भाषा विज्ञान

अर्थ परिवर्तन के प्रमुख कारण | अर्थ परिवर्तन के कारणों का विवेचन सोदाहरण

अर्थ परिवर्तन के प्रमुख कारण | अर्थ परिवर्तन के कारणों का विवेचन सोदाहरण

अर्थ परिवर्तन के प्रमुख कारण

प्रत्येक भाषा के शब्दों में सतत् परिवर्तन होते रहते हैं क्योंकि शब्दों के प्रयोक्ता अपनी अभिरूचि एवं आवश्यकता अनुसार शब्दों के मनमाने अर्थ लगाया करते हैं। मानव मन गतिशील, चंचल, भावुक, संवेदनशील एवं नवीनता का प्रेमी है। अतः विभिन्न परिस्थितियों में मानव-मन की स्थिति एक-सी नहीं होती है। यही कारण है कि राग-द्वेष, कोध, घृणा, आवेश आदि की स्थिति में उच्चारित शब्दों के अर्थों में अन्तर आ जाता है। यह अर्थ परिवर्तन प्रारम्भ में व्यक्तिगत होता है, परन्तु बाद में समाज के द्वारा स्वीकृत होने पर भाषा में ग्रहण कर लिया जाता है और भाषा का अंग बन जाता है। इस प्रकार अर्थ परिवर्तन की प्रक्रिया मनोवैज्ञानिक है।

भाषा विज्ञान के विद्वान अर्थ परिवर्तन के निम्न कारण मानते हैं-

(1) पीढ़ी- मनुष्य सामाजिक प्राणी होने के कारण, अपने समाजानुसार भाषा का ही प्रयोग करता है। प्रायः किसी भी समाज में जो शब्द एक पीढ़ी में प्रयुक्त होता रहता है और जिस अर्थ में होता है, उसी अर्थ में दूसरी पीढ़ी में प्रयुक्त नहीं होता। जिस प्रकार पहले जब भोज-पत्र पर लिखा जाता था तब पत्र का अर्थ पत्ता था, वह पत्र का अर्थ सोने का पत्र (पतला) चिट्ठी हो गया है। पीढ़ी गत परिवर्तन है।

(2) परिवेश- परिवेश भौगोलिक, सामाजिक और भौतिक तीन प्रकार का होता है। इसके कारण भी अर्थ परिवर्तन देखे जा सकते हैं, यथ-ठाकुर शब्द का अर्थ उत्तर प्रदेश में क्षेत्रीय बिहार में नाई और बंगाल में रसोइया माना जाता है। यह भौगोलिक परिवेश का प्रभाव है।

सामाजिक परिवेश भी अर्थ परिवर्तन में सहायक होता है। डॉ० सक्सेना के अनुसार, पाठशाला-मदरसा, स्कूल, कालिज, शब्द पर्यायवाची हैं किन्तु सामाजिक परिवेश के कारण पाठशाला का अर्थ संस्कृत पाठशाला, मदरसा का अर्थ उर्दू शिक्षा का केन्द्र और स्कूल का अर्थ अंग्रेजी शिक्षालय माना जाता है। कालिज उच्च शिक्षा केन्द्र हेतु प्रयुक्त होता है।

भौतिक परिवेश भी अर्थ परिवर्तन पर प्रभाव डालता है, यथा- ‘शीशा’ तीन शब्द तीन अर्थों में प्रयुक्त होता है-दर्पण, धातु (जिससे टाइप के अक्षर बनते हैं) और काँच। इसी प्रकार भौतिक परिवेश के कारण लेखनी के लिए प्रयुक्त पेन, कलम, बालपेन आदि शब्द एकार्थक वाचक होते हुए भी भिन्न-भिन्न अर्थ के द्योतक होते हैं।

(3) नम्रता प्रदर्शन- शालीनता और शिष्टतावश लोग अपने को और अपने से सम्बन्धित वस्तुओं को छोटे रूप में और दूसरे के प्रति गौरव और सम्मान दिखाने हेतु बड़े रूप में वर्णन करते हैं, यथा-अपना नाम बताते समय-खादिम को अमुक कहते हैं, अथवा गुलाम का नाम अमुक है। इसी प्रकार अपने घर को गरीबखाना, झोंपड़ी और दूसरे के घर को दौलतखाना कहते हैं। इसी प्रकार आपके चरण पड़ने से हमारी कुटिया पवित्र हो गयी थोड़ा मुँह तो जूठा कर लीजिए। कार्यालय में- आपको बड़े साहब याद फरमा रहे हैं। इस प्रकार औपचारिक कथनों में शब्दार्थ परिवर्तित हो जाता है।

(4) भावावेश- अनेक शब्दों के अर्थ भावावेश के कारण भी बदल जाते हैं। यथा- जब किसी पुत्र से उसका पिता नाराज होकर नालायक, बेहूदा, शैतान कहता है, कालिज में विद्यार्थी आपस में एक-दूसरे को साले (जबकि वह साला नहीं है) बेटे, बच्चू कहता है। यह स्थिति भी अर्थ परिवर्तित का कारण बनती है।

