अन्तर्राष्ट्रीय तरलता का अर्थ एवं परिभाषा | अन्तर्राष्ट्रीय तरलता के तत्त्व | अन्तर्राष्ट्रीय तरलता की समस्या | अन्तर्राष्ट्रीय तरलता की समस्या के पहलू | अन्तर्राष्ट्रीय तरलता में वृद्धि के सुझाव | अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के उद्देश्य | अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्यकाल | Meaning and definitions of international liquidity in Hindi | Elements of International Liquidity in Hindi | International Liquidity Problem in Hindi | Aspects of the problem of international liquidity in Hindi | Suggestions for increasing international liquidity in Hindi | Objectives of International Monetary Fund in Hindi | International Monetary Fund tenure in Hindi
अन्तर्राष्ट्रीय तरलता का अर्थ एवं परिभाषा
(Meaning and Definition of International Liquidity)
अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में वृद्धि के लिए तथा अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक प्रणाली को संचालित करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय तरलता की आवश्यकता होती है। भुगतान शेष की तिकूलता या असन्तुलन की वित्तीय व्यवस्था करने के लिए देश के मौद्रिक अधिकारियों के पास साधनों की जो मात्रा होती है, उसे ही अन्तर्राष्ट्रीय तरलता कहते हैं। सामान्यतः सोना, विदेशी विनिमय कोष अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से प्राप्त हो सकने वाले ऋण, आदि के सम्पूर्ण योग को ही अन्तर्राष्ट्रीय तरलता कहते हैं।
(1) जे. अमूजगर (J. Amuzeger) के अनुसार- ‘अन्तर्राष्ट्रीय तरलता के अन्तर्गत विदेशी भुगतानों को निपटाने के लिये विभिन्न देशों को उपलब्ध सभी सम्पत्तियों या पावनों को सम्मिलित किया जाता है।’
अन्तर्राष्ट्रीय तरलता के तत्त्व
(Elements of International Liquidity)
अन्तर्राष्ट्रीय तरलता में निम्नांकित को शामिल करते हैं—(1) सोना, (2) आधारभूत मुद्रायें, जैसे- डालर, पौण्ड, स्टर्लिंग, (3) अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष या व्यापारिक समझौतों से प्राप्त साख या ॠण तथा (4) विभिन्न देशों को उधार देने की क्षमता।
अन्तर्राष्ट्रीय तरलता की समस्या
(Problem of International Liquidity)
वर्तमान समय में विश्व की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए तरलता कोष अपर्याप्त है। और यह अनुमान है कि, यह अपर्याप्तता आगे के आने वाले वर्षों तक में बनी रहेगी, क्योंकि अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार विकास की दर 5 से 10 प्रतिशत का अनुमान है जबकि, अन्तर्राष्ट्रीय तरलता की विकास दर का अनुमान केवल 3% का है। इन दोनों की विकास गति में अन्तर के कारण अन्तर्राष्ट्रीय तरलता की समस्या उत्पन्न हुई है।
अन्तर्राष्ट्रीय तरलता की समस्या के पहलू (Aspects of International Liquidity)-
अन्तर्राष्ट्रीय तरलता की समस्या के दो पहलू हैं :
- मात्रक या परिमाणात्मक की समस्या के पहलू (Aspects of International Liquidity)- तरलता की मात्रा की दृष्टि से तरलता कोष वर्तमान आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ हैं तथा भविष्य में भी इसमें सुधार की कम आशा है। इसका मुख्य कारण विदेशी व्यापार में अधिक वृद्धि का होना तथा तरलता कोषों में कम वृद्धि होना ही है।
- तरलता समस्या का गुणात्मक पहलू (Qualitative Aspect)- तरलता के गुणात्मक पहलू से आशय सोना तथा मूल मुद्राओं के कोषों/संचयों से हैं। तरलता-स्वर्ण कोष + मूल मुद्राओं के कोष अर्थात्
तरलता = स्वर्ण + अमरीकी डालर जर्मन मार्क + फ्रांसीसी फ्रेंक + जापानी येन + ब्रिटिश पौण्ड ।
उत्पादन बढ़ाने की सम्भावनायें बहुत ही कम हैं।
स्वर्ण कोषों का 71% केवल 10 बड़े तथा विकसित राष्ट्रों के पास रखा हैं। इसमें भी अमरीका (U.S.A.) का हिस्सा सबसे अधिक है। वर्ष 1986 में कुल स्वर्ण कोष 670 अरब डालर के थे, जिसमें से अकेले अमरीका के पास 263 अरब डालर के थे।
विश्व में मुद्रा कोषों का भी वितरण असमान है। अमरीका सहित 20 राष्ट्रों के पास ही अधिकांश विनिमय कोष हैं।
