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औद्योगिक सम्बन्धों का अर्थ | औद्योगिक सम्बन्धों को परिभाषित | औद्योगिक सम्बन्धों के कार्य क्षेत्र | औद्योगिक संबंधों का महत्व | औद्योगिक अभिजात वर्ग | अभिजात वर्ग का अर्थ

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औद्योगिक सम्बन्धों का अर्थ

कोई भी संगठन (व्यापारिक या औद्योगिक) अपने विकास के लिए चार बातों का सहारा लेता है- मनुष्य, मुद्रा, मशीन तथा माल। इन्हें चार ‘म’ (Men, Money, Machine and Material) के नाम से जाना जाता है। इन चार तत्त्वों के सामूहिक रूप में भलीभांति कार्य करने पर ही व्यवसाय की सफलता निर्भर करती है। कुछ समय पूर्व तक मानव तत्व (Human Element) अर्थात् श्रम को अधिक महत्व नहीं दिया जाता था किन्तु अब यह अनुभव किया जा रहा है कि मशीन, माल एवं मुद्रा के व्यवस्थापन के साथ मानव तत्व की व्यवस्था भी अत्यन्त आवश्यक है। यही कारण है कि मानवीय सम्बन्धों का अध्ययन जो कि श्रम के क्रय, विक्रय एवं कार्य निष्पादन पर ध्यान केन्द्रित करता है, प्रत्येक राष्ट्र में महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुका है।

औद्योगिक सम्बन्धों को परिभाषित

परिभाषाएँ : औद्योगिक सम्बन्धों की कुछ प्रमुख परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-

  1. ओवेन तथा फिन्सटन के अनुसार ” औद्योगिक सम्बन्ध प्रक्रिया में मानव निश्चित एवं निरपेक्ष रूप से मानवीय इच्छाओं की पूर्ण या आंशिक सनतुष्टि के सम्बन्ध में व्यवहार करता है, जिससे कि जटिल सम्बन्धों की पेचीदगी को समाप्त किया जा सके।”
  2. योडर के अनुसार, “औद्योगिक सम्बन्धों का अर्थ उन सभी क्षेत्रों के सम्बन्धों से है जो पुरुषों एवं स्त्रियों को उद्योग में नियमित रोजगार में बनाये रखने तथा साथ-साथ कार्य करने के कारण उत्पन्न होते हैं।”
  3. जॉन डनलप के मतानुसार “औद्योगिक समाज निश्चित रूप से औद्योगिक सम्बन्धों को जन्म देते हैं, जिन्हें श्रमिकों, प्रबन्धकों तथा सरकार के अंतर्सम्बन्ध कहा जा सकता है।
  4. अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार, “औद्योगिक सम्बन्ध या तो राष्ट्र एवं सेवायोजकों तथा श्रम संगठनों के मध्य सम्बन्ध है या व्यावसायिक संगठनों के मध्य समबन्ध है।”
  5. रिचार्ड ए. लिस्टर के मतानुसार, ” औद्योगिक सम्बन्धों के अन्तर्गत विवादग्रस्त उद्देश्यों, मूल्यों उत्प्रेरणा, आर्थिक सुरक्षा, अनुशासन तथा औद्योगिक प्रजातन्त्र, अधिकार, स्वतन्त्रता एवं सौदेबाजी तथा सहयोग के बीच कार्यात्मक सम्बन्धों की प्राप्त कराने के प्रयत्न सम्मिलित है।”

