शिक्षाशास्त्र

निबन्धात्मक परीक्षाएँ | निबन्धात्मक परीक्षा के दोष | निबन्धात्मक परीक्षाओं के गुण | निबन्धात्मक परीक्षाओं में प्रश्नों के प्रकार | निबन्धात्मक परीक्षाओं में सुधार के लिए सुझाव

निबन्धात्मक परीक्षाएँ | निबन्धात्मक परीक्षा के दोष | निबन्धात्मक परीक्षाओं के गुण | निबन्धात्मक परीक्षाओं में प्रश्नों के प्रकार | निबन्धात्मक परीक्षाओं में सुधार के लिए सुझाव | Essay Exams in Hindi | Disadvantages of Essay Exam in Hindi | Qualities of Essay Exams in Hindi | Types of Questions in Essay Exams in Hindi | Tips for improving essay exams in Hindi

निबन्धात्मक परीक्षाएँ

निबन्धात्मक परीक्षा के दोष

(Limitations of Essay type test)

1. प्रतिनिधित्व की कमी (Lack of representativeness) – सम्पूर्ण पाठ्यक्रम से कुल 10-12 प्रश्न दिये जाते हैं और उनमें से केवल 5 प्रश्न करने होते हैं। अतः ये थोड़े से प्रश्न सम्पूर्ण पाठ्यक्रम का प्रतिनिधित्व नहीं करते। इन 5 प्रश्नों में से भी यदि छात्र 2 या 3 प्रश्न करने पर भी विद्यार्थी 33% या 36% अंक प्राप्त करके सफलता पा जाते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि पाठ्यक्रम के केवल एक अंश के ज्ञान से सफलता प्राप्त की जा सकती है अतः छात्र सम्पूर्ण पाठ्यक्रम पढ़ने के बजाय केवल कुछ भाग का ही अध्ययन करते हैं।

2. अपर्याप्त न्यादर्श ( Incomplete sample) – जब केवल पाठ्यक्रम के कुछ भाग को पढ़ने से सफलता मिल जाती है तो छात्र निश्चित ही सम्पूर्ण पाठ्यक्रम नहीं पढ़ेंगे। दूसरे छात्र अक्सर कठिन अंश को भी छोड़ देते हैं। यदि छात्र 70% पाठ्यक्रम को ही याद कर लें तो उन्हें 5 प्रश्न करने को अवश्य मिल जाते हैं। 10-12 प्रश्न पूरे पाठ्यक्रम से छाँटना एक कठिन कार्य है।

3. एकरूपता की कमी (Lack of uniformity)- इन परीक्षाओं में परीक्षा का स्तर सदैव एक-सा नहीं रहता, जिसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं-

i. कुछ परीक्षक अत्यन्त कठिन प्रश्न-पत्र बनाते हैं, कुछ अत्यन्त सरल प्रश्न-पत्र बनाते हैं।

ii. एक विश्वविद्यालय या बोर्ड का पाठ्यक्रम तथा किसी निश्चित विषय को पढ़ाने का निर्धारित समय भिन्न-भिन्न होता है, अत: परीक्षाओं में प्रश्न-पत्रों का स्वरूप भी उसके अनुसार होता है।

iii. प्रश्न-पत्र को कठिनाई, स्तर एवं स्वरूप हर वर्ष एक जैसा नहीं रहता।

iv. विभिन्न विषयों के प्रश्न-पत्रों का स्तर तथा प्राप्त अंकों का औसत असमान होता है।

4. संयोग पर निर्भर (Depend of chance) – निबन्धात्मक परीक्षाओं में सफलता किसी हद तक संयोग पर निर्भर करती है। यदि किसी विद्यार्थी ने समयानुसार केवल वही भाग पढ़ा हो जिससे अधिक प्रश्न पूछे गये हों तो वह अच्छे अंक प्राप्त कर लेगा। यदि किसी अच्छे छात्र ने बाकी सब कुछ पढ़ा हो और दुर्भाग्यवश वही भाग छोड़ दिया हो जिससे प्रश्न पूछे गये हों वह असफल रहेगा। अतः इन परीक्षाओं में कभी-कभी अप्रत्याशित परिणाम प्राप्त होते हैं। अच्छे विद्यार्थी असफल हो जाते हैं और मूर्ख अच्छे अंक लेकर सफल हो जाते हैं।

