समाज शास्‍त्र

वास्तविकता का सामाजिक निर्माण | पी. बर्जर लाकमैन के “वास्तविकता का सामाजिक निर्माण” पर एक लेख

वास्तविकता का सामाजिक निर्माण | पी. बर्जर लाकमैन के “वास्तविकता का सामाजिक निर्माण” पर एक लेख | Social construction of reality in Hindi | An article on P. Berger Lachmann’s “Social Construction of Reality” in Hindi

वास्तविकता का सामाजिक निर्माण-

पी. बर्जर एवं लाकर्मन (Social construction of reality P. Berger and Lukman) पीटर बर्जर तथा लाकमैन अमेरिकन समाजशास्त्री हैं इन्होंने ज्ञान के समाजशास्त्र घटना क्रिया विज्ञान तथा लोक विधि विज्ञान में काफी महत्त्वपूर्ण कार्य किया है।

पीटर बर्जर ने थामस ताकमैन के साथ ‘वास्तविकता का सामाजिक निर्माण कार्य पुस्तक लिखी है। यह पुस्तक ज्ञान के समाजशास्त्र के नियमों को उजागर करती है। सामाजिक परिवर्तन और राजनीतिक आचारों के संबंधों को उद्घाटित करने वाली “उत्कर्ष के पिरामिड” पुस्तक में बर्जर ने मोटे तौर पर दो आपस में गूथें विषयों का सारगर्भित विश्लेषण किया है यह विषय है-

  1. सुगठित एवं सुसम्बद्ध समुदायों का कमजोर होना।
  2. समय और नौकरशाही के कार्यक्रमों के प्रति सनकपन की हद की सीमा
  3. व्यक्ति और समाज के बीच द्वैधात्मक स्थिति के कारण संकट एवं अलगाव।
  4. मानवीय इच्छा कमजोर बनाने वाली स्वातंत्रीकरण की प्रक्रिया को प्रोत्साहन देना।
  5. अर्थपूर्ण विश्व में विश्वास को कमजोर करता हुआ उत्तरोत्तर बढ़ता हुआ लौकिकीकरण।

बर्जर की कृतियों में एक प्रमुख बात यह है कि वे अपनी व्याख्याओं द्वारा सामाजिक संरचना की दमनात्मक शक्तियों का मानवीय स्वायत्ता के साथ सामंजस्य बैठाना चाहते हैं।

बर्जन एवं लाकमैन का मत है कि घटना क्रिया विज्ञान में वास्तविकता (Reality) को जानने का प्रयास किया जाता है। उनके अनुसार वास्तविकता वही है जिसकी व्याख्या समाज के लोगों द्वारा उनकी दैनिक क्रियाओं के आधार पर की जाती है। एक समाजशास्त्री के लिये आवश्यक है कि वह सामाजिक जगत की व्याख्याओं का ज्ञान रखें।

बर्जर एवं लाकर्मन का मत है कि समाज मानव द्वारा निर्मित होता है और समाज एक वस्तुनिष्ठ वास्तविकता है तथा मनुष्य एक सामाजिक उत्पत्ति है। उनके विचार में ज्ञान का समाजशास्त्र असाधारण है और उसका संबंध वास्तविकता के सामाजिक निर्माण से है।

बर्जर तथा लाकमैन ने घटना क्रिया विज्ञान की व्याख्या करने के लिए कुछ विशिष्ट शब्दों का प्रयोग किया है। यह शब्द है- दैनिक जीवन (Everyday life) समाज के वस्तुनिष्ठ तत्व (Objective components of Society), संस्थाकरण (Institutionalization), भूमिकाएं (Roles), रिइफीकेशन (Reification), वैधता एवं वैधीकरण (Legitimations)

दैनिक जीवन में वस्तुनिष्ठता-

बर्जर एवं लाकमैन ने वैयक्तिक स्तर पर विश्लेषण दैनिक जीवन में व्याप्त वास्तविकता से प्रारंभ करते हैं। उनका मत है कि वस्तुनिष्ठता की प्रवृत्ति भाषा में निहित है जो लगातार दैनिक जीवन को अर्थ प्रदान करती है।

