इतिहास

द्वितीय महायुद्ध के प्रमुख कारण | Major Causes of World War II in Hindi

द्वितीय महायुद्ध के प्रमुख कारण | Major Causes of World War II in Hindi

द्वितीय महायुद्ध के प्रमुख कारण

प्रथम महायुद्ध के बाद विश्व के सभी राज्यों ने मिलकर भविष्य में युद्ध की रोक-थाम के लिये अनेकों उपाय किये थे। राष्ट्रसंघ की स्थापना इसी उद्देश्य से की गई थी समय-समय पर विभिन्न सभाओं द्वारा विश्व की शान्ति एवं सुरक्षा की समस्या पर विचार किये गये थे। किन्तु दुर्भाग्यवश इतनी देख-रेख रखते हुए भी विश्व के सभी राज्य युद्ध को रोकने में सफल न हो सके। एक बार फिर उनको युद्ध की लपटों में झुलसना पड़ा। इस द्वितीय महायुद्ध के निम्नलिखित कारण थे-

  1. वर्साय सन्धि द्वारा जर्मनी का अपमान-

प्रथम महायुद्ध के बाद वर्साय की सन्धि की गई थी। इस सन्धि में जर्मनी का भारी अपमान किया गया था। जर्मनी को किसी भी प्रश्न पर विचार प्रकट करने तक का अवसर नहीं दिया गया था। उसके सारे साम्राज्य को छिन्न-भिन्न कर दिया गया था। उसकी सैनिक एवं सामुद्रिक शक्ति को नष्ट कर दिया गया था। जर्मनी की राष्ट्रीय भावनाओं को इतना कुचल दिया गया था कि उसके देश-भक्तों में मान-हानि की ज्वाला धधक उठी थी। ऐसी दशा में वर्साय की सन्धि की शर्तों के विरुद्ध कार्यवाही होनी आवश्यक थी। वर्साय की सन्धि सम्पूर्ण जर्मन राष्ट्र का अपमान थी और इस प्रश्न पर समस्त जर्मनी की जनता एक सूत्र में बंध सकती थी। इसी का लाभ उठाकर हिटलर जर्मनी की जनता को अपने नेतृत्व में संगठित कर सका।

  1. विभिन्न राष्ट्रीय भावनाओं का उदय-

प्रथम महायुद्ध के बाद विजयी राष्ट्रों ने यूरोप के राजनैतिक मानचित्र का जो रूप रखा उसमें राष्ट्रीयता का एकदम अभाव था। विभिन्न सभ्यता एवं संस्कृतियों का जातियों को उनकी इच्छा के विरुद्ध ऐसी जातियों के अधीन कर दिया गया जिनसे उनकी सभ्यता एवं संस्कृति बिल्कुल भिन्न थी। बहुत से ऐसे प्रदेश, जिनमें जर्मनी जाति निवास करती थी, जर्मन साम्राज्य से अलग कर दिये गये और उनको ऐसे राज्यों के अधीन किया गया जिनमें उनके व्यक्तित्व का विकास सम्भव नहीं था। ऐसी दशा में यह स्वाभाविक था कि ये प्रदेश उन राज्यों के विरुद्ध विद्रोह करें।

  1. नवीन विचारधाराओं का विकास-

प्रथम महायुद्ध के बाद विश्व के विभिन्न राज्यों में लोकतन्त्र शासन की व्यवस्था कर दी गई थी किन्तु थोड़े दिनों बाद ही रूस में बोल्शेविक, जर्मनी में नाजी और इटली में फासिस्ट क्रान्तियाँ आरम्भ हो गई। इन क्रान्तियों को सफलता मिली। नाजी एवं फासिस्ट विचारधाराओं ने यूरोप के राज्यों में खलबली मचा दी। स्थान-स्थान पर राष्ट्रीय भावनायें जागृत हो गई जिनके परिणामस्वरूप विश्व के सभी राष्ट्र गुटबन्दी करने में संलग्न हो गये।

