
प्रतिवेदन के प्रकार | प्रतिवेदन का वर्गीकरण | Report Type in Hindi | classification of reports in Hindi
प्रतिवेदन के प्रकार
प्रतिवेदन के निम्नलिखित प्रकार हैं-
-
प्रकृति के आधार पर प्रतिवेदन
प्रकृति के आधार पर रिपोर्ट या प्रतिवेदन के निम्नलिखित भेद होते हैं-
- अवधि या नैत्यिक रिपोर्ट- ये रिपोर्ट व्यवसाय के नैत्यिक कार्यक्रम में नियमित रूप से या निर्धारित अन्तराल के बाद तैयार की जाती है। ये रिपोर्ट वार्षिक, अर्द्धवार्षिक, त्रैमासिक, साप्ताहिक या दैनिक रूप में तैयार की जाती हैं। सामान्यतः इन प्रतिवेदनों में केवल सम्बन्धित तथ्यों का विवरण होता है। ये रिपोर्ट विस्तृत रूप से भी हो सकती है एवं संक्षिप्त रूप में भी। इन रिपोर्टों में प्रायः कोई सलाह या सिफारिश नहीं होती। अतः ये केवल सूचना देने वाली रिपोर्ट होती हैं।
कम्पनी की वार्षिक सामान्य सभा के सम्बन्ध में संचालकों की रिपोर्ट, सरकारी विभागों की प्रशासन सम्बन्धी रिपोर्ट, अंकेक्षक की रिपोर्ट, नगरपालिका की रिपोर्ट, अर्द्ध-सरकारी विभागों की रिपोर्ट, यूनिवर्सिटी या चैम्बर ऑफ कॉमर्स की रिपोर्ट आदि इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। इस रिपोर्ट का मुख्य उद्देश्य फार्म की क्रियाशीलता के बारे में सही आँकड़े प्रस्तुत करना होता है। इस रिपोर्ट में निम्नलिखित विवरणों को सम्मिलित किया जाता है—
(अ) रिपोर्ट की अवधि के महत्वपूर्ण तथ्य |
(ब) विक्रय का संक्षिप्त विवरण।
(स) उत्पादन सम्बन्धी संक्षिप्त विवरण।
(द) सकल लाभ या हानि को दशति हुए वित्तीय विवरण तथा सम्पत्तियों व दायित्व, लाभांश, आकस्मिकताओं के प्रावधान का विवरण।
(य) प्लाण्ट, मशीनरी, यंत्रों की स्थिति का उल्लेख ।
(र) प्रशासन में महत्वपूर्ण व्यक्ति की जानकारी
(ल) चालू अवधि की पिछले वर्षों से तुलना आदि।
- विशेष रिपोर्ट — ये रिपोर्ट दैनिक प्रवृत्ति की नहीं होती वरन् जीवनकाल में एक या दो बार घटित होने वाली घटनाओं से सम्बन्धित होती हैं। किसी नयी शाखा के सम्बन्ध में या कर्मचारियों में व्याप्त निराशा की भावना को दूर करने के लिए तैयार की गयी रिपोर्ट इसके ज्वलंत उदाहरण हैं। ये रिपोर्ट दोबारा न घटित होने वाली घटनाओं से सम्बन्धित होती हैं।
- प्रगति रिपोर्ट — ये प्रतिवेदन एक विशेष अवधि में की गयी प्रगति से सम्बन्धित होते हैं। कार्य की प्रगति, विशेष सफलता में तथा कार्य के बारे में उत्पन्न समस्याओं का इन प्रतिवेदनों में विशेष उल्लेख किया जाता है। इसके अतिरिक्त इनमें प्रायः उस कार्य का भी उल्लेख होता है। जो कि अभी पूरा किया जाना है। इन प्रतिवेदनों की आवश्यकता उस समय पड़ती है जब कम्पनी किसी कारखाने का निर्माण करती है या किसी प्लाण्ट का आधुनिकीकरण करती है या परियोजना बनाती है। इस रिपोर्ट में निम्नलिखित विवरणों को शामिल किया जाता है—
(अ) इस रिपोर्ट में परियोजना की प्रकृति का संक्षिप्त विवरण दिया गया है।
(ब) हाल ही में पूरे हुए कार्य का संक्षिप्त लेखा-जोखा दिया जाता है।
(स) यदि कोई विशेष समस्या सामने आ रही हो तो उसका उल्लेख किया जाता है तथा इन समस्याओं के समाधान की प्रक्रिया सुझायी जाती है।
(द) उस महत्वपूर्ण कार्य का उल्लेख होता है जो कि अभी पूरा होना है।
(य) अन्य कोई सूचना जो कि कार्य को पूरा करने में मदद कर सकती है।
