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बेकारी दूर करने के उपाय | बेकारी दूर करने के लिए सरकारी प्रयास

बेकारी दूर करने के उपाय | बेकारी दूर करने के लिए सरकारी प्रयास

बेकारी दूर करने के उपाय

(Measures to Remove Unemployment)

बेकारी दूर करने के लिए दो प्रकार के उपाय अपनाये जा सकते है

(अ) दीर्घकालीन उपाय (Long Term Measures)-  

बेकारी दूर करने के दीर्घकालीन उपाय निम्नलिखित हैं-

(1) द्रुत गति से बढ़ती हुई जनसंख्या व जनसंख्या विस्फोट को प्रभावशाली ढंग से नियंत्रित किया जाए। इसके लिए परिवार नियोजन (Family Planning) के कार्यक्रम को प्रभावी तरीकों से चलाया जाए।

(2) शिक्षा प्रणाली में सुधार कर शिक्षा एवं रोजगार के बीच सम्बन्ध स्थापित किया जाए।

(3) औद्योगीकरण की गति को तेज करने, शिक्षित बेरोजगारों को काम में लगाने तथा कृषि में उत्पादन को बढ़ाने पर बल देकर देश में आर्थिक विकास की गति तीव्र की जाय।

(4) बेरोजगारी विशेषज्ञ समिति ने देश के काले धन (Black Money) को उत्पादन में  लगाने का सुझाव दिया। इसके अतिरिक्त निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र में प्रबन्ध को सुव्यवस्थित किया जाए और विनियोग बढ़ाया जाए।

(5) रोजगार कार्यालयों की अधिकाधिक स्थापना कर छात्रों को विभिन्न प्रकार के रोजगारों का ज्ञान कराया जाए।

(6) देश की युवा एवं बेकार जन शक्ति को प्रशिक्षित कर काम में लगाया जाए।

(7) निर्माण कार्यों में अधिकाधिक वृद्धि की जाए। जनकल्याण, शिक्षा स्वास्थ्य, चिकित्सा, यातायात आदि सेवाओं का विस्तार किया जाए।

(8) भारत के ढांचे में व्याप्त बुराइयों, जैसे – जाति प्रथा, संयुक्त परिवार प्रणाली आदि को दूर कर श्रमिक में गतिशीलता (Mobility) उत्पन्न की जाए।

(9) उपयुक्त तकनीकी, मशीन, पूँजी, कच्चे माल आदि को उपलब्ध कराया जाए।

(ब) अल्पकालीन उपाय (Short Term Measures)- 

बेकारी दूर करने के अल्पकालीन उपाय निम्न प्रकार हैं

(1) सघन कृषि- किसानों को उन्नत बीज, खाद, फसल-रक्षक दवाइयाँ आदि देकर भूमि के छोटे-छोटे टुकड़ों में अधिकाधिक फसल उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए। साथ ही वर्ष में एक से अधिक फसलें बोने के लिए सुविधायें प्रदान की जाएं। यथासम्भव मौसमी बेकारी को दूर करने का प्रयास किया जाए।

(2) लघु व कुटीर उद्योगों का विकास- गाँवों में ऐसे कुटीर उद्योगों का विकास किया जए जो कृषि के साथ-साथ किये जा सकें जैसे – पशु पालन, दुग्धशाला, मुर्गी पालन, मछली पालन, सुअर पालन, मधुमक्खी पालन आदि। इसके अतिरिक्त गाँवों में कताई-बुनाई, मिट्टी का काम, चमड़ा उद्योग आदि को भी प्रोत्साहित किया जाए।

(3) व्यावसायिक शिक्षा- छात्रों को सामान्य विषयों की शिक्षा के अतिरिक्त व्यावसायिक शिक्षा की भी व्यवस्था की जाए ताकि जीवन यापन करने में अपने को सफल बना सकें। अतः शिक्षा को व्यवसायोन्मुख (Job Oriented) बनाया जाय।

