भाषा विज्ञान

भाषा विज्ञान का अर्थ एवं स्वरूप | भाषा विज्ञान को समझने के लिए भारतीय एवं विदेशी विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं की विवेचना

भाषा विज्ञान का अर्थ एवं स्वरूप | भाषा विज्ञान को समझने के लिए भारतीय एवं विदेशी विद्वानों द्वारा दी गई परिभाषाओं की विवेचना

भाषा विज्ञान का अर्थ एवं स्वरूप

आधुनिक युग में भाषा शास्त्र का न केवल विकास हुआ, अपितु उसने विज्ञान का रूप ले लिया। भाषा के अनुशीलन की दृष्टि से आधुनिक काल में वैज्ञानिक यन्त्रों का सहयोग भी लिया जाने लगा, किन्तु भारत में ‘भाषाविज्ञान’ नाम ही अधिक प्रचलित है। इस नाम के अतिरिक्त कुछ अन्य नामों का भी प्रयोग होता है। जैसे- तुलनात्मक भाषाविज्ञान (डॉ. मंगल देव शास्त्री), तुलनात्मक भाषाशास्त्र, भाषाविचार, शब्दशास्त्र आदि। डॉ. सीताराम चतुर्वेदी ने ‘भाषालोचन’ नाम का प्रयोग किया है। परन्तु ये सभी चल नहीं सके क्योंकि ये विषय की आत्मा का साक्षत्कार कराने में असमर्थ हैं इस प्रकार हिन्दी में ‘भाषाविज्ञान’ नाम ही अधिक उपयुक्त है।

कुछ विद्वानों का विचार है कि ‘भाषाविज्ञान’ शब्द ‘फिलालोजी’ का प्रति शब्द है, अतः ‘भाषाविज्ञान’ शब्द का प्रयोग फिलालोजी के स्थान पर करना चाहिए और ‘लिग्विस्टिक्स’ के लिए ‘भाषा तत्व’ शब्द का प्रयोग करना चाहिए। किन्तु डॉ. मोलानाथ तिवारी ने ‘भाषाविज्ञान’ शब्द के प्रयोग को ही उचित सिद्ध किया है। उनका कथन है “किन्तु तथ्य यह है कि भाषाविज्ञान’ शब्द ‘फिलालोजी’ का समानार्थी भले ही रहा हो पर हिन्दी आदि में उसका प्रयोग और अर्थ ‘लिगिस्टिक्स’ से भिन्न रहा है। साथ ही वह अपेक्षाकृत इस विज्ञान के लिए अपने यहाँ दो-तीन दशकों से अधिक प्रसिद्ध भी है।”

इस प्रकार भाषाविज्ञान’ नाम ही अधिक उपयुक्त है।

अर्थ और स्वरूप-भाषा विज्ञान शब्द के दो खण्ड हैं- भाष + विज्ञान।

भाषा के अर्थ को भाषा प्रकरण के अन्तर्गत स्पष्ट किया जायेगा। स्थूल रूप में हम भाषा को उच्चारण अवयवों में निकली ध्वनि गतिकों के समूह के रूप में जानते हैं, जिसके द्वारा मनुष्य परस्पर विचार-विनिमय करता है। विज्ञान शब्द का अर्थ है वि + ज्ञान अर्थात् विशिष्ट ज्ञान। इस प्रकार विज्ञान के अन्तर्गत उस ज्ञान का अध्ययन होता है, जो भली प्रकार तर्क के द्वारा, विश्लेषण के द्वारा दिया जाता है और जिसमें एक क्रम होता है। प्रश्न उठता है कि क्या भाषाविज्ञान नामक विषय भी विज्ञान की इस कसौटी पर खरा उतरता है। भाषाविज्ञान के इस स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए विभिन्न विद्वानों ने विभिन्न परिभाषायें प्रस्तुत की है। जहाँ पाश्चात्य विद्वानों ने भाषाविज्ञान के आधुनिक स्वरूप का सम्यक विवेचन प्रस्तुत किया है, यहाँ भारतीय विद्वानों ने भी इस दिशा में काफी खोज की है।

भाषाविज्ञान के अर्थ एवं स्वरूप को स्पष्ट करने के लिए हम भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों द्वारा प्रस्तुत कतिपय परिभाषाओं की समीक्षा करेंगे।

