शिक्षाशास्त्र

वस्तुनिष्ठ परीक्षण | वस्तुनिष्ठ परीक्षण की विशेषताएँ | वस्तुनिष्ठ परीक्षण के लाभ | वस्तुनिष्ठ परीक्षण की सीमाएँ

वस्तुनिष्ठ परीक्षण | वस्तुनिष्ठ परीक्षण की विशेषताएँ | वस्तुनिष्ठ परीक्षण के लाभ | वस्तुनिष्ठ परीक्षण की सीमाएँ | Objective Test in Hindi | Features of Objective Tests in Hindi | Benefits of Objective Testing in Hindi | Objective Test Limits in Hindi

वस्तुनिष्ठ परीक्षण भूमिका

पिछले प्रश्न के उत्तर में हम देख चुके हैं कि निबन्धात्मक परीक्षण (Essay Type Tesis) में अनेक दोष है। अतः बीसवीं शताब्दी में वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रणाली का आविर्भाव हुआ। ये परीक्षाएँ दो प्रकार का होता है।

(1) प्रमाणीकृत वस्तुनिष्ठ परीक्षा और (2) अध्यापक निर्मित वस्तुनिष्ठ परीक्षा

ये परीक्षाएँ वस्तुनिष्ठ पराक्षाएँ इसलिए कहलाती है क्योंकि इनके द्वारा बालकों की वस्तुगत परीक्षा हो पाना सम्भव होता है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षण का अर्थ

आधुनिक मनावैज्ञानिक निबन्धात्मक परीक्षा (Essay Type Examination) के पक्ष में नहीं हैं। इसका एक मुख्य कारण यह है कि इसमें आत्मगत तत्त्व की प्रधानता रहती है। आज जिस परीक्षा की कटु आलोचना की जाती है, वह इसी तत्त्व की आलोचना है।

निबन्धात्मक परीक्षा की कटु आलोचना के फलस्वरूप वस्तुनिष्ठ परीक्षण पर विशेष बल दिया जाने लगा है। अनेक अनुसन्धानों के फलस्वरूप अब निबन्धात्मक परीक्षा को अविश्वसनीय एवं अवैध ठहराया गया है। वस्तुनिष्ठ परीक्षाओं का उपयोग बालक के ज्ञानार्जन का मापन करने के लिए किया जाता है। यह वस्तुनिष्ठ परीक्षाएँ कहलाती हैं। जैसा कि इनके नाम से स्पष्ट है कि इनके द्वारा बालकों की वस्तुनिष्ट परीक्षा सम्भव हो जाता है। इसमें परीक्षक के गलत दृष्टिकोण का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इनमें बालकों को लिखना कम पड़ता है। वस्तुनिष्ठ परीक्षण के आत्मगत तत्त्व कम रहता है, परन्तु वस्तुनिष्ठता को प्रधानता रहता है। ये परीक्षाएँ निबन्धात्मक परीक्षाओं को अपेक्षा अधिक विश्वसनीय, वैध, वस्तुनिष्ठ, व्यापक और व्यावहारिक होती हैं। समय की दृष्टि से भी यह परीक्षाएँ मितव्ययी होतो हैं। इनमें अंक प्रदान करने में भी सुगमता रहती है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षण की विशेषताएँ

वस्तुनिष्ठ परीक्षण (Objective Type Test) की विशेषताएँ निम्नलिखित प्रकार से हैं-

(1) विश्वसनीयता – वस्तुनिष्ठ परीक्षण की प्रमुख विशेषता उसको विश्वसनीयता है। इस परीक्षा में मूल्यांकन का आधार सत्यता होती है। फलस्वरूप मापी गयी योग्यता का मूल्यांकन स्थायी होता है। इसी गुण के कारण ये परीक्षाएँ विश्वसनीय होती हैं।

(2) यथार्थता- वस्तुनिष्ठ परीक्षण में यथार्थता का गुण पाया जाता है। इस परीक्षण में उसी वस्तु को योग्यता का मापन किया जाता है जिसके लिए उसका निर्माण किया जाता है।

(3) वस्तुनिष्ठता – परीक्षाओं में अंक प्रदान करने में वस्तुनिष्ठता (Objectivity) रहता है।

(4) विभेदकता – यह परीक्षा विभिन्न प्रकार के बालकों में भेद को स्पष्ट करती है। इस प्रकार इनके द्वारा अच्छे तथा चुरे दोनों प्रकार के बालकों की जानकारी हो जाती है।

(5) व्यावहारिकता – वस्तुनिष्ठ परीक्षण की एक अन्य विशेषता उनको व्यावहारिकता है इनको सरलतापूर्वक प्रयोग में लाया जा सकता है। इसी कारण इनको व्यावहारिक माना गया है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षण के लाभ

वस्तुनिष्ठ परीक्षण के निम्नलिखित लाभ है-

(1) कम समय में अधिक ज्ञान का परीक्षण- इन परीक्षणों में समय कम लगता है। बालक को कम लिखना पड़ता है। प्रश्नों की संख्या अधिक होती है परन्तु उनका आकार लघु होता है। उनके उत्तर भी संक्षिप्त होते हैं। अतः कम समय में अधिक ज्ञान का परीक्षण हो जाता है।

(2) समस्त पाठ्यक्रम पर प्रश्न- उन परीक्षाओं में प्रश्नों के उत्तर ‘हाँ’ अथवा ‘न’ में दिये जाते हैं। अतः इनमें निबन्धात्मक प्रश्नों की अपेक्षा 10-15 गुना अधिक प्रतिशत प्रश्न दिये जा सकते हैं। इस प्रकार पाठ्यक्रम पर प्रश्न पूछे जा सकते हैं।

