उत्तर प्रदेश का भौतिक स्वरूप | उत्तर प्रदेश की भौगोलिक विशेषताओं का वर्णन

उत्तर प्रदेश का भौतिक स्वरूप | उत्तर प्रदेश की भौगोलिक विशेषताओं का वर्णन | Physical Form of Uttar Pradesh in Hindi | Description of the geographical features of Uttar Pradesh in Hindi

उत्तर प्रदेश का भौतिक स्वरूप

उत्तर प्रदेश

उत्तर प्रदेश भारत के उत्तरी मध्य भाग में स्थित एक प्रमुख राज्य है जो भारत के क्रोड क्षेत्र का अंग है। 

भौतिक स्वरूप-

यह समतल मैदानी भूभाग है जिसकी सामान्य ऊँचाई 58 मीटर (बलिया) से 274 मीटर (सहारनपुर) के बीच पाई जाती है। यह ऊँचाई पूरब से पश्चिम तथा मध्यवर्ती भाग से उत्तर और दक्षिण को बढ़ती जाती है (वाराणसी 79 मी0, इलाहाबाद 96 मी0, आगरा 157 मी0 अलीगढ़, 186मी0, मुरादाबाद 197मी0 मेरठ 224 मी०, झांसी 259 मी0, दुधी 557मी0)। इसे तीन भौतक विभागों में बांआ जा सकता है।

मध्यप्रदेश, आर्यावर्त, ब्रह्मर्षिदेश, संयुक्त प्रांत आदि नापों से व्यवहत किया जाता था। यह उत्तर में उत्तराखंड और नेपाल, पूर्व में बिहार एवं झारखंड, दक्षिण में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश, तथा पश्चिम में राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली से घिरा है। इसका विस्तार 23 52 उ0 से 30.34 30 अक्षांशों और 77.06′ पू0 से 84,46′ पू0 देशांतरों के मध्य फैला है। इसका कुल क्षेत्रफल 240,928 वर्ग किमी0 है जो देश के क्षेत्रफल का 7.3 प्रतिशत है। क्षेत्रफल की दृष्टि से यह राजस्थान, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश के बाद पांचवां बड़ा राज्य है जबकि जनसंख्या के आधार पर (भारत की 16.16 प्रतिशत) इसका प्रथम स्थान है। प्रशासनिक दृष्टि से इसे 17 मंडलों, 70 जनपदों (चित्र 31.16), 303 तहसीलों और 813 सामुदायिक विकास खंडों में विभारत किया गया है।

  1. भाबर तथा तराई क्षेत्र- इसका विस्तार पश्चिम में सहारानपुर से लेकर पूर्व में कुशीनगर तक हिमालय के गिरिपदीय क्षेत्र में फैला है। भाबर क्षेत्र कंकड़ और बजरी के जमाओं से निर्मित है (चौड़ाई 8-16 किमी0)। तराई क्षेत्र में समतल नम दलदली मैदान पाया जाता है। (चौड़ाई 15-30 किमी0) जो राज्य के सहारनपुर, बिजनौर बरेली, पीलीभीत, लखीमपुर-खीरी, बहराइच, श्रावस्ती, बलरामपुर, सिद्धार्थनगर, महराजगंज, देवरियों और कुशीनगर जिलों के उत्तरी भाग को अधिकृत किए है।
  2. गंगा का मैदान- इसका विस्तार राज्य के लगग तीन-चौथाई भाग पर पाया जाता है। इसका निर्माण गंगा और उसकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए जलोढ़ जमाओं से हुआ है। इसकी ऊंचाई समुद्र तल से 300 मीटर से कम पाई जाती है। इसमें नदी के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में नवीन जलोढ़ (खादर) और ऊंचाई के भाग में पुरानी जलोढ (बांगर) के निक्षेप मिलते हैं जिनमें यत्र तत्र लवणयुक्त ऊसर क्षेत्र पाए जाते हैं। गंगा मैदान समतल और उपजाऊ मिट्टी के कारण देश का कृषि की दृष्टि से महत्वपूर्ण और जनसंकुल क्षेत्र है।
  3. दक्षिणी पठार- इसकी उत्तरी सीमा यमुना और गंगा नदियों द्वारा निर्धारित की जाती इसमें बुंदेलखंड और मिर्जापुर के पठारी क्षेत्र शामिल हैं। इस क्षेत्र के बहुत कम स्थानों पर पठारों की ऊँचाई 450 मी0 से अधिक पाई जाती है। केवल सोनभद्र जिला में कैमूर और सोनपार पहाड़ियों के कारण यह ऊँचाई 600 मीटर तक पहुँच गई है। पथरीली मिट्टी, वर्षा की कमी और सिंचाई के साधनों के अभाव में यह क्षेत्र राज्य का कृषि और आर्थिक दृष्टि से पिछड़ा क्षेत्र है।
  4. अपवाह- राज्य के अपवाह की सामान्य दिशा उत्तर-पश्चिम से दक्षिण-पूर्व को मैदान के ढाल के अनुरूप है। यहाँ गंगा, यमुना और उनकी सहायक नदियों द्वारा वृक्षाभ अपवाद प्रतिरूप का निर्माण किया गया है। इन्हें तीन वर्गों में बाँटा जाता है- (1) हिमालय से निकलनी वाली नदियाँ (गंगा, यमुना, रामगंगा, काली या शारदा, करनाली या घाघरा, राप्ती, (2) गंगा मैदान से निकलने वाली नदियाँ (गोमती, टॉस, सई, काली नदी, सेंगर, पांडु, ईसन, ससुरखदेरी, वरूणा आदि), एवं (3) दक्षिणी पठार से निकलने वाली नदियाँ (चंबल, बेतवा, केन, टोंस, सोन, रिहंद, कनहर आदि)