भारतीय मत-

(1) डॉ. श्याम सुन्दर दास- डॉ. श्याम सुन्दर दास ने भाषा विज्ञान और शास्त्र में कोई अन्तर न करते हुए लिखा है-

“भाषाविज्ञान उस शास्त्र को कहते हैं जिसमें भाषा मात्र के भिन्न-भिन्न अंगों एवं स्वरूपों का विवेचन तथा निरूपण किया जाता है।”

उपर्युक्त परिभाषा में डॉ. श्यामसुन्दर दास ने भाषाविज्ञान को एक शास्त्र कहा है इस प्रकार उनकी दृष्टि में भाषाविज्ञान और शास में कोई अन्तर नहीं है, परन्तु भाषाविज्ञान और भाषा दोनों में अर्थ की दृष्टि से पर्याप्त अन्तर है।

इस परिभाषा से भाषाविज्ञान के क्षेत्र में व्यापकता आ जाती है, परन्तु भाषा मात्र के मित्र-भित्र अंग और स्वरूप से क्या तात्पर्य है? इसको स्पष्ट नहीं किया गया है।

(2) डॉ. बाबूराम सक्सेना- “भाषाविज्ञान का अभिप्राय भाषा का विश्लेषण करके उसका दिग्दर्शन कराना है।”

उपर्युक्त परिभाषा में भाषाविज्ञान की दो विशेषताओं की ओर संकेत किया गया है। पहली विशेषता तो यह है कि भाषाविज्ञान के अन्तर्गत भाषा का विश्लेषण किया जाता है और दूसरी विशेषता यह है कि भाषा विज्ञान के द्वारा भाषा का दिग्दर्शन भी होता है परन्तु इस परिभाषा से यह स्पष्ट है कि भाषा का यह विश्लेषण और दिग्दर्शन किस प्रकार होता है और किन आधारों पर होता है।

(3) डॉ. मंगलदेव शास्त्री-भाषाविज्ञान उस विज्ञान को कहते हैं, जिसमें सामान्य रूप से मानवीय भाषा का किस विशेष भाषा की रचना और इतिहास का और प्रादेशिक भाषाओं या बोलियों के वर्गों की पारस्परिक समानताओं और विशेषताओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।

उपर्युक्त परिभाषा में किसी विशेष भाषा का उसकी रचना और इतिहास के आधार पर अध्ययन तथा उस भाषा का अन्य प्रादेशिक भाषाओं पर, बोलियों के समूहों के साथ तुलनात्मक अध्ययन पर बल दिया गया है। इस प्रकार परिभाषाकार जहाँ भाषाविज्ञान के अर्न्तगत एक भाषा विशेष के रचनात्मक और ऐतिहासिक अध्ययन और विवेचन को आवश्यक मानता है वहीं भाषाओं के तुलनात्मक अध्ययन के महत्व को भी स्वीकार करता है। वस्तुतः तुलनात्मक अध्ययन की यह प्रक्रिया बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि इसके द्वारा हम भाषाओं के परिवार की खोज तो करते हैं, साथ में भाषा की उत्पत्ति की खोज में भी सहायता लेते हैं।

(4) डॉ. भोलानाथ तिवारी- “जिस विज्ञान के अन्तर्गत ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन के सहारे (विशिष्ट नहीं अपितु सामान्य) भाषा की उत्पत्ति, गठन, प्रकृति एवं विकास आदि की सम्यक् व्याख्या करते हुए इन सभी के विषय में सिद्धान्तों का निर्धारण हो, उसे भाषाविज्ञान कहते हैं।”

इस परिभाषा में भाषाविज्ञान के अर्थ को अधिक से अधिक स्पष्ट करने का प्रयत्न किया गया है। उनके अनुसार भाषाविज्ञान के अन्तर्गत जिस भाषा का अध्ययन होता है वह विशिष्ट वर्ग की न होकर जन-साधारण की होती है।

इस भाषा के अध्ययन के लिए उन्होंने ऐतिहासिक और तुलनात्मक-इन दो प्रक्रियाओं पर बल दिया है अर्थात् भाषा विज्ञान के अन्तर्गत भाषा की ऐतिहासिक खोज के साथ-साथ अन्य भाषाओं से उसका तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।