(4) व्यक्तिगत अयोग्यताओं को समाप्त करना- जो लोग शारीरिक रूप से बीमार एवं अपंग हैं तथा वृद्ध एवं अनुभवहीन हैं उनके लिए चिकित्सा एवं स्वास्थ्य की सेवाओं में वृद्धि की जाए। लोगों को बेकारी बीमा योजना, सामाजिक बीमा योजना आदि से अवगत कराकर उनको लाभ प्रदान किये जायें।

(5) स्वास्थ्य सेवाओं का प्रबन्ध- बीमार व्यक्तियों को शीघ्र चिकित्सा कराने तथा उन्हें पुनः काम में लगाने योग्य बनाने की दृष्टि से निःशुल्क चिकित्सा की व्यवस्था की जाए और गाँवों में जहाँ अस्पतालों व स्वास्थ्य केन्द्रों का अभाव है, वहाँ ‘मोबाइल अस्पतालों’ (Mobile Hospital) की व्यवस्था की जाए।

(6) पर्याप्त वेतन व्यवस्था- श्रमिकों का न्यूनतम वेतन निर्धारित किया जाए। नवीन बीस सूत्रीय कार्यक्रम के दौरान भारत ने कृषि श्रमिकों की न्यूनतम मजदूरी तय कर इस ओर महत्वपूर्ण कदम उठाया है। श्रमिकों का उचित जीवन स्तर बनाये रखने तथा उनकी कार्यक्षमता को बढ़ाने के लिए बीमारी के दौरान उनको वेतन दिया जाए।

(7) श्रमिकों की क्षतिपूर्ति- जिन श्रमिकों के मशीन पर काम करते समय अंग-भंग हो जाए या गम्भीर चोट लग जाए उन्हें मुआवजा प्रदान किया जाए ताकि वे अपना बाकी जीवन सुगमता से व्यतीत कर सकें।

(8) शारीरिक रूप से अक्षम एवं अपंग लोगों के लिए पुनर्वास की सुविधायें- जो व्यक्ति जन्म से अक्षम, अपंग तथा वंशानुक्रमीय बीमारियों से ग्रस्त हैं उनके लिए उपयोगी संस्थाएं स्थापित कर देने की व्यवस्था की जाए।

(9) अधिकाधिक रोजगार के अवसर- युवकों के लिए रोजगार के नये-नये अवसर तैयार किये जायें और उन्हें अध्ययन के दौरान ही व्यवसाय का प्रशिक्षण दिया जाए। साथ ही उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों की जानकारी भी प्रदान की जाए।

(10) अधिक आयु के लोगों के लिए रोजगार- अधिक आयु के लोगों को उनकी शारीरिक एवं मानसिक क्षमता के अनुरूप रोजगार की सुविधायें प्रदान की जायें।

(11) सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम- सामाजिक सुरक्षा के कार्यक्रम को प्रारम्भ किया जाए जिसके अन्तर्गत सार्वजनिक बीमा, चिकित्सा सुविधा, बेरोजगारी भत्ता, वृद्धावस्था पेंशन आदि का समावेश होता है। अनाथों, भिखारियों, विधवाओं आदि के पुनर्वास के लिए आर्थिक सुविधायें जुटाने की व्यवस्था की जाए।

(12) भूमि सुधार- भूमि सुधार सम्बन्धित कानूनों को लागू कर, जमीनों का वितरण गरीब व बेरोजगारी में किया जाए। भूदान आन्दोलन को भी प्रोत्साहित किया जाए।

बेकारी दूर करने के लिए सरकारी प्रयास

(Government Efforts to Remove Unemployment)

