भारत में जल-विद्युत शक्ति | जल विद्युत उत्पादन के लिए आवश्यक भौगोलिक परिस्थितियाँ | भारत में विद्युत उत्पादन का वितरण | भारत में अणु शक्ति
भारत में जल-विद्युत शक्ति
भारत में वर्तमान समय में समस्त शक्ति (जल एवं तापीय) का उत्पादन 25 मिलियन किलोवाट वार्षिक है। सन् 1952 में विद्युत शक्ति का उत्पादन 204 मिलियन किलोवाट था जो कि 1993 में बढ़कर 445.8 मेगावाट हो गयी है। विद्युत उत्पादन में मुख्य रूप से तीन शक्ति स्रोतों का उपयोग हो रहा है-
(क) जल से जल विद्युत (Hydroelectricity)
(ख) कोयला-डीजल गैस से ताप विद्युत (Thermal Power)
(ग) परमाणु से परमाणु शक्ति (Atomic Energy)
(घ) सूर्य से सौर शक्ति (Solar Energy)
विद्युत के उत्पादन में डीजल एवं कोयले की अपेक्षा जल का स्थान अधिक महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि भारत में जहाँ कोयले एवं खनिज तेल के भंडार सीमित हैं जल शक्ति का महत्त्व स्वाभाविक रूप से अधिक है। विद्युत शक्ति के उत्पादन में प्रयुक्त जल का पुनः उपयोग सिंचाई आदि में करके प्रति इकाई विद्युत उत्पादन की लागत में कमी की जा सकती है। सौभाग्यवश हमारे देश में जल का अपरिमित भंडार है। भारतीय शक्ति आयोग के अनुसार देश के विभिन्न भागों में प्रवाहित होने वाली नदियों में विद्युत शक्ति की क्षमता 411 लाख किलोवाट है। इस प्रकार समस्त संभावित क्षमता का केवल 10 प्रतिशत अभी तक उपयोग किया जा रहा है। जबकि शेष क्षमता नष्ट होती जा रही है क्योंकि जल की शक्ति की क्षमता को सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है अर्थात् जो जल बह जाता है, उसके साथ उसकी क्षमता भी समाप्त हो जाती है।
तालिकाः विभिन्न नदियों द्वारा विद्युत उत्पादन की क्षमता
क्षेत्र |
क्षमता (लाख किलोवाट) |
पश्चिमी घाट से पश्चिम की ओर बहने वाली नदियां |
43 |
पश्चिमी घाट से पूर्व की ओर बहने वाली नदियाँ |
86 |
मध्य भारत की नदियाँ |
43 |
गंगा बेसिन (नेपाल को छोड़कर) |
48 |
असोम, मणिपुर तथा शेष पूर्वी भारत |
125 |
सिंध की सहायक नदियाँ |
65 |
योग |
411 |
जल विद्युत उत्पादन के लिए आवश्यक भौगोलिक परिस्थितियाँ
- पर्वतीय एवं पठारी धरातल- धरातल उबड़-खाबड़ होने से स्थान-स्थान पर प्राकृतिक प्रपात पाये जाते हैं अथवा प्रपात न होने पर भी प्रवाह-मार्ग में बाँध बनाने में सुविधा होती है।
- नदियों में पर्याप्त एवं सतत समान जल आपूर्ति- नदियों को उच्च पर्वतीय भागों से निकलना चाहिए जहाँ वर्ष भर हिम जमा रहती है जिससे उन्हें बराबर जल की आपूर्ति होती रहे।
- उत्पादन- क्षेत्र के आस-पास प्रतिद्वंद्वी शक्ति स्रोत नहीं होने चाहिए।
जहाँ तक विद्युत उत्पादन का संबंध है अलग-अलग राज्यों में स्थिति अलग-अलग प्रकार की पायी जाती है। देश में कुल प्रतिस्थापित क्षमता की दृष्टि से महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु एवं गुजरात राज्य अग्रणी है।
