भाषा विज्ञान

भाषा विज्ञान की परिभाषा | भाषा विज्ञान का क्षेत्र | भाषा विज्ञान का महत्व एवं उपयोगिता

भाषा विज्ञान की परिभाषा | भाषा विज्ञान का क्षेत्र | भाषा विज्ञान का महत्व एवं उपयोगिता

भाषा विज्ञान की परिभाषा

‘भाषा विज्ञान’ यौगिक शब्द है, जो भाषा + विज्ञान के योग से बना है। इसमें ‘भाषा’ उस वाणी को कहते हैं जो बोलने और लिखने में काम आती है तथा विज्ञान उस विशिष्ट ज्ञान को कहा जाता है, जिसके नियमों में विकल्प एवं विप्रतिपत्ति के लिए तनिक भी अवकाश नहीं होता, तो आकाट्य एवं अतर्क्य होते हैं तथा जो सार्वभौम एवं सार्वकालिक भी होते हैं। इस प्रकार जिस शास्त्र में भाषा सम्बन्धी तत्वों का निरीक्षण एवं परीक्षण करके कतिपय नियम बनाये जाते हैं, उसे भाषा विज्ञान’ कह सकते हैं। इतना आवश्यक है कि वैज्ञानिक नियमों की भाँति भाषा सम्बन्धी नियम अकाट्य एव अतर्क्स नहीं होते और न उन्हें सार्वभौम एवं सार्वकालिक ही कहा जा सकता है क्योंकि भाषा की प्रकृति परिवर्तनशील है, उसकी सीमाएँ भी बदलती रहती हैं और उसमें अनेक अपवाद भी मिलते हैं जबकि विज्ञान के नियमों में ऐसा काम होता है। फिर भी वैज्ञानिक प्रक्रिया के अधार पर भाषा विज्ञान की भाषा की उत्पत्ति उसके हास, विकास एवं उसकी रचना प्रक्रिया पर विचार करता है, अपने ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक अध्ययन के आधार पर भाषा की ध्वनि, भाषा के रूप में उनके अर्थों की सम्यक व्याख्या करता है और कतिपय नियमों का भी निर्धारण करता है।

डॉ. डी.पी. सक्सेना

नामकरण- डॉ0 कपिलदेव द्विवेदी के अनुसार भाषा-विज्ञान शब्द मूल रूप में पाश्चात्य विद्वानों की देन है। प्राचीन समय में भाषा के अध्ययन हेतु विभिन्न शब्द प्रचलित थें। यथा-शिक्षा, निरुक्त, व्याकरण, प्रतिशाख्य आदि। वर्तमान भाषा विज्ञान का प्रारम्भ सन् 1786 में सर विलियम जोन्स के संस्कृत, लैटिन, ग्रीक के तुलनात्मक अध्ययन से हुआ और विदेशों में इसके कई नाम प्रचलित हुए जिनमें से कम्पेरेटिव फिलालोजी (Comparative Philology) आज भी प्रचलित है। साथ ही साइन्स ऑफ लेंग्वेज (Science of Language) नाम भी चला पर इसका प्रचलन अधिक न हो सका, उसके साथ ही लिंग्विस्टिक (Linguistics) नाम भी प्रचलित है।

भारत में वर्तमान रूप में उपलब्ध भाषा-विज्ञान जैसा विषय तो नहीं था परन्तु उसके समीपवर्ती रूपों के लिए निर्वचनशास्त्र, व्याकरण, शब्दानुशासन आदि शब्दों का प्रयोग होता था। आधुनिक काल में हिन्दी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में अनेक शब्द प्रचलित हुए भाषा-शास्त्र, तुलनात्मक भाषा विज्ञान, भाषा विज्ञान, भाषा-विचार, शब्द-शास्त्र, भाषा तत्व भाषिकी, भाषा- विज्ञान जिनमें भाषा विज्ञान ही सर्वाधिक प्रचलित रहा।

