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चीफ की दावत कहानी का मूल्यांकन | भीष्म साहनी – चीफ की दावत | कहानी कला की दृष्टि से चीफ की दावत का मूल्यांकन

चीफ की दावत कहानी का मूल्यांकन | भीष्म साहनी – चीफ की दावत | कहानी कला की दृष्टि से चीफ की दावत का मूल्यांकन

चीफ की दावत कहानी का मूल्यांकन

‘चीफ की दावत’ भीष्मसाहनी की आधुनिक समाज में बदलते रिश्तों पर आधारित एक मर्मस्पर्शी कहानी है। कहानी में कथानक और पात्र तो मात्र बहाना है, असली मकसद है उस नवीन संस्कृति का चित्रण करना जो गाँवों से स्थानान्तरित होकर शहरों में विकसित हुई है और हो रही है। आधुनिक शिक्षा का प्रचार होने के साथ-साथ गाँवों के तमाम लोग पढ़-लिखकर शहरों में बस गये। इस नव-शिक्षित समुदाय में पुरानी ग्राम्य संस्कृति और नवीन नगरीय संस्कृति का विचित्र सम्मिश्रण हो गया है। पढ़े लिखे बहू-बेटों के साथ उनके माँ बाप भी आकर शहर में रहने लगे। बहू-बेटे शहरी और मां-बाप गंवार। घर में तो यह सम्मिश्रण उतना विचित्र नहीं लगता, किन्तु बाहर से जब कोई ऐसा व्यक्ति आ जाता है, जो ग्राम्य संस्कृति से परिचित नहीं है तो गृहस्वामी को यह भय सताने लगता है कि कहीं उसके मां-बाप के नाते उसकी भद्दगी न हो जाय, लोग उसकी हंसी न उड़ायें। इस स्थिति से बचने के लिए लोग अपने बूढ़े माँ-बाप को मेहमानों की नजर से बचाने की कोशिश करते हैं। लेकिन विडम्बना यह है कि जिसे वे छुपाने का लाख जतन करते हैं, वह किसी-न-किसी बहाने मेहमान के सामने आ जाता है और तब पहले से बनायी गयी सारी योजनाएं विफल हो जाती हैं और स्थितियां स्वयं जो रूप लेना चाहें, ले लेती हैं, उन्हें नियन्त्रण में रखना सम्भव नहीं होता। ऐसी ही एक विचित्र स्थिति को मन में रखकर कहानीकार ने इस कहानी का निर्माण किया है।

मि. शामनाथ एक पढ़े-लिखे भद्र पुरूष हैं। वे दिल्ली के किसी दफ्तर में असिस्टेन्ट अथवा अन्य किसी ओहदे पर हैं। उनकी पत्नी भी उन्हीं के अनुरूप सुशिक्षित महिला हैं। शामनाथ के साथ उनकी बूढ़ी माँ भी रहती हैं। एक दिन शाम को मि0 शामनाथ के घर उनके बड़े साहब (चीफ) दावत पर आने वाले हैं। मि0 शामनाथ और उनकी पत्नी मेहमानों की आव-भगत में आकाश-पाताल एक किये हुए हैं। वे चाहते हैं कि सभी चीजें ऐसे करीने और सलीके से रखी जायें कि उनके साहब और साहब के साथियों को कहीं कोई ऐसी चीज न दिखे जो उन्हें फूहड़ लगे। सब तो ठीक हो गया लेकिन उसी बीच शामनाथ को याद आया कि वे अपनी बूढी माँ का क्या करें। उन पर मेहमानों की नजर पड़ गयी और उनके साथ उनका वार्तालाप हो गया तो सारा किया धरा चौपट हो जायेगा। शामनाथ जी मां को मेहमानों की नजर से बचाने की योजना बनाते हैं और माँ को तदनुरूप आचरण करने की हिदायत दे देते हैं। बेचारी माँ बड़ी सीधी हैं। वे बेटे की मजबूरी समझती हैं और उसके साथ पूरा सहयोग करना चाहती है। बेटे की हिदायत के अनुसार वे तत्काल कपड़े-लते पहनती हैं और भविष्य में जो कुछ करना है उसे जेहन में बैठाकर तदनुसार आचरण करने को तैयार हो जाती हैं, लेकिन उधर बहू-बेटे अपने काम में व्यस्त हुए, इधर माँ उनकी हिदायतों को भूल गयीं। बेटे ने उन्हें जहाँ बैठा दिया था, वहीं बैठे-बैठे उन्हें नींद आ गयी। आगे उन्हें जो कुछ करना था वह न कर सकी। इतने में जिसका डर था, वही हो गया। चीफ जैसे ही ड्रिंक लेकर डिनर के लिए अन्दर जाने लगे, उनका सामना शामनाथ की बूढ़ी माँ से हो गया। शामनाथ के तो हाथ पाँव फूल गये, लेकिन चीफ थे बड़े दिलचस्प आदमी। उन्हें बूढ़ी माँ की भोली हरकतें पसन्द आयीं और उन्होंने उसका कोई बुरा नहीं माना, बल्कि प्रसन्न ही हुए। शामनाथ के जी में जी आया। उन्हें यह सोचकर तसल्ली हुई कि माँ के नाते उनकी स्थिति खराब होने के बजाय अच्छी ही हो गयी। लेकिन बेचारी माँ को जिस तरह नौटंकी का भाँड बनाया गया उससे वे बड़ी दुःखी हुईं। उन्होंने बेटे का घर छोड़कर तीर्थ जाने का इरादा बनाया। जब बेटे को उनके इरादे का पता चला तो वे यह सोचकर दुःखी हुए कि माँ के चले जाने से उनका नुकसान होगा, क्योंकि चीफ ने पुनः मां से मिलने की इच्छा प्रकट की है। अतः बेटे ने माँ की इच्छा के विरुद्ध उन्हें तीर्थ जाने से रोक लिया। माँ भी बेटे की तरक्की के ख्याल से रुक गयीं। इस तरह दोनों फिर साथ-साथ एक ही घर में रहने लगे।