औद्योगिक सम्बन्धों के कार्य क्षेत्र

औद्योगिक संबंध का क्षेत्र बहुत विस्तृत है। अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (IL.O) औद्योगिक संबंधों के क्षेत्र में मत व्यक्त करते हुए लिखा है कि, “इसके अन्तर्गत राज्य तथा सेवायोजकों के बीच संबंध, श्रम-संघों तथा व्यावसायिक संगठनों के बीच संबंध सम्मिलित है।” इसी प्रकार औद्योगिक संबंधों के व्याख्या करते हुए अन्तर्राष्ट्रीय श्रम संगठन ने लिखा है कि, “औद्योगिक संबंधों में संघों की स्वतंत्रता तथा संगठन के अधिकार का रक्षण, सामूहिक सौदेबाजी का अधिकार, सामूहिक समझौता, मध्यस्थता तथा पंचनिर्णय तथा अर्थव्यवस्था के विभिन्न स्तरों पर अधिकारियों एवं व्यावसायिक संगठनों के मध्य सहयोग सम्मिलित है।” इसी प्रकार इंग्लैण्ड के औद्योगिक संबंध संस्थान (England Institute of Industrial Relation) ने “भर्ती की विधियों, चयन, प्रशिक्षण, प्रणालियों, उचित नियोजन विधि, रोजगार की शर्तों, भुगतान विधियों और प्रमाप कार्य की दशाएं, कर्मचारी सेवाएँ, संयुक्त समझौते तथा परिवाद-निवारण पद्धतियों आदि को सम्मिलित किया है।”

  1. नियोजन इस कार्य में कर्मचारियों की भर्ती, चुनाव तथा उनकी नियुक्ति के कार्यों को सम्मिलित किया जाता है तथा उनसे साक्षात्कार किया जाता है। विभिन्न वैज्ञानिक विधियों द्वारा उनकी योग्यता की परीक्षा की जाती है तथा याद में उपयुक्त स्थान पर उनकों नियुक्त किया जाता है।
  2. प्रशिक्षण- इसके अंतर्गत कई बातें आती हैं, जैसे- (अ) नये कर्मचारियों को प्रशिक्षण देने के संबंध में नियम बनाना, प्रशिक्षण की व्यवस्था करना और देखभाल करना, (ब) सुरक्षा एवं उपक्रम की नीतियों के संबंध में प्रशिक्षण देना, (स) कर्मचारियों के सुझाव पर उचित कार्यवाही करना।
  3. पदोन्नति, स्थानान्तरण और सेवा-निवृत्ति- इसमें निम्नलिखित कार्यों को सम्मिलित करते हैं- (अ) पदोनति, स्थानान्तरण और सेवा नियुक्त से संबंधित नियमों के निर्माण में उचित परामर्श देना और उन्हें प्रभावशाली ढंग से कार्यरूप में परिणत करना। (ब) स्थानान्तरण के संबंध में नीतियों का निर्धारण करना। (स) नौकरी से पृथक् किये जाने के कारणों से दूर करना। (द) नौकरी से अलग करने के संबंध में उपक्रम की नीति बनाना व इस संबंध में आवश्यक जानकारी से निरीक्षकों व कर्मचारियों को अवगत कराना।

औद्योगिक संबंधों का महत्व

औद्योगिक संगठनों में सौहार्दपूर्ण एवं मधुर मानवीय संबंधों की स्थापना प्रबंधको कर्मचारियों एवं समाज-सबकी दृष्टि से नितान्त आवश्यक है। इस प्रकार औद्योगिक संबंधों के महत्व का अध्ययन तीन दृष्टिकोणों से किया जा सकता है जैसा कि निम्न चार्ट में दर्शाया गया-

  1. कर्मचारियों की दृष्टि से कर्मचारियों की दृष्टि से संगठन में मधुर मानवीय संबंधों का निम्नलिखित महत्व है-

(i) आचरण में परिवर्तन- अच्छे संबंधों से कर्मचारी के आचरण में बहुत परिवर्तन आता है। जब वे अपने चारों ओर प्रेम विश्वास, कर्त्तव्यनिष्ठा और अनुशासन का वातावरण पाते हैं तो उनके आचरण में वे बातें समा जाती हैं। उन्हें उसके विपरीत यदि वातावरण में अनुशासनहीनता, हिंसा, द्वेष शंका और झूठे आचरण का साम्म्राज्य है औ हड़ताले और प्रबंधकों से झगड़े और विवाद होते रहते हैं, तो श्रमिकों के आचरण में गिरावट आना स्वाभाविक होता है।

