भूगोल

भू संतुलन के एअरी तथा प्राट के विचार | भू संतुलन के एअरी तथा प्राट के विचारों की तुलना

भू संतुलन के एअरी तथा प्राट के विचार | भू संतुलन के एअरी तथा प्राट के विचारों की तुलना | Ari and Prat’s ideas of land balance  in Hindi | Comparison of Ari and Pratt’s ideas of land balance in Hindi

भू संतुलन के एअरी तथा प्राट के विचार

भू संतुलन का सिद्धान्त भूगोल वेत्ताओं द्वारा प्राप्त एक विशेष ज्ञान है। सन् 1859 ई. में सिन्ध गंगा के मैदान के आक्षाशों के निर्धारण हेतु भू सर्वेक्षण (geodetic survey) भारत के सर्वेश जनरल सर जार्ज एवरेष्ट के निर्देशन में हो रहा था। उस समय कल्याण तथा कल्याण पुट नामक दो स्थानों का अंक्षाशी मान त्रिभुजीकरण तथा खगोलीय विधि के अनुसार लिया गया तो दोनों मापों में 5.263 का अन्तर आ गया कल्याण हिमालय से मात्र 60 मील की दूरी पर स्थित था। इस प्रकार जब दोनों मापो में अन्तर आने कारण पूछा गया तो एयरी महोदय ने बताया कि यह अन्तर हिमालय पर्वत की निकटता के कारण था क्यों कि हिमालय अपनी आकर्षक शक्ति से पेण्डुलम को आकर्षित कर रहा था।

एअरी की संकल्पना (Airy Regarding Isostasy)

एयरी ने बताया है कि हिमालय का आन्तरिक भाग खोखला नहीं हो सकता है। वास्तव में अधिक पदार्थ का भार नीचे से कम पदार्थ द्वारा संकुचित हो जाता है। उन्होंने सर्वप्रथम इस मत का सुझाव दिया कि पृथ्वी की क्रस्ट पपड़ी अधिक घनत्व वाले अधःस्तर (substratum) में तैर रही है। अर्थात् सियाल (Sial) सीमा (Sima) पर तैर रहा है। इस प्रकार हिमालय भारी ग्लासी मैगमा में तैर रहा है। उन्होंने आगे पुनः स्पष्ट किया कि हिमालय केवल धरातलीय आकृति हो नहीं है तथा केवल अधःस्तर के ऊपरी भाग तक ही नहीं तैर रहा है वरन् काफी नीचे तक प्रविष्ट है। जिस प्रकार एक नाव पानी में तैरती है तथा उसका अधिकांश भाग जल में डूबा रहता है उसी प्रकार हिमालय भी अधिक घनत्व वाले मैगमा में तैर रहा है तथा उसका अधिकांश भाग नीचे काफी गहराई तक व्याप्त है। इस विचार को दूसरे रूप में भी समझाया जा सकता है। जिस प्रकार बर्फ का टुकड़ा (iceberg प्लावी हिम शैल) जब जल में तैरता है तो उसके एक भाग को जल के ऊपर रहने के लिए उसके नौ भाग का जल में रहना आवश्यक उसी प्रकार यदि महाद्विपीय भागों का औसत घनत्व 2.67 तथा सबस्ट्रेटम का 3.00 मान लिया जाय तो क्रस्ट के प्रत्येक भाग को सबस्ट्रैटम के ऊपर रहने के लिए क्रस्ट के 9 भाग को सबस्ट्रैटम के नीचे रहना पड़ेगा। यहाँ पर यह स्मरणीय है कि एयरी ने आसवर्ग- के तैराव (fioatation) का उद्धरण प्रस्तुत नहीं किया है, वरन् उन्होंने इतना ही बताया है कि स्थल भाग मैगमा पर नाव की तरह तैर रहा है। यदि तैराव के उपर्युक्त सिद्धान्त को एयरी के सिद्धान्त में प्रयुक्त किया जाय तो हिमालय जितना ऊपर (8848 मीटर) है उसका नौ गुना भाग नीचे की तरफ होगा। यदि हिमालय की ऊंचाई मौटे तौर पर 8848 मीटर मान ली जाय तो 8848 x 9 = 79,632 मीटर तक का भाग जो कि हल्के पदार्थ का होगा, सबस्ट्रैटम में होगा।

इस प्रकार एयरी ने बताया कि हिमालय अपनी वास्तविक आकर्षण शक्ति का प्रयोग कर रहा है, क्योंकि इसकी हल्के पदार्थ वाली एक लम्बी जड़ है जो कि सबस्ट्रैटम में है तथा वाली एक लम्बी जड़ ऊपर के पदार्थ को संतुलित कर देती है। इन आधारों पर एयरी ने अपने इस मत का प्रतिपादन किया कि जो भाग अधिक ऊंचा होगा उसका अधिक भाग सबस्ट्रैटस में डूबा होगा तथा जो भाग कम ऊंचा होगा उसका कम भाग डूबा रहेगा।

सर जार्ज एयरी के अनुसार संतुलन की स्थितिः-

एयरी ने पुनः बताया कि विभिन्न स्तम्भों (columns) का घनत्व बराबर होता है तथा उनकी गहराई में परिवर्तन होता है’ (uniform density with varying thickness)

अर्थात् महाद्विपीय भाग एक ही प्रकार के घनत्व वाले शैलों का नबा है परन्तु उसके विभिन्न भागों की गहराई में पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। इस बात को प्रमाणित करने के लिए एयरी ने लोहे के विभिन्न आकार तथा लम्बाई वाले टुकड़े लिए तथा उन्हें पारे से भी बेसिन में डुबो दिया। ये टुकड़े अपने आकार के अनुसार भिन्न-भिन्न गहराई तक डूबते गये। इसी बात को लकड़ी के टुकड़ों को जल में डुबो कर भी प्रमाणित किया जा सकता है।