कहानी में पात्र तो बहुत हैं, चीफ के साथ आये हुए मेहमानों और उनकी पत्नियों को शामिल कर लेने से संख्या और बढ़ जाती है। लेकिन मुख्य पात्र केवल तीन हैं। मि. शामनाथ, उनकी बूढ़ी मां और स्वयं चीफ जो दावत पर आने वाले हैं और जिनकी आवभगत के लिए यह सब ताम-झाम किया गया है। जैसा कि कहा गया, मि. शामनाथ पढ़े-लिखे भद्र पुरूष हैं। पहले उनके घर में बड़ी गरीबी थी। विधवा मां ने अपने जेवर-गहने बेचकर उन्हें पढ़ाया लिखाया। आखिरकार वे पढ़-लिखकर छोटे अथवा बड़े सरकारी ओहदे पर हो गये। वे माँ के अहसानों को भूले नहीं हैं, लेकिन नयी संस्कृति के मोह जाल में फंसकर माँ से कुछ दूर अवश्य हो गये हैं। जब भी कोई अपरिचित व्यक्ति घर में आता है तो माँ की सरलता, उनका भोलापन मि. शामनाथ को भारी पड़ता है और इसलिए वे चाहते हैं कि जहाँ तक हो सके, किसी बाहरी आदमी से माँ का सामना न होने पाये, लेकिन आधुनिक शिक्षा ने उन्हें इतना समझदार बना दिया है कि जब कभी माँ के नाते उन्हें कोई फायदा नजर आता है तो वे उसे भुनाने में नहीं चूकते। मि. शामनाथ को केन्द्र में रखकर लेखक ने नवशिक्षित समुदाय पर करारा व्यंग्य किया है। आज के पढ़े-लिखे आदमी के लिए न कोई माँ है, न कोई बाप, जिससे उनका फायदा हो, वहीं उनके सब कुछ हैं। वह सच्चा स्नेह जो कभी संयुक्त परिवार में देखने को मिलता था, नये शहरी परिवारों में बिल्कुल लुप्त हो गया है। मि. शामनाथ ऐसे ही नवशिक्षित समुदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं।

बूढ़ी माँ गाँव की गैर पढ़ी-लिखी, सीधी-सादी, भोली-भाली महिला हैं। शहर के चोंचले उन्हें नहीं आते, नहीं भाते। उन्हें बहू-बेटों से प्यार है। वह इतनी समझदार हैं कि बहू-बेटों की मजबूरियाँ समझती हैं। इसलिए जहाँ तक सम्भव होता है, बाहरी व्यक्तियों के सम्मुख आने से बचती हैं। फिर भी यदि कभी किसी के सामने पड़ गयीं और उसने उनका मजाक उड़ाया तो उन्हें बड़ा दुःख होता है। वे पढ़ी-लिखी भेले न हों, समझती सब कुछ हैं। उनका हृदय बहुत कोमल है। एक माँ के दिल में बेटे के लिए जो मुहब्बत होनी चाहिए वह उनके दिल में विद्यमान है। लेकिन कहीं इस बात का खटका भी है कि बहू-बेटों के साथ रहकर उन्हें जो सुविधा-सम्मान मिलना चाहिए वह मजबूरी में ही सही, नहीं मिल रहा है। इसीलिए वे बेटे का घर छोड़ तीर्थयात्रा करने की इच्छा प्रकट करती हैं।

चीफ अमेरिकी अफसर हैं। बड़े दिलचस्प आदमी हैं। सम्भवतः अमेरिकी लोग ऐसे ही होते हैं जिन माँ को मि, शामनाथ चीफ के सामने लाने में डरते थे और बरबस जिनका सामना हो जाने से उनके हाथ-पाँव फूल रहे थे, उन्हीं से चीफ बड़े सहज ढंग से मिले और मिलकर प्रसन्न हुए। मि. शामनाथ को पहले से पता होता कि चीफ इतने सहज ढंग से उनकी माँ से मिलेंगे तो कदाचित वे अपनी माँ को उनकी नजरों से दूरे रखने के लिए इतने जतन न करते।

