अर्थशास्त्र

पंचायती राज का अर्थ | पंचायती राज संस्थाएँ | ग्रमीण पुनर्निर्माण में पंचायतों के कार्य अथवा महत्त्व | सार्वजनिक कल्याण में गाँव पंचायत का महत्त्व | आर्थिक जीवन में गाँव पंचायतों का महत्त्व | पंचायती राज संस्थाओं का सामान्य कार्य संचालन एक मूल्यांकन

पंचायती राज का अर्थ | पंचायती राज संस्थाएँ | ग्रमीण पुनर्निर्माण में पंचायतों के कार्य अथवा महत्त्व | सार्वजनिक कल्याण में गाँव पंचायत का महत्त्व | आर्थिक जीवन में गाँव पंचायतों का महत्त्व | पंचायती राज संस्थाओं का सामान्य कार्य संचालन एक मूल्यांकन | Meaning of Panchayati Raj in Hindi | Panchayati Raj Institutions in Hindi | Functions or importance of Panchayats in rural reconstruction in Hindi |  Importance of village panchayat in public welfare in Hindi | Importance of village panchayats in economic life in Hindi | General Operation of Panchayati Raj Institutions An Evaluation in Hindi

पंचायती राज का अर्थ-

पंचायती राज का अर्थ हैं – जनता द्वारा चुने गये व्यक्ति एक समिति या पंचायत के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में स्वयं स्थानीय स्वशासन का संचालन करें। पंचायती राज संस्थाएं कई प्रकार के कार्यक्रमों के लिए उत्तरदायी हैं, जैसे- कृषि का विकास, ग्राम उद्योगों की स्थापना, चिकित्सा, सफाई, सड़कों, कुओं एवं तालाबों आदि का रख- रखाव, पेयजल की व्यवस्था एवं बाल कल्याण के कार्यक्रम आदि। पंचायती राज संस्थाएँ इन कार्यक्रमों को लागू करने के लिए प्रशासनिक तंत्र की सेवाएँ लेती हैं।

पंचायती राज संस्थाएँ-

73वें संविधान अधिनियम के अनुसार तीन स्तरों पर पंचायती राज संस्थाएँ स्थापित की गई हैं तथा जिन राज्यों में अभी स्थापित नहीं हुई हैं, वहाँ स्थापित की जानी हैं-

(1) ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायत, (2) ब्लाक या खण्ड स्तर पर पंचायत समिति तथा (3) जिला स्तर पर जिला परिषद।

पंचायती राज संस्थाओं के सम्बन्ध में 73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 भारत की संसद ने अप्रैल 1992 को इसे पारित किया। इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

(1) त्रिस्तरीय ढाँचा- 73वें संविधान संशोधन अधिनियम ने त्रिस्तरीय पंचायती राज के ढाँचे का प्रावधान किया हैं। इसमें ग्राम स्तर पर ग्राम पंचायतें, ब्लाक या खण्ड स्तर पर पंचायत समितियाँ तथा जिला स्तर पर जिला परिषदों के गठन की व्यवस्था हैं।

(2) महिलाओं को आरक्षण- इस संविधान अधिनियम में पंचायती राज व्यवस्था में महिलाओं की भागीदारी को सुनिश्चित किया गया हैं। प्रत्येक पंचायती राज संस्था में एक-तिहाई स्थानों पर महिलाओं के लिए आरक्षण की व्यवस्था की गई हैं। इतना ही नहीं अनुसूचित जाति एवं जनजाति की महिलाओं की भागीदारी के लिए इन जातियों की संख्या के अनुपात में आरक्षण की व्यवस्था की गई हैं। अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित स्थानों में भी एक-तिहाई स्थान महिलाओं के लिए हैं।