  1. साम्राज्यवाद की भावना-

विश्व युद्ध का महान् कारण साम्राज्यवाद की प्रवृत्ति थी। बहुत से राज्य अपने को सैन्य-शक्ति में सबल होते हुए भी साम्राज्य की दृष्टि से हीन समझते थे। जर्मनी, इटली और जापान का स्थान ऐसे ही राज्यों में था। ये राज्य युद्धोपयोगी सामग्री के रखने में ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस आदि से किसी भी रूप में कम नहीं थे।

किन्तु इनके पास उक्त तीनों राष्ट्रों की भांति विशाल साम्राज्य नहीं था। यह कसक उनके हृदयों में बराबर घर किये हुए थी। इटली ने अबीसीनिया एवं जापान ने मंचूरिया पर इस कसक को मिटाने के लिये अधिकार कर लिया था। इनकी सफलता से प्रभावित होकर जर्मनी ने अपनी साम्राज्य विस्तार का स्वप्न पूरा करने का इरादा कर लिया था। ऐसी दशा में युद्ध का होना अनिवार्य हो गया।

  1. हिटलर का उत्थान-

द्वितीय महायुद्ध का महान् कारण जर्मनी में हिटलर को अध्यक्षता में नाजी दल की सरकार की स्थापना था। हिटलर ने सारी शक्ति अपने हाथ में लेकर जर्मनी के जोवनोद्धार की उदघोषणा कर दी थी। इससे फ्रांस तथा यूरोप के अन्य राज्यों में बड़ी बेचैनी फैल

गई थी। उसके जर्मनी में सत्ता धारण करते ही यूरोप में खतरे की घंटी बजने लगी और प्रत्येक राष्ट्र युद्ध की आशंका से घबराने लगा।

  1. आर्थिक समस्या-

महायुद्ध के परिणामस्वरूप विश्व के सभी देशों में राष्ट्रीय भावना का उदय हो गया था। सभी अपने-अपने देश की बनी चीजों से प्यार करने लगे थे। उन्होंने संरक्षण की नीति को अपना लिया था। इससे बड़े-बड़े व्यावसायिक देशों के कारोबार बन्द हो गये थे। इसी समय जर्मनी की रकम देने की उदघोषणा कर दी थी। इस उद्घोषणा से यूरोप के राज्यों में सनसनी फैल गई थी। ऐसी दशा में रुके हुए कारखानों को फिर से चालू करने के लिये लड़ाई की तैयारियाँ आवश्यक थी जिससे माल की निकासी होने लगे।

  1. सन्धियों का अस्वीकरण-

पेरिस की शान्ति परिषद् में सभी राज्यों ने विश्व की शान्ति सुरक्षा की थी और तय कर दिया था कि विश्व का कोई भी राज्य युद्धोपयोगी सामग्री नहीं रख सकता। शान्ति सुरक्षा की समस्या को हल करने के लिये एक कमीशन द्वारा यह भी तय कर लिया गया था कि किस राज्य को कितनी सेना की आवश्यकता है और साथ-ही-साथ यह भी निश्चय किया गया कि कोई भी राज्य निश्चित संख्या से अधिक किसी प्रकार की सेना न रख सकेगा। किन्त जर्मनी में नाजी सरकार की स्थापना हो जाने से ये सब बातें केवल सिद्धान्त मात्र ही रह गई।

हिटलर ने सबसे पहले यह उदघोषणा कर दी कि जर्मनी पेरिस की शान्ति परिषद् वर्साय की सन्धि तथा सुरक्षा सम्बन्धी अन्य सन्धियों की किसी भी शर्त को मानने को बाध्य नहीं है। उसने अपने को राष्ट्र संघ की सदस्यता से अलग कर लिया और चेकोस्लोवाकिया तथा आस्ट्रिया पर  अधिकार कर लिया। इसी प्रकार इटली, जापान आदि राज्यों ने भी सुरक्षा सम्बन्धी सन्धियों पर कोई ध्यान नहीं दिया।

