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शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात | ध्रुवीय वाताग्र सिद्धान्त | शीतोष्ण चक्रवात की विशेषताएँ | शीतोष्ण चक्रवात के मौसम | शीतोष्ण चक्रवातों का भौगोलिक वितरण | शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति

शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात | ध्रुवीय वाताग्र सिद्धान्त | शीतोष्ण चक्रवात की विशेषताएँ | शीतोष्ण चक्रवात के मौसम | शीतोष्ण चक्रवातों का भौगोलिक वितरण | शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों की उत्पत्ति | Temperate Cyclones in Hindi | polar front theory Characteristics of temperate cyclones in Hindi | temperate cyclone season in Hindi | Geographical distribution of temperate cyclones in Hindi | Origin of temperate cyclones in Hindi

शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात (Temperature cyclones) :

शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात मध्य अक्षांशों में चलते हैं। इनकी उत्पत्ति उत्तरी एटलांटिक महासागर में  आइसलैंड के निकट तथा उत्तरी प्रशांत महासागर में एल्युशियन द्वीपों के दक्षिण में होती है। दक्षिणी गोलार्द्ध में भी इनकी उत्पत्ति 30° तथा 45° अक्षाशों में होती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में इनकी आवृत्ति तथा नियमितता अधिक होती है।

वाताग्र (Front) – वायु राशि के अगले भाग को वाताम्र कहते हैं। वाताओं को तीन वर्गो में विभाजित किया जा सकता हैं।

शीत वाताग्र (Cold front) -ठड़ी वायु राशि के अगले भाग को शीत वाताग्र कहते हैं। शीत वाताग्र को मौसम मानचित्र पर त्रिभुजाकार नोंकों (skipes) के द्वारा दिखाया जाता है। शीतवाताग्र की गति गर्म वायु राशि की तुलना में अधिक होती है।

ऊष्ण वाताग्र (Warm front)- ऊष्ण वाताग्र के अगले भाग को अर्द्ध वृत्त के द्वारा दिखाया जाता है जो गति की दिशा की ओर बने हुए होते हैं। उष्ण वाताग्र की गति, ठंडे वाताम्र की गति की तुलना में कम होती है।

अवरूद्ध अथवा मिश्रित वाताग्र (Occluded front) – ऊपर उठती ऊष्ण वाताग्र तथा उसके क्षेत्र में प्रवेश करने वाले ठंडे वाताग्र जब एक दूसरे में मिश्रित हो। जायें तो उसको अवरूद्ध वाताग्र कहते है।

शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति (Cyclogenesis) – शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति को साइकलोजेनेसिस (cyclogenesis) कहते हैं। सामान्यतः एक शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति में तीन दिन से लेकर दस दिन तक लग सकते हैं।

ध्रुवीय वाताग्र सिद्धान्त (Polar Front Theory) –

एक आगे बढ़ती हुई वायु का अगला सिरा वाताग्र कहलाता है। बीसवीं शताब्दी के प्रथम चतुर्थाश के नार्वे के मौसम विशेषज्ञ  वी. बिरकनेस (V. Bicrkness-1962-1951) और उसके पुत्र जेकब बिरकनेस (Jacob Bicrknes) ने शीतोष्ण चक्रवात की उत्पत्ति का ध्रुवीय सिद्धान्त प्रस्तुत किया था यह सिद्धान्त मौसम की पूर्व सूचना देने और मौसम की व्यख्या एवं भविष्यवाणी के लिए उपयोगी सिद्ध हुआ। इस सिद्धान्त के अनुसार किसी शोतोष्ण चक्रवात की उत्पत्ति निम्न छह चरणों में होती है

प्रथम चरण (Stage I) – इस अवस्था में ऊष्ण वायुराशि तथा ठंडी राशियाँ एक दूसरे के समानान्तर स्थित होती है, और वायुमण्डल लगभग शान्त होता है।