उपर्युक्त परिभाषा की अन्तिम विशेषता जिसकी ओर डॉ0 तिवारी ने संकेत किया है, यह है कि उपर्युक्त आधारों पर जिस भाषा का भाषाविज्ञान के अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है और उसके विभिन्न अंगों का जो विवेचन किया जाता है उसके सम्बन्ध में विभिन्न सिद्धान्तों का निर्धारण भी होता है। पाश्चात्य मत-पाश्चात्य भाषावैज्ञानिकों ने भी भाषाविज्ञान का विशद अध्ययन किया है। इन भाषा वैज्ञानिकों ने भाषा विज्ञान के लिए अंग्रेजी के जिन शब्दों का प्रयोग किया है, उनमें दो शब्द सर्वाधिक प्रचलित और सर्वमान्य हैं, वे शब्द है Philology और Linguistics

अतः भाषाविज्ञान के सम्बन्ध में पाश्चात्य मतों की समीक्षा करते समय इन्हीं दो अंग्रेजी नामों के अर्थ को स्पष्ट करने वाली परिभाषाओं पर विचार किया जायेगा।

(1) ग्लीसन (Gleason)-“Descriptive linguistics, the discipline which studies languges in terms, internal structures.”

इस परिभाषा में ग्लीसन ने उस विषय को कहा है, जिसके अन्तर्गत भाषाओं का “डिस्क्रिप्टिव लिग्वस्टिक्स’ अध्ययन करते समय उनकी आन्तरिक संरचना को ध्यान में रखा जाता है।

परन्तु भाषाविज्ञान में भाषाओं का अध्ययन एवं विवेचन केवल उनकी आन्तरिक रचना की दृष्टि से ही नहीं किया जाता है अपितु उसके बाह्य रूप के संगठन को भी ध्यान में रखा जाता है। इस प्रकार ग्लीसन की यह परिभाषा भाषाविज्ञान के क्षेत्र को संकुचित कर देती है।

(2) प्रो. एन. पी. गुणे- “Comparative philogyor simply philology is the science of language, Philology strictly means the study of a language from the literary point of view’.

उपर्युक्त परिभाषा में प्रो. गुणे ने भाषाविज्ञान को तुलनात्मक भाषाविज्ञान या केवल भाषाविज्ञान कहा है। साहित्यिक दृष्टि से इसका मुख्य अर्थ भाषा का अध्ययन है।

(3) इनसाइक्लोपीडिया (ब्रिटेन का विश्व कोष)- “The world Philology a here. taken as meaning the science of language i.e. the study of the structure and development of languages, thus corresponding to linguistics.”

उपर्युक्त परिभाषा में भाषाविज्ञान के लिए Philology शब्द का प्रयोग किया गया है। इसको भाषा का विज्ञान कहा गया है। इसके अन्तर्गत उपर्युक्त परिभाषा के अनुसार, भाषाओं का अध्ययन उनकी रचना और विकास की दृष्टि से किया जाता है। इस परिभाषा के अनुसार Philology का जो अर्थ है वहीं अर्थ Linguistics शब्द का भी है।

इस प्रकार विश्व कोष की इस परिभाषा में जहां भाषाविज्ञान की भाषाओं की रचना और  विकास के अध्ययन का विज्ञान कहा गया है, वहीं एक महत्वपूर्ण संकेत भी दे दिया गया है कि  भाषाविज्ञान के लिए अंग्रेजी में सर्वाधिक प्रचलित दो नामों अर्थात् (philology) और Linguistics में कोई अन्तर नहीं है।

इस प्रकार भाषाविज्ञान को स्पष्ट करने वाली उपर्युक्त हिन्दी और अंग्रेजी की विभिन्न परिभाषाओं का अध्ययन करने से यह स्पष्ट होता है कि भाषाविज्ञान स्थूल रूप में भाषाओं का विज्ञान है। विज्ञान इसलिए है कि इसमें भाषा के विविध अंगों का वैज्ञानिक आधार पर अध्ययन एवं विवेचन किया जाता है। इस अध्ययन का प्रमुख आधार भाषाओं की ऐतिहासिकता और तुलनात्मकता है। इस ऐतिहासिक और तुलनात्मक अध्ययन के अन्तर्गत भाषा की उत्पत्ति, उसकी संरचना, उसका विकास और विकास के प्रमुख कारणों की विवेचना होती है। इस विवेचन के पश्चात् उसके सम्बन्ध में कतिपय सिद्धान्तों का निर्धारण होता है। जो भाषा के वैज्ञानिक स्वरूप को स्पष्ट करते हैं।

भाषा विज्ञान – महत्वपूर्ण लिंक

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Pankaja Singh

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