इतिहास

हुमायूँ और अकबर के संरक्षण में चित्रकला का विकास | मुगल काल में चित्रकला के विकास का निरूपण

हुमायूँ और अकबर के संरक्षण में चित्रकला का विकास | मुगल काल में चित्रकला के विकास का निरूपण

हुमायूँ और अकबर के संरक्षण में चित्रकला का विकास

औरंगजेब के सिवाय सभी मुगल बादशाह चिाकला के प्रेमी थे। ईरान के तैमूरवंशी शासकों ने चित्रकला को आश्रय दिया था। जब यावर हिरात गया था, तब उसका ईरानी चित्रकला से परिचय हुआ था।

हुमायूँ के संरक्षण में चित्रकला-

हुमायूँ को संगीत, काव्य और चित्रकला से बहुत प्रेम था डॉ० आशीवादी लाल ने लिखा है कि “जब वह भारत से भागकर ईरान गया हुआ था तब हेरात प्रसिद्ध चित्रकार बिहजाद के एक शिष्य मीर सैयद अली से और खाजा अब्दुस्समद से उसका परिचय हो गया और उसने उन्हें सन् 1550 में अपने साथ काबुल आने के लिए मना लिया। वहां हुमायूँ ने इन कुशल चित्रकारों से चित्रकला सीखी। अकबर ने भी इन्हीं से चित्रकला की शिक्षा प्राप्त की। इन दो चित्रकारों ने ‘तारीख ए खानदान तैमूरिया, दास्तान-ए-अमीर-हम्जा’और ‘पाद-शाहनामा’ नामक पुस्तकों के लिए चित्र बनाये।

अकबर के काल में ईरानी चित्रकला के तत्व उस भारतीय चिाकला के तत्वों के साथ घुल-मिल गए, जो अजन्ता और बाघ के चित्रों की परम्परा में यहाँ विद्यमान थे। मुगल चित्रकला पर पहले ईरानी प्रभाव बहुत अधिक था, जो ‘दास्तान-ए-अमीर हम्जा’ आदि पुस्तकों के चित्रों पर स्पष्ट दिखाई पड़ता है। परन्तु क्रमशः भारतीय कला के मिश्रण के फलस्वरूप यह घटता गया। विदेशी तत्व घटते-घटते बिल्कुल लुप्त ही हो गये और तब यह कला पूर्णतया भारतीय बन गई ।’तानसेन का मुगल दरबार में आगमन वाले प्रसिद्ध चित्र में ईरानी तथा भारतीय तत्वों का मिश्रण दिखाई पड़ता है। जब अकबर ने फतेहपुर सीकरी में अपने महलों की दीवारों पर हिन्दु तथा ईरानी चित्रकारों से चित्र बनवाये, तब विदेशी तत्व लुप्त हो चले थे और भारतीय तत्व प्रधान हो गये थे।

अकबर और जहाँगीर के काल में चित्रकला

प्राचीन भारतीय चित्रकला- भारत में चित्रकला का इतिहास अत्यन्त प्राचीन है। गुप्तकाल में चित्रकला अपने चरम उत्कर्ष पर पहुंच गयी थी, जम् अजन्ता और बाप की गुफाओं के विश्वविख्यात भित्ति चित्र बने थे। मुसलमानों के भारत में आने से पहले राजस्थान जम्मू और कांगडा में अलग-अलग चित्र शैलियाँ विकसित हुई थीं। हिन्दुओं को चित्रकला धर्म से घनिष्ठ रूप से सम्बद थी और चित्रों के विषय अधिकतर पौराणिक आख्यान या कृष्ण लीला आदि होते थे।

तुर्क सुल्तानों का चित्रकला से द्वेष- परन्तु गयारहवीं शताब्दी में विजेता के रूप में आने वाले तुर्क कट्टर मुसलमान थे और वे चित्रकला के घोर विरोधी थे। श्री बी० एन० लूनिया ने लिखा है कि “दिल्ली के सुल्तानों ने हिन्दुओं की चित्रकला को प्रोत्साहन नहीं दिया। उल्टे फीरोज तुगलक जैसे सुल्तानों ने दीवारों को चित्रों से सुसज्जित करने और मनुष्यों के चित्र बनाने पर प्रतिबन्ध लगा दिये थे।”इस काल में चित्रकला का शोचनीय ह्रास हुआ। मुगलों का काल भारतीय चित्रकला के पुनरूत्थान का काल है।

ईरानी चित्रकला-डा० सत्यकेतु विद्यालंकार ने लिखा है कि “तैमूर के सभी वंशज चित्रकला के प्रेमी थे। विशेषतया हिरात के शासक हुसेनप बेकरा के संरक्षण में इस कला का असाधारण रूप से विकास हुआ।” उसके दरबार में बिहजाद नामक गुणी चित्रकार रहता था, जिसे पूर्व का राफेल (Raphael of East) कहा जाता था। उसने चित्रकला की एक नई शैली विकसित की थी, जिसमें चीनी, ईरानी, बौद्व आदि कई शैलियों का सुन्दर सम्मिश्रण था। बाबर के साथ चित्रकला की यही शैली भारत में आई।

अकबर के काल में चित्रकला- बाबर और हुमायूँ, दोनों ही चित्रकला के प्रेमी थे। परन्तु अगबर इस दिशा में उन दोनों से बहुत आगे था। इस्लाम में चित्रकला का निषेध है, इसकी परवाह न करते हुए अकबर कहता था कि “बहुत से लोक चित्रकला से घृणा करते हैं; परन्तु ऐसे लोग मुझे पसन्द नहीं हैं। मुझे तो लगता है कि भगवान का साक्षात्कार करने का एक विचित्र माध्यम है; क्योंकि किसी भी जीवित वस्तु का चित्र बनाने के बाद उसे यह समझ आ जाती है कि वह अपनी रचना में प्राण नहीं डाल सकता। इस प्रकार उसे अनुभव होता है कि जीवन देने वाला भगवान ही है।

