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औपचारिक व अनौपचारिक प्रतिवेदन | औपचारिक व अनौपचारिक प्रतिवेदनों से आशय | औपचारिक रिपोर्ट के प्रकार

औपचारिक व अनौपचारिक प्रतिवेदन | औपचारिक व अनौपचारिक प्रतिवेदनों से आशय | औपचारिक रिपोर्ट के प्रकार | Formal and Informal Reports in Hindi | What is meant by formal and informal reports in Hindi | types of formal reports in Hindi

औपचारिक व अनौपचारिक प्रतिवेदन

  1. अनौपचारिक प्रतिवेदन – अनौपचारिक प्रतिवेदन का प्रयोग सामान्यतः एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को संचार के माध्यम के रूप में होता है। इसका स्वरूप छोटा अथवा बड़ा किसी भी प्रकार का हो सकता है। यह रिपोर्ट सामान्यतः पत्र या स्मारक पत्र के रूप में लिखी जाती है तथा इसमें औपचारिक शब्दों का प्रयोग नहीं किया जाता।
  2. अनौपचारिक प्रतिवेदन- यह रिपोर्ट एक निर्धारित फार्म के ऊपर देनी होती है तथा इसे उच्चाधिकारी के निर्देशों के अनुसार बनाया जाता है। जब रिपोर्ट में औपचारिकताओं का पालन किया जाता है तो वह औपचारिक रिपोर्ट कहलाती है, जैसे— कार्यालय की दशा के बारे में उच्च प्रबंधक को पेश की जाने वाली रिपोर्ट औपचारिक रिपोर्ट है।

औपचारिक प्रतिवेदन को भी दो भागों में विभक्त किया जा सकता है-

(अ) वैधानिक प्रतिवेदन या सांविधिक प्रतिवेदन- ऐसे प्रतिवेदन जो विधान द्वारा बनाये गये प्रारूप व प्रक्रिया के अनुसार लिखे जाते हैं, वैधानिक प्रतिवेदन कहलाते हैं। कम्पनी के संचालकों व सचिवों को कम्पनी अधिनियमों के अनुसार वैधानिक प्रतिवेदन देने होते हैंहैं। बैंकों को भी अपनी रिपोर्ट निर्धारित प्रारूप के अनुसार ही देनी होती है। ये प्रतिवेदन कम्पनी की सभाओं, अंकेक्षक रिपोर्ट या बैकों की क्रियाशीलता की रिपोर्ट के रूप में हो सकते हैं। वैधानिक रिपोर्ट के मुख्य रूप निम्नलिखित हैं-

(i) वार्षिक प्रतिवेदन- वार्षिक प्रतिवेदन उन बैंकिंग कम्पनियों द्वारा बनाये जाते हैं जो कम्पनी अधिनियम के अन्तर्गत पंजीकृत होते हैं। इन प्रतिवेदनों का प्रकाशन कराना अनिवार्य होता है।

राष्ट्रीयकृत बैंकों को ये प्रतिवेदन तैयार नहीं करने पड़ते चूँकि ये बैंकिंग कम्पनियों में शामिल नहीं होते। उन्हें केवल आर्थिक चिट्ठा बनाना होता है जो कि रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया को भेजना होता है।

(ii) अंकेक्षक प्रतिवेदन- यह प्रतिवेदन सभी बैंकों के अंकेक्षकों द्वारा तैयार किया जाता है। उन्हें संवैधानिक रिपोर्ट के नाम से भी जाना जाता है। भारत में स्थापित विदेशी बैंकों के लिए भी इन्हें प्रकाशित करना आवश्यक होता है।

(iii) बैंक की क्रियाशीलता पर प्रतिवेदन- यह प्रतिवेदन कम्पनी की वार्षिक रिपोर्ट के समान होता है। यह रिपोर्ट बैंक की वित्तीय स्थिति एवं क्रियाशीलता को दर्शाती हैं। शाखाओं में जो वार्षिक रिपोर्ट बनायी जाती हैं वह शाखाओं की रिपोर्ट कहलाती है जिसे प्रधान कार्यालय को भेजा जाता है।