देश के अलग-अलग भागों में विद्युत उत्पादन के लिए अलग-अलग स्रोतों का महत्त्व पाया जाता है। उदाहरण के लिए ताप विद्युत उत्पादन की दृष्टि से कोयला उत्पादक राज्य अधिक महत्त्वपूर्ण है जबकि जल स्रोतों से परिपूर्ण एवं खनिज तेल अथवा कोयले के अभाव वाले राज्यों में जल विद्युत का महत्त्व अधिक पाया जाता है जैसे-तमिलनाडु केरल, कर्नाटक आदि।
भारत में विद्युत उत्पादन का वितरण
महाराष्ट्र-
भारत की जल विद्युत योजनाओं में टाटा जल विद्युत एजेंसी के तीन उत्पादन केंद्रों का विशेष महत्त्व है। ये तीनों समस्त भारत की उत्पादित जल विद्युत का लगभग आधे का उत्पादन करते हैं। इन तीनों केंद्रों को मिलाकर सम्बद्ध ग्रिड बना दिया गया है। ये शक्ति-केंद्र लोनवाला, नीलामूला तथा आंध्र नदियों की घाटियों में स्थित हैं। ये इंजीनियरिंग की कला के अद्भुत नमूने हैं। पश्चिमी घाट का पानी तेज बहने वाली नदियों द्वारा पूर्व की ओर बंगाल की खाड़ी तरफ बहता है। प्रवीण इंजीनियरों ने इस पानी को पश्चिम में लाकर बड़े जलाशयों में एकत्र किया है और बाद में इसे ऊँचाई से गिराकर शक्ति पैदा की जाती है।
(क) लोनवाला जलविद्युत केंद्र- भोरघाट के शिखर पर वर्षा का पानी तीन बड़ी झीलों में एकत्र किया जाता है। ये झीलें लोनवाला, बलवन और शिरावत हैं। इस पानी की पाइपों द्वारा पहाड़ की तलहटी में खोपोली नामक स्थान पर लगभग 575 मीटर की ऊँचाई से गिराया जाता है। जिससे खोपोली शक्ति ग्रह में 65 हजार किलोवाट विद्युत तैयार होती है।
(ख) नीलामूला जलविद्युत केंद्र- नीलामूला नदी के पानी को रोककर एक विशाल झील का निर्माण किया गया है। इस झील का जल सुरंग से होकर भीरा नामक स्थान पर 550 मीटर की ऊंचाई से गिराया जाता है। भीरा केंद्र में 110 हजार किलोवाट विद्युत का उत्पादन होता है।
(ग) आंध्र घाटी जलविद्युत केंद्र- आंध्र नदी के जल को रोककर और उसे लगभग 1300 मीटर लंबी सुरंग से निकालकर गिराते हैं इससे शिवपुरी शक्ति गृह में विद्युत तैयार की जाती है।
उक्त तीनों केंद्रों में अतिरिक्त प्रथम पंचवर्षीय योजना-काल में खापरखेड़ा, चोला एवं बल्लारशाह में ताप शक्ति गृह स्थापित किये गये हैं जो कि प्रतिवर्ष क्रमशः 10 हजार, 118 हजार एवं 24 हजार किलोवाट विद्युत का उत्पादन करते हैं। द्वितीय पंचवर्षीय योजना काल में ट्राम्बे ताप विद्युत केंद्र एवं अकोला ताप विद्युत केंद्र स्थापित किए गए, जिनकी उत्पादन क्षमता क्रमशः 337 हजार एवं 62 हजार किलोवाट है।
कर्नाटक-
जल से विद्युत बनाने का कार्य भारतवर्ष में सर्वप्रथम इस राज्य में ही प्रारंभ हुआ। उत्पादन क्षमता के आधार पर भारत में इस राज्य का आठवाँ स्थान प्राप्त है। यहाँ सर्वप्रथम कोलार की स्वर्ण खदानों को शक्ति की आपूर्ति के लिए यहाँ से 148 किमी0 दूर शिव- समुद्र विद्युत गृह का निर्माण किया गया। विद्युत की बढ़ती माँग की आपूर्ति हेतु शिवसमुद्र की क्षमता बढ़ाने के लिए कृष्णा राय सागर जलाशय का निर्माण करके इसकी क्षमता बढ़ा दी गई। तत्पश्चात् सन् 1940 में कावेरी की सहायक शिमसा नदी के प्रपात पर शिमसा विद्युत गृह का निर्माण कराया गया। सन् 1948 ई0 में जोगप्रपात या महात्मा गांधी परियोजना के अंतर्गत शिरावती नदी के जोगप्रपात से लगभग 5 किलोमीटर ऊपर बाँध तथा 3 किलो मीटर नीचे शक्ति गृह का निर्माण किया गया है जिसकी उत्पादन क्षमता 120 हजार किलोवाट है।