नामकरण के सम्बन्ध में डॉ० भोलानाथ तिवारी का मत है-कुछ लोगों का कहना है कि ‘भाषा विज्ञान’ शब्द फिलालॉजी का प्रति शब्द था और आज ‘फिलालॉजी’ शब्द विज्ञान के नये अर्थ का द्योतक नहीं है। अतः ‘लिंग्विस्टक’ के अर्थ में ‘भाषा’ तत्व’ को अपना लेना चाहिए। किन्तु तथ्य यह है कि ‘भाषा विज्ञान’ शब्द फिलालॉजी का समानार्थी भले ही रहा हो किन्तु हिन्दी आदि में उसका प्रयोग और अर्थ ‘लिंग्विस्टिक से भिन्न प्रायः नहीं रहा है, साथ ही वह इस विज्ञान के लिए अपने यहाँ दो-तीन दशकों से अपेक्षाकृत अधिक प्रचलित भी है, अतः लिंग्विस्टिक के स्थान पर हिन्दी में भाषा विज्ञान का प्रयोग उचित माना जा सकता है। यों ‘भाषा-शास्त्र’ या इस तरह के अन्य नामों में भी कोई अशुद्धि नहीं है, किन्तु एक विज्ञान के लिए एक ही शब्द निश्चित कर लेना स्पष्टता आदि कीक्षदृष्टि को अधिक अच्छा रहता है।

परिभाषा- भाषा विज्ञान की परिभाषाएँ अनेक विद्वानों द्वारा प्रस्तुत की गयी हैं, जिनमें से कतिपय यहाँ उद्धृत हैं-

संस्कृत में भाषायः विज्ञानम् कहा गया जिसमें विज्ञानम् से तात्पर्य ‘विशिष्ट ज्ञान’ है।

हिन्दी

(1) डॉ. श्याम सुंदर दास- “भाषा विज्ञान उस शास्त्र को कहते हैं जिसमें भाषा मात्रा के भिन्न-भिन्न और स्वरूपों का विवेचन तथा निरूपण किया जाता है। (भाषा विज्ञान)

(2) डॉ. मंगलदेव शास्त्री-“भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन को ही भाषा विज्ञान कहते हैं। वैज्ञानिक अध्ययन से हमारा तात्पर्य सम्यक् रूप से भाषा के बाहरी और भीतरी रूप एवं विकास आदि के अध्ययन से है।”

(3) डॉ. बाबू राम सक्सेना (सामान्य-विज्ञान)- “भाषा विज्ञान का अभिप्राय भाषा का विश्लेषण करके उसका निदग्दर्शन कराना है।“

(4) डॉ. कपिल देव द्विवेदी (भाषा-विज्ञान एवं समाज-शास्त्र) “भाषा विज्ञान वह विज्ञान है जिसमें भाषा का सर्वांगीण विवेचनात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है।”

(5) डॉ. भोला नाथ तिवारी (भाषा-विज्ञान)- “भाषा विज्ञान का सीधा अर्थ है- भाषा का विज्ञान और विज्ञान का अर्थ है विशिष्ट ज्ञान। इस प्रकार भाषा का विशिष्ट ज्ञान भागविज्ञान कहलायेगा

(6) डॉ. देवेन्द्र नाथ शर्मा (भाषा-विज्ञान की भूमिका- “भाषा विज्ञान को अर्थात् भाषा के विज्ञान को भाषिकी कहते हैं। भाषिकी में भाषा का वैज्ञानिक विवेचन किया जाता है।

(7) डॉ. अम्बा प्रसाद सुमन (भाषा-विज्ञान, सिद्धान्त और प्रयोग)- “भाषा विज्ञान वह विज्ञान है जिसमें भाषाओं का सामान्य रूप में या किसी एक भाषा का विशिष्टरूप से प्रकृति संरचना, इतिहास, तुलना, प्रयोग आदि की दृष्टि से सिद्धान्त निश्चित करते हुए वैज्ञानिक अध्ययन प्रस्तुत किया जाता है।

(8) डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना (भाषा-विज्ञान के सिद्धान्त और हिन्दी भाषा)- भाषा विज्ञान वह विज्ञान है जिसमें भाषा एवं भाषा तत्वों का ऐतिहासिक एवं तुलनात्मक आधार पर वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है।

पाश्चात्य विद्वान- पाश्चात्य विद्वानों के भी कतिपय मत यहां प्रस्तुत हैं-

(1) ब्रिटेन विश्वकोष (Encycolpacdia Bretannica) The world phiology is here, terms as meaning the science of language i.e., the study of the structure and development of languages. Thus Corresponding to linguistics.

