को बची हुई थी। दिल्ली का सुलतान इब्राहीम लोदी इन राज्यों पर अपनी पकड़ कायम करने में सर्वथा असमर्थ था। दक्षिण भारतीय राज्य तो अपनी दूरी की वजह से दिल्ली की राजनीति में हस्तक्षेप नहीं कर पा रहे थे; परंतु मेवाड़ का शासक राणा सांगा अफगानों की सत्ता समाप्त करने का प्रयास कर रहा था। दक्षिण में पुर्तगालियों का प्रभाव भी बढ़ रहा था। यह स्थिति अत्यंत चिंताजनक थी। किसी भी महत्वाकांक्षी विदेशी आक्रमणकारी के लिए भारत की राजनीतिक स्थिति एक खुला निमंत्रणपत्र था। बारा ने इस सुनहरे मौके का लाभ उठाया। भारत की राजनीतिक स्थिति ने बाबर की सफलता में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

प्राकृतिक स्थिति-

बाबर ने भारत की तत्कालीन दशा का भी वर्णन किया है। भारत की प्राकृतिक अवस्था का उल्लेख करते हुए वह कहता है कि भारत एक अत्यंत ही अच्छा देश है। विश्व के दूसरे देशों से इसकी अवस्था भिन्न है। इसके पहाड़ और नदियाँ, पशु और वृक्ष, यहाँ के निवासी, उनकी भाषा, यहाँ की हवा एवं वर्ग, सभी दूसरे देशों से भिन्न है। सिंधु नदी पार करने के बाद ही एक नया वातावरण मिलता है, जो हिंदुस्तान है। यहाँ के नगर एवं गाँव कुरूप हैं। बागीचों में दीवारें नहीं है। बरसात के दिनों में यहाँ की नदियों को पार करना कठिन है। अनेक जगहों पर मैदानी इलाकों में कंटीली झाड़ियों और घने वृक्षों से भरे जंगल हैं, जिनमें विद्रोही शरण लेते हैं। वर्षाऋतु में यहाँ का मौसम अयंत ही सुहावनाक्षहोता है लेकिन यहाँ की जलवायु नम है। गर्मी और ठंढ में मौसम सुखदायी होता है। यहां बराबर आंधी चलती रहती है।

आर्थिक स्थिति-

भारत की आर्थिक स्थिति का वर्णन करते हुए बाबर लिखता है कि हिंदुस्तान एक विशाल देश है। यहाँ पर पर्याप्त मात्रा में सोना और चाँदी है। यहाँ हरेक पेशे और व्यापार के अनगिनत व्यक्ति है । रोजगार और व्यापार में लोग पुश्तैनी आधार पर काम करते है । जहाँगीर के समय के एक पंथ तारीख-ए-दादी में भी बाबर के भारत आगमन के समय की आर्थिक अवस्था का उल्लेख किया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार अलाउद्दीन खिलजी के शासन के अतिरिक्त अनाज, कपड़ा एवं अन्य वस्तुएँ सुलतान इब्राहीम के समय में जितनी सस्ती थीं उतनी कभी नहीं हुई । एक बाहोली में दस मन अनाज, पाँच सेर मक्खन (घी), तथा दस गज कपड़ा खरीदा जा सकता था। अत्यधिक वर्षा होने से उपज बहुत अधिक होती थी। अन्य विवरणों से भी भारत की आर्थिक संपन्नता की जानकारी मिलती है। भारतीयों का मुख्य व्यवसाय कृषि, उद्योग एवं व्यापार था। वस्त्र उद्योग सबसे प्रमुख उद्योग था। भारत का आंतरिक एवं विदेशी व्यापार काफी बढ़ा-चढ़ा था। भारत का व्यापारिक संबंध मलाया, चीन, अफगानिस्तान, ईरान, तिब्बत, भूटान, मध्य एशियाई देशों तथा यूरोप से भी था। भारत के समुद्री तटों पर अनेक बंदरगाह थे। भारत विदेशों को वस्त्र, अफीम, अनाज, नील एवं गर्म मसालों का निर्यात करता था। तथा घोड़ों का आयात मुख्य रूप से करता था। भारत की आर्थिक संपन्नता जानकर ही बाबर ने भारत विजय की योजना बनाई।