सारांश में एयरी के मत को इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है कि ऊंचे उठे भाग काफी गहराई तक अपनी लम्बी जड़ से सबस्ट्रैटम के अधिक घनत्व वाले भाग को हटा देते हैं, जिस कारण ऊँचे उठे भागों के नीचे काफी गहराई तक हल्के पदार्थ का विस्तार होता है। ऐसा पर्वतों के विषय में होता है। इस प्रकार वे संतुलित होकर पृथ्वी पर स्थित है। इसके विपरीत कम ऊंचे भाग अथवा निचले भाग कम गहराई तक प्रविष्ट होते है, अतः वे अधिक घनत्व वाले भाग को थोड़ी मात्रा में ही हटा पाते हैं, जबकि उसके नीचे सबस्ट्रैटम का अधिक घनत्व वाला पदार्थ अधिक मात्रा में होता है। इस प्रकार ऊँचे उठे भाग तथा निचले भाग एक साथ संतुलित होकर खड़े रहते हैं। प्रत्येक भाग (column) संतुलन तल या संतुलन रेखा पर बराबर भार रखते हैं।

यद्यपि वर्तमान समय में एयरी के मत को सबसे अधिक समर्थन प्राप्त है तथापि इसमें भी कुछ दोष अवश्य है। यदि एयरी के मत को मान्यता प्रदान की जाती है तो प्रत्येक ऊपर स्थित भाग अपनी ऊंचाई के अनुसार नीचे की तरफ जड़ रखते है। इस प्रकार हिमालय की लगभग 79,632 मीटर गहरी जड़ होगी (8848 x 9 = 79,632 मीटर)। यह भी ज्ञात तत्य है कि ऊपरी भाग से पृथ्वी के नीचे जाने पर तापमान प्रति 32 मीटर पर 1° सेण्टीग्रेड बढ़ जाता है । इस प्रकार हिमालय की इतनी लम्बी जड़ 79,632 मीटर की गहराई पर अत्यधिक ताप के कारण पिघल जायेगी। अतः यह मत यहाँ पर भ्रामक प्रतीत होता है।

प्राट की संकल्पना : प्राट महोदय ने कल्याण तथा कल्याणपुर के लिए गये अक्षाशीय माप के अन्तर (5.236″) को भली-भांति पढ़ा तथा हिमालय का औसत घनत्व 2.75 मानकर उसकी आकर्षण शक्ति की गणना की तो पता चला कि यह अन्तर 15.885 का होना चाहिए था। प्राट हिमालय की चट्टानों तथा समीपवर्ती मैदान की चट्टानों के अध्ययन के आधार पर बताया कि पहाड़ों का घनत्व पठारों से कम, पठारों का मैदानों से कम तथा मैदानों का घनत्व समुद्र तली से कम होता है। अर्थात् ऊँचाई एवं घनत्व में उल्टा अनुपात होता है। प्राट के अनुसार एक क्षतिपूर्ति तल (level of compensation) होता है, जिसके ऊपर घनत्व में अन्तर पाया जाता है, तथा नीचे समान घनत्व होता है। एक स्तम्भ में घनत्व नहीं बदलता है, परन्तु एक स्तम्ब से दूसरे स्तम्भ में घनत्व में अन्तर पाया जाता है। इस प्रकार प्राट ने अनपे प्रमुख मत (uniform depth with varying density) का प्रतिपादन  किया।

प्राट के अनुसार पृथ्वी में एक सीमित क्षेत्र होता है, जिसमें घनत्व में अन्तर पाया जाता है। क्षतिपूर्ति रेखा के सहारे धरातल के बराबर क्षेत्र के नीचे बराबर द्रव्यमान (mass) होना चाहिए, इस तथ्य को एक उदाहरण द्वारा समझाया जा सकता है।

समतोल रेखा के सहारे दो स्तम्भ है। अ तथा ब के धरातलीय क्षेत्र बराबर हैं, परन्तु उनकी ऊँचाई में पर्याप्त अन्तर है। लेकिन दोनों का चार संतुलन के लिए कम्पनसेशन रेखा के सहारे बराबर होना चाहिए (equal mass must underlie equal surface area) इसके लिए अ स्तम्भ का घनत्व कम तथा ब स्तम्भ का घनत्व अधिक होना चाहिए ताकि दोनों का भार संतुलन रेखा पर बराबर हो सके। इस प्रकार प्राट ने इस मत का प्रतिपादन किया कि ऊँचाई तथा घनत्व का उल्टा अनुपात होगा- ऊँचा स्तम्भ, कम घन्तव, नीचा स्तम्भ, अधिक घनत्व (bigger the column Lesser the density, smaller the column, greater the density) प्राट के अनुसार घनत्व में अन्तर केवल स्थलमण्डल में होता Pyrosphere तथा Baqrysphere में नहीं होता है। इस प्रकार प्राट का विश्वास तैराव के नियम (law of floatation) में ने होकर क्षतिपूर्ति तल नियम (law of compensation) में था। प्राट के अनुसार पृथ्वी के विभिन्न उच्चावच्च इसलिए रूके हैं कि उनके घनत्व में अन्तर पाया जाता है, परन्तु उनका भार संतुलन रेखा के सहारे बराबर होता है।

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Pankaja Singh

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