(3) निश्चित कार्यकाल- इस अधिनियम के माध्यम से पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक मान्यता प्राप्त हो गई हैं। अब वे प्रशासन की दया पर निर्भर नहीं रहेंगी। इनका कार्यकाल पाँच वर्ष निश्चित कर दिया गया हैं। यदि किसी कारण से इनको भंग किया जाना आवश्यक हो जाता हैं तो छः माह के अन्दर-अन्दर चुनाव करवाना आवश्यक हैं।

(4) अनुदान की व्यवस्था- 73वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा पंचायती राज संस्थाओं के लिए आर्थिक स्वावलम्बन की व्यवस्था की गई हैं। राज्य में संचित निधि से इन संस्थाओं को अनुदान देने की व्यवस्था हैं। इन संस्थाओं को कितनी राशि अनुदान के रूप में दी जाए, यह राज्य के वित्त आयोग की सिफारिश पर निर्भर हैं। इस प्रकार पंचायती राज संस्थाओं को राज्य के नियंत्रण से स्वतन्त्र रखने की व्यवस्था की गई हैं।

(5) राज्य चुनाव आयोग का गठन- 73वें संशोधन अधिनियम द्वारा राज्यों के लिए एक राज्य चुनाव आयोग के गठन की भी व्यवस्था की गई हैं। यह आयोग पंचायती राज संस्थाओं के चुनाव करवा सकेगा। इस प्रकार से पंचायती राज संस्थाओं की विश्वसनीयता को सुनिश्चित कर दिया गया हैं।

(6) ग्यारहवीं अनुसूची- इस अधिनियम के द्वारा संविधान में एक नई ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी की गई हैं इसमें पंचायती राज से सम्बन्धित विभिन्न प्रावधानों का उल्लेख हैं। यह अनुसूची ग्रामीण विकास के आर्थिक तथा सामाजिक कार्यों को विशेष महत्त्व देती हैं।

(7) विस्तृत कार्यक्षेत्र-  ग्यारहवीं अनुसूची पंचायती राज के कार्य क्षेत्र का विस्तृत रूप से वर्णन करती हैं। सिंचाई, पीने का पानी, पशुपालन, स्वास्थ्य की देखरेख, शिक्षा, बिजली तथा रसोई के लिए ईंधन की व्यवस्था करना तो पंचायती राज के मुख्य कार्य बताये गये हैं ही, इनके अतिरिक्त रोजगार के साधनों को बढ़ावा देना, तकनीकी तथा व्यासायिक शिक्षा का प्रबन्ध, जिससे गरीबी को कम किया किया जा सके, महिला व शिशु कल्याण के कार्य साथ-साथ अपंग, मानसिक रूप से अविकसित तथा अन्य दुर्बल लोगों के कल्याण की व्यवस्था का दायित्व भी पंचायती राज संस्थाओं पर हैं। पंचायती राज संस्थाएँ आवास व्यवस्था की ओर भी ध्यान देंगी।