विश्व व्यापार का असंतुलन निरन्तर बढ़ता जा रहा है। इसमें भी तरलता की समस्या घटनेहैं स्थान पर निरन्तर बढ़ती जा रही है।
अन्तर्राष्ट्रीय तरलता में वृद्धि के सुझाव (Measures to Increase the International Liquidity)-
अन्तर्राष्ट्रीय तरलता को बढ़ाने के लिए निम्नांकित सुझाव दिये जा सकते हैं-
- सोने के उत्पादन में वृद्धि करना (To Increase Gold Output)- सोने के उत्पादन में वृद्धि करने से सोने की पूर्ति बढ़ती है, जिसका तरलता कोषों पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। सोने का उत्पादन बढ़ाने के लिए नई खानों का विकास करना तथा पुरानी खानों का विस्तार करना होगा। सोना निकालने की लागतों में निरन्तर वृद्धि हो रही हैं। साथ ही सोने की उत्पादन में निरन्तर गिरावट आ रही है। अतः इस साधन पर निर्भर रह कर तरलता की समस्या का समाधान करना सम्भव नहीं है।
- स्वर्ण कोषों का सन्तुलित वितरण (Balanced Distribution of Gold) – स्वर्ण कोषों के असमान वितरण के कारण अंतर्राष्ट्रीय तरलता की समस्या उत्पन्न हुई है। अतः इसका समाधान भी कोषों के समान और सन्तुलित वितरण द्वारा ही किया जा सकता है।
- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा का निर्गमन (Issue of International Currency) – अन्तर्राष्ट्रीय तरलता का सबसे अच्छा समाधान (IMF द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा का निर्गमन है, क्योंकि इसके द्वारा, विश्व के सभी देश अपना लेन-देन आसानी से कर सकेंगे तथा अन्तर्राष्ट्रीय तरलता की समस्या में नहीं रहेगी। प्रो. जे. एम. कीन्स ने बैंकोर (Bancur) को अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा बनाने का सुझाव दिया था, जो कि व्यावहारिक कठिनाइयों के कारण स्वीकार नहीं किया जा सका।
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के उद्देश्य
(Objectives of I.M.E)
27 दिसम्बर, 1945 को अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की स्थापना वाशिंगटन में हुई। परन्तु मुद्रा कोष ने वास्तविक रूप में 1 मार्च, 1947 से कार्य प्रारम्भ किया। 1 अक्टूबर, 1992 को 171 राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के सदस्य थे। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के समझौता अनुच्छेदों (Articles of Agreement) के अनुसार इसके प्रमुख उद्देश्य (कार्य) निम्नलिखित हैं:
(1) अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग को प्रोत्साहित करना (To Promote Internaticnal Monetary Cooperation)- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष का प्रमुख उद्देश्य सहयोग एवं परामर्श हेतु एक स्थायी व्यवस्था कायम करना है, जिसके माध्यम से अन्तर्राष्ट्रीय मौद्रिक सहयोग में वृद्धि हो सके। दूसरे शब्दों में, अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष बहुमुखी भुगतानों की एक प्रणाली लागू करने के उद्देश्य से स्थापित किया गया है।
(2) अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार का सन्तुलित विकास (Balanced Growth of International Trade)- अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के सन्तुलित विस्तार द्वारा मुद्रा कोष आर्थिक विकास में सहायता करता है। यदि विभिन्न देशों के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार में विस्तार का क्रम जारी रहता है, तो इससे उनके साधनों का उत्पादन एवं इष्टतम उपयोग हो सकेगा तथा रोजगार के स्तर में वृद्धि होगी। इसी प्रकार, विकसित देशों में आय एवं रोजगार के उच्च स्तर को बनाये रखने में अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा-कोष सहायक हो सकता है।
(3) विनिमय दरों में स्थिरता (Stability in Exchange Rates) – अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा-कोष विनिमय दरों में स्थिरता रखने. एवं सदस्य देशों के मध्य विनिमय-व्यवस्था स्थापित करने के उद्देश्य को लेकर भी स्थापित किया गया है। इस प्रकार मुद्रा कोष विनिमय दरों में प्रतियोगात्मक गिरावट को रोकता है।
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के कार्यकाल
(Functions And Operations of I.M.F.)
अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रमुख कार्य इस प्रकार है:
- विभिन्न देशों की मुद्राओं की मूल्य समता (Par Values) का निर्धारण एवं उनमें परिवर्तन करना- अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के चतुर्थ समझौता अनुच्छेद के अनुसार सदस्य बनने पर प्रत्येक देश को अपनी मुद्रा का अर्ध यो मूल्य स्वर्ण या डालर के रूप में घोषित करना पड़ता है। इस अर्ध अथवा मूल्य को स्वर्ण तथा डालर दोनों के रूप में भी व्यक्त किया जा सकता है। तथा 0.888671 ग्राम स्वर्ण प्रति डालर की दर को (जो जुलाई, 1944 को प्रचलित थी) आधार बनाया जा सकता है। कोई देश यदि, चाहे तो अपनी मुद्रा के मूल्य की घोषणा करना अस्वीकार भी कर सकता है। साइप्रस ने अफगानिस्तान में अपनी मुद्रा के अर्घ को डालर के रूप में घोषित करना अस्वीकार कर दिया था। परन्तु एक बार किसी मुद्रा का मूल्य डोलर स्वर्ण में घोषित होने के बाद उस देश को भी सभी विदेशी विनिमय सौदों को डालर में ही व्यक्त करना होता है। अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष को यह अधिकार प्राप्त है कि वह किसी देश द्वारा उनकी मुद्रा का प्रस्तावित मूल्य अस्वीकार कर दे। ऐसा वस्तुतः तब किया जाता है, जब मुद्रा कोष के संचालकों को यह विश्वास हो जाय कि प्रस्तावित अर्घ वस्तुस्थिति की उपेक्षा करके निर्धारित किया गया है और इस कारण यह स्थिर नहीं रह पायेगा।
- विनिमय प्रतिबन्धों को हटाना (Elimination of Excharige Restrictions) – विनिमय प्रतिबन्धों को समाप्त करना अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के प्रमुख कार्यों में से एक है। यही नहीं, मुद्रा कोष विविध विनिमय दरों एवं विभेदात्मक मौद्रिक नीतियों के विरुद्ध भी कार्य करता है क्योंकि इन नीतियों के फलस्वरूप अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के विकास में अवरोध उत्पन्न होता है। वस्तुतः अन्तर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष एक स्वतन्त्र बहुमुखी भुगतान प्रणाली की स्थापना हेतु कार्य करता है। मुद्रा कोष के सभी सदस्य इस बात का संकल्प करते हैं कि वे परिस्थितियों के अनुकूल होते ही सभी प्रकार के विनिमय-प्रतिबन्धों को समाप्त कर देंगे तथा इनका पुन: उपयोग केवल उस स्थिति में करेंगे, जब ऐसा करना नितान्त आवश्यक हो जाये। यह उल्लेखनीय है कि मुद्रा कोष विनिमय प्रतिबन्धों का पूर्ण रूप से निषेध नहीं करता।
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