अर्थशास्त्र

अंकटाड | अंकटाड के प्रमुख कार्य | अंकटाड-I तथा निर्देशक सिद्धान्त | प्रथम अधिवेशन के आधार पर अंकटाड की सिफारिशें एवं मूल्यांकन | अंकटाड के उद्देश्य

अंकटाड | अंकटाड के प्रमुख कार्य | अंकटाड-I तथा निर्देशक सिद्धान्त | प्रथम अधिवेशन के आधार पर अंकटाड की सिफारिशें एवं मूल्यांकन | अंकटाड के उद्देश्य | UNCTAD in Hindi | Major Functions of UNCTAD in Hindi | UNCTAD-I and Directive Principles in Hindi | UNCTAD’s recommendations and evaluation on the basis of the first session in Hindi | Objectives of UNCTAD in Hindi

अंकटाड

पारस्परिक समझौते एवं अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के वर्तमान युग में अर्द्धविकसित तथा विकासशील देशों की अत्याधिक निर्धनता ने समस्त विश्व की अन्तर्भावना को जागृत कर दिया है। इस जागृत अन्तर्भावना का प्रभाव अनेक अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं जैसे, विश्व बैंक, अन्तर्राष्ट्रीय विकास संघ, अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्था एवं एशियन विकास बैंक, अमरीकन विकास बैंक आदि के समान, क्षेत्रीय वित्तीय संस्थाओं का जन्म तथा विकास है। इन अन्तर्राष्ट्रीय वित्तीय संस्थाओं, जिनका कार्य विश्व के निर्धन क्षेत्रों के आर्थिक विकास के लिए सहायता प्रदान करना है, के अतिरिक्त अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं जिनमें UNESCO, FAO, WHO तथा UNCTAD सम्मिलित हैं, का जन्म संयुक्त राष्ट्र संघ की छत्रछाया में हुआ है। व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन जो UNCTAD के नाम से अधिक प्रसिद्ध है, 1961 के विकास दशक पर संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव का परिणाम है।

संयुक्त राष्ट्र संघ की आर्थिक तथा सामाजिक परिषद (ECOSOC) ने 1946 में व्यापार एवं विकास पर एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने के लिए प्रस्ताव किया। इसके अनुसार 1948 में एक समिति की नियुक्ति की गयी तथा हवाना में एक चार्टर स्वीकार किया गया। अभी हवाना चार्टर पर विचार-विमर्श हो ही रहा था कि GATT अस्तित्व में आ गया। GATT ने विश्व के कम विकसित देशों के आर्थिक विकास के पथ की बाधाओं को हटाने के अनेक प्रयत्न किये, परन्तु आलोचकों ने गाट को ‘धनिकों का क्लब’ कहकर उसके कार्यों की आलोचना की। इसके अतिरिक्त गाट, वास्तव में, सदस्य देशों की केवल प्रशुल्क से संबंधित समस्याओं पर विचार-विमर्श करने का एक यंत्र था। गाट में अनेक आर्थिक समस्याओं, जैसे निर्यात की कीमतें, विकसित राष्ट्रों द्वारा विकासशील देशों के निर्यातों पर लगाए गये गैर-प्रशुल्क अवरोध, जल परिवहन, आर्थिक  सहायता, आर्थिक विकास तथा विकसित देशों के विकास से संबंधित अनेक अन्य बातों पर विचार करने का कोई प्रावधान नहीं था।

सन् 1961 में सयुंक्त राष्ट्र संघ की महासभा में बीसवीं शताब्दी के सातवें दशक (1961-70) को ‘विकास दशक’ के रूप में मनाने का निश्चय किया गया। महासचिव को यह निर्देश दिया गया कि वह सदस्यों से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की समस्याओं पर एक अन्तर्राष्ट्रीय सम्मेलन बुलाने की वांछनीयता पर परामर्श करें। परिणामस्वरूप जुलाई, 1962 में आर्थिक विकास की समस्याओं के लिए आयोजित काहिरा सम्मेलन ने भी व्यापार एवं विकास की समस्याओं के विवेचन के लिए सम्मेलन को शीघ्र बुलाने पर जोर दिया। जुलाई, 1963 में संयुक्त राष्ट्र संघ की आर्थिक तथा सामाजिक परिषद ने अंकटाड की स्थापना का प्रस्ताव पारित कर दिया जिसकी बैठक तीन वर्षों के अन्तरील के पश्चात हुआ करेगी। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया तथा अंकटाड की स्थापना संयुक्त राष्ट्र संघ के एक स्थायी अंग के रूप में की गयी। संयुक्त राष्ट्र संघ की महासभा ने अंकटाड के कार्यों, क्रियाओं तथा सदस्यता को भी परिभाषित किया।

अंकटाड के लिए नीति निर्धारण संस्था के रूप में व्यापार तथा विकास मंडल की नियुक्ति की गयी जो उस समय नीति निर्धारण कर सके जबकि सम्मेलन का अधिवेशन न हो रहा हो। इस मंडल में सदस्यों का चुनाव समान भौगोलिक विवरण के आधार पर किया गया है। इसने प्राथिमिक वस्तुओं, निर्मित तथा अर्द्धनिर्मित वस्तुओं, विकास, वित्त समस्याओं एवं अदृश्व सेवाओं– जिनमें जल परिवहन तथा बीमा आदि भी सम्मिलित हैं—से संबन्धित प्रश्नों पर विचार करने हेतु पांच समितियों की स्थापना की है।

अंकटाड के प्रमुख कार्य

(Principal Functions of UNCTAD)

