समाज शास्‍त्र

प्रतीकात्मक अन्तक्रियावादी परिप्रेक्ष्य को गॉफमैन का योगदान | गॉफमैन के प्रतीकात्मक-अंतर्क्रियावाद की समीक्षा

प्रतीकात्मक अन्तक्रियावादी परिप्रेक्ष्य को गॉफमैन का योगदान | गॉफमैन के प्रतीकात्मक-अंतर्क्रियावाद की समीक्षा | Goffman’s contribution to the symbolic interactionist perspective in Hindi | Review of Goffman’s symbolic-interactionism in Hindi

प्रतीकात्मक अन्तक्रियावादी परिप्रेक्ष्य को गॉफमैन का योगदान

(Goffman’s Contribution to Symbolic-Interactional Perspective)

प्रतीकात्मक अन्तक्रियावाद के साथ जिन विद्वानों के नाम जुड़े हुये हैं उनमें इरविंग गफमैन प्रमुख है। कूले, मीड एवं ब्लूमर की तरह गॉफमैन ने भी इस परिप्रेक्ष्य को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। इनके दृष्टिकोण को नाट्यशास्त्रीय या अभिनयशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य (Dramaturgical Perspective) भी कहा जाता है। वह मौलिक प्रतीकात्मक-अन्तक्रियावाद का विस्तार है। गाफमैन ने अनेक पुस्तकें लिखी हैं जिनमें से प्रमुख निम्नांकित हैं-

  1. The Presentation of Self in Everyday Life (1959)
  2. Asylums (1961)
  3. Interaction Ritual (1967).
  4. Frame Analysis: An Essay on the Organization of Experience (1974).

गॉफमैन ने प्रथम पुस्तक में ‘अंकन प्रबंध’ (Impression Management) के अपने अध्ययन को नाट्यशास्त्रीय कहा है। नाट्यशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में पूल शब्द ‘कार्य’ (Act) है। कार्य वह ‘समापन केंद्र’ (Terministic Centre) है जिससे अनेक संबंधित विचार निकलते हैं। कार्य के लिये किसी ‘कर्त्ता’ (Agent) की आवश्यकता होती है। कर्त्ता द्वारा कार्य करने हेतु कोई ‘घटना स्थल’ (Scene) होना चाहिये। घटनास्थल में कर्त्ता को कार्य करने के लिये कुछ ‘सायन’ अथवा ‘माध्यम’ (Agency) उपलब्ध होने चाहिये। साथ ही घटनास्थल में कर्ता द्वारा किये जाने वाले कार्य का कुछ न कुछ ‘उद्देश्य’ (Pupose) होना चाहिये। इन पाँच शब्दों यथा- कार्य, घटनास्थल, कर्त्ता, माध्यम, उद्देश्य को अभिनय संबंधी पंचक कहा गया है। गॉफमैन ने अंकन प्रबंध के अपने अध्ययन में नाट्यशाला से संबंधित अनेक शब्दों, जैसे कि लिपि (Script), श्रोतागण (Audience), पहचान बैग (Identity Purpose), निष्पादन (Performance), अभिनयकर्त्ता (Performer), भूमिका (Part), मंचपट (On stage), मंच के नीचे (Down stage), मुखौटा (Mask), अवलम्ब (Prop) आदि का प्रयोग किया है।

गॉफमैन के अनुसार, सामाजिक जगत ‘स्व-व्यवस्थित (Self Ordered) नहीं होता और न ही प्रत्येक व्यवहार में सदैव अर्थ सन्निहित होता है। सामाजिक व्यवस्था तथा किसी विशिष्ट व्यवहार का अर्थ इसलिये महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि लोग इन्हें महत्व प्रदान करते हैं। अतः प्रत्येक अंतर्क्रिया में कर्ता केवल अपने आपको प्रस्तुत ही नहीं करते अपितु वे इस प्रतिबिंब को बनाये रखने का भी प्रयास करते हैं जिस रूप में उस परिस्थिति में प्रस्तुत हुगे हैं। गॉफमैन का यह कवन कि कर्ता सदैव किसी सामाजिक घटनास्थल में संकेतों को चालाकी से प्रतीकात्मक अंतर्क्रियावाद को सूक्ष्म समाजशास्त्र (Micro Sociology) संबंधी परिप्रेक्ष्य भी कहा जाता है। शिकागो संप्रदाय के अन्य समर्थकों की तरह गॉफमैन ने भी अपने व्यक्तिगत अवलोकनों व अनुभवों को सामग्री के प्राथमिक स्रोत के रूप में प्रयोग किया है।

संक्षेप में गॉफमैन के प्रतीकात्मक अंतक्रियावाद का सार इस प्रकार है-

(1) मानवीय अंतक्रियाओं को नाट्यशास्त्रीय आधार (Dramaturgical Basis) पर समझा जा सकता है।

(2) प्रत्येक अभिनयकर्ता किसी घटनास्थल या परिप्रेक्ष्य में अपने आपको किसी विशेष प्रतिबंध के रूप में प्रस्तुत करता है तथा उसे बनाये रखने का प्रयास करता है।

(3) संकेतों एवं प्रतीकों के चालाकी से प्रयोग द्वारा ही अभिनयकर्ता घटनास्थल में अपने प्रतिबिंब या प्रभाव को बनाये रखने का प्रयास करता है या इससे स्व-धारणा को अभिष्ट करते हैं।

