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औद्योगीकरण के सामाजिक आर्थिक प्रभाव | Socioeconomic effects of industrialization in Hindi

औद्योगीकरण के सामाजिक आर्थिक प्रभाव | Socioeconomic effects of industrialization in Hindi

औद्योगीकरण के सामाजिक आर्थिक प्रभाव

औद्योगिकरण समाज के अनेक प्रकार से प्रभावित करता है औद्योगीकरण ने समाज को निम्नलिखित प्रकार से प्रभावित किया है-

(1) सामाजिक मूल्यों का ह्रास औद्योगिकरण की प्रक्रिया ने सामाजिक मूल्यों में हास ला दिया है। अब मानवता का उतना मूल्य नहीं रह गया है। अब मनुष्य के स्थान परिधान को अधिक महत्त्व दिया जाता है। इसी कारण जीवन के मूल्यों में परिवर्तन आ गया है। अब धर्म को उतना महत्त्व नहीं दिया जाता।

(2) सामुदायिक भाषाना का ह्रासव्यक्तिवाद तथा प्रतिस्पर्धा में वृद्धि होने से सामुदायिक भावना तथा ग्रामीण एकता का हारा होता है। गाँव जो इन व्यक्तियों के प्रमुख आर्थिक एवं सांस्कृतिक इकाई है, तकनीकी की विघटनकारी शक्तियों से प्रभावित होते है। इनकी आत्मनिर्भरता समाप्त हो जाती है तथा ये नगर से, राष्ट्र से तथा विश से सम्बद्ध हो जाते हैं। गाँव जो कि पहले एक कुटुम्ब था, फैक्ट्री, एक भीड़ के सहायक अंग के रूप में परिवर्तित हो जाता है।

(3) सामाजिक नियन्त्रण में कमीऔद्योगीकरण के फलस्वरूप सामाजिक नियन्त्रण के प्राथमिक साधनों का महत्व कम होता जा रहा है। अब नगरों में जनसंख्या के घनल में वृद्धि हो रही है। अब अनेक द्वितीयक समूहों का निर्माण हो गया है। नगर में व्यक्तियों का समय इन समूहों में रहकर व्यतीत होता है। इसी कारण परम्परागत सामाजिक नियन्त्रण के साधनों का प्रभाव कम होता जा रहा है।

(4) अपराधों में वृद्धि नगरों की जनसंख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। अतः यहाँ मकानों का अभाव हो गया है। इसका फल यह होता है कि श्रमिक अपना परिवार गाँव में रखते हैं, और स्वयं अकेले नगर में रहते हैं। इससे उनमें अनेक दुर्व्यसन पनपने लगते हैं। अधिक विभिन्न प्रकार के अपराध करने लगते हैं। श्रमिक शराब तथा वेश्यावृति के शिकार हो जाते हैं। इस प्रकार औद्योगीकरण अपराध प्रवृत्ति को बढ़ावा देता है।

(5) गन्दी बस्तियों का विकास- औद्योगीकरण के कारण नगरों की जनसंख्या में वृद्धि हुई है। अतः नगरों में मकानों की कमी हो गई है। इसके फलस्वरूप श्रमिकों की गन्दी बस्तियों ने अपराध तथा वैयक्तिक विघटन को प्रोत्साहन दिया है।

(6) सामाजिक कुरीतियाँ औद्योगीकरण के कारण सामाजिक कुरीतियों में वृद्धि हुई है। दहेज जैसी सामाजिक कुरीति और बढ़ गई है।

(7) व्यापारिक मनोरंजन के साधन- औद्योगीकरण के कारण मनोरंजन के साधन व्यावसायिक हो गए हैं। प्रत्येक व्यक्ति केवल अपने लाभ का ध्यान रखता है। अब मनोरंजन के प्रमुख साधन टेलीविजन, रेडियों, सिनेमा, नाचघर तथा इसी प्रकार के अन्य साधन हैं।

(8) मानसिक रोगों की उत्पत्ति- औद्योगीकरण के कारण मानसिक रोगों में वृद्धि हो रही है। औद्योगीकरण ने भौतिकवाद को प्रोत्साहन दिया है। इससे लोगों में प्रतिस्पर्धा की भावना बढ़ गई है, बेकारी में वृद्धि हो गई है और निर्धन व्यक्तियों की संख्या बढ़ रही है। व्यापार में अधिक उतार- चढ़ाव देखे जा सकते हैं प्रत्येक व्यक्ति को कठिन परिश्रम करना पड़ता है। इन सब कारणों ने मानसिक संघर्ष उत्पन्न कर दिए हैं और लोग मानसिक रोगों के शिकार हो रहे हैं।