5. परीक्षार्थी की निपुणता का लाभ (Benefit of Examinee’s cleverness) — यदि परीक्षार्थी परीक्षा में अंक प्राप्त करने की कलाओं में निपुण है तो वह कम ज्ञान होते हुए भी अधिक अंक प्राप्त कर लेता है। निपुण विद्यार्थी जानते हैं कि किस प्रकार उत्तर लिखें, अनुमान लगायें, परीक्षक को प्रभावित करें। ऐसे विद्यार्थी परीक्षा में महत्त्वपूर्ण वाक्यों के नीचे रेखा खींचकर विभिन्न रंगों को स्याही से लिखकर चित्र तथा तालिकाएँ बनाकर परीक्षकों का मन मोह लेते है।

6. तोता-रटन पर बल निबन्धात्मक परीक्षायें तोता रटन पर आधारित हैं। ये केवल स्मरण शक्ति का ही मापन कर पाती हैं। ज्ञानोपार्जन तथा निष्पत्ति का सही मापन निबन्धात्मक परीक्षाओं द्वारा नहीं किया जा सकता। निबन्धात्मक परीक्षाओं में सम्पूर्ण पाठ्यक्रम से थोड़े से प्रश्न आते हैं। यदि कोई छात्र सम्भावित प्रश्न रट लेता है तो वह उन विद्यार्थियों से अधिक अंक प्राप्त कर लेता है जो रटने में निपुण नहीं हैं। अक्सर निबन्धात्मक पराक्षाओं में कुछ प्रश्न बार-बार पूछे जाते हैं इसी कारण छात्र उन्हीं प्रश्नों को रट लेते हैं। प्रायः परीक्षक भी रटकर लिखे उत्तरों पर अधिक अंक देते हैं।

7. परीक्षक की सोच (Examiner bias)- परीक्षकों के व्यक्तित्व, अभिवृत्तियों, विचार, ज्ञान, मानसिक स्थिति आदि का प्रभाव परीक्षार्थी के अंकों पर पड़ता है। कई बार एक ही कापी को जब एक ही परीक्षक अलग-अलग समय पर मूल्यांकन करता है तो उसके द्वारा दिये गये अंक असमान होते हैं। अलग-अलग परीक्षक अलग-अलग प्रकार से अंक देते हैं। उदाहरण के लिए गणित में औसत अंक प्राप्त अंग्रेजी के औसत अंकों से अधिक होते हैं। विज्ञान वर्ग में प्रथम श्रेणी के छात्रों की संख्या साहित्यिक वर्ग में प्रथम श्रेणी के छात्रों की तुलना में कहीं अधिक होती है। परीक्षकों के आत्मनिष्ठता के कुछ कारण इस प्रकार है-

a. बाह्य परीक्षक विद्यार्थियों को लेखन-शैली, अभिव्यक्ति तथा हस्तलेखन का भी लाभ बच्चों को देता है, क्योंकि उसे पूरे वर्ष के कार्य का ज्ञान नहीं होता।

b. परीक्षकों द्वारा दिये गये अंक उनके उस समय के मनःस्थिति, पारिवारिक स्थिति, मानसिक स्थिति आदि पर आधारित होते हैं।

c. कौन सा तथ्य सही है, कौन-सा गलत, कितना लिखना है क्या लिखना है, क्या छोड़ना है। किस पर क्या छोड़ना है। किस पर अधिक ध्यान देना है, किस भाग पर कम ध्यान देना है इस बारे में विभिन्न परीक्षकों का निर्णय भी अलग-अलग होता है। कुछ परीक्षक यह देखकर अंक देते हैं कि छात्र ने कितना सही लिखा है, कुछ यह देखकर अंक देते हैं कि छात्र ने क्या-क्या गलतियों की हैं।

d. निबन्धात्मक परीक्षाओं में प्रश्नों के उत्तर छात्र को अभिवृत्तियों, विचारों आदि से प्रभावित होते हैं। यदि छात्र तथा परीक्षक के विचार एक जैसे हों तो वह अधिक अंक प्राप्त करेगा और यदि विचारों में विभिन्नता है तो परीक्षक अंक काट लेता है।

e. अधिकतर परीक्षक समयाभाव के कारण केवल पृष्ठ गिनकर या सामान्य प्रभाव को देखकर औसत अंक दे देते हैं। वे उत्तर के प्रत्येक भाग को नहीं देखते।