एक लोकतान्त्रिक देश की सम्पन्नता व समृद्धता केवल इस बात पर निर्भर नहीं करती कि उसके पास प्रचुर मात्रा में प्राकृतिक स्रोत व संसाधन उपलब्ध हैं, बल्कि इस बात पर भी निर्भर करती है कि इन स्त्रोतों व संसाधनों के विदोहन में कितने हाथ काम कर रहे हैं। इस दृष्टिकोण को सामने रखते हुए हुए हमारी सरकार ने अधिक से अधिक लोगों को रोजगार में लगाने अर्थात् बेकारी दूर करने के अनेक प्रयास किये हैं जिनमें से निम्नलिखित प्रमुख हैं –

(1) पंचवर्षीय योजनाएँ (Five Year Plans)-  विभिन्न पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत बेकारी दूर करने के लिए सरकार ने अनेक नये उद्योगों की स्थापना की, सिंचाई एवं बिजली के लिए छोटे-बड़े अनेक बाँधों का निर्माण किया, भूमि-सुधार हेतु अनेक कानून बनाये, कृषि में नवीन तकनीकी, औजारों, बीज, खाद्य आदि को प्रोत्साहन दिया तथा स्वास्थ्य एवं शिक्षा की सुविधाओं में वृद्धि की। इन सब प्रयासों से देश के लाखों लोगों को रोजगार प्राप्त हुआ। सातवीं पंचवर्षीय योजना काल में लगभग 4 करोड़ लोगों के लिए रोजगार के नये अवसर जुटाये गये तथा आठवीं पंचवर्षीय योजना में 3% युवकों को प्रतिवर्ष रोजगार देने का लक्ष्य रखा गया है।

(2) राष्ट्रीयकृत बैंकों में साख योजना (Credit Scheme in Nationalized Banks)-  देश में राष्ट्रीयकृत बैंकों में साख योजना की शुरुआत की गयी। इस योजना में स्वतः रोजगार (Self Employment) प्राप्त लोगों की आर्थिक सहायता प्रदान करने का प्रावधान किया गया। शिक्षित बेकारी का निवारण करने के लिए केन्द्र के विभिन्न मन्त्रालयों ने अपनी-अपनी योजनायें प्रस्तुत की।

(3) ग्रामीण भूमिहीन रोजगार कार्यक्रम (Rural Landless Employment Programme)-  इस कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रत्येक भूमिहीन परिवार के कम से कम एक सदस्य को वर्ष में 100 दिन का काम दिया जाएगा। यह योजना नवीन बीस सूत्रीय कार्यक्रम (New Twenty Points Programming) का एक अंग है। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत ग्रामीण सम्पर्क सड़कें बनाने, सिंचाई के लिए खेतों में नालियाँ बनाने तथा भूमि के विकास करने का प्रावधान किया गया है।

(4) ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम (Rural Landless Employment Guarantee Programme)-  इस कार्यक्रम का प्रारम्भ 1983-84 में भूमिहीन कृषि मजदूरों को कृषि के अतिरिक्त समय में वर्ष में 100 दिन रोजगार दिनों तथा गाँवों में स्थायी सम्पत्ति का निर्माण करना है ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में द्रुत गति से वृद्धि हो सके। सातवीं योजना में इस कार्यक्रम पर 2,412 करोड़ रुपये व्यय किया गया और 11,544 लाख मानव दिवसों का रोजगार उत्पन्न किया गया।

(5) जवाहर रोजगार योजना (Jawahar Employment Yojna) – 1 अप्रैल, 1989 से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम तथा ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारंटी कार्यक्रम दोनों को मिलाकर जवाहर रोजगार योजना तैयार की गयी। इस योजना के प्रमुख उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में बेकार एवं अर्द्ध-बेकार लोगों को रोजगार उपलब्ध कराना तथा गाँवों में ऐसे उत्पादक साधन उत्पन्न करना है जिससे ग्रामीण गरीबों को लाभ मिले, उनकी आय एवं स्थिति में सुधार हो और जीवन की गुणात्मकता में सुधार हो। इस योजना में धन सीधा जिला परिषदों या जिला ग्रामीण विकास एजेन्सियों (DRDA) को उपलब्ध कराया जाता है।