(ii) कार्यकुशलता में वृद्धि मधुर औद्योगिक संबंधों से, श्रमिकों के संतोष एवं विश्वास में वृद्धि होती है। फलतः उनका मनोबल बढ़ता है और कार्यकुशलता में वृद्धि होती है।

(iii) कर्मचारियों को उत्प्रेरणा मधुर औद्योगिक संबंधों के निर्माण के लिए प्रबंधक श्रमिकों को उत्प्रेरित करता है इस हेतु वह कार्य समूहों का निर्माण करता है, उन सभी कर्मचारियों को मान्यता प्रदान करता है, साथ ही उनकी मानवीय एवं सामाजिक आवश्यकताओं की संतुष्टि प्रदान करता है। फलतः श्रमिक कार्य के प्रति पूर्ण रुचि लेते हैं, जिससे एक और उत्पादन बढ़ता है तथा दूसरी ओर श्रमिकों की आय बढ़ती है।

  1. प्रबंधकों की दृष्टि सेप्रबंधकों की दृष्टि से संगठन में मानवीय संबंधों का मधुर होना निम्नलिखित कारणों से आवश्यक है-

प्रबंध की प्रतिष्ठा- अच्छे मानवीय संबंध संगठन की प्रतिष्ठा में वृद्धि करते हैं जिन संस्थानों में प्रबंधकों एवं कर्मचारियों के बीच मधुर होते हैं उनको सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है और संगठन में ‘अच्छे कर्मचारियों की उपलब्धता आसान हो जाती है।

कार्यकुशलता का आधार मानवीय संबंध श्रमिकों के मनोबल, कार्यप्रेरणा एवं सहयोग की भावना को प्रभावित करते हैं, अच्छे संबंध श्रमिकों के मनोबल को ऊंचा उठाते हैं, उन्हें कार्य करने की प्रेरणा देते हैं, फलतः उनकी कार्यकुशलता में वृद्धि होती है। वस्तुतः मानवीय संबंध संगठन में कार्यकुशलता का आधार होते हैं।

औद्योगिक अभिजात वर्ग

उद्योग उत्पादन की एक सामाजिक-आर्थिक प्रक्रिया है। इस प्रक्रिया को पूरा करने में अनेक व्यक्तियों एवं वर्गों का योगदान होता है जिन्हें कार्य की प्रकृति के अनुसार भिन्न-भिन्न सामाजिक स्तर प्राप्त होता है। इन्हीं आवश्यक वर्गों में एक वर्ग औद्योगिक अभिजात व्यक्तियों का वर्ग है, जिसका औद्योगिक प्रगति में विशेष योगदान होता है एवं जो विशेष सुविधाओं का उपयोग करता है।

अभिजात वर्ग का अर्थ

अंग्रेजी में ‘एलीट’ शब्द का प्रयोग श्रेष्ठ व्यक्तियों के लिए किया जाता है। अभिजात वर्ग की अवधारणा का सर्वप्रथम प्रयोग मोजांका एवं परेटो ने किया। मोजाका के अनुसार, अभिजन समाज के अन्य लोगों से उच्च स्तर के होते हैं जबकि परेटो के अनुसार, यदि मानवीय गतिविधियों के प्रत्येक क्षेत्र के अंक निर्धारित किए जाएँ तो जिन व्यक्तियों को किसी विशेष मानवीय गतिविधि के लिए सर्वोच्च अंक मिले हैं उन्हें ‘एलीट’ कहा जायेगा। दूसरे अर्थों में अभिजात वर्ग योग्यता, चारित्रिक गुण, कुशलता, क्षमता एवं शक्ति में श्रेष्ठ व विशिष्ट वर्ग के लोग हैं। एच.डी. लासवेल के अनुसार, एक अर्थ में अभिजन की श्रेणी में वे व्यक्ति आते हैं जो समाज में मूल्यों के सर्वाधिक निर्माता, संरक्षक व नियंत्रण होते हैं दूसरे अर्थ में किसी समाज में सर्वोच्च प्रस्थिति प्राप्त व्यक्ति अभिजन कहलाते हैं।

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Pankaja Singh

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