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पेन्क की अपरदन-चक्र संकल्पना | अपरदन-चक्र के बारे में पेन्क की संकल्पना की विवेचना

पेन्क की अपरदन-चक्र संकल्पना | अपरदन-चक्र के बारे में पेन्क की संकल्पना की विवेचना | Penck’s Erosion Cycle Concept in Hindi | Discussion of Penck’s concept about the cycle of erosion in Hindi

पेन्क की अपरदन-चक्र संकल्पना

(Penck’s conception of the cycle of erosion)

जर्मन भू-वैज्ञानिक वाल्टर पेन्क (Walther Penck) डेविस के सबसे प्रमुख आलोचक रहे हैं। पेन्क ने डेविस की इस संकल्पना की आलोचना इसलिए की हैं कि इस संकल्पना में अपरदन स्थल-खण्ड के पूर्ण उत्थान के बाद प्रारम्भ होता है तथा उत्थान थोड़े समय तक होता है और अपरदन की लम्बी अवधि में स्थल-चक्र स्थिर रहता हैं पेन्क ने डेविस की अवस्था- सकल्पना (Stage concept) से भी अपनी असहमति प्रकट की है, और लम्बी अविध तक स्थिर स्थल-खण्ड पर भू-दृश्यों के चक्रात्मक विकास को विशेष ओर असाधारण बतलाया है। पेन्क के अनुसार भू-दृश्य उत्थान की प्रावस्था एवं दर (Phase and rate of uplift) और निम्नीकरण (Degradation के परस्पर क्रिया  का प्रतिफल है। अर्थात् स्थलरूप का निर्माण उत्थान की दर और कटाव की दर से निर्धारित होता है। पेन्क ने डेविस की तीन अवस्थाओं (Stages) के स्थान पर तीन प्रावस्थाओं (Phases) का जिक्र किया है। इन प्रावस्थाओं का सम्बन्ध उत्थान की गति से है। इन तीन प्रावस्थाओं में उत्थान एवं निम्नीकरण की विभिन्न दरों के कारण विभिन्न प्रकार की ढालों का विकास होता है जिससे विभिन्न स्थलाकृतियाँ उत्पन्न होती हैं। प्रारम्भ में उत्थान अधिक तीव्र, बीच में समान रूप से और उत्थान के अन्त में घटती दर से होता है। एक सीमा के बाद उत्थान रूक जाता है और वहाँ से स्थल-खण्ड का पतन होने लगता है।

पेन्क ने अपरदन-चक्र के प्रारम्भ होने के लिए एक नीचा आकृतिहीन मैदान की कल्पना की है जिसका नाम उन्होंने प्राइमारूम्फ (Primarrumpf) दिया है। प्राइमारूम्फ एक प्रारम्भिक समप्राय मैदान (Peneplain) से मिलता-जुलता होता है, जिसमें न अधिक ऊंचाई होती है और न महत्वपूर्ण उच्चावच प्रारम्भ में जब स्थल-खण्ड समुद्र तल से उठने लगता है, तो उत्थान इतनी धीमी गति से होता है कि निम्नीकरण और उत्थान लगभग बराबर होता है, और भू- वैज्ञानिक संरचना चाहे कुछ भी हो, एक नीचा, उच्चावचहीन धरातल का निर्माण होता है जिसे प्राइमारूम्फ कहते हैं। पेन्क के अनुसार यही प्रारम्भिक भ्वाकृति ईकाई (Universal initial geomorphic Unit) होती है जिस पर उत्थान और निम्नीकरण की विभिन्न दरों द्वारा स्थल-रूपों का विकास होता है। डेविस ने भी अत्यन्त धीमे उत्थान वाले क्षेत्र में इस प्रकार के धरातल के निर्माण की कल्पना की है जिसे उन्होंने “Old-from birth peneplain” का नाम दिया है। निम्नीकरण से अन्त में जो अन्तिम मैदान (terminal plain) बनता है उसे पेन्क एन्डरूम्फ (Endrumpt) की संज्ञा देते हैं। एन्डरूम्फ निम्नीकरण की अन्तिम अवस्था है, और चक्र का अन्तिम रूप है। इसका रूप डेविस के पेनिप्लेन से मिलता-जुलता है।