ग्रमीण पुनर्निर्माण में पंचायतों के कार्य अथवा महत्त्व

पंचायती राज व्यवस्था के अन्तर्गत गाँव पंचायत, पंचायत समिति तथा जिला परिषद समान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं तथा एक दूसरे की पूरक हैं। इसके पश्चात् भी यदि इन विभिन्न इकाइयों के महत्त्व को तुलनात्मक दृष्टिकोण से ज्ञात किया जाए तो स्पष्ट होता हैं कि इन सभी इकाइयों में ग्राम पंचायत का महत्त्व सबसे अधिक हैं। ग्राम पंचायत न केवल गाँव में स्वस्थ नेतृत्व का विकास करने का प्रयत्न करती हैं बल्कि इसी के माध्यम से एक ऐसी लोकतान्त्रिक व्यवस्था सम्भव हो पाती हैं जिसमें शासन का प्रवाह नीचे से ऊपर की ओर होता हैं। ग्राम पंचायतें ही वह माध्यम हैं जिनके द्वारा स्थानयी आवश्कताओं के अनुसान योजनाओं के निर्माण के लिए सुझाव दिए जाते हैं तथा उन योजनाओं के कार्यान्वयन को प्रभावपूर्ण बनाया जाता हैं। भारत गाँवां का देश हैं, अतः जब तक विभिन्न विकास कार्यक्रमां में ग्रामीणों का सहभाग प्राप्त नहीं होता तब तक योजनाओं की सफलता का सम्भावना नहीं की जा सकती। सम्भवतः इसी दृष्टिकोण से गाँधीजी ने कहा था, “यदि भारत की जनता के लिए स्वराज्य का कोई अर्थ हैं तो प्रारम्भिक संस्था के रूप में ग्राम पंचायतों के विकास को सबसे अधिक महत्त्व देना होगा।” इस संदर्भ में श्री ढेवर ने यह स्पष्ट किया हैं था कि “पंचयातों का महत्त्व इसी तथ्य से स्पष्ट हो जाता हैं कि गाँव पंचायतें छोटे- से-छोटे प्रत्येक स्थान पर ग्रामीणों को जनतन्त्र की शिक्षा देने तथा उन्हें अपना विकास स्वयं करने का प्रशिक्षण देने वाला सबसे प्रभावपूर्ण माध्यम हैं। इनमें ग्रामीण गणतन्त्र के सभी गुण विद्यमान हैं।” वास्तव में ग्रामीण जीवन के लिए ग्राम पंचायतें जो महत्त्वपूर्ण कार्य कर सकती हैं वह किसी भी अन्य संगठन द्वारा सम्भव नहीं हैं। विभिन्न क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों के महत्त्व को हम उनके द्वारा किये जाने वाले निम्नांकित कार्यों के सन्दर्भ में सरलतापूर्वक स्पष्ट कर सकते हैं-

सार्वजनिक कल्याण में गाँव पंचायत का महत्त्व

ग्रामीण क्षेत्रों में सार्वजनिक कल्याण कार्य की बहुत कमी हैं। प्रत्येक स्थान पर स्वास्थ्य का स्तर बहुत निम्न हैं। ग्रामों में गन्दगी, संक्रामक रोगों, पीने के स्वच्छ पानी की कमी, स्वस्थ मनोरंजन का अभाव तथा परिवहन की असुविधा आदि विशेष समस्याएँ है। पंचायतें सार्वजनिक क्षेत्र में निम्नाकित अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य करके ग्रामीण पुननिर्माण में सहायक सिद्ध हुई हैं-

(1) सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार- स्वास्थ्य के स्तर को गिराने वाली सभी समस्याओं को गाँव पंचायत की सहायता से ही सुलझाया जा सकता है। इसके द्वारा ग्रामीण जीवन की आवश्यक जानकारी रखी जाती हैं और स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यक्तियों के लिए आवश्यक सुविधाएं जुटाई जाती हैं।

(2) रोगों की चिकित्सा- यह कार्य ग्राम पंचायतों के द्वारा अधिक सरलता से किया जा सकता है। अधिकतन बीमारियाँ संक्रामक होती हैं। उनके फैलते ही तत्काल कार्यवाही करना आवश्यक है। स्थानीय संगठन होने के कारण यह कार्य ग्राम पंचायतों के द्वारा शीघ्र ही किया जा सकता है।

(3) स्वच्छता का प्रबन्ध- अधिकांश ग्रामीणों के शिक्षित न होने के कारण वे साधारणतया स्वच्छता के प्रति अधिक जागरूक नहीं होते। इसके फलस्वरूप उनके स्वास्थ्य का स्तर निम्न ही रहता है। गाँव पंचायतें ग्रामीणों से केवल स्वच्छता की अपील ही नहीं करती बल्कि उन्हें नालियाँ बनाने और ढके हुए खाद के गड्ढे बनाने का प्रशिक्षण भी देती हैं। सभी ग्रामीणों से गाँव पंचायतों का प्रत्यक्ष सम्बन्ध होने के कारण यह भी कार्य सरलतापूर्वक हो जाता हैं।