f. प्रत्येक परीक्षक का अंक देने का औसत अलग-अलग होता है, कुछ परीक्षक अंकों का औसत अधिक रखते हैं, कुछ कम। कुछ परीक्षक पहले से निर्धारित कर लेते हैं कि यह अंक इससे अधिक और इससे कम देगा।

f. प्राय: परीक्षक कापियों को जाँच एक निश्चित क्रम में करते हैं जैसे कापियाँ क्रमबद्ध होती है यदि शुरू में कापियाँ अच्छे बच्चों की आ जाती हैं तो बाद वाले बच्चों के अंकों पर इसका प्रतिकूल असर पड़ता है। यदि शुरू में कमजोर छात्रों की कापियाँ आ जायें तो बाद में सामान्य बच्चों को भी अच्छे अंक मिल जाते हैं।

8. उत्तरों के मूल्यांकन से विद्यार्थी अनभिज्ञ – निबन्धात्मक परीक्षाओं में मूल्यांकन होने के बाद विद्यार्थियों को उत्तर पुस्तिकायें नहीं दिखाई जातीं। विद्यार्थी यह नहीं जान पाते कि उन्हें किस आधार पर अंक दिये गये हैं। विद्यार्थी केवल अन्दाजा ही लगाते हैं। उन्हें कमियों का पता नहीं चलता। निबन्धात्मक प्रश्नों के उत्तर विभिन्न पुस्तकों में विभिन्न ढंग से दिये होते हैं। अतः छात्र द्वारा लिखने का ढंग शिक्षक के सोचने के ढंग से बिल्कुल समान तो नहीं हो सकता; अतः छात्र उत्तर-पुस्तिकाओं के देखने के बाद भी असन्तुष्ट ही रहते हैं।

9. विश्वसनीयता एवं वैधता का अभाव (Lack of reliability & validity) – निबन्धात्मक परीक्षायें न तो विश्वसनीय होती हैं और न ही वैध (validity): क्योंकि अलग-अलग परीक्षक एक ही उत्तर पुस्तिका पर अलग-अलग अंक देते हैं। इन परीक्षाओं का विश्वसनीय, गुणांक (Reliability co-efficient) काफी कम होता है। प्राप्तांक केवल उत्तर के गुण पर आधारित न होकर अन्य कई बातों से भी प्रभावित होते हैं, जैसे- छात्र का उत्तर प्रस्तुत करने का ढंग परीक्षक के विचार, उसकी मानसिक परिस्थिति आदि। अतः इस प्रकार के परीक्षण में वैधता का अभाव पाया जाता है।

10. प्रश्नों का पूर्वकथन (Prediction of questions ) – परीक्षायें एक निश्चित पाठ्यक्रम पर आधारित होती हैं तथा इस पाठ्यक्रम से हर वर्ष 10-12 प्रश्न आते हैं। प्राय: यह देखा जाता है कि कुछ प्रश्न परीक्षाओं में बार-बार पूछे जाते हैं। पिछले वर्षों में आये प्रश्नों के आधार पर विद्यार्थी परीक्षा से पहले परीक्षा में आने वाले सम्भावित प्रश्नों का पता लगा लेता है और उन्हीं को रटता है जिनसे प्राय: उसे 5 प्रश्न मिल जाते हैं। इस प्रकार विद्यार्थी पूरा पाठ्यक्रम न पढ़कर केवल कुछ प्रश्नों पर ही केन्द्रित रहता है।

11. प्रशासन में अनेकरूपता (Lack of uniformity in Administration ) – सभी परीक्षार्थियों को परीक्षा के दौरान समान सुविधायें नहीं मिल पातीं। एक जगह परीक्षार्थी अधिक सुविधा पाते हैं तो दूसरी जगह कम। पर्यवेक्षण भी सभी जगह एक-सा नहीं रहता। पर्यवेक्षक का व्यवहार कक्ष में प्रकाश, बैठने की व्यवस्था, परीक्षा को दिया गया समय, उत्तर- पुस्तिका का कागज आदि सभी परीक्षार्थियों के अंकों को प्रभावित करते हैं।

12. निदानात्मक उपयोग का अभाव (Lack of diagnostic use) – निबन्धात्मक पश्न अत्यधिक बड़े होते हैं; अतः छात्रों का मूल्यांकन ठीक प्रकार से नहीं हो पाता। वह किस क्षेत्र में कमजोर है इसका भी ज्ञान नहीं हो पाता, इस कारण उसकी कमजोरी का निराकरण नहीं किया जा सकता। उदाहरण के लिए यदि बी० ए० तृतीय वर्ष का छात्र सांख्यिकी में सह-सम्बन्ध छोड़ देता है तो वह प्रश्न-पत्र में अन्य दो प्रश्नों का उत्तर लिखकर प्रथम श्रेणी का अंक ला सकता है, जबकि वह सह-सम्बन्ध नहीं जानता है।