बुंदेलखंड की मिट्टी मिश्रित लाल और पीली प्रकार की है। इसे मोण्टा, माड, कावड, परवा, राकड, रेगुर आदि नामों से जाना जाता है। इनमें लोहा और अल्यूमिनियम की प्रचुरता परंतु नाइट्रोजन, ह्यूमस, पोटाश आदि की कमी पाई जाती है। ये मिट्टियाँ कम उपजाऊ होती हैं।

जलवायु-

इसे उपार्द्र शीतोष्ण जलवायु के अंतर्गत शामिल किया जाता है (कोपेन (Cwg, थार्न्यवेट CB’w, ट्रिवार्था Caw)। यहाँ शीत ऋतु में औसत तापमान 18° सेग्रे0 से कम परंतु ग्रीष्म ऋतु में 46°-48° सेग्र तक पाया जाता है। शीतऋतु शुष्क होती है। अधिकांश वर्षा मध्य जून से सितंबर के बीच ग्रीष्मकालीन मानसूनी हवाओं से प्राप्त होती है। वर्षा की मात्रा पूरब से पश्चिम एवं उत्तर से दक्षिण घटती जाती है। गोरखपुर में सर्वाधिक वर्षा (184.7 सेमी0) तथा मथुरा में सबसे कम (54.4 सेमी0) वर्षा प्राप्त होती है। वर्षा की अनिश्चितता और असमान वितरण के कारण प्रदेश के कुछ भाग अकसर बाढ़ और सूखे की चपेट में आते रहते हैं। पूर्वांचल का क्षेत्र अकसर बाढ़ और बुंदेलखंड का भाग सूखा से प्रभावित रहता है।

वनस्पति-

कृषि प्रसार के कारण इस क्षेत्र की मूल वनस्पति लगभग समाप्त हो चुकी है। प्रदेश के लगभग 7 प्रतिशत क्षेत्र पर ही बन पाए जाते हैं। (वनक्षेत्र 16.826 किमी)। इन्हें निम्न तीन वर्गों में विभाजित किया जाता है- (1) उष्णकटिबंधीय आर्द्र पर्णपाती वन-ये वन तराई के नमी वाले क्षेत्र में पाये जाते हैं। इन वनों के प्रमुख वृक्षों में साल, खैर, सागौन, गूलर, शीशम, महुआ, सेमल, हर्रा, कुसुम, रोजउड आदि सम्मिलित हैं। (2) उष्णकटिबंधीय शुष्क पर्णपाती वन- ये वन उत्तर प्रदेश के संपूर्ण मैदानी भाग में पाए जाते हैं। इनमें वृक्षों के मध्य कांटेदार झाड़ियां पाई जाती हैं। इनके प्रमुख वृक्षों में नीम, पीपल, आम, जामुन, इमली, पलाश, तेंदू  आदि शामिल हैं। (3) उष्णकटिबंधीय कांटेदार वन-ये वन मुख्यतः प्रदेश के दक्षिणी पश्चिमी भाग में पाए जाते हैं। वर्षा की कमी के कारण इनमें वृक्ष ठिगने होते हैं जिनके बीच-बीच में मोटी घासों के क्षेत्र पाए जाते हैं। इनके प्रमुखा वृक्षों में बबूल, सेंहुड़, खजूर, खैर, खेजरा, कंजू, झाऊ आदि सम्मिलित हैं।

प्रदेश में वन्य जीव संरक्षण हेतु 1 राष्ट्रीय उद्यान (दुधवा), 24 वन्य जीव बिहार और 13 पक्षी बिहार की स्थापना की गयी है। दुधवा राष्ट्रीय पार्क खीरी और पीलीभीत के 480 किमी0 क्षेत्र पर फैला है जिसमें बारहसिंघा, गैंडा, और बाघ का संरक्षण और संवर्धन किया जा रहा है।

