समाज शास्‍त्र

पूँजीवाद का अर्थ | पूँजीवाद की आधारभूत विशेषताएँ

पूँजीवाद का अर्थ | पूँजीवाद की आधारभूत विशेषताएँ | Meaning of capitalism in Hindi | Basic characteristics of capitalism in Hindi 

पूँजीवाद का अर्थ

पूँजीवाद आर्थिक संगठन की एक पद्धति है। इस पद्धति में उत्पत्ति साधनों पर व्यक्तियों या व्यक्तिगत संस्थाओं का अधिकार होता है इसमें व्यक्ति या व्यक्तिगत संस्था स्वतंत्रतापूर्वक अपने लाभ को अधिक और अधिक करने के प्रयास में लगा रहता है। विभिन्न विद्वानों ने पूँजीवाद की परिभाषा इस प्रकार दी है।

  1. लुक्स और हूट (Loucks and Hoot) के अनुसार ‘पूँजीवाद वह अर्धव्यवस्था है जिसमें किसी स्वामित्व और मनुष्यकृत एवं प्राकृतिक साधनों का निजी लाभ के लिए उपयोग किया जाता है।
  2. प्रो. पीगू के अनुसार, पूँजीवाद अर्थव्यवस्था अथवा पूँजीवादी पद्धति वह प्रणाली है। जिसमें उत्पत्ति के साधनों का मुख्य भाग पूँजीवादी उद्योगों में लगाया जाता है जिसमें उत्पत्ति के नैतिक साधनों पर निजी व्यक्तियों का स्वामित्व होता है या उनके द्वारा किराये पर लगाये जाते हैं और उसके आदेशानुसार इस प्रकार उपयोग में लाये जाते हैं कि जिन वस्तुओं या सेवाओं को उत्पन्न करने के सहायता देते हैं उन्हें लाभ पर बेचा जा सकता है।

यद्यपि उपरोक्त परिभाषाओं में विभिन्नताएं हैं। तथापि पूँजीवाद के संबंध में दो बातें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

(1) पूँजीवाद पूर्णतया एक आर्थिक धारणा (Economic Concept) है।

(2) पूँजीवाद प्रणाली एक विकासशील प्रणाली है और उसके विकास का क्रम अब भी चालू है।

पूँजीवाद की आधारभूत विशेषताएँ

(Basic Characteristics of Capitalism)

पूँजीवाद की निम्न प्रमुख विशेषताएं होती है जो अन्य आर्थिक प्रणाली में नहीं पायी जाती है।

  1. व्यक्तिगत संपत्ति का अधिकार (Right of Private Property) पूँजीवादी व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी संपत्ति पर व्यक्तिगत स्वामित्व को बनाये रखने की स्वतंत्रता प्रदान करती है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता से अभिप्राय यह है कि मनुष्य के अधिकार में जो भी वस्तु है उकसा वह किसी भी प्रकार से उपयोग कर सकता है।
  2. उत्तराधिकार द्वारा पूँजी का हस्तांतरण पूँजीवाद के अंतर्गत संपत्ति का हस्तांतरण अथवा विक्रय उत्तराधिकार के नियमानुसार होता है। उत्तराधिकार के नियमानुसार संपत्ति के हस्तांतरण में दो बातें सम्मिलित हैं।

(i) प्रत्येक संपत्ति के स्वामी को यह निर्धारण करने की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है कि उसकी मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति किसको मिलेगी।

(ii) यदि संपत्ति के स्वामी से किसी व्यक्ति की नजदीकी रिश्तेदारी है तो उसको संपत्ति प्राप्त करने का अधिकार होता है। जैसे पिता की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति का अधिकारी उसका पुत्र होता है।

  1. लाभ की भावना- लाभ की भावना की प्रेरणा पूँजीवाद की आधारशिला है पूँजीवाद में उसको समस्त संस्थाओं का हृदय कहा गया है। (Heart of all the Institutions)
  2. आर्थिक स्वतंत्रता- पूँजीवाद प्रणाली में प्रत्येक व्यक्ति को आर्थिक स्वतंत्रता प्राप्त होती है। इसमें तीन प्रकार की स्वतंत्राएं शामिल है।

(1) व्यावसायिक स्वतंत्रता (Freedom of Enterprises)

(2) प्रसंविदा की स्वतंत्रता (Freedom of Contract)

(3) चुनाव की स्वतंत्रता (Freedom of Choice)

(1) व्यावसायिक स्वतंत्रता (Freedom of Enterprises)- राज्य के नियमों का उल्लंघन करते हुए व्यक्ति को अपने लिए व्यवसाय का चुनाव करने की स्वतंत्रता रहती है। व्यक्ति अपनी इच्छानुसार व्यवसाय में परिवर्तन कर सकता है लेकिन व्यावसायिक नियुक्ता में योग्यता के अभाव में वह स्वतंत्रता सीमित रह जाती है।

(2) प्रसंविदा की स्वतंत्रता (Freedom of Contract)- पूँजीवाद प्रणाली में हर व्यक्ति चाहे वह श्रमिक हो अथवा पूंजीपति अपनी-अपनी इच्छानुसार अनुबंध करते हैं।

(3) चुनाव की स्वतंत्रता (Freedom of Choice) – उपभोक्ताओं को इस बात की स्वतंत्रता होती है कि वे अधिकत संतुष्टि प्राप्त करने के उद्देश्य से अपनी इच्छानुसार कोई भी वस्तु कहीं से खरीद सकते हैं और इस प्रकार पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में सभी व्यक्तियों को चाहे वह धनी हो या गरीब हो उत्पादक हो या उपभोक्ता, आर्थिक क्रिया संबंधी पूर्ण स्वतंत्रता रहती है।

  1. प्रतियोगिता वादी प्रणाली में सर्वत्र प्रतिपायी जाती है क्योंकि हर व्यक्ति आर्थिक कार्य करने में स्वतंत्र होता है उपभोक्ताओं में क्रय करने की प्रतियोगिता तथा विक्रेताओं में वस्तु-विक्रय के लिए एवं मिल मालिकों में श्रमिक को रखने के लिए प्रतियोगिता । इस प्रकार उपभोक्ता और उत्पादकों के भी मध्य प्रतियोगिता होती है। उत्पादक अपनी वस्तु को अधिक से अधिक मूल्य पर बेचना चाहते हैं और उपभोक्ता उसे कम से कम मूलय पर खरीदना चाहता है।
  2. वर्गसंघर्ष पूँजीवादी अर्थव्यवस्था में समाज दो वर्गों में विभक्त रहता है पति वर्ग और श्रमिक वर्ग यानी संपन्न वर्ग और असंपन्न (गरीब) वर्ग। इन दोनों वर्गों का संघर्ष अपने-अपने हितों को लेकर होता रहता है। पूँजीपति अपना लाभ अधिकतम करने के लिए श्रमिकों का शोषण करने के प्रयत्न में रहते हैं और श्रमिक उनके शोषण करने के प्रयत्न में रहते और श्रमिक उनके शोषण से बचने एवं अधिकाधिक सुविधाएं जुटाने के प्रयास में रहता है। इस प्रकार दोनों वर्गों के बीच संघर्ष निरंतर बना रहता है जो बहुधा औद्योगिक विवाद हड़ताल और तालाबंदी का रूप धारण करता है।
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Pankaja Singh

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