निबन्धात्मक परीक्षाओं के गुण (Merits of Essay type Examinations)—

आजकल अधिकतर परीक्षण-निर्माता नवीन परीक्षा प्रणाली के गुणों तथा निबन्धात्मक परीक्षा प्रणाली के दोषों को देखकर यह मान लेते हैं कि नवीन प्रकार की परीक्षा- प्रणाली उत्तम है तथा निबन्धात्मक परीक्षा प्रणाली एक बेकार परीक्षा प्रणाली है। किन्तु यह केवल  भान्ति ही है। अच्छे निबन्धात्मक परीक्षाओं के भी गुण हैं जो निम्नलिखित प्रकार हैं-

  1. उच्च मानसिक प्रक्रियाओं का मापन (Measurement of high order mental process)- निबन्धात्मक परीक्षाओं के व्यक्ति अपने विचारों को विस्तार से प्रकट करना है। इसमें सन्तोषजनक उत्तर देने के लिए उच्चस्तरीय मानसिक क्रियाओं की आवश्यकता होती है। विचारों को मौलिकता के मापन का उत्तम साधन निबन्धात्मक परीक्षाएँ ही हैं।
  2. भावों की स्वतन्त्र अभिव्यक्ति सम्भव (Freedom to express views ) – विबन्धात्मक परीक्षा में विद्यार्थी उत्तर अपने पास से लिखता है। वह उत्तर देने में स्वतन्त्र हैं। वह विभिन्न तथ्यों को अपने ढंग से प्रकट करता है जिससे उसके भावों का ज्ञान होता है। –
  3. गुणात्मक मूल्यांकन सम्भव (Qualitative evaluation is possible) — मूल्यांकन तथा मापन दो शब्द हैं- मूल्यांकन का अर्थ व्यापक है। उसमें भी गुणात्मक मूल्यांकन करना कठिन कार्य है। यह कार्य केवल निबन्धात्मक परीक्षाओं द्वारा ही सम्भव हैं। निबन्धात्मक परीक्षाओं द्वारा शाब्दिक अभिव्यक्ति, साहित्यिक शैली, विचारों का व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुतीकरण आदि का मूल्यांकन सम्भव है।
  4. व्यक्तित्त एवं चिन्तन-विधि पर प्रकाश (Give Value about personality and thinking of students) – निबन्धात्मक परीक्षा प्रणाली में छात्र को अपने विचार व्यक्त करने का पूर्ण अवसर मिलता है, जिस पर विद्यार्थी के व्यक्तित्व तथा चिन्तन का प्रभाव पड़ता है। छात्रों द्वारा प्रयोग की गई भाषा शैली एवं विचारों के आधार पर उसके व्यक्तित्व तथा चिन्तन- विधि का पता लगाया जा सकता है।
  5. विश्वसनीयता तथा वैधता (Reliability and Validity)- यह माना जाता है कि वस्तुगत परीक्षाएँ अधिक विश्वसनीय तथा वैध होती हैं। विश्वसनीयता तथा वैधता निबन्धात्मक परीक्षाओं की बढ़ायी जा सकती है। इसके लिए प्रश्नों की रचना में सुधार करके उनके प्रशासन तथा फलांकन में सुधार करके कुछ क्षेत्रों में तो निबन्धात्मक परीक्षायें वस्तुगत परीक्षाओं से अधिक वैध होती हैं, जैसे-तथ्यों की तुलना करने में, उनकी व्याख्या करने में, भाषा शैली के बारे में और निर्णय लेने में आदि।
  6. विभिन्न अध्ययन विधियों का विकास (Development of various study methods) – वस्तुगत परीक्षाओं तथा निबन्धात्मक परीक्षाओं में प्रश्नों का रूप भिन्न होता है। विद्यार्थी दोनों परीक्षाओं की तैयारी के लिए भिन्न-भिन्न प्रकार की अध्ययन विधियाँ अपनाते हैं। निबन्धात्मक परीक्षाओं के लिए छात्र अनेक वांछनीय विधियाँ अपनाते हैं जैसे सारांश लिखना, रूपरेखा बनाना तुलना करना, मुख्य प्रवृतियाँ एवं सम्बन्धों का पता लगाना, अन्तर करना आदि। ये परीक्षायें वस्तुगत परोक्षाओं की अपेक्षा अच्छे ढंग से सीखने पर बल देती हैं। वस्तुगत परीक्षाओं में छात्र केवल स्मरण करके या कभी-कभी अटकल लगाकर भी उत्तर दे देते हैं।
  7. सरल प्रश्न रचना (Simple structure of questions)– निबन्धात्मक प्रश्नों की रचना सरल है। केवल थोड़े से प्रश्नों से विस्तृत पाठ्यक्रम पर आधारित ज्ञान को माप लिया जाता है। निबन्धात्मक परीक्षाओं के लिए प्रश्न-पत्र बनाते समय प्रशासन, पद-विश्लेषण, मुल्यांकन प्रमाणीकरण, विश्वसनीयता एवं वैधता निर्धारण की लम्बी प्रवृत्ति की आवश्यकता नहीं पड़ता।
  8. कुछ पाठ्यक्रम पर केवल निबन्धात्मक प्रश्न ही सम्भव है (Only Essay type Examination on some curriculum) – निबन्धात्मक प्रश्न अधिकतर पाठ्यक्रम पर सुगमता से बनाये जा सकते हैं। विद्यालयों में पढ़ाये जाने वाले कुछ पाठ्यक्रमों पर तो वस्तुनिष्ठ प्रश्न नहीं बनाये जा सकते: अतः उनमें ज्ञान के मापन के लिए निबन्धात्मक प्रश्नों का ही सहारा लेता पड़ता है।
  9. नकल की कम सम्भावना (Less chance of copying) – निबन्धात्मक प्रश्नों के उन कोफी बड़े होते हैं, अत: परीक्षाओं में नकल करने की सम्भावना कम रहती है।

