भाषा विज्ञान

स्वन (ध्वनि) परिवर्तन के प्रमुख कारण | भाषिक स्वनों के उच्चारण में ओठों के प्रकार्य | सुर एवं बलाघात में अन्तर | अघोष एवं संघोष ध्वनियों में अन्तर

स्वन (ध्वनि) परिवर्तन के प्रमुख कारण | भाषिक स्वनों के उच्चारण में ओठों के प्रकार्य | सुर एवं बलाघात में अन्तर | अघोष एवं संघोष ध्वनियों में अन्तर

स्वन (ध्वनि) परिवर्तन के प्रमुख कारण

भाषा की लघुतम सार्थक इकाई ध्वनि है। इन ध्वनियों में हमेशा परिवर्तन होते रहते है। जैसे-काल का कृष्ण आज किशन या कान्हा हो गया है। स्वनों के परिवर्तन के विषय में यह स्वाभाविक प्रश्न उठता है ये परिवर्तन किन कारणों से होते हैं। इसके प्रमुख दो कारण हैं-बाह्य और आन्तरिक

बाह्य कारण- इसके अन्तर्गत वैयक्तिक विभिन्नता, काल भेद, स्थान भेद, विजातीय सम्पर्क, राजनैतिक परिस्थिति, धार्मिक अवस्था, सामाजिक और सांस्कृतिक कारण आते हैं।

आन्तरिक कारण- इसके अन्तर्गत श्रुति, छन्द, मात्रा, स्वराघात, उच्चारण की शीघ्रता, असावधानी (प्रसाद), अशक्ति, अज्ञान मिथ्या, सादृश्य और मुख सुख प्रयत्न लाघव आदि आते हैं।

अधिकांश ध्वनि-विवर आन्तरिक कारणों से ही होते हैं। अतः भाषा के अध्ययन क्षेत्र में इन्हें विशेष महत्व दिया गया है। यह ध्वनि परिवर्तन मात्र किसी एक कारण पर आधारित नहीं होता है, अपितु इसमें कई कारण मिले होते हैं। दोनों प्रकार के कारण निम्नलिखित हैं-वाक् यन्त्र की विभिन्नता, श्रवणेन्द्रिय विभित्रता अनुकरण की अपूर्णता, अज्ञान, भ्रमपूर्ण व्युत्पत्ति, उच्चारण की शीघ्रता, मुख सुख या प्रयत्न लाघव, भावुकता, वाक् वक्रता, भाषा का प्रभाव, स्वराघात, भौगोलिक प्रभाव। इन्हीं कारणों से स्वनों का ध्वनियों में परिवर्तन होता है।

भाषिक स्वनों के उच्चारण में ओठों के प्रकार्य

मुख विवर के द्वार पर दन्त पंक्तियों के समीप दो ढकनों की भांति जो अवयव स्थित हैं वे ओष्ठ (ओठ) कहलाते हैं। श्वास के निःसृत होने पर ही ध्वनि उच्चरित होती है। वायु बाहर निकलने का अन्तिम अंग ओष्ठ है। ओठों की स्थिति तीन प्रकार की होती है-वृत्ताकार, अर्द्धवृत्ताकार और अवृत्ताकार। जिस स्वर का उच्चारण ओष्ठ से होता है उसे ओष्ठ्य स्वर कहते हैं। प, फ, ब, भ, म इन व्यंजन वर्णों तथा ‘उ, ऊ’ का उच्चारण ओठों की सहायता से होता अतः ये ओष्ठ ध्वनियाँ है। जब ओठ परस्पर चिपक कर खुलते हैं तभी ये व्यंजन ध्वनियाँ निकलती है। पूरा मुँह खोल देने या ओंठ चिपका लेने पर ये ध्वनियाँ नहीं निकल सकती। ओठों का प्रकार्य जानने के लिए उनकी स्थिति का ज्ञान आवश्यक होता है। किसी स्वर का उच्चारण में ओंठ उदासीन रहते हैं, किसी स्वर के उच्चारण में ये संकुचित हो जाते हैं और किसी स्वर उच्चारण में ये वृत्ताकार हो जाते हैं। उदाहरण के लिए ‘उ, ऊ’ का उच्चारण में होठ वृत्ताकार हो जाते हैं। ‘आ’ के उच्चारण में इनकी आकृति अर्द्धवृत्ताकार हो जाती है तथा ‘इ, ई, ए, ऐ’ के उच्चारण में ये अवृत्ताकार रहते हैं।

सुर एवं बलाघात में अन्तर

सुर एवं बलाघात में निम्नलिखित अन्तर होते हैं। जो निम्न हैं-

स्वराघात

बलाघात

1. शब्दों के उच्चारण में ध्वनि के उतार-चढ़ाव को स्वराघात कहते हैं।

1. शब्दों के उच्चारण में जो बल लगता है उसे बलाघात कहते हैं।

2. स्वराघात का स्वरतंत्रियों से सम्बन्धित होता है।

2. बलाघात फेफड़ों से सम्बन्धित होता है।

3. स्वाराघात घोष, सघोष ध्वनियों में ही सम्भव हो पाता है।

3. बलाघात अघोष ध्वनियों से भी सम्बन्ध होता है।

अघोष एवं संघोष ध्वनियों में अन्तर

सघोष घोष ध्वनियां में परिवर्तन हो जाना सघोष कहलाता है। जैसे-

शाक-

साग

शती –

सदी

काक-

काग

नकद-

नगद

अघोष-

इसमें घोष ध्वनियों का अघोष हो जाता है-

मदद् –

मदत

वाग्पति –

वाक् पति

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Pankaja Singh

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