द्वितीय योजना काल में नदी के पूर्वी किनारे पर तुंगभद्रा पर 99 हजार किलोवाट क्षमता का तुंगभद्रा शक्तिगृह स्थापित किया गया। इसके अतिरिक्त भद्रावती से 30 किलोमीटर की दूरी पर तृतीय योजना में 3300 किलोवाट वाली भद्रावती जलविद्युत योजना के अतिरिक्त जोगप्रपात के निकट ‘श्रावस्ती योजना कार्यान्वित की गयी।
तमिलनाडु-
भारत में विद्युत शक्ति के उत्पादन में इस राज्य का स्थान तृतीय है। इस राज्य में संचालित प्रमुख जलविद्युत योजनाएँ निम्न हैं।
(i) पायकारा योजना- पायकारा नदी के एक प्रपात के निकट 1932 ई० में प्रारंभ की गयी। इसकी क्षमता 70,000 किलोवाट है।
(ii) मैटूर योजना- सन् 1937 में कावेरी नदी पर बाँध बनाकर ‘स्टैनली’ झील का निर्माण किया गया है। इसकी क्षमता 3,00,000 किलोवाट है।
(iii) पानाशनम् योजना- इस योजना को 1938 ई0 में प्रारंभ किया गया, जिसके अंतर्गत ताम्रपर्णी नदी पर पापनाशनम् जलप्रपात से लगभग 21000 किलोवाट विद्युत प्राप्त की जा रही है।
(iv) मोयार शक्ति गृह- प्रथम योजनाकाल में प्रारंभ की गयी।
(v) नवीन पैकारा योजना- इनकी क्षमता क्रमशः 36,000 एवं 27000 किलोवाट है।
(v) तमिलनाडु ताप विद्युत गृह- क्षमता 30 हजार किलोवाट।
हिमांचल प्रदेश-
इस राज्य में मुख्य रूप से निम्न जल विद्युत योजनाएँ कार्यान्वित की गयी हैं-
(1) मंडी जल विद्युत योजना- (क) प्रथम सोपान में व्यास की सहायक उहल नदी पर एक बाँध बनाकर जलप्रवाह का मार्ग को मोड़ दिया गया। इस धारा को 3मीटर चौड़ी एवं 4330 मीटर लंबी एक सुरंग से निकालकर 610 मीटर की ऊंचाई से जोगिंदर नगर के निकट गिराया जाता है। यहीं शक्ति गृह भी स्थापित किया गया है जिससे 50,000 किलोवाट विद्युत का उत्पादन हो रहा है। (ख) मंडी जल विद्युत योजना के द्वितीय सोपान के अंतर्गत उहल नदी पर एक बाँध बनाकर कृत्रिम प्रपात बनाया गया है, जिससे 20 हजार किलोवाट विद्युत का उत्पादन हो रहा है। (ग) उक्त योजना के तृतीय सोपान में उहल नदी पर स्थित शानौन नामक स्थान पर एकत्रित जल को एक नहर द्वारा ले जाकर 365 मीटर की ऊंचाई से गिराया जा रहा है।
(2) रिहंद जल विद्युत योजना- अब सोनप्रद जनपद में स्थित है जिसके अंतर्गत रिहंद नदी पर बाँध बनाया गया है। रिहंद नदी सोन की सहायक है। इसकी क्षमता 3 किलोवाट है।
(3) माताटीला जलविद्युत योजना- इसकी क्षमता 30 हजार किलोवाट हैं।
(4) यमुना जलविद्युत योजना- क्षमता 424 हजार किलोवाट है।
(5) रामगंगा जलविद्युत योजना- क्षमता 165 हजार किलोवाट है।
गुजरात-
इस राज्य में संचालित प्रमुख जल विद्युत योजनायें निम्न हैं-