निबन्धात्मक परीक्षाओं में प्रश्नों के प्रकार (Types of Questions in Essay Type Examinations)– 

  1. सूची देना (To list)
  2. क्रम में रखना (To Arrange)
  3. छांटना या नाम बताना (To Name)
  4. वर्णन करना (To Describe)
  5. विवेचना करना (To Discuss)
  6. व्याख्या करना ( To Explain)
  7. तुलना करना (To Compare)
  8. परिभाषित करना (To Define)
  9. निदर्शन करना (To illustrate)
  10. निर्वचन करना (To Interpret)
  11. समालोचना करना (To Criticize)
  12. रूपरेखा बनाना (To make Outline)
  13. सारांश बताना (To summarize)
  14. उदाहरण देना (To give Example)
  15. सम्बन्ध बताना (To give relationship)
  16. वर्गीकरण करना (To Classify)
  17. तथ्यों का पुनर्संगठन (To Reorganize the Facts)

निबन्धात्मक परीक्षाओं में सुधार के लिए सुझाव (Suggestion to improve Essay type Examinations)-

निबन्धात्मक परीक्षाओं का प्रयोग एक लम्बे समय से होता आ रहा है और आज भी जब परीक्षण-निर्माता वस्तुनिष्ठ परीक्षणों की विशेषताओं का बखान करते हैं। निबन्धात्मक परीक्षायें अति आवश्यक हैं। इनके बिना ज्ञान का सम्पूर्ण मापन सम्भव नहीं हैं। इनमें कुछ कमियाँ अवश्य हैं। यदि हम निम्नलिखित सुझावों को मानकर निबन्धात्मक परीक्षणों में सुधार करें तो वास्तव में निबन्धात्मक परीक्षायें वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं से अच्छी संगठित होगी-