पेन्क की चक्र संकल्पना का ग्राफ द्वारा प्रदर्शन

इस ग्राफ में ऊपरी वक्र अधिकतम औसत ऊँचाई को प्रदर्शित करता है, और निचला वक्र घाटी-तली की औसत ऊचाई को दिखलाता है। पूरे चक्र को पाँच अवस्थाओं में विभक्त किया गया है, किन्तु इसका मतलब उच्चावच के विकास की दशाओं से है जो उत्थान की गति और निम्नीकरण की दर से सम्बन्ध रखती हैं। पहली दशा में जब प्राइमारूम्फ के उत्थान के साथ अपरदन शुरू होता है, तो अपरदन की अपेक्षा उत्थान अधिक होता है। अतः स्थल-खण्ड की ऊँचाई और उच्चावच दोनों में वृद्धि होती है। द्वितीय दशा में घाटियों के चौड़ी होने से दो नदियों  के बीच की भूमि नुकीली हो जाती है और घाटी तथा ऊपर की चोटियाँ दोनों में कटाव का दर एक होने के कारण उच्चावच में विशेष अन्तर नहीं होता। किन्तु उत्थान की दर अपरदन की दर से अधिक होने के कारण निरपेक्ष ऊँचाई बढ़ जाती है। तीसरी दशा में भी स्थल-खण्ड का उत्थान सक्रिय रहता है, और उत्थान के प्रभाव से नदियाँ नीचे की ओर कटान जारी रखती हैं। अपरदन की दर उत्थान की दर के समान होती है। अतः निरपेक्ष ऊँचाई और उच्चावच दोनों स्थिर रहते हैं। चौथी दशा के प्रारम्भ में उत्थान समाप्त हो जाता है, पर अपरदन दोनों चक्रों पर सक्रिय रहता है। अपरदन में वृद्धि के कारण ऊँचाई में ह्रास होता है, किन्तु उच्चावच स्थिर रहता है, अर्थात् दोनों वक्र एक दूसरे के समानानतर रहते हैं। पाँचवीं अथवा अन्तिम दशा में घाटियों का नीचे की ओर कटना धीमा पड़ जाता है, और घाटियों में पार्शिवक कटाव अधिक होता है। जल-विभाजक की चोटियाँ तथा कटक (ridges) घिस कर गोलाकार हो जाते हैं और उनकी ऊँचाई भी कम होती जाती है। अतः निरपेक्ष ऊंचाई तथा उच्चावच दोनों में ह्रास होता जाता है।

चित्र- पेन्क की संकल्पना का ग्राफ द्वारा प्रदर्शन।

उपरोक्त दशायें प्राकृतिक अथवा अवश्यमभावी नहीं हैं बल्कि सम्भव हैं, और मुख्यतः उत्थान की दर और निम्नीकरण की दर के पारस्परिक सम्बन्ध पर निर्भर हैं। उच्चावच केवल प्रथम दशा में बढ़ता है, दूसरी तीसरी और चौथी दशाओं में स्थिर रहता है; और अन्मि दशा में घटने लगता है। पहली दशा में उत्थान की दर निम्नीकरण की दर से अधिक होती है, और दूसरी और तीसरी दशाओं में लगभग बराबर। उत्थान चौथी दशा के प्रारम्भ तक समाप्त हो जाता है और इसके बाद केवल अपरदन अथवा निम्नीकरण की क्रिया चलती है।

पेन्क के अनुसार स्थल-रूपों का निर्माण ढालों से होता है, और ढालों का रूप अपरदन की तीव्रता (intensity of erosion) पर निर्भर है, और अपरदन की तीव्रता मुख्यतः भू-संचलन अर्थात् उत्थान की प्रकृति से नियन्त्रित होती है। जब तीव्र उत्थान की अवस्था में अपरदन की तीव्रता अधिक रहती है, तो घाटियों के ढाल उत्तल (Convex) होते हैं। इसके विपरीत जब अपरदन की तीव्रता कम रहती है, तो घाटियों के ढाल अवतल (Concave) होते हैं, और जब अपरदन की तीव्रता स्थिार (Constant) रहती है तो ढाल सम (Uniform) होते हैं। वास्तव में पेन्क ने अपनी संकल्पना में ढाल के विकास पर बहुत बल दिया है।

यह कहना सही नहीं होगा कि पेन्क की संकल्पना डेविस की संकल्पना से अधिक प्रयोगात्मक या प्रभावकारी है। पेन्क ने डेविस की संकल्पना की कुछ कमजोरियों पर अवश्य हमारा ध्यान आकृष्ट किया है, लेकिन उनकी संकल्पना को एक वैकल्पिक संकल्पना के रूप में स्वीकार करने में कठिनाईयाँ हैं। इतना कहा जा सकता है कि पेन्क ने एक नया दृष्टिकोण रखा है, और खोज की एक नई सम्भव दिशा बतलायी है। लेकिन डेविस की संकल्पना इससे कहीं अधिक महत्वपूर्ण और सार्थक है, और इसका भू-आकृति विज्ञान में एक विशिष्ट स्थान है। भू- आकृति विज्ञान की सम्पूर्ण विचारधारा डेविस की संकल्पना से प्रभावित है। इस संकल्पना की मुख्य सार्थकता इसमें है कि भू-दृश्यों के क्रमिक विकास पर यह बल देता है और इसके आधार पर उत्पत्ति के अनुसार उनका वर्गीकरण (genetic classification) सम्भव होता है।

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Pankaja Singh

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