(भाषा विज्ञान में भाषाओं का अध्ययन उनकी रचना और विकास की दृष्टि से किया जाता है।) यह परिभाषा Philology और Linaquistics में भेद नहीं मानती।

(2) ग्लीसन (Gleasan)- “Descriptive linguistics, the descriptive which studies languages in terms, internal stucture.”

(भाषा-विज्ञान भाषा की आन्तरिक रचना के अध्ययन का शास्त्र है।

(3) आर.एच. रॉबिन्स- “भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन को भाषा-विज्ञान कहा जाता है।

(4) प्रो. जी.पी. गूने Comparative philology or simple philology is the science of language:

(भाषा का विज्ञान ही भाषा विज्ञान है।)

भाषा विज्ञान-व्याप्ति या क्षेत्र

प्रायः भाषा के चार प्रमुख अंग माने जाते हैं ध्वनि, पद, वाक्य और अर्थ। इनके आधार पर भाषा विज्ञान की कितनी शाखाएं स्थापित हुई हैं। पर मूलतः शाखाएं इस प्रकार हैं, जिन्हें दो मुख्य भागों में विभाजित किया जा सकता है (क) मुख्य विभाग (ख) गौण विभाग

(क) मुख्य विभाग

(1) ध्वनि-विज्ञान (Phenology)- इसे आजकल ‘खानविज्ञान’ भी कहा जाता है इसके अन्तर्गत वाक-ध्वनियों का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन किया जाता है। इसके अन्तर्गत ध्वनि उत्पादन अवयव का अध्ययन होता है, जिन्हें वाग्यंत्र कहा जाता है। ये प्रमुख अवयव हैं-कंठ, काकल, तालु, मूध्र्दा, दत्ता, ओष्ठ, जिह्वा, नासिका आदि। इन ध्वनि उत्पादक अवयवों से निकलकर जब हमारी श्वाँस-वायु मुख-विकास में होकर बाहर निकलती है, तब उससे विभिन्न ध्वनियों की उत्पत्ति होती है। अतः ध्वनि विज्ञान में विविध ध्वनियों के उत्पादन अवयवों एवं उनसे उत्पन्न विविध ध्वनियों का सम्यक अनुशीलन किया जाता है।

-डॉ0 द्वारिका प्रसाद सक्सेना

इसके अन्तर्गत स्वर-व्यंजनों की स्थिति, वर्गीकरण भी किया जाता है। इसी आधार पर उच्चारणोपयोगी अवयवों के आधार पर व्यंजनों काकूल्य, कंठ्य, मूर्धय, तालव्य, वर्त्स्य, दंत्य, ओष्ठ्य और जिहा मूलीय आठ भागों में बांटा जाता है और उच्चारण की रीति के आधार पर स्पर्श- संघर्षों, अनुनासिक, पार्थिव, लुठित अत्क्षिप्त और अर्धस्वर में बांटकर इनके लक्षण आदि का अध्ययन होता है।

ध्वनियों पर प्रभाव डालने पर विभिन्न कारणों में वाग्यंत्र की समानता, व्यक्ति का प्रभाव अज्ञान या असावधानी, वैयक्तिक भावावेश के साथ भौगोलिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक कारणों पर विचार किया जाता है। इसी में स्वाराघात और बलाघात पर विचार करते हुए विविध प्रकार ध्वनि परिवर्तन के कारणों को भी परखा जाता है।

डॉ0 द्वारिका प्रसाद सक्सेना के अनुसार ध्वनि-विज्ञान में ध्वनि के उत्पादन, संवहन एवं  ग्रहण संबन्धी तीन कार्यों का विशद् अध्ययन किया जाता है। इन्हीं कार्यों के आधार पर इसकी तीन शाखाएं मानी गई हैं- 1. उत्पादन मूलक विज्ञान, 2. संवहन मूलक विज्ञान, 3. ग्रहण मूलक विज्ञान।

