अर्थशास्त्र

गैट की स्थापना | प्रशुल्क दरों एवं व्यापार के सामान्य समझौते के उद्देश्य | गैट के मूल सिद्धान्त | गैट के कार्यों की प्रगति

गैट की स्थापना | प्रशुल्क दरों एवं व्यापार के सामान्य समझौते के उद्देश्य | गैट के मूल सिद्धान्त | गैट के कार्यों की प्रगति | Establishment of GATT in Hindi | Objectives of the general agreement on tariff rates and trade in Hindi | Basic Principles of GATT in Hindi | progress of gait in Hindi

गैट की स्थापना (Establishment of GATT)-

दो विश्व युद्धों के फलस्वरूप विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के व्यापारिक सम्बन्धों में पारस्परिक द्वेष व भेदभावपूर्ण प्रवृत्ति विकसित हुई, जिससे विश्व व्यापार की मात्रा में भारी गिरावट आई। परिणामतः अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के समानता एवं न्याय के सिद्धांत के आधार पर संचालन एवं विकास हेतु द्वितीय महायुद्ध के पश्चात् अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास प्रारम्भ हुए। इस विषय पर ब्रेरनवुड अधिवेशन (सन् 1944) में भी विस्तृत चर्चा हुई।

अन्ततः 1947 में हवाना अधिवेशन में एक समझौता हुआ, जिसमें “प्रशुल्क दरों एवं व्यापार पर सामान्य समझौता (GATT)’ की संज्ञा दी गयी। प्रारम्भ में इस समझौते को केवल अस्थायी व्यवस्था माना गया था, परन्तु 1948 से यह एक अस्थायी अंतर्राष्ट्रीय समझौते के रूप में कार्यशील है। वर्तमान में इसके सदस्यों की संख्या 102 है। नये देश को सदस्य केवल उसी स्थिति में बनाया जा सकता है, जब दो तिहाई वर्तमान सदस्य इसके लिए अपनी सहमति व्यक्त कर दें। समस्य सदस्यों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे इस समझौते में दी गयी आचार संहिता का पालन करेंगे। सोवियत रूस, लाल चीन एवं अधिकांश साम्यवादी देशों ने इसकी सदस्यता स्वीकार नहीं की है।

प्रशुल्क दरों एवं व्यापार पर साम्य समझौता एक ऐसी सन्धि है, जिसके प्रति सभी सदस्यों का दायित्व रहता है। सदस्य देशों के प्रतिनिधि समय-समय पर मिलकर विचार-विमर्श करते हैं।

प्रशुल्क दरों एवं व्यापार के सामान्य समझौते के उद्देश्य

(Objectives of GATT)

समझौते का मुख्य उद्देश्य प्रशुल्क दरों में पर्याप्त कटौती व्यापार के विस्तार में आने वाली बाधाओं को कम करके परस्पर लाभ पहुंचाने वाले निम्नलिखित उद्देश्यों की पूर्ति करना है।

(1) सदस्य देशों में जीवन स्तर को ऊंचा उठाना।

(2) विश्व के अंतर्राष्ट्रीय व्यापार तथा उत्पादन में वृद्धि करना।

(3) पूर्ण रोजगार की दिशा में अर्थव्यवस्था की प्रवृत्त करना तथा वास्तविक आय एवं प्रभावी अंग के परिमाण में वृद्धि करना।

(4) विश्व के उपलब्ध साधनों का इष्टतम उपयोग करना।

(5) दो देशों की अपेक्षा अनेक देशों के व्यापार की संवृद्धि हेतु वार्तायें आयोजित करना, ताकि विभिन्न देशों के बीच व्यापार में सरकारी हस्तक्षेप एवं बाधाओं को न्यूनतम किया जा सके।

गैट ‘समझौते’ द्वारा इन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु प्रत्यक्ष रूप से कोई कार्यवाही नहीं की जाती। समझौते के किसी भी अनुच्छेद में उपर्युक्त उद्देश्यों की पूर्ति हेतु कोई प्रावधान नहीं है। ऐसी मान्यता व्यक्त की गयी है कि विश्व के विभिन्न देशों के बीच व्यापार को बहुमुखी पद्धति पर आधारित करकेक्षइस प्रकार समायोजित किया जाये कि प्रशुल्क दरों में कटौती करके इन्हें न्यूनतम स्तर पर लाया जाये, ताकि इन देशों के आर्थिक विकास की प्रक्रिया को बल मिलता रहे तथा आय एवं रोजगार के स्तर में पर्याप्त सुधार हो। यह उल्लेखनीय है कि समझौते के अंतर्गत प्रशुल्क दरों एवं अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर विद्यमान प्रतिबन्धों को पूर्णतः समाप्त करने की अपेक्षा इन्हें काफी कम करने का प्रस्ताव रखा गया है।

गैट के मूल सिद्धान्त

(Fundamental Principles of GATT)

अपने उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए गैट ने कुछ मूलभूत सिद्धान्त स्वीकार किये हैं, जो कि इस प्रकार से है-

(1) अंतर्राष्ट्रीय व्यापार बिना किसी प्रकार के भेदभाव के होना चाहिए।

(2) व्यापार में परिमाणात्मक प्रतिबन्धों को निरुत्साहित किया जाना चाहिए।

(3) व्यापारिक वाद-विवाद का निपटारा आपसी विचार-विमर्श द्वारा किया जाना चाहिए।

(1) भेदभाव की समाप्ति (End of Discrimination)- गैट के सदस्यों ने यह स्वीकार किया है कि अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में प्रशुल्क की कमी एवं भेदभाव की समाप्ति पारस्परिक लाभ के आधार पर होनी चाहिए। इस उद्देश्य से कुछ अपवादों को छोड़कर सदस्य देश आयात- निर्यात करों में शर्त रहित परमानुग्रहित राष्ट्र व्यवहार अपनाते हैं। गेट इस बात पर भी बल देता है कि सदस्य देशों में राज्य व्यापार भी बिना किसी भेदभाव के होना चाहिए। सीमा संघों एवं स्वतंत्र व्यापार क्षेत्रों के निर्माण की अनुमति उस शर्त पर दी जाती है कि उनके फलस्वरूप सम्बन्धित क्षेत्रों में व्यापार सुविधाजनक होगा तथा अन्य सदस्य राष्ट्रों के विरोध में व्यापार पर प्रतिबन्ध नहीं लगाये जायेंगे।

