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जार्ज हरबर्ट मीड का प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद | हरबर्ट मीड के प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद की विवेचना

जार्ज हरबर्ट मीड का प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद | हरबर्ट मीड के प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद की विवेचना | George Herbert Mead’s symbolic interactionism in Hindi | Discussion of Herbert Mead’s Symbolic Interactionism in Hindi

जार्ज हरबर्ट मीड का प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद

(Symbolic Interactionism of George Herbr Mead)

जार्ज हरबर्ट मीड एक महान समाजशास्त्री थे। इन्होंने एक सिद्धांतकार के रूप में कई लेख लिखें। जिसे उनके शिष्यों ने संकलित एवं संपादित कर पुस्तक का रूप दिया। मीड ने अपने समाजशास्त्र को सामाजिक मानव शास्त्र कहा था।

जिसका कि प्रमुख कार्य समाज व व्यक्ति के बीच पाये जाने वाले संबंधों का अध्ययन करना था। मीड के अनुसार इन संबंधों का आधार मानवीय अंतःक्रिया है। इन मानवीय अंतःक्रियाओं में सामाजिक उत्तेजना का महत्व अत्यधिक होता है। वास्तव में जब एक व्यक्ति की प्रतिक्रिया दूसरे व्यक्ति को उत्तेजना देती है तभी सामाजिक अंतःक्रियाएँ घटित होती हैं। इस अर्थ में सामाजिक उत्तेजनाएँ सामाजिक अंतःक्रियाओं का साधन या माध्यम हैं। ये उत्तेजनाएं दो प्रकार की होती हैं- प्राथमिक तथा द्वितीयक। जब प्रत्यक्ष संबंध संपर्क के आधार पर व्यक्ति किसी दूसरे को उत्तेजना प्रदान करता है, तो उसे प्राथमिक उत्तेजना कहते हैं। इसके अंतर्गत हाव-भाव, चेहरे की अभिव्यक्ति शारीरिक आसन भाषा हँसी आदि आती है। द्वितीयक उत्तेजना वे हैं जिनमें व्यक्ति दूर रहकर संचार के विभिन्न साधनों द्वारा दूसरों को प्रभावित करता है।

मानवीय अंतःक्रिया में हाव-भाव के महत्व को लीजिए। “हाव-भाव” शरीर के किसी भाग की ऐसी गति को कहते हैं, जो व्यक्ति की मानसिक स्थिति को व्यक्त करती है, हाव-भाव की अपनी एक सूक्ष्म भाषा होती है। इसीलिए छोटे बच्चे भाषा के स्थान पर हाव-भाव की सहायता से बहुत कुछ कह सकते हैं।” प्रायः हम अचेतन रूप में जिन हाव-मावों को प्रकट करते हैं, वे हमारे वास्तविक विचारों तथा मनोवृत्तियों को शब्दों के द्वारा अभिव्यक्त विचारों तथा मनोवृत्तियों से भी अधिक स्पष्ट रूप में व्यक्त करते हैं।

उसी प्रकार मानवीय अंतःक्रिया में चेहरे की अभिव्यक्ति एक महत्वपूर्ण उत्तेजक है। चेहरे को देखकर, दुःख क्रोध, भय, आश्चर्य आदि संवेगों को पढ़ना सबसे आसान होता है। छोटे बच्चे भी अपने माता-पिता के चेहरे के विभिन्न अभिव्यक्तियों को समझने लगते हैं इसीलिए अलग-अलग अभिव्यक्ति के प्रति उसकी प्रतिक्रियाएँ भी अलग-अलग ही होती हैं। विद्यार्थी भी अपने शिक्षक के चेहरे की अभिव्यक्ति को समझकर उसी के अनुसार व्यवहार करते हैं। अपने प्रियजनों के चेहरों को खुशी से खिल उठते देखकर हम भी खुशी से झूम उठते हैं और उन्हें बाहों में भर लेते हैं। इसी प्रकार भय से आँख फैल जाना, क्रोध से भौहँ तन जाना आदि चेहरे की लोकप्रिय अभिव्यक्तियाँ हैं, जो कि दूसरे व्यक्तियों को एक विशेष ढंग से अपने प्रति या अंतःक्रिया करने को प्रेरित या उत्तेजित करती है।