(9) धर्म के महत्त्व में कमी- औद्योगीकरण ने भर के महत्त्व को कम कर दिया है। यह सत्य  ही कहा गया है कि आधुनिक समय में भारत में धर्म के प्रभाव को निरन्तर कम कर रही है।

(10) जाति प्रथा के बन्धनों में शिथिलता- औद्योगीकरण के फलस्वरूप जाति प्रथा के बन्धनों में शिथिलता आ गई है। जब जाति को उतना महत्त्व नहीं दिया जाता है। अब जाति के बाहर भी विवाह सम्बन्ध बनाए जाते हैं।

औद्योगीकरण के आर्थिक प्रभाव

औद्योगीकरण के आर्थिक प्रभाव निम्न प्रकार स्पष्ट किये जा सकते हैं-

(1) पूंजीवाद का विकास-औद्योगीकरण ने पूँजीवादी व्यवस्था को जन्म दिया है। बड़े-बड़े कारखानों को चलाने के लिये अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है। पूँजीपति ही कारखानों में अधिक धन लगाने में समर्थ हो सकते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है कि औद्योगीकरण के कारण उत्पादन के साधनों पर धनी वर्ग का अधिकार हो गया है।

(2) श्रम विभाजन और विशेषीकरण- औद्योगीकरण के पूर्व श्रम विभाजन का कोई प्रश्न न था। औद्योगीकरण ने श्रम-विभाजन आवश्यक बना दिया है। बड़े-बड़े उद्योगों की स्थापना ने श्रम-विभाजन और विशेषीकरण को आवश्यक बना दिया है।

(3) कुटीर उद्योग-धन्धों का पतन- औद्योगीकरण के कारण बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा। देश में बड़े-बड़े कारखानों में बनी हुई वस्तुएँ सस्ती और अच्छी होती हैं। अतः कुटीर उद्योग- धन्धों का पतन होने लगा। कुटीर उद्योग-धन्धों में बना सामान मशीनों के द्वारा बने सामान के आगे न ठहर सका। इसी कारण कुटीर उद्योग धन्धों का पतन हो गया।

(4) नवीन वर्ग व्यवस्था का विकास- पूंजीवादी व्यवस्था के साथ-साथ एक नवीन वर्ग का जन्म हुआ। इसे श्रमिक वर्ग कहते हैं। अब समजा में तीन प्रकार के वर्ग पाये जाते हैं- (1) पूंजीपति,ज्ञ(2) श्रमिक वर्ग, तथा (3) मध्यम वर्ग। पूँजीपति श्रमिक वर्ग का शोषण करते हैं।

(5) निर्धनता- औद्योगिकरण के फलस्वरूप निर्धनता में वृद्धि हुई है। पूँजीपतियों के शोषण के कारण श्रमिक निर्धनता के शिकार हो रहे हैं। पूँजीवादी व्यवस्था में धन का असमान वितरण होता है। धन का एक बड़ा भाग पूँजीपति हड़प जाते हैं। इस प्रकार निर्धन और अधिक निर्धन हो जाते हैं इस प्रकार औद्योगीकरण ने निर्धनता में वृद्धि की है।

(6) बेराजगारी- औधोगीकरण ने बेरोजगारी में वृद्धि की है। बोजगारी का सबसे महत्वपूर्ण कारण औद्योगीकरण हैं। जैसे-जैसे कारखानों की स्थापना हो रही है, बेरोजगारी भी बढ़ रही हैं।

(7) यातायात का प्रदूषण- जैसे-जैसे कारखानों की स्थापना हो रही है, वातावरण प्रदूषण भी बढ़ रहा है। यह प्रदूषण अनेक रोगों को जन्म देता है। श्रमिक रोगों के शिकार हो जाते हैं। वातावरण का प्रदूषण श्रमिकों को रोगी बनाए रखता है।

(8) दुर्घटनाएँ- कारखानों में काम करते समय श्रमिक प्रायः दुर्घटनाओं के शिकार हो जाते है। उनका अंग-भंग हो जाता है। दुर्घटनाओं में निरन्तर वृद्धि हो रही है।

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Pankaja Singh

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