(1) काकरापारा बाँध योजना- इसके अंतर्गत ताप्ती नदी पर काकरापारा नामक स्थान पर एक बाँध बनाया गया है। बाँध की लंबाई 652 मीटर एवं ऊँचाई 135 मीटर है। यहाँ पर स्थापित शक्तिगृह से 2 लाख किलोवाट से अधिक जल विद्युत पैदा की जाती है।
(2) उत्तरी गुजरात योजना- इसे अहमदाबाद विद्युत कंपनी ने तैयार किया है जिससे विद्युत आपूर्ति को बढ़ाया जा सका है।
आंध्रप्रदेश-
इस राज्य की प्रमुख जल विद्युत योजनाएँ निम्नलिखित हैं-
(1) मचकुंड जल विद्युत प्रणाली- आंध्र तथा ओडिशा राज्यों की सम्मिलित योजना है। इसमें आंध्रप्रदेश का हिस्सा 70 प्रतिशत है। इसकी क्षमता 1,29,750 किलोवाट है।
(2) तुंगभद्रा योजना- आंध्रप्रदेश एवं तमिलनाडु की सम्मिलित योजना है जिसमें आंध्रप्रदेश का हिस्सा 80 प्रतिशत है।
बिहार-
यहां अनेक ताप विद्युत गृह कार्यरत हैं। जल विद्युत योजनाएँ दो हैं-
(1) दामोदर घाटी योजना- क्षमता 254 हजार किलोवाट है।
(2) दामोदर घाटी योजना- क्षमता 20 हजार किलोवाट है।
पश्चिम बंगाल में जल ढाका नदी से 20 मेगावाट जलविद्युत पैदा की जा रही है। असम में शिलोंग-गोहाटी मार्ग पर बारामती पुल से चार किलोमीटर नीचे उर्मिया नदी पर एक बाँध- बनाया गया है। यहाँ 27 हजार किलोवाट विद्युत पैदा की जा रही है। मध्यप्रदेश में चंबल जल विद्युत योजना के अंतर्गत दो जल विद्युत योजनाएँ कार्यान्वित की गयी हैं जिसमें 30 हजार तथा 20 हजार किलोवाट क्षमता के दो शक्ति गृह बनाए गए हैं।
भारत में अणु शक्ति
इस शक्ति का विकास द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद शक्ति के स्रोत के रूप में हुआ है। इसके विकास के लिए बहुत अधिक पूंजी की आवश्यकता होती है फिर भी अणुशक्ति का उत्पादन प्रति इकाई सस्ता होता है क्योंकि एक पौंड यूरेनियम की शक्ति 25 लाख पौण्ड की शक्ति के बराबर होती है। हमारे देश में अणुशक्ति के विकास का भविष्य उज्ज्वल है।
अणुशक्ति के उत्पादन के लिए दो प्रमुख पदार्थ थोरियम एवं यूरेनियम आवश्यक होते हैं जो कि हमारे देश में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हैं। थोरियम की प्राप्ति मोनाजाइट नामक खनिज से होती है और भारत में विश्व का लगभग 80 प्रतिशत मोनाजाइट पाया जाता है इसका अनुमानित भंडार 20 लाख टन है। यह मुख्य रूप से केरल राज्य के समुद्र तट पर पाया जाता है। विश्व का सर्वाधिक मोनाजाइट यहीं विद्यमान है। नवीनें खोजों से कुछ और क्षेत्रों का पता लगा है। उदाहरणार्थ तमिलनाडु के तिनेवली, आंध्रप्रदेश के विशाखापट्टनम, कर्नाटक के बंगलौर तथा बिहार के कुछ जनपद में वर्तमान समय में बिहार का मोनोजाइट भंडार विश्व के सबसे बड़े भंडारों में गिना जा रहा है।
यूरेनियम के भंडार बिहार के सिंहभूमि जनपद में प्राप्त हुए हैं। यहाँ से प्रति वर्ष 35 लाख टन यूरेनियम अयस्क निकाला जा रहा है। इसके अतिरिक्त गुजरात के कच्छ, हिमाचल प्रदेश के कुलू एवं मनासु तथा उत्तर प्रदेश के चमोली में भी यूरेनियम पाया जाता है।.