आर्थिक जीवन में गाँव पंचायतों का महत्त्व

गाँव पंचायतें निम्नलिखित कार्य करके ग्रामीणों की आर्थिक दशा में सुधार करने का भी महत्त्वपूर्ण कार्य करती।

(1) उद्योग धन्धों का विकास- ग्रामीण जीवन को उन्नत करने में यद्यपि खेती का महत्त्व सबसे अधिक हैं फिर भी उद्योगों का विकास करने से ग्रामीणों की आर्थिक दशा में बहुत सुधार हो सकता हैं। गाँव पंचायतें सहयोग के आधार पर छोटे-छोटे उद्योगों को स्थापित करने में सहायता देती हैं और ग्रामीणों को नये-नये लघु एवं कुटीर उद्योगों की जानकारी देने का भी प्रयास करती हैं।

(2) पशुओं की नस्ल में सुधार- ग्रामीण जीवन में पशुओं का महत्त्व आधारभूत हैं, लेकिन भारतीय पराओं की संख्या संसार में अधिक होने पर भी उसकी नस्ल सबसे खराब हैं। गाँव पंचायतें नये केन्द्र स्थापित करके पशुओं की नस्ल सुधारने तथा उन्हें अनेक बीमारियों से बचाने का महत्त्वपूर्ण कार्य करती हैं।

(3) सिंचाई की सुविधाएँ-हमारे देश की कृषि आज भी बहुत बड़ी सीमा तक वर्षा पर निर्भर हैं। गाँव पंचायतें सार्वजनिक कुओं, तालाबों, और सिंचाई करने वाली नालियों का निर्माण करके और उनकी मरम्मत करवाकर सिंचाई की अधिकाधिक सुविधाएँ प्रदान करती हैं।

(4) भूमिहीन मजदूरों की सहायता- भारतीय ग्रामों में आज भी लाखों किसान भूमि पर केवल मजदूर के रूप में कार्य करते हैं। गाँव पंचायतें समस्त भूमि का उचित प्रबन्ध करके कुछ भूमि को ऐसे मजदूरों में बैठने की व्यवस्था कर करती हैं जिनके पास अपनी कोई भूमि नहीं होती तथा जिन्हें वर्ष के आधे से अधिक समय तक बेकार रहना पड़ता हैं।

पंचायती राज संस्थाओं का सामान्य कार्य संचालन एक मूल्यांकन

इन संस्थाओं के कार्य संचालन और उपलब्धियों से सम्बन्धित पिछले कुछ वर्षों में अनेक अध्ययन हुए हैं जिनमें से प्रमुख से इस प्रकार हैं इनामदार द्वारा महाराष्ट्र में किये गये एक  अध्ययन से ज्ञात होता है कि परिपक्वता प्राप्त करने में पंचायत को समय लगता हैं और अधिकांश पंचायतों की प्रकृति प्रजातन्त्रात्मक एवं मन्त्रणात्मक हैं। राजस्थान में इकबाल नारायण और माथुर द्वारा किये गये एक अध्ययन से प्रकट होता हैं कि शक्ति गुट पंचायती राजसंस्थाओं में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहें हैं। इस अध्ययन से यह भी निष्कर्ष निकाला गया हैं कि ग्राम सभा को पंचायत के कार्य संचालन की रचनात्मक आलोचना हेतु एक प्रभावशाली मंच के रूप में अभी उभरना हैं। यह भी पाया गया है कि ग्राम सभी के प्रति लोगों में उत्साह की कमी हैं। इस प्रकार का निष्कर्ष इनामदार तथा पंचनन्दीकर ने अपने अध्ययनों के आधार पर निकाला हैं। आन्ध्र प्रदेश में किये गये अपने अध्ययन के आधार पर सर्वेश्वर राव ने बताया है कि पंचायती राज की स्थापना ने गाँवों की सामाजिक व्यवस्था को परिवर्तित किया है। अब लोगों ने विकास कार्यों में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया है और शक्ति संरचना में परिवर्तन आया हैं।

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Pankaja Singh

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