सामाजिक दशा-

युद्यपि बाबर सामान्यतः भारत की सामाजिक स्थिति के विषय में कोई विशेष बात नहीं कहता है तथापि अन्य स्रोतों से ज्ञात होता है कि हिंदुस्तान में उस समय मुसलमान और हिंदू समाज के दो प्रमुख वर्ग थे। लंबे समय तक एक साथ रहने की वजह से दोनों ने एक-दूसरे के रीति-रिवाजों को बहुत कुछ अपना लिया था। सल्तनत के अंतर्गत मुसलमान शासक वर्ग में थे परंतु हिंदुओं की सहायता भी प्रशासन में ली जाती थी। हिंदुओं से ‘जजिया’ लिया जाता था। सामान्यतः उन्हें प्रशासन में महत्वपूर्ण पद नहीं दिए जाते थे, उन पर कुछ धार्मिक प्रतिबंध भी थे तथापि हिंदू-मुस्लिम विभेद की खाई बहुत गहरी नहीं थी। अनेक स्थानीय सुलतानों ने धार्मिक सहिष्णुता की नीति भी अपनाई। भक्ति-आंदोलन ने भी आपसी भेदभाव को मिटाने में मदद किया। बोलचाल को सामान्य भाषा उर्दू बन गई थी। हिंदू मुसलमान दोनों ही वर्गों में तीन सामाजिक उपवर्ग थे-सामंत वर्ग, मध्यम वर्ग तथा निम्न वर्ग। समाज में अनेक कुप्रथाएँ-बाल-विवाह, सती-प्रथा,जौहर,मद्यपान,द्यूतक्रीड़ा, वेश्यावृत्ति इत्यादि प्रचलित थीं। खियों की स्थिति दयनीय थी। राज्य की तरफ से शिक्षा की कोई भी व्यवस्था नहीं की गई थी। इस प्रकार भारतीय समाज अनेक दुर्बलताओं से ग्रस्त था।

सैनिक संगठन-

भारतीयों का सैनिक संगठन भी सराहनीय नहीं था। भारतीय वीर होते हुए भी कुशल सैनिक नहीं थे। उनके युद्ध के साधन एवं उनकी रणनीति परंपरागत ही थी। वे अब भी तलवार या बर्ग एवं हाथी पर ही आश्रित थे। मध्य एशिया में इस समय तक तोप एवं गोला-बारूद का उपयोग होने लगा था परंतु भारतीय इसके प्रयोग से अपरिचित थे घोड़ों का प्रयोग भी कम ही किया जाता था। भारतीयों का सैन्य संगठन दुर्बल था। उनकी स्थायी प्रशिक्षित सेना नहीं रहती थी। युद्ध के अवसर पर साधारण लोगों को लेकर जल्दी से सेना खड़ी कर ली जाती थी। सेना पर स्थानीय सरदारों एवं सामंतों का ही नियंत्रण रहता था, केंद्र का नहीं। इससे सेना आवश्यकता पड़ने पर पूरे मनोयोग से युद्ध में भाग नहीं ले पाती थी। भारतीय सेना विभिन्न जाति एवं वर्ग के सैनिक थे। ये अपनी-अपनी जाति और धर्म के प्रति ही समर्पित थे, हिन्दुस्तान के प्रति नहीं। इसके अतिरिक्त अनावश्यक युद्धों और विद्रोहों को दबाने में सैन्य शक्ति का अपव्यय होता था। ऐसी सेना किसी भी सक्षम सेना का मुकाबला करने में सर्वथा असमर्थ थी।

इस प्रकार, बाबर के आक्रमण के समय भारत की राजनीतिक, सामाजिक एवं सैनिक व्यवस्था अत्यंत ही दुर्बल थी। राजनीतिक विश्रृंखलता, आपसी प्रतिस्पर्द्धा एवं विद्वेष की भावना चरम सीमा पर पहुंच गई थी। राष्ट्रीयता एवं देशप्रेम की भावना का सर्वथा अभाव था। भारतीय समाज एवं सैन्य व्यवस्था भी खोखली हो चुकी थी। भारत बिल्कुल निःसहाय स्थिति में था। बाबर ने इस परिस्थिति का लाभ उठाया।

इतिहास – महत्वपूर्ण लिंक

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Pankaja Singh

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