दूसरा चरण (Stage II) – इसको चक्रवात की आरम्भिक अवस्था कहते हैं। इस अवस्था में ऊष्ण वायुराशि ऊपर उठने लगती है तथा ठंडी वायुराशि, गर्म वायुराशि की ओर अग्रसर होती है।

तीसरा चरण (Stage III) – इस अवस्था में गर्म तथा ठंडी वायु राशियाँ एक दूसरे के निकट आ जाती हैं।

पाँचवा चरण अवस्था (Stage V) – इस अवस्था में गर्म तथा ठंडी वायु राशियाँ मिश्रित हो जाती है।

छठा चरण (Stage VI) – इस अवस्था में ऊष्ण सेक्टर पूर्णरूप से लूप्त हो जाता है। और चक्रवात पूर्णरूप से विकसित हो कर आगे बढ़ने लगता है।

शीतोष्ण चक्रवात की विशेषताएँ (Characteristic of Temperate Cyclones):

  1. इनसे हल्की वर्षा फुहार के रूप में होती है, कभी-कभी तेज बौछार पड़ती है।
  2. वर्षा में कोहरा का मौसम बना रहता है।
  3. चक्रवात के अन्तिम भाग में बिजली की चमक तथा बादलों की गरज- कड़क होती है।
  4. झंझा और तड़ित के पश्चात मौसम साफ हो जाता है, आकाश नीला हो जाता है। तथा प्रतिचक्रवात की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
  5. इनकी उत्पत्ति महासागरों के उन क्षेत्रों में होती है जहाँ उष्ण कटिबंधीय वायु, शीत कटिबंधीय वायु से मिलती है।
  6. इनकी सामान्य दिशा उत्तरी गोलार्द्ध में पश्चिम से पूर्व की ओर होती है।
  7. प्रत्येक शोतोष्ण चक्रवात की गति भिन्न होती है, परन्तु अधिकतर चक्रवात 30 से 50 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से आगे बढ़ते हैं।
  8. शीतोष्ण चक्रवात की सम्भार रेखायें लगभग अण्डाकार होती है।
  9. शीतोष्ण चक्रवात का विस्तार 1900 किलोमीटर चौड़ा हो सकता है। कभी-कभी एक ही चक्रवात पूरे यूरोप में फैला हुआ होता है।-
  10. शीतोष्ण चक्रवात स्थिर हो सकते है तथा 900 से 1000 किलोमीटर प्रति दिन की गति से गतिमान हो सकते है।

शीतोष्ण चक्रवात के मौसम

शीतोष्ण चक्रवात के विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार का मौसम एवं वर्षा होती है। पश्चिम की दिशा से आने वाला चक्रवात जब निकट आ जाता है तो वायु भार गिरने लगता है तथा चन्द्रमा और सूर्य के चारों ओर प्रभामण्डल (Halo) स्थापित हो जाता है। तत्पश्चात् जैसे जैसे चक्रवात करीब आता है, तापमान बढ़ने लगता है, वायु की दिशा बदल कर दक्षिण – पूर्व से आने लगती है, बादलों की ऊंचाई कम होने लगती है तथा हल्की वर्षा आरम्भ हो जाती है।

शीतोष्ण चक्रवातों का भौगोलिक वितरण (Geographical Distribution of Temperate Cyclones) –

शीतोष्ण चक्रवात का वितरण चित्र में दिखाया गया है। सामान्यतः शीतोष्ण चक्रवात 40° तथा 60° अक्षांशों में पश्चिम से पूर्व की ओर प्रवाहित होते हैं। इनकी बारम्बारता दक्षिणी गोलार्द्ध अक्षांशों के बीच सब से अधिक होती है। मौसम परिवर्तन के साथ इनके मार्गों में भी परिवर्तन होता रहता है। शोतोष्ण चक्रवात उत्तरी गोलार्द्ध की तुलना में दक्षिणी गोलार्द्ध में अधिक वर्षा देते हैं, जिसका मुख्य कारण जल तथा थल का असमान वितरण है। दक्षिणी गोलार्द्ध में सागर का क्षेत्रफल अधिक है।

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Pankaja Singh

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