सूती वस्त्र उद्योग | भारत में सूती वस्त्र उद्योग | वस्त्र उद्योग की संभावनाएँ | वस्त्र उद्योग की समस्याएँ | Cotton Textile Industry in Hindi | Cotton Textile Industry in India in Hindi | Prospects of Textile Industry in Hindi | problems of the textile industry in Hindi
सूती वस्त्र उद्योग
भारत, चीन के बाद, सूती धागे तथा वस्त्रों का द्वितीय वृहत्तम उत्पादक देश (2001) है। उत्पादन तथा रोजगार, दोनों की ही दृष्टि से सूती वस्त्र उद्योग का देश के उद्योगों में विशिष्ट स्थान है। वस्त्रों के अतिरिक्त सिले-सिलाये वस्त्रों के निर्यात से देश को बहुमूल्य विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
स्थानीयकरण एवं वितरण
सूती वस्त्र विनिर्माण में अनेक प्रक्रियाएँ होती हैं, अर्थात् धागे की कताई, वस्त्र की बुनाई, फिनिश, वस्त्र सिलना तथा बुनना। इसका कच्चा माल शुद्ध होता है अतः विनिर्माण प्रक्रिया में कोई भार हानि नहीं होती तथा वस्त्र एक उपभोकता वस्तु है, अतः यह प्रमुखतः एक बाजारोन्मुखी उद्योग है। यद्यपि औद्योगीकरण की प्रारंभिक अवस्था में सूती वस्त्र उद्योग मुंबई के चारों ओर तथा अहमदाबाद में कपास उत्पादक क्षेत्रों में, संकेंद्रित हुआ, जहाँ पूँजी तथा पत्तन की सुविधाएँ प्राप्त थी, परिवहन के आधुनिक साधनों के विकसित होने पर यह उद्योग उपभोग पूँजी तथा सस्ते दक्ष श्रमिकों वाले केंद्रों की ओर फैला।
महाराष्ट्र 122 कारखानों, 23.4% तकुओं तथा लगभग 37% करघों सहित, देश का 12% कारखाना निर्मित स्थान है। यहाँ कच्चे माल, दक्ष श्रम, सस्ती जल-विद्युत तथा बाजार की सुविधाएँ प्राप्त हैं। कोयम्बटूर (81 कारखाने) वृहत्तम वस्त्रोत्पादक केंद्र हैं चेन्नई, मदुरै, तिरुनेलवेली, तूतीकोरिन, सलेम, विरूद्धनगर, उदमलपेट, औलाची आदि अन्य महत्वपूर्ण वस्त्रोत्पादक केंद्र हैं।
उत्तर प्रदेश में 50 सूती वस्त्र के कारखाने (24 कताई मिल तथा 17 संयुक्त) तथा देश के 6% से अधिक तकुए एवं करघे सिति हैं। यह देश का 2.25% कारखाना निर्मित सूती धागा तथा 2.7% सूती वस्त्र उत्पादन करता है। राज्य को कच्चे माल, श्रम, बाजार, परिवहन आदि सभी सुविधाएँ प्राप्त हैं किंतु बार-बार विद्युत कटौती की असुविधा है। कानपुर (14 कारखाने) अग्रणी वस्त्रोत्पादक केंद्र हैं। मुरादाबाद, मोदीनगर, अलीगढ़, आगरा, इटावा, गाजियाबाद, बरेली, हाथरस, रामपुर, मेरठ, मऊनाथभंजन आदि अन्य महत्वपूर्ण केंद्र हैं।
पश्चिम बंगाल में 55 कारखाने, देश के लगभग 5 प्रतिशत करघे तथा तकुए एवं लगभग 3 प्रतिशत धागा तथा वस्त्र उत्पादन होता है। राज्य को बाजार, सस्ता श्रम, सस्ती शक्ति, परिवहन आदि लाभ प्राप्त हैं जो इस उद्योग के विकास के लिये आवश्यक है। कोलकाता वृत्तम वस्त्रोत्पादक केंद्र है। हावड़ा, सोदेपुर, सिशमपुर, श्यामनगर, मुर्शिदाबाद, सैकिया, पनिहाटी, मौरीग्राम आदि अन्य महत्वपूर्ण केंद्र हैं।
कर्नाटक में 44 कारखाने स्थित हैं तथा यह देश का 2.9% कारखाना निर्मित सूती धागा तथा 0.6% वस्त्र तैयार करता है। राज्य में हथकरघा तथा शक्तिचालित करघा उद्योग भी उन्नत हैं। अधिकांश कारखाने बंगलौर, मैसूर, हुबली, बेलारी, देवागेरे, गोकक, गुलबर्गा तथा चित्रदुर्ग में स्थित है।
आंध्र प्रदेश में 60 कारखाने स्थित हैं जिनमें से 39 कताई मिल हैं। अधिकांश कारखाने तेलंगाना के कपास उत्पादन क्षेत्रों में अवस्थित हैं जो केवल धागा उत्पादन करते हैं। हैदराबाद, वारंगल, गुंतूर, अदोनी रामागुण्डम, गुंतकल तथा तिरूपति प्रमुख वस्त्रोत्पादक केंद्र हैं।