अंकटाड का प्रमुख कार्य अर्द्धविकसित देशों के निर्यात व्यापार में धीमी वृद्धि, उनके भुगतान शेष में घाटा तथा विदेशी ऋणों की अधिकता आदि समस्याओं का समाधान करके उनके विकास की गति को तीव्र करना था। संक्षेप में अंकटाड के प्रमुख कार्य निम्नलिखित हैं:

  1. अर्द्धविकसित देशों के आर्थिक विकास की गति को तीव्र करने के विचार से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार की उन्नति में अभिवृद्धि करना, विशेषतया आर्थिक तथा सामाजिक संगठनों की विभिन्न प्रणालियों वाले देशों के मध्य व्यापार को प्रोत्साहित करना।
  2. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार तथा उससे संबंधित आर्थिक विकास की समस्याओं के संबंध में नीतियों तथा सिद्धान्तों का निर्धारण करना।
  3. उक्त वर्णित सिद्धान्तों तथा नीतियों को प्रभावशील बनाने हेतु प्रस्ताव रखना तथा ऐसे कदम उठाना जो उसे पूर्ण करने में योग्य हों
  4. अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार एवं उससे संबंधित आर्थिक विकास की समस्याओं के क्षेत्र में संयुक्त राष्ट्र संघ की प्रणाली की अन्य संस्थाओं के कार्यों के समन्वय को सुलभ बनाना तथा उन पर पुनः विचार करना और इस संबंध में महासभा तथा आर्थिक एवं सामाजिक परिषद में सहयोग करना।
  5. संयुक्त राष्ट्र संघ चार्टर के अनुच्छेद 6 का विभिन्न सरकारों एवं क्षेत्रीय समूहों के मध्य व्यापार तथा उससे संबंधित विकास नीतियों में समन्वय स्थापित करने के लिए उपलब्ध होना।

अंकटाड-I तथा निर्देशक सिद्धान्त

(UNCTAD-I and Directive Principles)

अंकटाड का प्रथम अधिवेशन जेनेवा में 23 मार्च से 16 जून, 1964 तक हुआ था। इस सम्मेलन में 120 देशों के प्रतिनिधियों, 13 विशिष्ट संस्थाओं तथा 34 गैर-सरकारी संस्थाओं के पर्यवेक्षक उपस्थित हुए थे। इस सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग से साधनों को जुटाना तथा सम्पूर्ण विश्व के हित में, विशेषतया विकासशील देशों की तात्कालिक आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, विश्व व्यापार की समस्याओं के लिए उचित समाधान ज्ञात करना था। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु सम्मेलन में अनेक नीतियों और सिद्धान्तों की सिफारिश की गयी ताकि विकसित एवं निर्धन राष्ट्रों के मध्य वर्तमान व्यापारिक संबंधों में मूलभूत परिवर्तन लाया जा सके। अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों तथा विकास को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सम्मेलन में निम्न सिद्धान्त स्वीकार किये गये

  1. आर्थिक विकास एवं सामाजिक उन्नति सम्पूर्ण अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय का एकमात्र उद्देश्य होना चाहिए जिससे राष्ट्रों में शान्ति एवं सहयोग के बीज बोये जा सकें।
  2. राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय नीतियाँ समस्त विश्व, विशेषतया विकासशील देशों की आवश्यकताओं एवं हितों के अनुरूप अन्तर्राष्ट्रीय श्रम विभाजन को प्रोत्साहित करने की दिशा में निर्धारित हों।

प्रथम अधिवेशन के आधार पर अंकटाड की सिफारिशें एवं मूल्यांकन

(Recommendations and Evaluation of UNCTAD-I on the Basis of Conference)

अंकटाड के कार्य के विषय में आशावादी दृष्टिकोण रखने वालों के मतानुसार अंकटाड  अन्तर्राष्ट्रीय मुद्राकोष तथा विश्व बैंक के पश्चात तृतीय शक्तिशाली अन्तर्राष्ट्रीय संगठन है तथा इससे अर्द्धविकसित देशों में शांति, सम्पन्नता एवं उच्च जीवन स्तर का प्रादुर्भाव सम्भव होगा। परन्तु दूसरी और अन्य विचारक यह अनुभव करते थे कि अंकटाड केवल विचारों के वायुयान पर उड़ रहा है तथा कार्यों का हवाई अड्डा इससे बहुत दूर है। उनके मतानुसार अंकटाड विचारों का मंच है। परन्तु हमें यह ध्यान में रखना चाहिए कि पैदावार में अच्छी वृद्धि के लिए भूमि को भली-भांति जोतना भी आवश्यक है। अंकटाङ एक-दूसरे को समझने का सर्वाधिक अच्छा मंच है। भारत के वाणिज्य मंत्री मनुभाई शाह, जो प्रथम अधिवेशन में भारत के प्रतिनिधि थे, ने उचित ही कहा था ‘प्रथम अंकटाड विकसित देशों में विकासशील देशों की समस्याओं के विषय में रुचि उत्पन्न करने में सफल हुआ है….. स्वतंत्र बाजार की अर्थव्यवस्थाओं एवं नियोजित अर्थव्यवस्थाओं के देश पहली बार एक साथ एकत्रित हुए तथा विकासशील देशों की समस्याओं का परीक्षण करने में सहयोग दिया। 77 विकासशील देशों ने एक साथ कार्य करने तथा विकसित देशों का सामना करने के लिए एक ही प्लेटफार्म पर एकत्रित होकर एकता का प्रदर्शन किया।

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Pankaja Singh

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