भाषा को भी मानवीय अंतःक्रिया में एक महत्वपूर्ण सामाजिक उत्तेजना का माध्यम कहा जाता है। भाषा की सहायता से हम अपने विचारों को दूसरों तक पहुँचा सकते हैं। उनसे अनुरोध कर सकते, या आदेश दे सकते हैं, जिसके फलस्वरूप दूसरे क्रिया कर सकते हैं। भाषा के द्वारा हम एक व्यक्ति को इतना उत्तेजित कर सकते हैं कि वह प्राण देने या लेने को तैयार हो जाए।

आसनिक अभिव्यक्ति भी मानवीय अंतःक्रिया का एक उत्तेजक रूप है। शरीर के विभिन्न आसनों के द्वारा भी दूसरों को प्रभावित किया जा सकता है। उदाहरणार्थ प्रेम में आलिंगन, चुम्बन आदि आसनिक अभिव्यक्तियों द्वारा दूसरे को भी उसी भाँति व्यवहार करने या विरोधी क्रिया करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। इसी प्रकार हाथ मलने, मुट्ठी बाँधने, तनकर खड़े होने, सिर थामकर बैठ जाना आदि से विभिन्न सर्वेगों का पता चलता है, जो दूसरों को क्रिया करने को उत्तेजित कर सकते हैं।

मीड के अनुसार मानतीय अंतःक्रिया के उत्तेजक के रूप में स्वर अभिव्यक्ति का भी अपना अलग महत्व है। स्वर के माध्यम से केवल अपने संवेगों को ही व्यक्त नहीं किया जाता बल्कि दूसरे में भी उसी प्रकार के संवेग उत्पन्न किए जा सकते हैं। हम गाली-गलौज द्वारा केवल अपने क्रोध को ही व्यक्त नहीं करते, बल्कि दूसरे क्रोध को भी भड़का सकते हैं। इसी प्रकार मीठी बोली से प्यार की अभिव्यक्ति करते हैं।

हँसी भी सामाजिक उत्तेजना है। हंसी दूसरों को कई प्रकार से प्रभावित करती है। सबसे पहले दूसरों पर हँसने की क्रिया को ही लीजिए। हम दूसरों को बेढंगी पोशाक में देखकर हँसते हैं, दूसरों की बेवकूफी पर भी हँसते हैं। इस प्रकार हँसी के द्वारा हम उस व्यक्ति को यह बता देना चाहते हैं कि वह जो कुछ भी कर रहा है, गलत है हम उससे मिन्न प्रकार के व्यवहार की आशा करते हैं। इस पर व्यक्ति अपने को सुधारने प्रयत्न करता है, क्योंकि कोई भी आत्मचेतन व्यक्ति दूसरों की हँसी का पात्र बनकर नहीं रहना चाहता। इसीलिए हँसी सामाजिक अनुशासन के रूप में कार्य कर सकती है। हँसी उस व्यक्ति को सुधार सकती है जिस पर हँसा जा रहा है। इसी प्रकार दूसरों के साथ हँसने की क्रिया को लीजिए। जब दो व्यक्ति एक साथ हंसते हैं तो यह इस बात को द्योतक है कि वे दोनों ही समान दृष्टि वाले व्यक्ति हैं। यह समान दृष्टि दोनों को एक-दूसरे के निकट लाने में या उन्हें एक- दूसरे का मित्र बनाने में सहायक हो सकती है। इसके अतिरिक्त अन्य प्रकार की हँसी में भी उत्तेजना शक्ति होती है। उदाहरणार्थ हम हंस कर अपने दुख टाल सकते हैं, और दूसरों को भी वैसा ही करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। पर बलवान व्यक्ति के सामने जब एक दुर्बल व्यक्ति हँसता है तो उसकी यह हंसी बलवान व्यक्ति को क्रोषित कर सकती है। इसी प्रकार हँसी के द्वारा हम दूसरों का ध्यान भी अपनी ओर आकर्षित कर सकते हैं। उदाहरणार्थ कक्षा में किसी हँसी की बात पर कोई एक विद्यार्थी इस उद्देश्य से अधिक से अधिक जोर हैरा सकता है कि उस कक्षा की छात्राओं का ध्यान उसकी ओर आकर्षित हो।

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Pankaja Singh

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