  1. रूप विज्ञान- विभिन्न ध्वनियों के संयोग से शब्द बनता है और जब शब्द विभक्ति, क्रिया आदि का संयोग पाकर विशिष्ट अर्थ द्योतन में समर्थ होते हैं तो पद का निर्माण होता है। यथा-बंदर, पेड़, मीठे, फल, खाना आदि शब्द हैं। किन्तु ‘बन्दर पेड़ पर मीठे फल खा रहा है।’ यह पद है जिसमें विभक्तियों का योग हो उठा है। अतः विज्ञान की दो शाखाएँ स्वीकार की गई हैं-

(अ) शब्द विज्ञान- इसके अन्तर्गत शब्द का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है जिसमें प्रकृति और प्रत्यय का योग रहता है। शब्दों का वर्गीकरण जिसे विभिन्न प्रकार से किया गया है, शब्द निर्माण की प्रक्रिया, शब्दों का विकृत होना, उनमें परिवर्तन, आगत शब्दों की स्थिति आदि पर विचार किया जाता है।

(आ) पद विज्ञान- इसमें पद के स्वरूप एवं निर्माण का अध्ययन होता है। ‘पदनिर्माण’ में पद तभी समर्थ होते हैं जब वे ‘सम्बन्ध तत्व’ का योग पाते हैं। ‘सम्बन्ध तत्व’ विभक्तियों प्रत्यय को ही माना जाता है। साथ ही शब्द-स्थान, स्वर-परिवर्तन, ध्वनि-गुण, स्वाराघात अव्यय आदि भी जिन्हें सम्बन्ध तत्व माना गया, का भी अध्ययन होता है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि कि अर्थ तत्व, सम्बन्ध तत्व के अध्ययन के साथ पद निष्पत्ति में सम्बन्ध तत्व का क्या योगदान रहता है, लिंग, पुरुष, वचन, काल आदि तत्वों का पद से क्या सम्बन्ध है, रूप परिवर्तन किस प्रकार का होता है, रूप परिवर्तन के क्या कारण होते हैं आदि-आदि पद सम्बन्धी विविध समस्याओं का समाधान पद विज्ञान से किया जाता है।

(3) वाक्य विज्ञान- यह शाखा वाक्य के वर्गीकरण एवं विश्लेषण का अध्ययन करती है। वाक्य में शब्द-क्रम की स्थिति पर विचार और वाक्य निर्माण हेतु अपेक्षित तत्वों का भी अध्ययन होता है। साथ ही वाक्य का पद विज्ञान सम्बंधी अध्ययन, जिसमें उद्देश्य और विधेय की स्थिति के साथ वाक्य निर्माणार्थ अपेक्षित तत्व चयन, क्रम निकटस्थ अवयव, मैत्री और व्यवस्था का विचार करते हुए वाक्य के विविध भेदों पर विचार किया जाता है। वाक्य में पदों का क्रम क्या होता है, अन्वय कैसा किया जा सकता है पदान्वय के आधार पर क्या है, आदि पर भी विचार होता है।

(4) अर्थ-विज्ञान- सार्थक ध्वनियों को ही शब्द माना जाता है। अतः अर्थ शब्द की आत्मा है। अतः यह क्षेत्र शब्द के अर्थ पर ही विचार करता है।

डॉ. सक्सेना इस विज्ञान के अध्ययन की दो पद्धतियाँ स्वीकार करते हैं- प्रथम वर्णनात्मक पद्धति, जिसके अंतर्गत किसी भाषा के शब्दार्थों में जो अर्थ संकोचन, अर्थविस्तार अर्थादेश आदि पाया जाता है उनका सम्यक् अध्ययन होता है। यथा-मृग शब्द पहले सभी जंगली पशुओं हेतु व्यवहृत था पर अर्थ संकोच को प्राप्त कर वह ‘हिरन’ के अर्थ में सीमित हो गया। इस प्रकार गोली का तात्पर्य किसी गोल पदार्थ से था, पर अर्थ विस्तार का आधार पाकर चूरण की गोली, दर्जों की गोली, बंदूक की गोली आदि हो गया। इसी पद्धति में शब्दार्थों का तुलनात्मक अध्ययन भी होता है। यथा हिंदी में बदन मुख है तो उर्दू में इसका अर्थ शरीर है।