(3) वैयक्तिक भिन्नता का ज्ञान- इन परीक्षाओं से मन्द तथा तीव्र बुद्धि बालकों में भेद किया जा सकता है। बालकों को वैयक्तिक भिन्नता का पता चल जाता है। इस प्रकार उनकी योग्यतानुसार उनको शिक्षा दी जा सकती है।

(4) शिक्षक के लिए लाभदायक – ये परीक्षण यथार्थता लिए होते हैं। उनके परिणाम सही होते हैं। शिक्षक इन परिणामों को जानकर अपनी शिक्षण-पद्धति में आवश्यकतानुसार सुधार कर सकता है। ये परीक्षण बालकों के मानसिक स्तर तथा कार्यक्षमता के अनुसार, सही जानकारी देते हैं। इस आधार पर शिक्षक भविष्य में सही निर्देश दे सकता है।

(5) छात्रों के लिए उपयोगी- वस्तुनिष्ठ परीक्षण छात्रों में आत्म विश्वास उत्पन्न करता है। उन्हें यह ज्ञात रहता है कि उनकी योग्यता का सही मूल्यांकन किया जायेगा अतः वे अधिक से अधिक परिश्रम करते हैं। वे इस परीक्षा से सन्तुष्ट रहते हैं। वे अनुचित प्रकार से परीक्षा में उत्तीर्ण होने की चेष्टा नहीं करते हैं।

(6) कम खर्चीले- ये परीक्षण कम खर्चीले होते हैं। अत: आर्थिक दृष्टि से वे उपयोगी होते हैं।

(7) रटने को स्थान नहीं- इस प्रकार की परीक्षा में रटने के लिए कोई स्थान नहीं होता है। परीक्षार्थी अपने ज्ञान और विचारशक्ति के आधार पर प्रश्नों का उत्तर देता है।

(8) प्रश्न-पत्र के निर्माण में सरलता- इस प्रकार की परीक्षा में प्रश्न-पत्र के निर्माण में सरलता रहती है। प्रश्नों के उत्तर छोटे होते हैं। प्रश्नों का निर्माण शीघ्रता से किया जा सकता है क्योंकि थोड़ा-सा अभ्यास इसके लिए काफी रहता है।

(9) संयोग का स्थान नहीं-वस्तुनिष्ठ परीक्षण में संयोग का स्थान नहीं होता है। थोड़े से प्रश्नों का उत्तर रटकर विद्यार्थी परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो सकता है। निश्चित प्रश्नों के उत्तर भी निश्चित रहते हैं। इस कारण भी संयोग का कोई स्थान नहीं रहता है।

(10) मूल्यांकन में सरलता – चूंकि प्रश्नों के उत्तर निश्चित होते हैं, अत: परीक्षक को अंक प्रदान करने में सरलता रहती है।

वस्तुनिष्ठ परीक्षण की सीमाएँ

वस्तुनिष्ठ परोक्षण (Objective Type Test) सर्वथा दोषरहित नहीं हैं। इनकी कुछ सीमाएँ, भी हैं। ये सीमाएँ इस प्रकार हैं-

(1) वर्णनात्मक विषयों के लिए अनुपयुक्त- कुछ विषय ऐसे होते हैं जिनमें वर्णनात्मक कार्य आवश्यक होता है। इसमें एक-दो वाक्यों से अथवा ‘हाँ’ या ‘नहीं’ से उत्तर नहीं लिखा जा सकता है। सीखने के इन गुणात्मक पक्षों का मूल्यांकन वस्तुनिष्ठ परीक्षण प्रणाली से नहीं किया जा सकता है।

(2) आत्म-प्रकाशन का अवसर न मिलना- वस्तुनिष्ठ परीक्षण में बालकों को आत्म- प्रकाशन का अवसर नहीं मिल पाता है। यदि इस प्रकार से परीक्षाएँ आयोजित की जाती हैं तो बालकों में भाव प्रकाशन की क्षमता का विकास नहीं हो पाता है।

(3) अनुमान- इस प्रकार की परीक्षा में अनुमान के आधार पर उत्तर दिया जा सकता है।

(4) ज्ञानात्मक पक्ष- इस प्रकार की परीक्षा में ज्ञानात्मक पक्षों का परीक्षण नहीं हो पाता है।

(5) सभी प्रकार के प्रश्न नहीं- कुछ ऐसे भी प्रश्न होते हैं जो विवादग्रस्त होते हैं। उनको परीक्षा को वस्तुनिष्ठ बनाने में छोड़ दिया जाता है। कुछ ऐसे विषय; जैसे-हिन्दी या अंग्रेजी साहित्य, समाजशास्त्र आदि विषयों का मुख्य भाग छोड़ दिया जाता है।

(6) भाषा-शैली- इस प्रकार की परीक्षा में भाषा-शैली पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता, क्योंकि उत्तरों में इसका प्रयोग न्यूनतम होता है। इस प्रकार बालकों में तथ्य के स्पष्टीकरण की क्षमता समाप्त हो जाती है। परन्तु बालकों के द्वारा अपने विचारों को प्रभावोत्पादक ढंग से प्रस्तुत करना आवश्यक होता है।

(7) तारतम्यता का अभाव- इस परीक्षा प्रणाली में पूरे पाठ्यक्रम में से प्रश्न तो पूछे जाते हैं परन्तु उन प्रश्नों के उत्तरों में तारतम्यता (Continuity) का अभाव होता है।

(8) प्रश्नों के निर्माण में कठिनाई- इस प्रकार के प्रश्नों के निर्माण में कठिनाई होती है। सामान्य शिक्षक इस प्रकार के प्रश्नों को नहीं बना सकता। इससे बड़ी कठिनाई होती है।

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Pankaja Singh

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