(2) परिणामात्मक प्रतिबन्धों में कमी करना (To Reduce the Quantitative Restrictions)- गैट में यह भी व्यवस्था है कि सदस्य देशों द्वारा व्यापार क्षेत्र में लगाये गये परिमाणात्मक प्रतिबन्धों को कम किया जाना चाहिए, ताकि अनावश्यक रूप से अन्य सदस्य देशों को हानि न हो। किन्तु एक बात स्पष्ट है कि इन प्रतिबन्धों को कम करने के लिए गैट में कोई कठोर व्यवस्था नहीं है। इस सम्बन्ध में एल्सवर्थ का कथन है कि जहाँ तक प्रतिबन्धों की कमी का प्रश्न है, गैट ने न तो क्षेत्र में घुटने टेके हैं और न ही वह प्रतिबन्धों को कम करने में सफल हुआ है, बल्कि उसने किसी न किसी तरह भुगतान शेष की कठिनाइयों को कम कर दिया है। अपवाद स्वरूप गैट निम्नलिखित परिस्थितियों में ही प्रतिबन्धों की अनुमति देता है –

(i) अर्द्ध-विकसित देशों की उनके आर्थिक विकास को गतिशील बनाने एवं अनुमोदित कार्यक्रम के अनुसार विशेष प्रतिबन्धों के लिए।

(ii) जिन आयातों से सदस्य देश की कीमत समर्थन नीति एवं उत्पादन नियंत्रण कार्यक्रम को नुकसान पहुँचे, उनका नियंत्रण करने के लिए।

(iii) जब देश भुगतान संकट में हो, तो विनिमय रिजर्व की सुरक्षा के लिए।

(3) प्रशुल्क समझौते (Tariff Agreements)- गैट में इस प्रकार का प्रावधान है कि सदस्य देश आपस में मिलकर प्रशुल्क को घटाने का प्रयत्न करें। उन बड़ी मात्राओं के प्रशुल्कों को विशेष रूप से कम किया जाये, जो आयात की न्यूनतम मात्रा को भी हतोत्साहित करते हैं। निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखकर समझौते किये जाते हैं-

(i) सदस्य देशों की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए।

(ii) अर्द्ध विकसित देशों के आर्थिक विकास के लिए संरक्षण एवं आय प्राप्त करने के लिए प्रशुल्क की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए।

गैट के कार्यों की प्रगति

(Progress of GATT Functions)

समग्र रूप से विचार करने पर यह कहा जा सकता है कि गैट ने अंतर्राष्ट्रीय व्यापार को सुव्यवस्थित किया है तथा प्रशुल्कों को कम कर व्यापार में विस्तार किया है। गैट के द्वारा किये गये कार्यों का विवरण इस प्रकार है

(1) क्षेत्रीय संघों की स्थापना- गैट ने सदस्य देशों के स्वतंत्र व्यापार को सदैव प्रोत्साहन दिया है और इसी उद्देश्य से इन देशों में सीमा संघ बनाने की भी अनुमति दी गई है। किन्तु सके साथ यह शर्त भी रही है कि इन संघों का उद्देश्य होना चाहिए, न कि व्यापार में रुकावटें पैदा करना। निर्धारित शर्तों की पूर्ति होने पर गैट ने कई प्रकार के सीमा संघों को बनाने की अनुमति दी है, जैसे— यूरोपियन साझा बाजार (E.C.M.) यूरोपीय स्वतंत्र व्यापार संघ (EETA) तथा लेटिन अमेरिका मुक्त व्यापार संघ आदि।

(2) कैनेडी प्रशुल्क नीति- प्रशुल्कों में कटौती करने की कैनेडी प्रशुल्क नीति छठवीं नीति की तथा इसके पहले गैट के तत्वाधान में पाँच नीतियाँ 1947, 1949, 1951, 1956 और 1961 में कार्यान्वित की जा चुकी है। सेमुअल्सन के अनुसार ‘कैनेडी व्यापार कानून (1962) जिसका उद्देश्य पारस्परिक आधार पर प्रशुल्क में कटौती करना था, मानव के लिए सर्वाधिक योग्य यादगार है। कुल मिलाकर कैनेडी प्रशुल्क नीति के जो परिणाम सामने आये, वे काफी सन्तोषजनक थे, किन्तु इससे अर्द्ध विकसित देशों की आशायें पूरी नहीं हो सकी।

(3) विवादों का निपटारा- गैट के सदस्यों में व्यापार को लेकर जो भी विवाद समय- समय पर खड़े हुए है, उन्हें निपटाने में गैट ने महत्वपूर्ण कार्य किया है। गैट की धारा XXIII में इस बात का प्रावधान है कि गैट को नियमों का उल्लंघन किये जाने पर या समझौते के अविलम्ब जाँच करने के लिए एक पैनल की नियुक्ति करते हैं, जो सम्बन्धित पक्षों को सुनने के बाद अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है। बहुधा इस बात का प्रयास किया जाता है कि समस्या का ऐसा हल निकाला जाये, जो दोनों पार्टियों को स्वीकार हो ।

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Pankaja Singh

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