मध्य प्रदेश में 33 कारखाने तथा देश के 3.5 प्रतिशत तकुए एवं 6.2 प्रतिशत करघे स्थित हैं। इंदौर, ग्वालियर, उज्जैन, नागदा, देवास, भोपाल, जबलपुर, बुरहानपुर, राजनंदगाँव, रतलाम तथा मंदसौर प्रमुख वस्त्रोत्पादक केंद्र हैं।
राजस्थान में 34 कारखाने स्थित हैं जो भारत का 3 प्रतिशत धागा एवं वस्त्र उत्पादन करते हैं। श्रीगंगानगर, भीलवाड़ा, जयपुर, उदयपुर, कोटा, ब्यावर, पाली, विजयनगर, किशनगढ़ आदि प्रमुख वस्त्रोत्पादक केंद्र हैं।
केरल में 29 कारखाने स्थित हैं जो देश का 1.5 प्रतिशत सूती धागा तथा 0.7 प्रतिशत सूतीवस्त्र तैयार करते हैं। यहां कुटीर तथा हथकरघा उद्योग भी उन्नत हैं। वस्त्रोत्पादक केंद्रों में अलवाए, कोचि, अलगप्पानगर तथा अलापुझा उल्लेखनीय हैं।
उत्पादन –
देश में सूती वस्त्रोत्पादन 1950-51 में 4,215 मिलियन वर्ग मीटर से बढ़कर 2003-4 में मिलियन वर्गमीटर हो गया। यह उल्लेखनीय है कि 1950-51 में कारखाना क्षेत्र का अंशदान कुल वस्त्रोत्पादन में 80.7 प्रतिशत तथा विकेंद्रित क्षेत्र (हथकरघा एवं शक्तिचालित करघा) का 19.1 प्रतिशत था। 1980-81 तक विकेंद्रित क्षेत्र (58.96 प्रतिशत) ने कारखाना क्षेत्र (41.03 प्रतिशत) को पछाड़ दिया। 2003-04 तक कारखाना क्षेत्र का अंशदान घट कर मात्र 5.4 प्रतिशत रह गया, जबकि विकेंद्रिति क्षेत्र के 94.6 प्रतिशत उत्पादन (शक्तिचालित करघा क्षेत्र (82 प्रतिशत) तथा हथकरघा क्षेत्र (126 प्रतिशत) ने प्रभावशाली लाभ (उत्पादन) दर्ज किया।
मिलों में कपड़े एवं धागे के उत्पादन की प्रगति निम्न तालिका द्वारा स्पष्ट है-
तालिका : भारत में सूती वस्त्रोद्योग
वर्ष |
मिलों की संख्या |
कपड़ा उत्पादन (करोड़ मीटर) |
1951 |
317 |
474 |
1961 |
479 |
674 |
1971 |
670 |
870 |
1981 |
695 |
1095 |
1985 |
695 |
1006 |
1990 |
1035 |
1296 |
1993 |
1133 |
1999 |
सूती धागा तथा 46.2 प्रतिशत कारखाना निर्मित सूती वस्त्र तैयार करता है। मुंबई देश का वृहत्तम सूती जस्त्रों का केंद्र है जहाँ देश के 16.4 प्रतिशत तकुए तथा 29.5 प्रतिशत कर जाते हैं। मुंबई को उद्योग के पूर्वारंभ, कच्चे माल की निकटता, दक्ष श्रम, पूँजी, पत्तन, परिवहन, बाजार तथा समुद्री जलवायु की सुविधाएँ प्राप्त हैं। इसे “भारत का कॉटनोपोलिस” उचित ही कहा जाता है। शोलापुर, पुणे, नागपुर, जलगाँव आदि राज्य के अन्य प्रमुख सूती वस्त्र केंद्र हैं।
गुजरात में 130 कारखानें, देश के लगभग 19 प्रतिशत तकुओं तथा 30.7 करणों सहित वस्त्र बुनने की एक लंबी परंपरा रही है। इसे कच्चे माल, वृहत् बाजार, पूँजी, पत्तन तथा परिवहन की सुविधाएँ प्राप्त हैं। यह देश का 7.5 प्रतिशत सूती धागा तथा 26 प्रतिशत कारखाना निर्मित वस्त्र तैयार करता है। अहमदाबाद वृहत्तम सूती वस्त्रोद्योग केंद्र है जहाँ 51 कारखाने, देश के 12.7 प्रतिशत तकुए तथा 23 प्रतिशत करघे विद्यमान हैं। भरूंच, वडोदरा, राजकोट, भावनगर, कलोत, सूरत, खंभात, मोर्वी आदि राज्य के अन्य महत्वपूर्ण वस्त्रोत्पादक केंद्र हैं।
भारत विश्व का द्वितीय वृहत्तम सूती वस्त्र निर्यातक देश है। यद्यपि देश के कुल निर्यातों में विगत कुछ वर्षों में सूती धागे तथा वस्त्र का अंशदान प्रतिशत घटा है, फिर भी ये भारतीय निर्यातों की प्रमुख मदें हैं। 1960-61 में सूती धागे तथा वस्त्रों के निर्यात का कुल निर्यात मूल्य में 10.12 प्रतिशत योगदान था, जो 2002-03 में घटकर 6.4 प्रतिशत रह गया।
भारतरीय सूती वस्त्रों की ब्रिटेन, रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, आस्ट्रेलिया, फ्राँस, सिंगापुर आदि में बहुत माँग है।