कहानी में संवाद खूब रखे गये हैं। कथन को गति प्रदान करने और पात्रों के मनोभावों का चित्रण करने में संवादों का समान रूप से योगदान है। सभी संवाद छोटे और व्यावहारिक हैं। पूरी कहानी का यदि मंच पर नाट्य रूपान्तर प्रस्तुत किया जाये तो वह बहुत रोचक और प्रभावशाली सिद्ध होगा। पूरी कहानी एक छोटा सा नाटक जान पड़ती है। बहुत कम कहानियों में इतनी नाटकीयता देखने को मिलती है।

भाषा नितान्त सरल और व्यावहारिक है, लेकिन प्रत्येक स्थिति का चित्रण करने की पूरी क्षमता उसमें विद्यमान है। कहानी का आरम्भ बड़े नाटकीय ढंग से हुआ है और प्रारम्भ में ही मि0 शामनाथ और उनकी सुसंस्कृत पत्नी की व्यस्तता का यह चित्र पाठकों का ध्यान बरबस अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। “शामनाथ और उसकी धर्मपत्नी को पसीना पोंछने की फुर्सत न थी। पत्नी ड्रेसिंग गाउन पहने उलझे हुए बालों का जूड़ा बनाये, मुंह पर फैली हुई सुखी और पाउडर को मले और मि. शामनाथ सिगरेट-पर-सिगरेट फूंकते हुए चीजों की फेहरिस्त हाथ में थामे एक कमरे से दूसरे में आ जा रहे थे।” जिन्होंने रामचरितमानस का अध्ययन किया है वे जानते होंगे कि इसी तरह को कुछ व्यस्तता अयोध्या में राम के राज्याभिषेक के समय थी।

कहानी के मध्य में ड्रिंक के कुछ दृश्य का कैसा सजीव चित्रण लेखक ने किया है- “शामनाथ की पार्टी सफलता के शिखर चूमने लगी। वार्तालाप उसी रौ में बह रहा था, जिस रौ में गिलास भरे जा रहे थे। कहीं कोई रुकावट न थी, कोई अड़चन न थी। साहब को ह्विस्की पसन्द आयी थी। मेमसाहब को पर्दे पसन्द आये थे, सोफा कवर का डिजाइन पसन्द आया था, कमरे की सजावट पसन्द आयी थी- इससे बढ़कर क्या चाहिए। साहब तो ड्रिंक के दूसरे दौर में ही चुटकुले कहानियाँ कहने लग गये थे। दफ्तर में जितना रौब रखते थे यहाँ उतने ही दोस्त प्रवर हो रहे थे और उनकी स्त्री काला गाउन पहने, गले में सफेद मोतियों का हार, सेन्ट और पाउडर की महक से ओत-प्रोत, कमरे में बैठी सभी देशी स्त्रियों की आराधना का केन्द्र बनी हुई थीं। बात-बात पर हँसती, बात-बात पर सिर हिलाती और शामनाथ की स्त्री से तो ऐसे बातें कर रही थीं जैसे उसकी पुरानी सहेली हों। इसी रौ में पीते-पिलाते साढ़े दस बज गये। वक्त गुजरता गया पता ही न चला।”

जिस समय चीफ साहब का सामना मि. शामनाथ की बूढ़ी माँ के साथ हुआ, उस समय की उनकी स्थिति का वर्णन लेखक ने रोचक अन्दाज में किया है। शायद ही कोई व्यक्ति हो जो उस दृश्य को पढ़कर अपनी हंसी रोक सके- “बरामदे में ऐन कोठरी के बाहर माँ अपनी कुर्सी पर ज्यों- की-त्यों बैठी थीं, मगर दोनों पाँव कुर्सी की सीट पर रखे हुए और सिर दायें-से-बायें और बायें-से-दायें झूल रहा था और मुंह से लगातार गहरे खर्राटों की आवाजें आ रही थीं। जब सिर कुछ देर के लिए टेढ़ा होकर एक तरफ को थम जाता, तो खर्राटे और गहरे हो उठते और जब झटके से नींद टूटती, तो सिर फिर दायें से बायें झूलने लगता। पल्ला सिर पर से खिसक आता था और माँ के झडे हुए बाल आधे गंजे सिर पर अस्त-व्यस्त बिखर रहे थे।”

बूढ़ी माँ को लेखक ने जिस रूप में प्रस्तुत किया है उसे देखकर कभी तो हंसने को जी चाहता है और कभी रोने को! प्रेमचन्द्र की बूढ़ी काकी की स्थिति शामनाथ की मां से कुछ ही बेदतर कही जायेगी। अन्तर सिर्फ है कि काकी अपने भतीजे के साथ रहती है और शामनाथ की माँ अपने बेटे के साथ। बुद्धिराम और उनकी पत्नी रूपा अशिक्षित और गंवार है, इसलिए वे अपना क्रोध असंयत ढंग से प्रकट करती हैं। शामनाथ और उनकी पत्नी दोनों सभ्य और सुशिक्षित हैं, इसलिए वे अपना गुस्सा भी संयत होकर जाहिर करती हैं। इसके अलावा बाकी सभी चीजों में काकी और माँ की स्थिति लगभग एक जैसी है।

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Pankaja Singh

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