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एक वैवाहिक विडम्बना एकांकी की समीक्षा | भुवनेश्वर-श्यामा की एकांकी एक वैवाहिक विडम्बना | एकांकी तत्वों के आधार पर ‘श्यामा – एक वैवाहिक विडम्बना’ एकांकी की समीक्षा

एक वैवाहिक विडम्बना एकांकी की समीक्षा | भुवनेश्वर-श्यामा की एकांकी एक वैवाहिक विडम्बना | एकांकी तत्वों के आधार पर ‘श्यामा – एक वैवाहिक विडम्बना’ एकांकी की समीक्षा

एक वैवाहिक विडम्बना एकांकी की समीक्षा

(1) कथानक-

श्यामा एक वैवाहिक विडम्बना विवाह और प्रेम के अन्तर्द्वन्द्व को लेकर विकसित होने वाली एकांकी है। एकांकी में कुल पाँच पात्र अमरनाथ पुरी, श्यामा, अप्पी, मनोज और हीरा हैं। मिस्टर अमरनाथ पुरी के जाजै टाउन में स्थित बंगले में एक मेहमान का पदार्पण होता है, जिसका नाम मनोज है। मनोज मिस्टर अमरनाथ पुरी की धर्मपत्नी मिसेज श्यामा पुरी का प्रेमी है। वह प्रत्येक क्षण स्वप्न में खोया रहता है। मिसेज पुरी को लगता है कि मनोज का यहाँ रहना मिस्टर अमरनाथ पुरी को अच्छा नहीं लग रहा है। मिसेज श्यामापुरी अपनी इस आशंका के स्पष्टीकरण के लिए अपने पति अमरनाथ पुरी से पूछती है कि क्या आप मनोज से ईर्ष्या रखते हो तो मिस्टर अमरनाथपुरी यह कहकर मिसेज श्यामापुरी की बात को नकार देते हैं कि “उस अर्द्ध बालिका से मैं ईर्ष्या क्यों रखूगा जो प्रत्येक्ष क्षण अपने पुरुष होने के लिए क्षमा याचना करता है। मिस्टर हमरनाथ पुरी के इस जवाब से मिसेज श्यामापुरी को यह संदेह होने लगता है कि उनका पति उनसे प्रेम नहीं करता है। मिसेज पुरी ने चूँकि मिस्टर अमरनाथ पुरी से विवाह किया है, इसलिए समाज के सामने उनसे प्रेम करना उनकी मजबूरी है। मिसेज पुरी अपनी जीविका के लिए अपने आपको मिस्टर अमरनाथ पुरी के हाथ अपने आप को बेचा है और वह चाहती है कि इस कठोर सत्य को जानकर भी मिस्टर अमरनाथ पुरी उनसे प्रेम करें। मिसेज श्यामापुरी एक भावुक महिला हैं। उनकी बातों में मिस्टर अमरनाथ पुरी को कविता नजर आती है।

भुवनेश्वर ने प्रस्तुत एकांकी “श्यामा – एक वैवाहिक विडम्बना” एकांकी के माध्यम से मनुष्य के भीतर छिपे हुए भावों की विविध पर्तों को उद्घाटित करने का प्रयत्न किया है। प्रेम और विवाह, स्वप्न और यथार्थ के मध्य क्या सम्बन्ध है? उसमें एक व्यक्ति ऐसा है जो सिर्फ यथार्थ में जीता है, दूसरा व्यक्ति ऐसा है जो कल्पना और स्वप्न में जीता है।

समाज में प्रेमी और पति के आन्तरिक संघर्ष की स्थितियाँ पृथक-पृथक दृष्टिगोचर होती है। एकांकी में यहाँ दोनों को आमने सामने ला दिया है। एक पात्र मात्र अपने मन की गुत्थी नहीं खोलता है, तो दूसरा पात्र मनोज कहता है कि समाज ने हृदयहीन लौह विधि द्वारा श्यामा को तुम्हारी बनाया है लेकिन वह तुम्हारी नहीं हो सकती, जिस व्यक्ति से स्त्री की एक भी भावना का मेल नहीं खाती, वह किसी पुरुष की कैसे हो सकती है? तुम्हारा प्रेम भी अपनी वासनाओं की तृप्ति के लिए है। इस प्रकार प्रस्तुत एकांकी में बहुत ही प्रबल तरीके से प्रेम और विवाह की विडम्बना को प्रस्तुत किया गया है।