अर्थ विज्ञान की दूसरी पद्धति है जिसमें शब्द विशेष की ऐतिहासिक परम्परा पर विचार होता है। कुशल का प्रयोग पहले चतुरता के साथ कुशाएं लाने वाले व्यक्ति के लिए होता था, पर अब यह चतुरता, दक्षता का वाचक बन गया। इसका अध्ययन इसी पद्धति से संभव है।

साथ ही यह क्षेत्र उन बौद्धिक नियमों का अनुशीलन भी करता है। जो विविध अर्थ विकारों बुद्धि कारणों को दृष्टि में रखकर बनाये जाते हैं। यथा- पाठशाला, मदरसा, स्कूल कालेज आदि पर्यायवाची है पर पाठशाला किसी संस्कृत शिक्षा अध्ययन की स्थिति का बोध कराता है, मदरसा अरबी फारसी की शिक्षा का स्कूल अंग्रेजी अध्ययन केंद्र माना जाता है इन अर्थ-भेदों के आधार पर जो बौद्धिक नियम बना, उसे भेदीकरण का नियम कहा गया। इसी प्रकार अन्य बौद्धिक नियम भी हैं।

अर्थ विकास की दिशाओं, अर्थ संकोच की स्थितियां और इन दोनों के कारणों पर भी इसी क्षेत्र में विचार होता है।

इसका तात्पर्य यह नहीं कि ये शाखाएं महत्वपूर्ण नहीं हैं। इनका भी अपना महत्व है जिनके अभाव में भाषा-विज्ञान अधूरा ही है। ये प्रमुख क्षेत्र हैं-

(ख) गौण विभाग

(1) लिपी विज्ञान- भाषा का लिपि से किसी प्रकार का सीधा संबंध न होने पर भी भाषा को सुरक्षित रखने में लिपि की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसके अध्ययन में लिपि की एक कालिक तुलनात्मक तथा व्यतिरेकी अध्ययन किया जाना है। व्यापक रूप में इसके अंतर्गत लिपि की उत्पत्ति, विकास, निर्माण सुधार, वैज्ञानिकता और प्रकारों पर विचार किया जाता है।

(2) भाषा उत्पत्ति- भाषा की उत्पत्ति के प्रशन को भाषा-विज्ञान के अंतर्गत आधुनिक विद्वान नहीं समाहित करते पर डॉ. भोला नाथ तिवारी की मान्यता है जब भाषा का पूरा जीवन हमारे अध्ययन का विषय है तो इसके जन्म के प्रश्न को भला कैसे ठुकराया जा सकता है।

(3) भाषाओं का वर्गीकरण संसार की भाषाओं की विभिन्न समानताओं, ध्वनिगत, शब्दगत, रूपगत तथा वाक्यगत और असमानताओं के आधार पर उन्हें अलग-अलग वर्गों में रखना ही वर्गीकरण कहलाता है। आजकल इस वर्गीकरण के स्थान पर भाषा प्रकार शब्द प्रचलित है और इस शैली को भाषा प्रकार विज्ञान कहा जाता है।

(4) भौगोलिकता- इसके अंतर्गत प्रदेश विदेश की भाषा, ध्वनियों, शब्दों रूपों, वाक्यों तथा अर्थ का क्षेत्रीय अथवा भौगोलिक आधार पर अध्ययन करके उसका विभिन्न भाषाओं अथवा गोलियों में वर्गीकरण किया जाता है इसके लिए भाषा भूगोल अथवा बोली भूगोल शब्दों का प्रयोग किया जाता है।

(5) भाषा-काल क्रम विज्ञान- यह गणना-शास्त्र के आधार पर ऐतिहासिक तथ्यों को जानने की सर्वथा अभिनव पद्धति है। इसके अंर्तगत आधार पर किसी भाषा की आयु तथा काल विशेष में परिवर्तन के रूप आदि का ज्ञान होता है।

(6) भाषीय प्रागैतिहासिक खोज-भाषा के अध्ययन ने इतिहास के पूर्वकाल की संस्कृति को जानने में महत्वपूर्ण योग दिया है। यदि इस दृष्टिकोण से भाषा के अध्ययन को प्रोत्साहन दिया तो हम अंधकार-युग की संस्कृति को जानने में सफल हो सकेंगे जो अपने आप में एक उपलब्धि हो सकेगी।

भाषा विज्ञान – महत्वपूर्ण लिंक

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Pankaja Singh

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