(4) जब अनिभनयकर्ता घटनास्थल में परम्परागत व अपेक्षित कार्य करता है तो अन्य लोग भी इस कार्य का अर्थ उसी रूप में लेते हैं जिसमें कि अभिनयकर्ता स्वयं लेता है।

(5) अनपेक्षित रूप से किये गये कार्य या अभिव्यक्ति अभिनयकर्ता के संप्रेक्षण से संबद्ध न होकर उसके मस्तिष्क के लक्षण बन जाते हैं।

(6) श्रोतागण अभिनयकर्ता के कार्यों (क्रियाओं) को, जिस रूप में उनकी अभिव्यक्ति होती है, दैनिक जीवन में ग्रहण भी कर सकते हैं और नहीं भी। दूसरी स्थिति में कर्त्ता अपने उद्देश्य की प्राप्ति की मांग करता है।

(7) अभिनयकर्ता कार्य के निष्पादन के समय अपने लाभार्थ अपने अधम कार्यों (ऐसे कार्य जो गंदे, अर्द्ध-अवैध, निष्ठुरतापूर्ण होते हैं) को छिपाने का प्रयत्न करता है ताकि अन्यों पर उसका अपेक्षित प्रभाव पड़ सके और अभिनयकर्ता व कार्यों में पूर्ण सामंजस्य स्थापित हो सके।

(8) किसी घटनास्थल में अंतर्क्रिया के दौरान अभिनयकर्ता में हीन भावना’ (Inferiority complex) का होना अनिवार्य व अपरिहार्य है।

(9) घटनास्थल अपनी सीमाबद्धता (सामाजिक व सामयिक परिसीमन सहित) की मात्रा के आधार पर परिवर्तित होते रहते हैं। मंच पर क्रिया का संपादन आदर्श रूप में करने का प्रयास किया जाता है जबकि मंच के पीछे ऐसा होना जरूरी नहीं है। बाह्य क्षेत्र भी क्रियाओं के संपादन को प्रभावित करता है।

(10) अभिनयकर्ता द्वारा कार्य निष्पादन की नाटकीय सफलता के लिये श्रोतागण से पृथक होना अनिवार्य है अन्यथा कार्य निष्पादन में अन्य अभिनयकर्त्ताओं से सामंजस्य समाप्त हो सकता है। यदि मंच पर बाहरी व्यक्तियों को रोका न जाये तो घटनास्थल पर श्रोतागण पर अपेक्षित प्रभाव डालना कठिन हो जाता है।

इस प्रकार गॉफमैन अप्रत्यक्ष रूप से ‘संस्थागत विश्लेषण’ (Institutional Analysis) को कोष्टक में रखता है ताकि सामरिक महत्व के रूप में सामाजिक अंतक्रिया पर ध्यान केंद्रित किया जा सके। गॉफमैन के अन्वेषण का अधिकांश भाग साधारण कर्त्ताओं द्वारा ‘सामाजिक मिलन’ (Social Encounters) में अपनाये जाने वाले ‘ज्ञान के अनुभव भण्डार’ (Tacit Stocks of Knowledge) से संबंधित है।

गॉफमैन के प्रतीकात्मक-अंतर्क्रियावाद की समीक्षा

(Evaluation of Goffman’s Symbolic-Interaction)

गॉफमैन द्वारा प्रस्तुत नाट्यशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य जोकि मूल प्रतीकात्मक अंतर्क्रियावाद का ही विस्तार है, की अनेक आधारों पर आलोचना की गयी है। आलोचना के कुछ प्रमुख बिंदु निम्नलिखित प्रकार हैं-

(1) गिडिन्स (Giddens) के अनुगार, गॉफमैन का समाजशास्त्र (प्रतीकात्मक-अंतर्क्रियावादी परिप्रेक्ष्य सहित) संस्थाओं, इतिहास अथवा संरचनात्मक परिवर्तन को समझाने में अत्यधिक सफल नहीं रहा है। संस्थायें, जिनमें कर्त्ता अपनी व्यावहारिक क्रियाओं को संगठित करते हैं, न समझे जाने वाले प्रांचल बनी रहती है। अतः यह केवल मात्र पद्धतिशास्त्रीय कोष्ठकीकरण है जो कि क्रिया और संरचना की द्वैतता को प्रकट करता है।

(2) गिडिन्स के अनुसार, गॉफमैन के विचार उस उपस्थिति / अनुपस्थिति की संभावना की भी उपेक्षा करते हैं जिससे क्रिया समग्र के गुणों से संबंधित होती है। ऐसा तभी संभव हो सकता है जबकि, दैनिक जीवन से संबंधित संस्थागत सिद्धांत का निर्माण किया जा सके।

(3) अब्राहम (Abraham) के अनुसार, गॉफमैन के विचारों की आलोचना अन्यों की भावनाओं के प्रति सच्ची मानवीय रुचि के कारण उतनी नहीं की जाती जितनी कि उनके व्यक्तिनिष्ठ पद्धति (Subjetive Method) संबंधी विचारों के कारण की जाती है जिसमें वस्तुनिष्ठता व प्रमाणिकता संभव नहीं है।

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Pankaja Singh

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