- परिक्षण प्रतिवेदन – ये रिपोर्ट केवल महत्वपूर्ण घटनाओं के घटित होने पर ही विशेष रूप से बनायी जाती हैं। ये रिपोर्ट पूर्ण अनुसंधान के बाद बनायी जाती हैं। पुरानी फाइलों का अध्ययन किया जाता है, व्यक्तिगत साक्षात्कार किये जाते हैं, सम्बन्धित व्यक्तियों से प्रश्न पूछे जाते हैं, सर्वे किये जाते हैं, महत्वपूर्ण तथ्यों का विश्लेषण किया जाता है और इसके पश्चात् ही किसी निष्कर्ष पर पहुँचा जाता है। इन रिपोर्टों में सिफारिशें हो भी सकती हैं तथा नहीं भी हो सकती है।
शाखा कार्यालय के ठीक से कार्य न किये जाने पर रिपोर्ट, अग्नि दुर्घटना से हुई वित्तीय हानि पर एक रिपोर्ट, उत्पादन की लागत बढ़ने या विक्रय घटने पर एक रिपोर्ट, किसी ऋण आवेदन पत्र पर निर्णय लेने के लिए शाखा प्रबंधक द्वारा प्रधान कार्यालय को रिपोर्ट इत्यादि इसके उदाहरण हैं। इस रिपोर्ट में सामान्यतया जिन तथ्यों को सम्मिलित किया जाता है उनमें मुख्य हैं: रिपोर्ट का उद्देश्य व क्षेत्र, संग्रह किये गये आँकड़ों का विश्लेषण, यदि आवश्यक हों तो सिफारिशें, यदि आँकड़ों के संग्रह में किसी विधि को अपनाया गया है तो उस विधि का वर्णन आदि।
- सिफारिश प्रतिवेदन- ये प्रतिवेदन परीक्षण प्रतिवेदनों के समान ही होते हैं। जब किसी अनुसंधान का कार्य पूर्ण हो जाता है तो उसके परिणामों के सम्बन्ध में अन्तिम निष्कर्ष व आवश्यक सुझाव देने के लिए जो प्रतिवेदन तैयार किये जाते हैं, उन्हीं को सिफारिश प्रतिवेदन कहा जाता है। बड़े-बड़े व्यावसायिक गृहों में ये अत्यन्त लाभप्रद होते हैं। इन प्रतिवेदनों में जिन तथ्यों को सम्मिलित किया जाता है। उनमें-प्रतिवेदन का लक्ष्य एवं क्षेत्र, आँकड़ों के संग्रह हेतु अपनायी गयी विधि, आँकड़ों का विश्लेषण, अन्तिम निष्कर्ष एवं निश्चित कार्यक्रम हेतु सिफारिश आदि प्रमुख हैं।
- साख्यिकीय प्रतिवेदन – ये प्रतिवेदन वित्तीय आँकड़ों, गणितीय चार्ट, सारणी इत्यादि के आधार पर बनाये जाते हैं। सांख्यिकीय आँकड़ों को सुविधाजनक सिफारिशों के रूप में भी प्रयोग किया जा सकता है। किसी कम्पनी के लागत विभाग द्वारा दी गयी रिपोर्ट सामान्य सांख्यिकीय रिपोर्ट का रूप होती है।
2. व्यक्तियों की संख्या के आधार पर प्रतिवेदन
जो व्यक्ति प्रतिवेदन तैयार करते हैं उसके आधार पर रिपोर्ट को दो भागों में बाँटा जा सकता है-
- व्यक्तियों द्वारा प्रतिवेदन – ऐसे प्रतिवेदन जो उच्चाधिकारियों द्वारा, विभिन्न विभागों के अध्यक्षों द्वारा, कम्पनी सचिव द्वारा तथा अंकेक्षक द्वारा बनाये जाते हैं, व्यक्तियों द्वारा प्रतिवेदन कहलाते हैं। ये प्रतिवेदन उनके विभाग में हो रहे कार्य के सम्बन्ध में बताते हैं। उत्पादन प्रबंधक उत्पादन के कार्य-तरीकों के बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत करता है तथा विक्रय प्रबंधक विक्रय की रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।
- समितियों व उपसमितियों द्वारा प्रतिवेदन – कभी-कभी उन विषयों पर भी प्रतिवेदनों की आवश्यकता होती है जो एक से अधिक विषयों से सम्बंधित होते हैं अथवा एक से अधिक व्यक्तियों से सम्बन्धित होते हैं। इन सभी परिस्थितियों में प्रायः किसी के अध्ययन के लिए समिति का गठन कर दिया जाता है। इन समितियों या उपसमितियों को रिपोर्ट तैयार करनी पड़ती है। ये रिपोर्ट सदस्यों के हित को ध्यान में रखते हुए बनायी जाती है। इनकी शैली औपचारिक होती है। समिति के सभी सदस्यों द्वारा इस पर हस्ताक्षर किये जाते हैं। इस रिपोर्ट में उसी विषय के सम्बन्ध में विवरण प्रस्तुत किये जाते हैं जो समिति के अध्ययन के लिए सौंपे गये हैं।
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