समाज शास्‍त्र

शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता | सामाजिक गतिशीलता के विकास में विद्यालयों एवं शिक्षकों की भूमिका

शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता | सामाजिक गतिशीलता के विकास में विद्यालयों एवं शिक्षकों की भूमिका | Education and Social Mobility in Hindi | Role of schools and teachers in the development of social mobility in Hindi

शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता

(Education and Social Mobility)

शिक्षा सामाजिक गतिशीलता का आधारभूत घटक एवं साधन हैं किसी समाज में सामाजिक गतिशीलता की मात्रा इस बात पर निर्भर करती है कि उस समाज में सार्वभौमिक अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा को किस स्तर तक सुलभ कराया गया है, उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रम में कितनी विविधता है. वैज्ञानिक एवं तकनीकी शिक्षा की कैसी व्यवस्व्या है, व्यावसायिक शिक्षा पर कितना बल दिया गया है, शिक्षा समाज की माँगों की पूर्ति किस सीमा तक करती है और शिक्षा के अवसर किस सीमा तक सुलभ हैं, आदि। यहाँ इस सबका संक्षेप में वर्णन प्रस्तुत हैं।

  1. सार्वभौतिक अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की सीमा- यह तथ्य सर्वविदित है कि जिस समाज में सार्वभौगिक, अनिवार्य एवं निःशुल्क शिखा की व्यवस्था जितनी दीर्घकालीन और प्रभावी होती है उस समाज में उतनी ही अधिक सामाजिक गतिशीलता होती है। शिक्षा से मनुष्य में जागरूकता आती है, वह समाज में अपने स्तर को उठाने के लिए प्रयत्नशील होती है और वह अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार आगे बढ़ता है।
  2. उच्च शिक्षा की व्यवस्था- सामाजिक गतिशीलता को बढ़ाने के लिए समाज में उच्च शिक्षा की व्यवस्था आवश्यक होती है। उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति को समान में ऊंचे-ऊंचे पद प्राप्त जब तक निम्न सामाजिक स्तर के बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्राप्त नहीं होते हैं। जब तक वे उच्च पदों पर कैसे पहुँच सकते हैं। उच्च शिक्षा के अभाव में उच्च मानसिक स्तर के बच्चों का निम्न सामाजिक स्तर पर आना भी निश्चित होता है।
  3. पाठ्यक्रम की विविधता- उचित शिक्षा का अर्थ है बच्चों को अपनी योग्यता एवं क्षमताओं के अनुसार विकास करने के अवसर प्रदान करना है। इसके लिए सामान्य शिक्षा की समाप्ति पर शिक्षा के पाठ्यक्रम में विविधता होनी चाहिए। जिस समाज की शिक्षा में जितने अधिक प्रकार के पाठ्यक्रम होते हैं उस समाज में व्यक्ति को अपनी योग्यता और क्षमता के अनुसार विकास करने के उतने ही अधिक अवसर होते हैं और वह एक सामाजिक स्तर से दूसरे सामाजिक स्तर को प्राप्त करता है।
  4. व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था- केवल साहित्यिक एवं सैद्धान्तिक शिक्षा से सामाजिक गतिशीलता नहीं बढती, इसके लिए व्यावसायिक शिक्षा की आवश्यकता होती है। जिस समाज में जितने अधिक व्यवसायों की शिक्षा दी जाती है ठरा समाज में सामाजिक गतिशीलता उतनी ही अधिक मात्रा में पाई जाती है।
  5. वैज्ञानिक एवं तकनीको शिक्षा- उद्योगप्रधान समाजों में सामाजिक गतिशीलता सर्वाधिक होती हैं उद्योग को स्थापित सब विकसित करने के लिए जहाँ कच्चे माल की आवश्यकता होती है वहाँ प्रशिक्षित कर्मकारों, इंजीनियारों तथा तकनीशियनों की भी आवश्यकता होती है। दूसरी चीज की पूर्ति शिक्षा करती है। जिस समाज में विज्ञान और तकनीकी शिक्षा की जितनी अच्छी व्यवस्था होती है उस समाज में उतने ही अच्छे कर्मकार, इंजीनियर और तकनीशियन तैयार होते हैं और वे अपनी योग्यतानुसार विकास करते हैं और योग्यता के अभाव में पीछे रह जाते हैं इस प्रकार उनके सामाजिक स्तर में परिवर्तन स्तर में परिवर्तन होता है।
  6. समाज की माँगों की पूर्ति- शिक्षा और सामाजिक गतिशीलता के सन्दर्भ में यह बात भी आवश्यक है कि शिक्षा समाज की माँगों की पूर्ति किस सीमा तक करती है। यदि समाज में माँग हो इंजीनियरों की और शिक्षा के द्वारा तैयार किए जाएं डॉक्टर, वकील, और शिक्षक तो बेकारली बढ़ने के अतिरिक्त और कोई चीज हाथ नहीं लगेगी। उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद भी यदि मनुष्य के आर्थिक स्तर में सुधार नहीं होता तो सामाजिक गतिशीलता नहीं देखी जाती।
  7. शैक्षिक अवसरों की समानता-सामाजिक गतिशीलता को बढ़ाने के लिए सबसे बड़ी आवश्यकता है शैक्षिक अवसरों की समानता। जब तक समाज में सभी बच्चों को, जाति, धर्म, स्थान आदि किसी भी आधार पर भेद किए बिना, उनकी योग्यतानुसार विकास करने के अवसर प्रदान नहीं किए जाते तब तक सामाजिक गतिशीलता को सर्वव्यापक नहीं बनाया जा सकता।