मिट्टी-

प्रदेश की मिट्टियों को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा जाता है-(1) जलोढ़ या कॉप मिट्टी, एवं (2) मिश्रित लाल और पीली मिट्टी। जलोढ़ मिट्टी का विस्तार गंगा मैदान के समूचे क्षेत्र पर पाया जाता है। इसे दो उपवर्गों में विभाजित किया जाता है। (अ) प्राचीन जलोढ़ या बांगर- यह मिट्टी अधिक परिपक्व और गहरी होती है जिसे दुमट, मटियार, बलुई दुमट, मटियार दुमट, भूड़ आदि नामों से जाना जाता है। इसका रंग पीला रक्कताभ भूरा होता है। इसमें यत्र तत्र चूनेदार कंकड़ के पिंड और ऊसर क्षेत्र पाए जाते हैं। (ब) नवीन जलोढ़ या खादर- खादर मिट्टी नदियों के बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में पाई जाती है। इसका रंग हल्का होता है। इसमें चीका की मात्रा अधिक होती है जिससे इसमें नमी धारण की क्षमता अधिक मिलती है। प्रतिवर्ष बाढ़ के द्वारा इसकी उर्वरता बनी रहती है। इसमें उर्वरकों का कम उपयोग किया जाता है। बाढ़ की समाप्ति के बाद इसमें रबी की फसलें उगाई जाती हैं।

कृषि-

कृषि उत्तर प्रदेश की अर्थव्यवस्था का आधार है (कृषि और पशुपालन द्वारा 41.5 प्रतिशत आय)। राज्य के 60 प्रतिशत क्षेत्र पर कृषि की जाती है। उत्तर प्रदेश का कुल कृषि योग्य क्षेत्र 25,304 हजार हेक्टेयर है जो देश की कुल कृषि योग्य भूमि का 12 प्रतिशत है। सारणी 31.1 में उत्तर प्रदेश में उगाई जाने वाली विभिन्न कृषि फसलों के क्षेत्र, उत्पादन, उनके भारत में प्रतिशत अंशदान और कोटि का विवरण दिया गया है। उक्त सारणी के अवलोकन से स्पष्ट होता है उत्तर प्रदेशर का देश में गेहूं, गन्ना, आलू, और दुग्धोत्पादन में प्रथम स्थान, बाजरा, जौ, तंबाकू और लाही-सरसों के उत्पादन में द्वितीय स्थान तथा चावल, अरहर और अलसी के उत्पादन में तृतीय स्थान प्राप्त है।

उत्तर प्रदेश में कृषि जोतों का औसत आकार 0.9 हेक्टेयर है जो कृषि के विकास में एक बड़ी बाधा है। यहाँ 73 प्रतिशत से अधिक कृषक सीमांत किसान हैं जिनकी कृषि अनुत्पादक है। राज्य का 70.41 प्रतिशत शुद्ध कृषित क्षेत्र सिंचाई की सुविधाआओं से लाभान्वित है जिसका तीन-चौथाई भाग नलकूपों और निजी पंपिंग सेटों से सिंचित होता है। नहरों द्वारा 22.17 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र लाभान्वित होता है। ऊपरी और निचली गंगा नहर, पूर्वी यमुना नहर, शारदा नहर, आगरा नहर और गंडक नहर सिंचाई की प्रमुख नहरें हैं।

जनसंख्या एवं बस्तियाँ-

उत्तर प्रदेश देश का सर्वाधिक जनसंख्या वाला राज्य है जहाँ देश की कुल जनसंख्या का 16.16 प्रतिशत भाग निवास करता है। विश्व में केवल 5 देशों की जनसंख्या इससे अधिक कहें। पिछले दशक (1991-2001) में राज्य में जनसंख्या की वृद्धि दर (25.85 प्रतिशत) राष्ट्रीय औसत (21.54 प्रतिशत) से अधिक रही है जो चिंता का विषय है। इस जनसंख्या में युवकों की संख्या अधिक है। जनसंख्या की दृष्टि से इलाहाबाद सबसे बड़ा और महोबा सबसे छोटा जिला है। राज्य में जनसंख्या का औसत घनत्व 690 व्यक्ति/किमी पाया जाता है (भारत के राज्यों में चौथा स्थान) जो वाराणसी जिला में सर्वाधिक (1995 व्यक्ति/किमी0) और ललितपुर में न्यूनतम (194 व्यक्ति/किमी) मिलता है। राज्य की केवल 56.3 प्रतिशत जनसंख्या साक्षर है (पुरूष 68.8 प्रतिशत) और महिला 42.2 प्रतिशत)। राज्य में यौन अनुपात 898 दर्ज किया गया है।

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