  1. निबन्धात्मक परीक्षाओं का सीमित उपयोग- निबन्धात्मक परीक्षाओं का उपयोग केवल वहीं पर करना चाहिए जहाँ वे उपयोगी हैं। जब वस्तुनिष्ठ परीक्षा द्वारा मापन सम्भव हो तथा यह निश्चित न हो कि निबन्धात्मक परीक्षाओं के अच्छे परिणाम आयेंगे तो निबन्धात्मक परीक्षाओं का कदापि उपयोग नहीं करना चाहिए। निबन्धात्मक परीक्षा विशेष रूप से योग्यता की अभिव्यक्ति मापन में तथा किसी विषय के समालोचनात्मक मूल्यांकन में करते हैं।
  2. प्रश्नों की भाषा एवं संख्या- प्रश्नों की भाषा अत्यन्त सरल तथा स्पष्ट होनी चाहिए, तथा विवेचन की मात्रा कम होनी चाहिए। भाषा सरल और स्पष्ट होने से छात्र उसका सही उत्तर देंगे। भ्रान्ति पैदा करने वाली भाषा का कभी प्रयोग नहीं करना चाहिए; जैसे- लोकतांत्रिक मूल्यों से आप क्या समझते हैं? प्रश्नों की भाषा ऐसी हो जिससे वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके। प्रश्नों को संख्या पाठ्यक्रम, समय तथा छात्रों के स्तर को ध्यान में रखकर होनी चाहिए। विकल्प प्रश्नों की संख्या कम से कम होनी चाहिए। एक ही प्रश्न में कई उद्देश्यों को प्राप्ति के लिए उपप्रश्न नहीं होने चाहिए।
  3. परीक्षा के लिए प्रशिक्षण – छात्रों को परीक्षा के लिए प्रशिक्षण देना चाहिए कि परीक्षा में किसी प्रश्न का उत्तर किस प्रकार लिखेंगे। इससे मापन की यथार्थता बढ़ जायेगी। विशेष पदों तथा शब्दों में अन्तर बताने के लिए प्रशिक्षण देना चाहिए जैसे-विवेचन, वर्णन, व्याख्या आदि में जिससे छात्र सही उत्तर देंगे।
  4. परीक्षा प्रशासन- परीक्षा के दौरान की मुख्य बातों का परीक्षा से पहले ही उल्लेख कर देना चाहिए। प्रश्न-पत्र के प्रारम्भ में आवश्यक निर्देश स्पष्ट लिखे जाने चाहिए। कितने प्रश्न करने हैं और किस प्रश्न को कितना समय दिया जाना है। कोई विशेष बात जैसे चित्र आदि बनाना हो तो वह भी प्रश्न में लिखा होना चाहिए।
  5. प्रश्न-पत्र की उत्तर कुंजी (Key) तैयार की जाय- प्रश्न पत्र बनाने वाला प्रश्न-पत्र का उत्तर कुन्जी बनाये तथा परीक्षक उन उत्तर-कुजियों के आधार पर फलांकन करे। परीक्षा रचना से पूर्व ही निश्चित होना चाहिए कि फलांकन किस प्रकार करना है। उत्तर कुन्जी का निर्माण निम्नलिखित आधार पर होना चाहिए-
  6. उत्तर में जो मुख्य बातें होनी चाहिए उनका सारणीयन (Tabulation) |
  7. प्रत्येक वांछनीय तथ्य के लिए अलग-अलग अंक।
  8. अतिरिक्त तथ्यों के लिए कुछ अंक छोड़ देने चाहिए जो विस्तृत व्याख्या, महत्वपूर्ण तथ्यों पर अलग से दिये जा सकें।
  9. पहले एक प्रश्न को सभी उत्तर-पुस्तिकाओं में एक साथ जाँचना- पहले एक कापी के सभी प्रश्न पढ़कर फिर दूसरी तीसरी एवं अन्य कापियों को पढ़ने के बजाय एक प्रश्न को सभी उत्तर-पुस्तिकाओं में जाँच लिया जाय, फिर दूसरे प्रश्न को तथा इसी प्रकार अन्य प्रश्नों को जाँचा जाय।
  10. उत्तर-पुस्तिकाओं को समूहों में बाँटना- सामान्य मूल्यांकन के आधार पर उत्तर- पुस्तिकाओं को कुछ समूहों में बाँट लेना चाहिए। जैसे अत्यन्त उत्तम (very superior), उत्तम (Superior). सामान्य (Average) घटिया (Inferior) तथा अत्यन्त घटिया (very inferior), प्रत्येक वर्ग में कारियों का वितरण के आधार पर होना चाहिए। अब इन पर वास्तविक फलांक दिये जायँ।
  11. सफलता तथा असफलता का निर्णय- कितने अंक पाकर एक विद्यार्थी सफल होगा या असफल इसका निर्धारण पहले नहीं करना चाहिए बल्कि पहले उत्तर पुस्तिकाओं पर फलांक देकर उन्हें प्रतिशत में परिवर्तित करके पास होने के लिए कम से कम प्रतिशत का निर्णय करना चाहिए। जैसे यदि फलांक का प्रसार 50 से 80 तक है तो 55% फलांक पास करने का आकार बनाया जा सकता है।
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Pankaja Singh

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