अणु शक्ति उत्पादन के लिए अन्य पदार्थों में जिरकोनियम, बेरिलियम एवं लिथियम भी हैं। भारत में ये सभी पदार्थ पाये जाते हैं। जिरकोनियम की प्राप्ति इलेंमनाइट नामक खनिज से होती है और भारत में इस खनिज का भंडार लगभग 35 करोड़ टन है जो कि विश्व का सबसे बड़ा भंडार माना जाता है। यह मुख्य रूप से केरल और महाराष्ट्र के समुद्र तट की रेत में पाया जाता है। नवीन खोजों से इसकी प्राप्ति की संभावना बिहार में भी है। बेरिलियम की प्राप्ति बेरिल नामक खनिज से होती है जो बिहार, आंध्रप्रदेश एवं राजस्थान में पायी जाती है। लिथियम भी भारत के अनेक भागों में पाया जाता है।
भारत सरकार परमाणु शक्ति के विकास के लिए सतत प्रयत्नशील है। इसके विकास के लिए सन् 1948 में ‘परमाणु ऊर्जा आयोग’ (Atomic Energy Commission) की स्थापना की। गयी औरसन् 1945 में ‘अणु शक्ति विकास नियम’ की स्थापना की गयी है। सरकारी प्रयासों के फलस्वरूप बंबई के निकट ट्राम्बे द्वीप पर एक परमाणु भट्टी का निर्माण किया गया है। प्रथम परमाणु भट्ठी का निर्माण कार्य देशी वैज्ञानिकों द्वारा पूर्ण किया जा चुका है। यह एशिया में अपने किस्म की सबसे बड़ी परमाणु भट्टी है। इसी शक्ति के विकास की दिशा में मई 1974 ई0 में राजस्थान में आणविक विस्फोट भी किया गया।
वर्तमान परमाणु ऊर्जा के अंतर्गत महाराष्ट्र में नागपुर, राजस्थान में राणाप्रताप सागर और तमिलनाडु के कलपक्कम-तीन परमाणु विद्युत गृहों की स्थापना की गयी है। तारापुर का परमाणु विद्युत गृह बंबई से 95 किलोमीटर उत्तर में 50 करोड़ रुपये की लागत से स्थापित किया गया है। यहाँ 4 लाख किलोवाट विद्युत का उत्पादन हो रहा है। इसकी क्षमता 320 मेगावाट है। अणु शक्ति से विद्युत तैयार करने वाला भारत का यह प्रथम शक्ति गृह है और इससे महाराष्ट्र एवं गुजरात के विशाल क्षेत्रों को विद्युत की पूर्ति हो रही है। राणाप्रताप सागर का परमाणु विद्युत गृह कोटा से 67 किलोमीटर उत्तर-पश्चिम में और गांधी सागर बाँध से 34 किलोमीटर उत्तर-पूर्व में स्थित है। इसकी उत्पादन क्षमता 4 लाख किलोवाट है। कलपक्कम का परमाणु विद्युत गृह मद्रास से 64 किलोमीटर दूर और महावालिपुरम मंदिर से 6 किलोमीटर की दूरी पर निर्मित है। इसकी क्षमता 470 मेगावाट है।
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