चित्रकला का पूरा विभाग- अकबर ने ख्वाजा अब्दुस्समद और मीर सैय्यद अली तबरिजी नामक निपुण ईरानी चित्रकारों से चित्रकला सीखी थी। अतः कोई आश्चर्य नहीं उसे चित्रकला से आसाधारण प्रेम था। उसने चित्रकला का एक अलग विभाग ही खोल दिया था। ख्वाजा अब्दुस्समद को इसका अध्यक्ष बनाया गया था। इस विभाग में सौ से भी अधिक चित्रकार तो ऐसे थे, जो खूब प्रसिद्ध हो गये थे। अकबरी दरबार के सत्रह प्रमुख चित्रकारों में से तेरह हिन्दू थे ।इसमें दसवन्त, बसावन, ताराचन्द, सांवलदास, जगन्नाथ, मुकुन्द, हरबन्स, केशव प्रमुख थे। मुसलमान चित्रकारों में अब्दुस्समद के अलावा मीर सैयद अली, फर्रुख बेग और जमशेद प्रसिद्ध थे। अबुल फजल ने इनकी प्रशंसा करते हुए कहा है कि दुनिया में इनके जोड़ का चित्रकार मिलना कठिन था।

चित्रों के विषय- अकबर ने इन चित्रकारों से अनेक पुस्तकों के आख्यानों और वर्णनों चित्र बनवाये थे जैसे कि रामायण, चंगेजनामा, बाबरनामा, अकबरनामा, जफरनामा आदि थे। उसने फतेहपुर सीकरी में उपने महलों की दीवरों पर भी अनेक चित्र बनवाये थे, जो अब मिट चुके हैं।

चित्रकारों को पुरस्कार- अकबर ने चित्रकला को एक सम्मानित स्थान प्रदान किया। धर्मान्ध मुल्लाओं की आलोचना को दबाकर उसने चित्रकारों को नैकरियाँ और मनसब दिये। प्रति सप्ताह कलाकारों के बनाये चित्र बादशाह के सम्मुख प्रस्तुत किये जाते थे और उन्हें देखकर वह समुचित पारितोषिक प्रदान करता था। अकबर ने एक चित्रशाला भी बनवाई, जिसका अध्यक्ष मखतूब खाँ था। इसमें विभिन्न देशों में बने चित्रों का उत्कृष्ट संग्रह था। अकबर के प्रोत्साहन के फलस्वरूप मुगल दरबार के चित्रकारों की कला का स्तर बहुत ऊंचा हो गया था।

जहाँगीर के शासन में चित्रकला-अकबर की प्रतिभा सर्वतोन्मुखी थी। इसलिए उसका ध्यान भी अनेक दिशाओं में बँटा रहता था। उसने जितना ध्यान चित्रकला पर दिया, उससे कुछ अधिक हो स्थापत्य कला पर दिया। परन्तु जहाँगीर को स्थापत्य में विशेष रूचि न थी, अतः उसका ध्यान चित्रकला पर ही केन्द्रित रहा। चित्रकला की जो शैली अकबर के समय शुरू हुई थी, वह जहाँगीर के शासन काल में और भी पनपी उस पर से विदेशी प्रभाव भी समाप्त हो गया।

निपुण पारखी- जहाँगीर स्वयं भी चित्रकला का निपुण पारखी था। उसने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि “मैं किसी भी चित्र को देखकर यह बता सकता हूँ कि वह हमारे चित्रकारों में से किसका बनाया हुआ है। यदि किसी एक ही चित्र को कई चित्रकारों ने मिलकर बनाया हो, तो मैं यह भी बता सकता हूँ कि उसके कौन-कौन से भाग किस किस चित्रकार के बनाये हुए हैं।

कुशल चित्रकार- जहाँगीर के दरबार में भी अनेक अच्छे चित्रकारों को आश्रय मिला था जिनमें विशनदास, माधव, मनोहर, तुलसी, गोवर्धन, अबुलहाना, आगा रजा, मुहम्मद नादिर, मुहम्मद मुराद, उस्ताद मन्सूर आदि विशेष रूप से प्रसिद्द थे।

चित्रों के विषय- जहाँगीर के समय युद्ध के दृश्यो, प्राकृतिक दृश्यों, तथा व्यक्तियों के चित्र अधिक यने । जहाँगीर को तरह-तरह के सुन्दर चित्रों का संग्रह करने का बड़ा शौक था। वह विदेशों के चित्रकारों से भी चित्र मंगाया करता था। अंग्रेज राजदूत टामस रो ने जहांगीर को एक चित्र भेंट किया। जहाँगीर के एक चित्रकार ने उस चित्र की ऐसी सटीक नकल तैयार कर दी कि टामस रो यह पहचान ही न सका कि दो में से कौन चित्र असल है और कौन सा नकल।

उन्नति के शिखर पर- ऐसा माना जाता है कि जहाँगीर के शासन काल में मुगल चित्रकला अपनी उन्नति के चरम शिखर पर पहुंच गई थी। उसमें स्वाभाविकता और सजीवता आ गई थी। जहांगीर के बाद शाहजहाँ ने चित्रकला की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया, क्योंकि उसकी रुचि स्थापत्य में थी। औरंगजेब सभी कलाओं का पक्का शत्रु था। अतः पर्सी ब्राउन का यह कथन बिल्कुल सही है कि “जहाँगीर की मृत्यु के साथ ही मुगल चित्रकला भी मर गई।

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Pankaja Singh

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