बर्जर तथा लाकमैन का मत है कि सामाजिक जगत् प्रक्रिया की सांस्कृतिक उपज है। बर्जर तथा लाकमैन ने आमने-सामने की अंतःक्रिया को “हम संबंध” (We Relationship) का नाम दिया है। आमने-सामने से संबंधों का अर्थ लोगों के बीच के ऐसे संबंध जिनमें हमारी घनिष्ठता कम होती है वे या वे अजनबी होते हैं। सामाजिक संरचना को परिभाषित करते हुए बर्जर एवं लाकमैन ने लिखा है कि यह अंतःक्रिया के बार-बार दोहराये जाने तथा उनके प्रकारों द्वारा निर्मित होते हैं। उनका यह मत भी है कि भाषा मौखिक संकेतों की व्यवस्था है जो कि समाज में काफी महत्वपूर्ण संकेत व्यवस्था है। भाषा व्यवस्था एक प्रमुख सामाजिक संरचना है।

संस्थाकरण-

बर्जर तथा लाकमैन के अनुसार सामाजिक वास्तविकता का निर्माण लोगों के जीवित रहने तथा दूसरों के साथ अंतःक्रिया करने के लिए आवश्यक है। व्यक्ति क्रिया के आदतन प्रतिमानों का निर्माण करता है। बर्जर तथा लाकमैन का मत है कि आदत के अभाव में जीवन असंभव हो जायेगा तथा यह कार्य काफी कठिन है कि हम प्रत्येक नई परिस्थिति में यही क्रिया का निर्धारण करें। क्रियाओं का आदतीकरण संस्था के विकास का प्रथम चरण है। बर्जर तथा लाकमैन ने संस्था  को वर्गीकरण की पारस्परिक क्रिया माना है। उनका मत है कि मनुष्य के व्यवहार को संस्थाओं के द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

भूमिका-

भूमिका को परिभाषित करते हुये बर्जर तथा लाकमैन ने लिखा है कि ये वस्तुनिष्ठ सामाजिक वास्तविकता का विशिष्ट स्वरूप है। भूमिकायें एक प्रदत्त सामाजिक स्थिति में कर्ता से अपेक्षित क्रिया है। भूमिका इसलिये आवश्यक है क्योंकि यह बृहद एवं लघु दोनों प्रकार के समाज में मध्यस्थता रहती हैं। भूमिका का विश्लेषण ज्ञान के समाजशास्त्र के लिये आवश्यक है।

रिइफीकेशन-

बर्जर तथा लाकमैन ने इसकी परिभाषा एक व्यक्तिनिष्ठ तथा के रूप में की है। वे मानवीय तथ्यों को इस रूप में देखने का प्रयत्न करते हैं जैसे वे अमानवीय या मानव से परे तथ्य हो। वर्जर एवं लाकमैन का मत है कि रिइफीकेशन मानवीय उत्पादों को इस प्रकार देखने की प्रवृत्ति है जैसे वे कोई अन्य तथ्य हों। बर्जर और लाकमैन रिफीकेशन के अन्य पक्षों को उपयोगी नहीं मानते हैं।

वैधता या वैधीकरण-

बर्जर तथा लाकमैन के अनुसार वैधता के द्वार संस्थात्मक व्यवस्था की व्याख्या की जाती है तथा उसकी वैधता को ज्ञात किया जाता है। बर्जर तथ्य लाकमैन ने समाज की व्यक्तिनिष्ठ विशेषताओं का उल्लेख किया तथा ज्ञान के समाजशाल को प्रस्तुत किया किंतु वे समाज को एक वस्तुनिष्ठ वास्तविकता के रूप में समझने में सफल नहीं हुए। इस कमजोरी के बावजूद बर्जर तथा लाकमैन ने घटना क्रिया विज्ञान को उसके परंपरागत स्वरूप के स्थान पर एक नया आयाम प्रदान किया है।

समाजशास्त्र / Sociology – महत्वपूर्ण लिंक

Disclaimer: e-gyan-vigyan.com केवल शिक्षा के उद्देश्य और शिक्षा क्षेत्र के लिए बनाई गयी है। हम सिर्फ Internet पर पहले से उपलब्ध Link और Material provide करते है। यदि किसी भी तरह यह कानून का उल्लंघन करता है या कोई समस्या है तो Please हमे Mail करे- vigyanegyan@gmail.com

About the author

Pankaja Singh

Leave a Comment

(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
close button
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
(adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({});
error: Content is protected !!