(6) ग्रामीण युवकों को स्व-रोजगार प्रशिक्षण (Training of Rural Youth for Self-employment) –  15 अगस्त, 1979 को एक राष्ट्रीय योजना के रूप में यह कार्यक्रम प्रारम्भ किया गया था। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत ग्रामीण परिवारों के 18 से 35 वर्ष की आयु के युवकों को स्वरोजगार के लिए तैयार करने हेतु विभिन्न व्यवसायों का तकनीकी प्रशिक्षण (Technical Training) दिया जाता है। जिस ग्रामीण परिवार की आय 3,500 रुपये प्रतिवर्ष तक हो उसमें एक व्यक्ति प्रति परिवार का प्रथम चरण में और जिस परिवार की आय 4,800 रुपये प्रति वर्ष हो द्वितीय चरण में इस कार्यक्रम के अन्तर्गत चुना जाता है। उन्हें कृषि से सम्बन्धित उद्योगों, सेवाओं एवं व्यापार का प्रशिक्षण दिया जाता है।

(7) स्व-रोजगार कार्यक्रम (Self Employment Scheme)-  स्व-रोजगार योजना 15 अगस्त, 1983 को घोषित की गयी थी जो शहरी पढ़े-लिखे उप बेरोजगारों के लिए है जिनकी आयु 18 से 35 वर्ष के मध्य हो और जो हाईस्कूल या इससे अधिक पढ़े हों। इस योजना के अन्तर्गत 31 हजार रुपये तक किसी भी बेरोजगार शहरी पढ़े-लिखे व्यक्ति को बैंक के माध्यम से दिये जा सकते हैं जो कि स्वयं काम करना चाहते हैं। इसके लिए चयन जिला उद्योग कार्यालयों द्वारा किया जाता है। इस योजना का लक्ष्य 2 लाख से 2.5 लाख बेरोजगार पढ़े-लिखे युवकों को प्रतिवर्ष रोजगार प्रदान करना है।

अन्य प्रयास (Other Efforts) – उपर्युक्त प्रयत्नों के अतिरिक्त बेकारी दूर करने के लिए सरकार ने कुछ प्रयत्न और किये हैं, जो निम्न प्रकार हैं

(1) बेकारी को दूर करने के लिए सरकार ने एक बेरोजगारी विशेषज्ञ समिति का गठन किया। इस समिति ने आय पर, कम्पनी पर तथा विज्ञापनों पर अधिभार कर (Surplus Tax) लगाकर उस आय को बेकारी समाप्त करने के लिए खर्च करने का सुझाव प्रदान किया।

(2) सरकार ने प्रशिक्षित व्यक्तियों, जैसे – डॉक्टर, इन्जीनियर आदि के लिए तथा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के स्वातक एवं स्वातकोत्तर छात्रों के लिए क्रमशः बेकारी बीमा एवं बेरोजगारी भत्ता योजना प्रारम्भ की।

(3) अनुसूचित जातियों, जनजातियों तथा पिछड़े वर्गों में बेकारी दूर करने हेतु विभित्र स्थानों पर उनके लिए ‘स्थान सुरक्षित’ किये गये और उनका प्रतिशत भी बढ़ा दिया गया।

(4) बंधुआ मजदूर प्रथा को दूर करने के लिए सरकार ने 1976 में एक अधिनियम पारित कर श्रमिकों को शोषण से मक्त करवाया और न्यूनतम मजदूरी दर तय करके उन्हें राहत प्रदान की।

(5) निर्धन एवं बेकार व्यक्तियों को कार्य करने के लिए सरकार ने ‘काम के बदले अनाज’ योजना प्रारम्भ की। बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर सरकार ने उन्हें निर्देश दिये कि शिक्षित एवं अशिक्षित बेरोजगार व्यक्तियों को उदार शर्तो पर नये उद्योग खोलने के लिए ‘ऋण’ (Loans) दिये जायें। इस ऋण का कुछ भाग उन्हें माफ भी कर दिया जाता है।

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Pankaja Singh

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