(ब) गैर-वैधानिक प्रतिवेदन या गैर सांविधिक प्रतिवेदन- इन्हें संगठनात्मक प्रतिवेदनों के नाम से भी जाना जाता है। ऐसे औपचारिक प्रतिवेदन जो कानून के दृष्टिकोण से आवश्यक नहीं होते परन्तु जिन्हें प्रबंध की सहायता के लिए बनाना आवश्यक होता है, गैर- वैधानिक प्रतिवेदन कहलाते हैं। ये प्रतिवेदन प्रबंध को निर्णय लेने में सहायक सिद्ध होते हैं। बैंकों के आन्तरिक प्रशासन के लिए इन्हें बनाना अनिवार्य होता है। ये रिपोर्ट परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनायी जाती है। वैयक्तिक विभाग अपने स्टॉफ की रिपोर्ट तैयार करता है, अंकेक्षक अपनी आन्तरिक रिपोर्ट तैयार करता है तथा शाखा प्रबंधक विभिन्न विषयों पर रिपोर्ट तैयार करता है।

संगठनात्मक रिपोर्ट नैक्तिक प्रक्रिया पर भी लिखी जा सकती है तथा विशेष अवसरों पर भी तैयार की जा सकती है। गैर-वैधानिक रिपोर्ट्स विभिन्न प्रकार की हो सकती है-

(i) संचालकों की अंशधारियों के लिए रिपोर्ट।

(ii) संचालकों की विशेष समितियों द्वारा रिपोर्ट।

(iii) संचालकों की विशेष रिपोर्ट।

(iv) व्यक्तिगत अधिकारियों द्वारा रिपोर्ट

(v) वित्तीय रिपोर्ट-ये रिपोर्ट वित्तीय विभागों के प्रबंध द्वारा बनायी जाती है।

(vi) कम्पनी सचिव द्वारा रिपोर्ट।

(स) सभाओं द्वारा रिपोर्ट पेश करना- सभा और सम्मेलन पर रिपोर्ट का अध्ययन करते समय विभिन्न पहलुओं पर विचार किया जाता है। सभा से आशय एक ही इकाई के विशिष्ट वर्ग के सभा से है जिसमें उस समूह के व्यक्ति ही भाग लेते हैं तथा इकाई की प्रगति/समस्याओं पर विचार-विमर्श करते हैं। सम्मेलन में आशय किसी विशिष्ट विषय पर उस विषय से सम्बन्धित व्यक्तियों को विचार प्रस्तुत करने के लिए बुलाया जाता है। सम्मेलन का स्वरूप सामान्य कार्यशाला रूप में सभा का आयोजन होता है जिसमें प्रत्येक भाग लेने वाला व्यक्ति अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए स्वतंत्र होता है।

इन सभाओं में सम्प्रेषण का माध्यम मौखिक अथवा लिखित होता है। मौखिक सम्मेलन में सभा के उद्देश्य सभापति सम्प्रेषित करता है तथा अन्य भाग लेने वाले व्यक्ति तत्काल अपने सुझाव आदि दे सकते हैं। इसमें सूचनाओं की जानकारी लिखित रूप में भी दी जा सकती है। मौखिक सम्प्रेषण में व्यक्तिगत क्षमता अधिक महत्वपूर्ण होती है कि व्यक्ति किस प्रकार अपनी बात प्रस्तुत करता है।

सभा के अन्त में सभा में हुई कार्यवाही पर प्रतिवेदन (Report) तैयार किया जाता है कि सभा का क्या उद्देश्य था, सभा में किन-किन व्यक्तियों ने भाग लिया, सभा में किन-किन विषयों पर चर्चा की गयी तथा उपस्थित सदस्यों ने क्या-क्या सुझाव प्रस्तुत किये।

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Pankaja Singh

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