(2) पात्र और चरित्र चित्रण-

प्रस्तुत एकांकी में कुल पाँच पात्र हैं। श्यामा स्त्री पात्र है। मिस्टर अमरनाथ पुरी श्यामा का पति है। मनोज मिसेज श्यामा का प्रेमी है। हीरा मिस्टर पुरी का नौकर है और अपी बाहरी व्यक्ति है। जो एकांकी में एक क्षण के लिए प्रकट होकर विलुप्त हो जाता है। आकस्मिकता भुवनेश्वर की टेकनीक की सबसे बड़ी विशेषता है। इसी आकस्मिकता की बीच ही समस्त घटना घटती है तथा वार्तालाप होता रहता है। यह एकांकी विषय की दृष्टि से तो नवीन है, परन्तु चरित्र-चित्रण की दृष्टि से कुछ उलझा हुआ है। इसमें किसी व्यक्ति का कोई खास चरित्र नहीं है। मिस्टर अमरनाथ पुरी मनोविश्लेषक टाइप के व्यक्ति हैं, जो अपना कार्य अत्यन्त सतर्कता के साथ करते रहते हैं। उनकी बात चीत का ढंग रहस्यपूर्ण है। मनोज प्रायः आधी बात कहता है और अपनी कल्पना में खोया रहता है। उसकी बात चीत का ढंग आरम्भ से ही यह घोषित करता है कि वह किसी रहस्य के फेर में है और अन्त में उसका स्वरूप स्पष्ट हो जाता है। वह श्यामा से प्रेम की मनोग्रन्थि का उद्घाटन कर ही देता है। श्यामा भी पति से अधिक प्रेमी को महत्व देती है। वह मिस्टर पुरी को अपनी जीविका का साधन मात्र मानती है। हीरा नौकर है और नौकर तक ही सीमित रहकर जी हुजूरी में लगा रहता है।

(3) कथोपकथन-

प्रस्तुत एकांकी के सम्वाद प्राया छोटे हैं और वाक्य टूट हुए है, जो मानसिक संघर्ष के परिचायक हैं। प्रत्येक पात्र कम-से-कम योलता है केवल उतना ही जितना अनिवार्य है। उदाहरणार्थ-

मिस्टर पुरी- (सहसा) व्येरा! व्येरा! हीरा।

(हरी सर्ज की अचकन में शीत से कांपते हुए एक अधेड़ मनुष्य का प्रवेश। सिर पर साफा, पैन नग्न, पैजामें में उन्हें बराबर छिपाने की चेष्टा करता है।)

हीरा- हुजूर

मिस्टरपुरी- बाहर भी इतनी सर्दी है?

हीरा- (मतलब न समझकर) जी नहीं, हाँ पानी बरसने ही वाला है।

मिस्टरपुरी- मेम साहब कहाँ हैं?

हीरा- (और भी अधिक नम्र होकर) चाय पी रही हैं, हुजूर उन्हें मालूम है, आप यहाँ हैं।

मिस्टरपुरी- (रुककर) और वह बाबू जो कल आएं हैं?

हीरा – उन्हें बहुरानी ने अभी जगाया है (हँसने की चेष्टा करता है, पर मिस्टर पुरी की ओर देखकर सहसा गम्भीर हो जाता है)

मिस्टरपुरी – हूँ।

हीरा – क्या उन्हें यहाँ भेज दूं सरकार?

इसी प्रकार कथोपकथन का एक दूसरा उदाहरण मिस्टर पुरी और मिसेज पुरी के बीच देखिए-

मिस्टरपुरी – तुमने चाय पी ली शम्मी?

मिसेजपुरी – हाँ। तुम स्वस्थ तो हो (गम्भीर आकृति से) कैसे जाड़ा पड़ रहा है, तुम ओवर कोट भी नहीं पहनते। हीरा (उत्तर की प्रतीक्षा न करके) साहब का लम्बा कोट ले आओ।

मिस्टरपुरी – मनोज को चाय पिलाओ।

मिसेजपुरी – वह नहीं पियेगा, उसे अपने स्वप्न का बड़ा शौक है (इस बार तनिक भी नहीं हँसती हैं।)

मिस्टरपुरी – (सुखी हँसी हँसकर) मुझे इसका बालकों के समान कोरी आँखों से एक क्षण में प्रफुल्लित और शोकान्वित होना, बहुत प्रिय लगता है।

मिसेजपुरी – और उसका क्रोध। अभी मुझसे बिगड़ रहा था, मैंने मुस्कुराकर उसकी ओर देखा और बस बालिकाओं का लजा होगा।

मिस्टर पुरी – ( दो क्षण गंभीर नीरवता रहती है। सहसा) आज क्या वह जायेगा?

मिसेजपुरी – हाँ, मैंने उससे कह दिया।

मिस्टरपुरी – क्यों ?

मिसेजपुरी – क्यों? (उनकी आँखों में एकटक देखकर) क्योंकि तुम उससे ईर्ष्या रखते हो।

भाषा-

प्रस्तुत एकांकी की भाषा बहुत ही सशक्त एवं सारगर्भित है। भाषा की व्यंजकता सराहनीय है। भुवनेश्वर के सम्वादों में नाटकीयता अधिक रहती है। उनकी एकांकियों की शिल्प पद्धति पर पाश्चात्य एकांकी साहित्य का गहरा प्रभाव है।

उद्देश्य-

प्रस्तुत एकांकी में पारिवारिक जीवन का युगबोध चित्रित है। पारिवारिक क्षेत्र में होने वाले संघर्ष का चित्र खींचकर लेखक नारी के प्रति पुरुष के दृष्टिकोण को उजागर करना तथा उन पहलुओं को उजागर करना जो मित्रता की मधुरता को तिक्तता में परिणित कर देते हैं।

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Pankaja Singh

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