वस्त्र उद्योग की समस्याएँ-
भारतीय सूती वस्त्र उद्योग एक कठिन दौर से गुजर रहा है। सरकार की टैक्सटाइल नीति तथा पावरलूम क्षेत्र के विकास ने कारखाना क्षेत्र को लगभग तोड़कर रख दिया है। एक तिहाई कारखाने अनार्थिक होने के कारण बंद कर दिये गये। 1992 तक 130 कारखाने बंद हो गए थे। इस उद्योग की निम्नलिखित समस्याएँ हैं-
(i) कच्चे मालों की बहुत कमी है जो कुल उत्पादन लागत का 35 प्रतिशत होते हैं। देश को लंबे रेशे वाली कपास पाकिस्तान, केन्या, युगांडा, सूडान, मिस्र, तंजानिया, संयुक्त राज्य अमेरिका, पीरू आदि से आयात करनी पड़ती है।
(ii) भारत के अधिकांश कारखाने पुराने तथा मशीनरी घिसी पिटी है। इससे उत्पादन कम तथा सामान की किस्म घटिया होती है।
(iii) शक्ति के साधनों की कमी उत्पादन को बाधिक करती है। बार-बार बिजली की कटौती उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है। इससे मानव-घंटों की हानि तथा निम्न उत्पादन होता है।
(iv) श्रम की निम्न उत्पादकता एक अन्य समस्या है। एक अमरीकी श्रमिक की उत्पादकता (यदि 100 मानी जाये) की अपेक्षा भारतीय श्रमिक की उत्पादकता 15 मात्र है। तनावपूर्ण औद्योगिक संबंध, हड़तालें, तालाबंदी आदि भारतीय सूती कारखाना उद्योग के प्रमुख तत्व हैं।
वस्त्र उद्योग की संभावनाएँ-
(i) 1 जनवरी, 2005 को कोटा व्यवस्था के समाप्त होने और WTO में वस्त्र उद्योग के पूर्णतः समेकित किये जाने के बाद भारतरीय वस्त्र उद्योग दौराहे पर खड़ा है। विगत कुछ वर्षों से वस्त्र संबंधी कानूनों, विनियमों तथा निरीक्षण प्रणाली को सुधार कर सूती वस्त्र उद्योग में वैकल्पिक सैनवैट व्यवस्था शुरू करके, मानव निर्मित रेशों पर शुल्कों का यौक्तिकीकरण करके, बुने हुए वस्त्र के क्षेत्र में लघु उद्योग आरक्षण हटाकर और बुनाई क्षेत्र में लघु इकाइयों के लिये निवेश सीमाएँ बढ़ाकर इस चुनौती और अवसर का सामना करने के लिये तैयारियाँ की जा रही हैं।
(ii) WTO करार (ए0टी0सी0) के समापन से वस्त्र व्यापार पर पड़ने वाले प्रभाव का अनुमान लगाने के लिये किये गये अधिकतर अध्ययनों का यह निष्कर्ष है कि कोटा व्यवस्था के टूटने से कुछ एशियाई देशों के लाभान्वित होने की बहुत संभावना है। वे चीन और भारत के बाजार हिस्से में पर्याप्त वृद्धि की भविष्यवाणी करते हैं। ‘क्रिसिल’ द्वारा हाल में किये गये एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 2010 तक भारतीय वस्त्र एवं परिधान उद्योग का संभावित आकार 85 बिलियन अमेरीकी डालर तक हो सकता है, जिसमें घरेलू बाजार 45 बिलियन अमेरीकी डालर तक होगा तथा निर्यातों का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा वस्त्र का होगा। यह संभावना नौकरी के 12 मिलियन अवसर सृजित करने में रूपांतरित होगी जिसमें 5 मिलियन अवसर प्रत्यक्ष रूप से वस्त्रोद्योग में तथा 7 मिलियन सहबद्ध क्षेत्रों में होंगे।
(iii) एक मजबूत विशाल बहुरेशा आधार, प्रचुर मात्रा में सस्ते कुशल श्रम, और कताई, बुराई और तैयारी से लेकर वस्त्रों के विनिर्माण तक की उद्योग की संपूर्ण मूल्य शृंखला की दृष्टि से भारत को स्वाभाविक प्रतिस्पर्धी लाभ प्राप्त है किंतु कोटा व्यवस्था के बाद बढ़ते अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और प्रतिस्पर्धा के कारण कीमतों के गिरने की संभावना के चलते यह लाभ पर्याप्त नहीं होगा। वैश्विक प्रतिस्पर्धा की उभरती चुनौती का साम करने के लिये कार्यदक्षता और उत्पादकता अत्यावश्यक है।
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