सामाजिक गतिशीलता के विकास में विद्यालयों एवं शिक्षकों की भूमिका

शिक्षा सामाजिक गतिशीलता का आधारभूत घटक एवं साधन है, परन्तु शिक्षा यह कार्य नहीं कर सकती जब तक कि विद्यालय और शिक्षक इसके लिए सचेत नहीं होते। अतः यहाँ उनको तत्सम्बन्धी कार्यों पर विचार करना आवश्यक है।

किसी समाज में सामाजिक गतिशीलता को बढ़ाने के लिए यह आवश्यक है कि उसके विद्यालयों में सभी वर्गों के बच्चों को, बिना किसी भेद-भाव के प्रवेश दिया जाए। यह भी आवश्यक है कि बच्चों को उनकी अपनी योग्यता एवं क्षमतानुसार पाठ्यक्रम के चुनाव की छूट दी जाए। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि विद्यालयों में विविध पाठ्यक्रमों की व्यवस्था हो और विज्ञान को स्कूली पाठ्यक्रम का एक अनिवार्य विषय बनाया जाए। जो बच्चे विज्ञान के क्षेत्र में आगे अध्ययन करने योग्य हो उन्हें इस क्षेत्र में आगे बढ़ने के समान अवसर प्रदान किए जाएं। विज्ञान और तकनीकी शिक्षा से सामाजिक गतिशीलता पर सीधा प्रभाव पड़ता है। स्कूलों से दो-चार किलोमीटर दूर रहने वाले बच्चों के लिए सवारी की व्यवस्था की जाए, अधिक दूर से आने वाले बच्चों के लिए छात्रावासों की व्यवस्था हो, निर्धन परन्तु प्रतिभाशाली बच्चों को छात्रवृत्तियों दी जाएं, पुस्तक सहायता एवं अन्य प्रकार से आर्थिक सहयोग देकर बच्चों को शिक्षा के समान अवसर उपलब्ध कराए जाएं।

जब विद्यालयों में थन्त्वों को अपनी योग्यता एवं क्षमतानुसार शिक्षा प्राप्त करने और समान अवसर प्राप्त होंगे तो समाज में भी वे अपनी शैक्षिक योग्यतानुसार पद प्राप्त कर सकेंगे और जैसे- जैसे उनकी शैक्षिक योग्यता बढ़ेगी उनकी पदोत्रति होगी। दूसरे शब्दों में हम यह कह सकते हैं कि सामाजिक गतिशीलता बढ़ेगी। विद्यालय एवं शिक्षकों को अपने इस उत्तरदायित्व का निर्वाह करना चाहिए। इस क्षेत्र में सतत् शिक्षा, दूर शिक्षा और खुली शिक्षा का बड़ा महत्त्व है। सरकार को इस प्रकार की शिक्षा की भी व्यवस्था करनी चाहिए।

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Pankaja Singh

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