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प्रबन्ध में श्रमिक भागीदारी के प्रकार | प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी के प्रकारों की विवेचना कीजिए।

प्रबन्ध में श्रमिक भागीदारी के प्रकार | प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी के प्रकारों की विवेचना कीजिए। | Types of worker participation in management in Hindi | Discuss the types of workers’ participation in management in Hindi

प्रबन्ध में श्रमिक भागीदारी के प्रकार

(Forms of Worker Participation in Management)

प्रबन्ध में श्रमिकों की भागीदारी के प्रकार अथवा रूपों को विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया जाता है-

श्रीमती डोरेथा के अनुसार श्रमिकों की भागीदारी के तीन प्रकार या रूप हैं-

(1) सूचना सहभागिता,

(2) समस्या सहभागिता,

(3) विचार सहभागिता ।

सूचना सहभागिता अथवा सूचना भागिता में सेवा नियोजक श्रमिकों को व्यवसाय की दशाओं, कम्पनी या प्रतिष्ठान के दृष्टिकोण, कार्य-विधियों में परिवर्तन आदि के बारे में सूचित करता है। समस्या सहभागिता में सेवा नियोजक प्रतिष्ठान अथवा उद्योग की समस्याओं के निवारण में यह मानते हुए श्रमिकों का सहयोग पाने का प्रयास करता है कि श्रमिक सामग्री लागत, किस्म, क्षय आदि विभिन्न क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण परामर्श दे सकते हैं। डोरेथा के अनुसार यह श्रमिक भागिता का द्वितीय चरण हैं प्रबन्ध में श्रमिक भागिता का तीसरा चरण विचार भागिता है जिसमें सेवा नियोजक श्रमिकों को व्यवसाय की विभिन्न क्रियाओं के बारे में नवीन, व्यावहारिक तथा उपयोगी विचार उपलब्ध करने को कहता है।

अर्नेस्ट डेल ने श्रमिकों की भागीदारी के चार रूप बतलाए हैं-

(1) सूचनात्मक सहयोग,

(2) परामर्शात्मक सहयोग,

(3) रचनात्मक सहयोग एवं

(4) संयुक्त निर्धारण

के.सी. एलेक्जेन्डर के अनुसार श्रमिक भागिता के दो रूप हैं जिन्हें

(1) उच्चस्तरीय भागिता एवं

(2) निम्नस्तरीज भागिता कहते हैं। उन्होंने प्रबन्ध में श्रमिक-भागिता के एक नए रूप को सम्मिलित करने पर भी बल दिया है जिसे ‘सामूहिक सौदेबाजी’ कहा है, किन्तु यह मत सामान्यतः मान्य नहीं है क्योंकि सामूहिक सौदेबाजी और प्रबन्ध में कर्मचारी -भागिता के विचार परस्पर विरोधी होते हैं।

एन. करणसिंह ने प्रबन्ध में श्रमिक सहभागिता के तीन प्रकार या रूप बतलाए हैं-

(1) स्वामित्व भागिता, जिसे स्वप्रबन्ध भी कहा जाता है। श्रमिक भागीदारी का यह रूप यूगोस्लाविया में प्रचलित है।

(2) परास्परिक लक्ष्यनिर्धारण, जिसमें संचालक मण्डल में श्रमिक प्रतिनिधियों को सम्मिलित किया जाता है।

(3) परामर्श-भागिता, जिसके कुछ रूप हैं-सूचना भागिता, संयुक्त निर्णयन, स्वप्रबन्ध आदि।

साराशतः प्रबन्ध में श्रमिक भागेदारी के निम्नलिखित प्रकार है-

(1) सूचनात्मक सहभागिता इस रूप में श्रमिकों को उद्योग के कार्यकलापों सम्बन्धी विभिन्न सूचनाएँ दी जाती हैं, जैसे-प्रबन्ध द्वारा श्रमिकों को प्रतिष्ठान के वित्तीय परिणामों की सूचना देना या प्रतिष्ठान की विकास योजनाओं का ज्ञान कराना था श्रमिकों को उत्पादन विभागों की प्रगति आदि के बारे में सूचनाएँ प्रदान करना। श्रमिकगण इन सूचनाओं पर विचार-विमर्श करते हैं और आवश्यकतानुसार प्रबन्धकों को अपने विचारों से अवगत कराते हैं।

(2) परामर्श सहभागिताइस रूप में प्रबन्धक समय-समय पर कर्मचारियों से सीधे उत्पादन, उत्पादन प्रणाली, कार्यविधियों, श्रम कल्याण, कैन्टीन, आवास, सुरक्षा आदि मामलों पर निर्णय करते समय परामर्श करते हैं अथवा उनके विचार जानने का प्रयास करते हैं। प्रबन्धकों का प्रयत्न यह होता है कि किसी मामले पर निर्णय लेने से पहले श्रमिकों से सीधे अथवा उनके प्रतिनिधियों से आवश्यक परामर्श करके उनके विचारों को ध्यान में रखते हुए निर्णय लें, किन्तु श्रमिकों के विचार या सुझाव प्रबन्धकों द्वारा स्वीकार ही किए जाएँ यह आवश्यक नहीं है।

(3) सहचर्यात्मक सहभागिता- यह वक्र रूप है जिसमें श्रमिक सदस्यों को सूचनाएँ प्राप्त करने तथा उन पर विचार-विमर्श करने का अवसर उपलब्ध किया जाता है और विचार-विमर्श के बाद सुझाव भी प्राप्त किए जाते हैं सहयोगात्मक अथवा सहचर्यात्मक रूप में दोनों पक्षों की ओर से सूचना और विचारों का आदान-प्रदान बड़ा ही उपयोगी रहता है।

(4) प्रशासनिक सहभागिता- प्रबन्ध में श्रमिक सहभागिता के इस रूप में श्रमिकों को प्रबन्धकीय कार्यों में भाग लेने का अवसर प्रदान किया जाता है। श्रमिक प्रबन्ध के अधिकारों और दायित्वों में हिस्सा बंटाते हैं यह सहभागिता प्रशिक्षण कल्याण तथा सुरक्षा कार्यो कार्यविधि, अवकाश, सारिणीयन आदि मामार्ले में श्रमिक वर्ग को प्रशासकीय तथा पर्यवेक्षकीय अधिकारों का प्रयोग करने की छूट देती है।

(5) निर्णयात्मक सहभागिता यह प्रबन्ध ‘श्रमिक सहभागिता योजना का उच्चतम स्तर है जिसमें श्रमिकों को निर्णयन जीवन में भाग लेने का अवसर दिया जाता है। अर्थात् प्रबन्धकीय शक्तियाँ एवं अधिकार श्रमिकों के दिए जाते हैं श्रमिक प्रतिष्ठान की आर्थिक, वित्तीय एवं प्रशासकीय नीतियों आदि के सम्बन्ध में लिए जाने वाले निर्णयों में हिस्सा लेते हैं।

स्पष्ट है कि श्रमिकों को प्रतिष्ठान में प्रबन्धकीय स्तरों पर सहभागिता प्रदान की जा सकती है। और उनका स्वैच्छिक सहयोग प्राप्त किया जा सकता है। लोक उद्योगों के निर्णयों, नीतियों, उद्देश्यों, नियमों, प्रमापों आदि को क्रियान्वित करने के लिए श्रमिकों का सहयोग आज के युग की माँग है तथापि यह ध्यान रखना चाहिए कि अन्ततोगत्वा सम्पूर्ण उत्तदायित्व तो प्रवन्धकों के कन्धे पर ही होता है।

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Pankaja Singh

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