(5) निर्माण क्रिया के आधार पर निर्मित वस्तु का नाम- प्राचीन काल में भोजपत्रों पर लिखा जाता और उन पत्रों को परस्पर गाँठा (अन्थित) जाता था, इस क्रिया के आधार पर ग्रन्थित पत्र-समूह को ग्रन्थ कहा जाने लगा पर अब यह महत्वपूर्ण पुस्तक बन गया।

(6) नव-निर्माण का आग्रह- डॉ0 सक्सेना लिखते हैं कि प्रायः जब नये-नये आविष्कार होते हैं और नव-निर्माण का कार्य चलता है, तब नये-नये पदार्थों के लिए नये-नये नाम देने की समस्या उत्पन्न होती है। ऐसी स्थिति में जिस प्रचलित पदार्थ से वह नई वस्तु बनायी जाती है उसका नाम भी उस पदार्थ के नाम के आधार पर प्रचलित हो जाता है और उस पदार्थ में नये अर्थ का समावेश हो जाता है। जिस प्रकार कलम प्रायः पंख से ही बनायी जाती थी अंग्रेजी में पंख को पिना (Pinna) कहते थे। कालान्तर में पिन्ना से ‘पेन’ (Pen) शब्द प्रचलित हो गया और अंग्रेजी में लोहे की कलम को भी पेन (Pen) ही कहते हैं। इसी प्रकार हिन्दी में टाइप-राइटर के लिए कोई नाम नहीं था, किन्तु उसमें टाँकी की तरह लोहे के अक्षर कागज पर वर्णों को अंकित करते हैं। अतः उसी गुण को देखकर हिन्दी में इसका नाम ‘टंकन’ रखा दिया गया। जबकि टंकन की क्रिया पत्थर पर छैनी या टाँकी के द्वारा की जाती है। इसी प्रकार अंग्रेजी के ‘वायर’ के लिए हिन्दी में तार शब्द प्रचलित हो उठा। हीट (Heat), ऊष्मा, एनर्जी (Energy) ऊर्जा इसी के उदाहरण हैं।

(7) अशोभन के बहिष्कार की प्रवृत्ति- अशुभ कार्यों अथवा घटनाओं के वर्णन से बचने के लिए उसके स्थान पर शुभ शब्दों का प्रयोग किया जाता है, फलतः अर्थ बदल जाता है। रोगी से मिलते समय कहा जाता है-सुना है आपके दुश्मनों की तबियत खराब है। इसी प्रकार दीपक बुझाने को दीपक बढ़ा दो, दुकान बन्द करने को, दुकान बढ़ा दो। साँप को कीड़ा कहना, चेचक को मातारानी कहना अशोभन से बचने का ही उदाहरण हैं। ये प्रयोग अपने मूल अर्थ में भित्र अर्थ रखते है।

(8) अश्लील तथा घृणाजनक शब्दों बहिष्कार- प्रायः सभ्य समाज में अश्लील एवं जुगुप्सामूलक शब्दों का प्रयोग न करके अन्यान्य शब्दों से अपना मन्तव्य प्रकट करते हैं। किसी स्त्री से बरबस सम्भोग को बलात्कार कहा जाता है, लिंग को इन्द्रिय, पेशाब को बाथरूम, गर्भिणी को पाँव भारी होना इसी प्रवृत्ति के परिचायक हैं।

(9) लाक्षणिकता एवं आलंकारिकता- इन प्रयोगों के कारण भी शब्दों का अर्थ बदल जाता है। यथा-सॉपिन (दुष्टा स्त्री हेतु प्रयुक्त) काठ का उल्लू (अविवेकी) गऊ (सीधा सरल व्यक्ति) इसी प्रकार के प्रयोग हैं। किसी खतरनाक को कालानाग, खुशामदी को चमचा, चालाक को कौआ, बुद्धिहीन को बैल, बहादुर व्यक्ति को शेर, लालची को कुत्ता इसी प्रकार के प्रयोग हैं।

(10) व्यंग्य का भी अर्थ परिवर्तन में पर्याप्त योग रहता है- डॉ0 द्वारिका प्रसाद सक्सेना के अनुसार, व्यंग्य में उच्चरित शब्द केवल दूसरों पर आक्षेप ही नहीं करते, अपितु उस व्यक्ति के मर्म पर प्रहार भी करते हैं, जिनके लिए उनका उच्चारण किया जाता है और वे व्यंग्यपूर्ण शब्द प्रायः विपरीत अर्थ के द्योतक होते हैं। यथा-अन्धे को नैनसुख, कंजूस को दानवीर कर्ण, कुरूप को कामदेव, अत्याचारी को भगवान राम का अवतार, बुद्धिहीन को बृहस्पति आदि कहें, तो यहाँ संवेग अर्थ परिवर्तन के ही दर्शन होते हैं। ऐसे ही किसी देर से आने वाले व्यक्ति से कहा जाय बड़ी जल्दी पधारे तो भी यह स्थिति रहती है।

(11) अन्धविश्वास- अनेक शब्दों के अर्थ परिवर्तन में अन्धविश्वास की भी भूमिका रहती है। भारत में प्रायः पत्नी, पति, गुरु और ज्येष्ठ पुत्र का नाम नहीं लिया जाता है। यदि इन्हें सम्बोधित करना हो तो घुमा-फिराकर नाम लिया जाता है। घरवाली घरवाला इसी प्रकार के प्रयोग हैं।

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Pankaja Singh

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