
एक अच्छी परीक्षा की क्या विशेषताएँ | वर्तमान परीक्षा वे दोष | What are the characteristics of a good exam in Hindi | Current exam defects in Hindi
एक अच्छी परीक्षा की क्या विशेषताएँ
भूमिका– यदि परीक्षाओं का आयोजन ठीक ढंग से किया जाता है तो शिक्षा का उद्देश्य प्राप्त करने में सहायता मिलती है। सभी युगों में बालक को शिक्षा समाप्त होने के पश्चात् किसी न किसी रूप में परीक्षा आयोजित की जाती थी। परीक्षाओं को आजकल इतना महत्व दिया जाता है कि परीक्षाएं अत्यन्त महत्वपूर्ण हो गयी हैं। अतः हमारे लिए यह आवश्यक हो जाता है कि हम यह देखें कि एक अच्छी परीक्षा की क्या विशेषताएं हैं।
अच्छी परीक्षा की विशेषताएं
एक अच्छी परीक्षा में निम्नलिखित विशेषताएँ (Characteristics) होनी चाहिए-
(1) विश्वसनीयता (Reliability)- एक अच्छी परीक्षा का प्रथम गुण उसकी विश्वसनीयता है। इससे तात्पर्य यह है कि उस परीक्षा से मिलने वाले फलांक (Score) सदैव समान रहने चाहिए। समान परिस्थितियों में एक समान फल प्राप्त होना चाहिए। इस प्रकार एक विश्वसनीय परीक्षा वह है जिसमें सत्यता से मूल्यांकन हो जाता है। यदि एक परीक्षा द्वारा मापन की गयी बालक की योग्यता में स्थायित्व होता है तो उस परीक्षा को विश्वसनीय कहते हैं।
(2) वैधता या यथार्थता (Validity)- एक परीक्षा को तभी वैध कहा जाता है जब वह उसी योग्यता का मापन करता है जिसके लिए उसका निर्माण किया है। दूसरे शब्दों में, वैधता से आशय यह है कि परीक्षा उसी ज्ञान का मापन करे जिसके लिए उसे बनाया गया है। यह आवश्यक नही होता कि जिस परीक्षा में विश्वसनीयता होती है, उसमें वैधता भी हो।
(5) वस्तुनिष्ठता (Objectivity) – अच्छी परीक्षा की तीसरी विशेषता उसकी वस्तुनिष्ठता है। वस्तुनिष्ठता का प्रभाव विश्वसनीयता तथा वैधता पर भी पड़ता है। वस्तुनिष्ठता का तात्पर्य यह है कि परीक्षक के वैयक्तिक निर्णय का बालक द्वारा प्राप्त किये जाने वाले अंकों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। सभी परीक्षकों से प्राप्त प्राप्तांक समान होने चाहिए। परीक्षा के फलांकों पर किसी व्यक्तिगत रुचि का प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए। वस्तुनिष्ठता से यह भी तात्पर्य है कि प्रश्नों की भाषा ऐसी होनी चाहिए कि उसके अनेक अर्थ न निकाले जा सकें। एक प्रश्न के अनेक अर्थ वस्तुनिष्ठता को कम कर देते हैं।
(4) विभेदकता (Discrimination)- एक अच्छी परीक्षा की यह विशेषता है कि यह सामान्य बुद्धि, प्रखर बुद्धि तथा मन्द बुद्धि बालकों में अन्तर बता देती है। इसी आधार पर छात्रों का वर्गीकरण किया जाता है। परीक्षा में ऐसे प्रश्न रखे जाने चाहिए जो कठिन भी हों और सरल भी हों। कुछ ऐसे प्रश्न होने चाहिए जिनको केवल प्रखर बुद्धि वाले बालक ही हल कर सकें तथा कुछ ऐसे प्रश्न भी होने चाहिए जिनको सभी प्रकार के छात्र हल कर सकें। प्रश्न सरल से कठिन की ओर बढ़ना चाहिए।
(5) व्यापकता (Comprehensiveness) – एक अच्छी परीक्षा में प्रश्न इतने होने चाहिए कि वे उस योग्यता का मापन कर सकें जिसके लिए उसका निर्माण किया गया है। समग्रता या व्यापकता के अभाव में एक परीक्षा में वैधता आ ही नहीं सकती। इस प्रकार परीक्षा के द्वारा केवल एक अंग का मापन ही नहीं किया जाना चाहिए।
(6) प्रयोग करने में सुविधा (Easy to Administer) – एक अच्छी परीक्षा का अन्तिम गुण यह है कि उसे आसानी से प्रयोग किया जा सके। परीक्षा में व्यावहारिकता अवश्य होनी चाहिए। परीक्षा ऐसी हो जिसका मूल्यांकन आसानी से किया जा सके। इसका प्रयोग भी सुविधापूर्वक किया जा सके।
वर्तमान परीक्षा के दोष
वर्तमान परीक्षा में अनेक दोष हैं। इसके कुछ दोष इस प्रकार हैं-
(1) आजकल शिक्षा का उद्देश्य बालकों के व्यक्तित्व का विकास करना न होकर, छात्रों को परीक्षा के लिए तैयार करना हो गया है।
(2) वर्तमान परीक्षा के द्वारा केवल यह मापन किया जाता है कि छात्रों को स्मरण शक्ति कितनी है। जो बालक जितना अधिक याद कर सकता है, उतने हो वह अच्छे अंक प्राप्त करने में सफल होता है। इस प्रकार वह परीक्षा ज्ञान का मापन न करके बालकों की स्मृति का मापन करती है।
(3) परीक्षा में प्राय: ऐसे प्रश्न पूछे जाते हैं जो पिछले वर्षों में भी पूछे जा चुके हैं। इस प्रकार छात्र सम्भावित प्रश्नों का पता सरलता से लगा लेते हैं। बालक वर्ष भर घूमते-फिरते हैं और परीक्षा से कुछ समय पहले प्रश्नों के उत्तरों को रटकर पास हो जाते हैं। इस प्रकार शिक्षण का वास्तविक उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है।
(4) आधुनिक परीक्षा बालकों के वास्तविक ज्ञान का मापन नहीं करती। परीक्षक अंक देने में विशेष सावधानी नहीं बरतते। अंक प्रदान करने में बहुत अधिक असमानता पायी जाती है।
(5) कभी-कभी परीक्षा में ऐसे प्रश्न पूछ लिए जाते हैं जो न तो उस कक्षा के स्तर के अनुकूल होते हैं और न पाठ्यक्रम से सम्बन्धित होते हैं। इस प्रकार छात्रों में असन्तोष फैलता है।
(6) कभी-कभी ऐसे प्रश्न भी पूछ लिए जाते हैं जिनकी भाषा इतनी अस्पष्ट होती है कि बालक उसका अर्थ ठीक से नहीं समझ पाते। अतः वे प्रश्नों का उत्तर सन्तोषजनक ढंग से नहीं दे पाते हैं।
(7) वर्तमान परीक्षा प्रणाली का एक दोष यह भी है कि एक साथ अनेक छात्रों की परीक्षाएँ आयोजित की जाती हैं। इस प्रकार परीक्षा सम्पन्न कराने में अनेक समस्याएँ उठ खड़ी होती हैं।
(8) आधुनिक परीक्षा में बालकों के पास होने के लिए केवल 33 प्रतिशत अंक लाने पड़ते हैं। यह प्रतिशत बहुत कम है।
(9) प्रश्नों के अंकन करते समय परीक्षक की मनोदशा का विशेष प्रभाव पड़ता है क्योंकि अंक प्रदान करने का कोई मापदण्ड नहीं होता।
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