  1. विभिन्न सन्धियाँ-

जर्मनी को बढ़ती हुई शक्ति से यूरोप के विविध राज्यों में खलबली मच गई और हर एक राज्य अपनी-अपनी सुरक्षा करने के लिये गुटबन्दियाँ करने लगा। इन गुटबन्दियों की यह विशेषता थी कि एक राज्य कई-कई गुटों में शामिल हो जाता था। सबसे पहले फांस. रूस, पोलैंड, चेकोस्लोवाकिया, रूमानिया और इटली में गुटबन्दी हुई। इस प्रकार संसार के प्रमुख राज्य में गुटों में बंट गये । एक का नेता फ्रांस तथा दूसरे का जर्मनी था। जर्मनी को गुट फासिस्ट और नाजी विचारों का समर्थक था। फ्रांस का गुट लोकतन्त्रवादी शासन का पक्षपाती था। 1936 के अन्त तक ब्रिटेन और अमेरिका इन गुटों से अलग रहे। अन्त में अपने हितों की रक्षा करने के लिये ब्रिटेन फ्रांस के पक्ष में सम्मिलित हो गया। इधर जर्मनी ने आस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया पर विजय प्राप्त कर ली थी। इन गुटों की तीव्र गति देखकर जर्मनी ने अपनी नीति में परिवर्तन कर दिया। इस समय रूस और ग्रेट ब्रिटेन में कुछ सैद्धान्तिक विरोध चल रहा था। इससे लाभ उठाकर जर्मनी ने रूस से सन्धि कर लो।

इन विभिन्न गुटबन्दियों का यह परिणाम निकला कि विश्व के सभी राज्य एक-दूसरे के प्रति अविश्वास और शंका करने लगे।

  1. तुष्टीकरण की नीति-

अमेरिका, फ्रांस और ब्रिटेन के द्वारा जर्मनी, इटली और जापान के प्रति अपनाई गई तुष्टीकरण को नीति (Policy of Appeasement) भी विश्व युद्ध का एक महत्वपूर्ण कारण थी। हिटलर जैसे ही सत्ता में आया उसने एक-एक करके वर्साय की सन्धि की सभी धाराओं का उल्लन करना प्रारम्भ किया। ये राष्ट्र दो कारणों से चुप रहे-पहला तो यह कि इन्हें स्वयं भी यह आभास था कि वर्साय की सन्धि कठोर थी और उसका पूर्णरुपेण पालन सम्भव नहीं था, दूसरा यह कि राष्ट्र हर सम्भव तरीके से युद्ध टालना चाहते थे। परिणामस्वरूप हिटलर एक- एक का प्रदेशों पर अपना अधिकार करता गया और ये राष्ट्र डरे  हुए से उसका प्रतिरोध नहीं कर पाये। इनके इसी डर का यह परिणाम हुआ कि हिटलर ने एक-एक करके अष्ट्रिया, सुडेटनलैंड और पूरे के पूरे चेकोस्लोवाकिया को हड़प लिया और ये राष्ट्र मूक दर्शक बन रहे। ये राष्ट्र यह भूल गये कि हिटलर की साम्राज्यवादी आकांक्षाओं को अधिक बढ़ाने का परिणाम अन्ततः युद्ध होगा और वहाँ हुआ भी। इसी प्रकार जब मुसोलिनी ने ईथोपिया और अल्बानिया पर कब्जा कर लिया तथा जापान ने मंचूरिया पर तब भी ये राष्ट्र कुछ न कर सके। इन राष्ट्रों ने अपनी तुष्टीकरण की नीति के कारण न कवल साम्राज्यवादी राष्ट्रों की महत्वाकांक्षाओं को ही बढ़ाया वरन् राष्ट्र संघ को भी कमजोर किया और विश्व युद्ध के कारणों में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

  1. राष्ट्र संघ की असफलता-

द्वितीय महायुद्ध का महान् कारण राष्ट्र संघ की असफलता थी। जमना, जापान और इटली ने अपनी इच्छानुसार आस्ट्रिया, मंचूरिया और अबीसीनिया पर विजय प्राप्त की। निर्बल राज्यों ने राष्ट्र संघ से अपील की किन्तु राष्ट्र संघ इन मामलों में उदासीन रहा। उसकी उदासीनता से विश्व के राज्यों के सम्मुख आत्म-रक्षा का प्रश्न उपस्थित हो गया और वे अपने अपने बचाव के लिये सैनिक तैयारियां करने लगे।

  1. विविध राष्ट्रों में युद्ध की इच्छा-

जर्मनी की शक्ति से भयभीत होकर विश्व के राज्यों ने आत्म सुरक्षा के लिये यथाशक्ति जल सेना, वायु सेना, और स्थल सेना में वृद्धि करना आरम्भ कर दिया। 1934 में जर्मनी 1500 हवाई जहाज प्रतिवर्ष तैयार करने लगा। विश्व के सभी राज्य अधिक से अधिक रुपया युद्ध सामग्री के जुटाने में लगाने लगे थे। राज्यों की इस तत्परता को देखकर विश्व के सभी राज्य युद्ध की कल्पना करने लगे थे। फ्रांस ने अपनी उत्तरी सीमा पर करोड़ो रूपया खर्च करके किलों की एक श्रृंखला तैयार कराई थी जो इतिहास में ‘मैगीनो लाइन’ कहलाती है। खुले मैदानों में जमीन की सतह से 100 से 150 फुट तक नीचे विशाल किले बनवाये थे। इतने सैनिकों के निवास, भोजन आदि का प्रबन्ध था। इसी प्रकार ब्रिटन, बेल्जियम और जर्मनी ने भी किलेबंदी आरम्भ कर दी थी। फ्रांस की मैगीनो लाइन के समानान्तर जर्मनी ने भी एक किलबन्दियों की श्रृंखला तैयार की थी जिसे ‘शीफ फीड लाइन’ कहा जाता है। मैगीनो और शीफ फीड लाइन में केवल तीन मील का अन्तर था। जर्मनी और फ्रांस की इस तत्परता से विश्व के सभी राज्यों का यह निश्चय हो गया था कि युद्ध अवश्य ही होगा।

  1. तात्कालिक कारण- पोलैण्ड पर आक्रमण-

परिस को शान्ति परिषद् के निर्णयों के अनुसार पोलैण्ड की एक पृथक् एवं स्वतन्त्र राज्य के रूप में परिणत किया गया था और वहां लोकतन्त्र रिपब्लिकन शासन का सूत्रपात किया गया था। पोलैण्ड को समुद्र तट से मिलाने के लिये जर्मनी के बीच होकर एक रास्ता पोलैण्ड के लिये बना दिया गया था जो डान्जिग बन्दरगाह तक जाता था। इसे ‘पोलिश गलियारा’ (Polish Corridor) कहा जाता है जर्मनी और पोलैंड के बीच युद्ध की जड़ बना रहा। इस प्रकार जमनी का अंग भंग कर दिया गया था। हिटलर का कहना था कि डान्जिग में जर्मन जाति के लोग निवास करते हैं। इसलिये डान्जिग पर जर्मनी का अधिकार होना चाहिये और साथ ही पोलैण्ड को समुद्री किनारे के लिये जर्मनी में होकर जो मार्ग दिया है वह भी रुक जाना चाहिये। हिटलर की इस बात से पोलैण्ड सहमत नहीं था। उसको ब्रिटेन और फ्रांस की सहायता का पूरा भरोसा था। इधर जर्मनी ने भी आस्ट्रिया, चेकोस्लोवाकिया पर विजय प्राप्त कर ली थी और ब्रिटेन तथा फ्रांस उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सके। इससे जर्मनी का साहस भी बढ़ गया था। विश्व के सभी राज्यों ने यह प्रयत्न किया कि जर्मन पोलैंड की समस्या को शान्तिपूर्ण उपायों से सुलझाये किन्तु हिटलर ने किसी की परवाह न की।

1 सितम्बर, 1939 को प्रात: 5 1/2 बजे जर्मन सेनाओं ने पोलैंड पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध का श्रीगणेश हो गया। विश्व के विविध राज्य अपने-अपने गुटों की ओर से युद्ध में सम्मिलित हो गये । इस प्रकार विश्व के राज्यों को एक बार फिर युद्ध की लपटों में झुलसना पड़ा।

इतिहास – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!