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भारतीय श्रमिकों की प्रमुख समस्यायें | भारतीय श्रमिकों की प्रमुख समस्याओं की व्याख्या कीजिए

भारतीय श्रमिकों की प्रमुख समस्यायें | भारतीय श्रमिकों की प्रमुख समस्याओं की व्याख्या कीजिए | Major problems of Indian workers in Hindi | Explain the major problems of Indian workers in Hindi

भारतीय श्रमिकों की प्रमुख समस्यायें

भारत में औद्योगीकरण की प्रक्रिया लगभग अर्द्ध शताब्दी से चल रही है। वैसे तो ब्रिटिशकाल से ही भारत में उद्योगों की स्थापना प्रारम्भ हो गयी थी, किन्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद आर्थिक विकास की दृष्टि से औद्योगीकरण पर विशेष बल दिया गया। औद्योगीकरण और श्रम समस्यायें साथ-साथ चलते हैं। भारत कृषि प्रधान देश है और यहाँ बेरोजगारों की संख्या भी बहुत है। श्रमिकों की समस्याओं के सम्बन्ध में स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात चिन्तन शुरू हुआ। जब भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाने का निश्चय किया गया। कल्याणकारी राज्य (Welfare State) में श्रम कल्याण एक महत्वपूर्ण अंग है। कार्यकुशलता और उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए यह नितान्त आवश्यक है कि श्रमिकों की समस्याओं का समाधान किया जाये। भारतीय श्रमिकों की मुख्य समस्यायें निम्नलिखित हैं-

  1. अनुपस्थिति (absence) : भारतीय श्रम की एक सामान्य समस्या जिसके गम्भीर परिणाम होते हैं, श्रमिको का अत्यधिक अनुपस्थित रहना है। भारतीय श्रमिक गांव में रहने वाले होते है और वे अपने घर से बहुत अधिक जुड़े रहते हैं। वे बहुधा अपने घर पर जाते-आते रहते हैं। चूंकि भारतीय श्रम की प्रवृत्ति प्रब्रजनशील (migratory) है, इसलिए वे कभी-कभी लम्बे समय तक अनुपस्थित रहते है, जिसके कारण एक तो उत्पादन में कमी आ जाती है और दूसरे श्रमिकों की आमदनी कम हो जाती है, क्योंकि वे अनुपस्थिति के दिनों का वेतन प्राप्त नहीं कर सकते। इस प्रकार श्रमिकों की अनुपस्थिति उद्योगों के स्वामी व श्रमिक दोनों के लिए हानिकारक होती है। अनुपस्थित रहने का दूसरा कारण श्रमिकों का अधिक बीमार रहना है। उन्हें अच्छा भोजन नहीं मिलता है, वे गंदी बस्तियों में रहते हैं और उनके रहने व कार्य करने की दशायें उनके स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालती हैं। इन सब कार्यों से वे बीमार हो जाते हैं और कार्य से अनुपस्थित रहते हैं। भारतीय समाज में अनेक सामाजिक त्योहार और धार्मिक अनुष्ठान होते हैं, जिन पर प्रत्येक श्रमिक या तो अपने संयुक्त परिवार में चले जाते हैं या काम पर नहीं जाते है। यहाँ तक कि यदि घर में कोई मेहमान आ जाये तो भी भारतीय श्रमिक काम से छुट्टी ले लेता है। अज्ञान और अशिक्षा के कारण श्रमिक सुरक्षा सम्बन्धी नियमों का ध्यान नहीं रखते, जिसके फलस्वरूप दुर्घटना हो जाती है और अनुपस्थिति आवश्यक हो है। भारतीय श्रमिकों की एक मुख्य बुराई नशा करना और दूसरी जुआ खेलना है। ये दोनों शौक अनेक श्रमिकों को काम पर जाने से रोकते हैं। इस प्रकार श्रमिकों की अनुपस्थिति भारत में गम्भीर समस्या बन गयी है।
  2. ऋणग्रस्तता (Indebtedness) : भारतीय श्रमिकों की ऋणग्रस्तता भी औद्योगिक क्षेत्र में चिन्ता का विषय बन गयी हैं। अध्ययनों से पता चलता है कि औद्योगिक केन्द्रों में काम करने वाले कम से कम दो तिहाई आदमी कर्जदार होते हैं। और यह कर्ज लगभग लगभग तीन महीने की मजदूरी से अधिक होता है। अशिक्षित श्रमिक कर्ज के विषय में सदैव चिन्तित रहता है। उसका खर्च प्रायः उसकी आमदनी से ज्यादा होता है। वह भविष्य के लिए कुछ नहीं बचाता। अज्ञान और अशिक्षा उसे विचारपूर्वक प्राथिकताओं के अनुसार खर्च नहीं करने देते। यह अपना बजट नहीं बनाता। विभिन्न त्यौहारों पर, विवाह इत्यादि संस्कारों पर अन्य सामाजिक व धार्मिक अवसरों पर वह व्यर्थ खर्च करता है। शराब और जुआ तो उसके खर्च को बढ़ाते ही है। उसके घर पर कोई बीमार हो या कारखाने में हड़ताल अथवा तालाबन्दी हो तो भारतीय श्रमिक को उधार लेकर खाना पड़ता है। यह कर्ज भी उन्हें ब्याज की ऊंची दर पर मिलता है और महाजन उनका शोषण करते है। ऋरणग्रस्तता भारतीय श्रमिक को उभरने नहीं देती और पीढ़ी दर पीढ़ी वह दरिद्रता का जीवन बिताता है।

मुम्बई के मुख्य उद्योगों में काम करने वाले श्रमिकों के एक सर्वेक्षण के अनुसार 60 श्रमिकों में से केवल 2 मजदूर कर्जदार नहीं थे। लगभग 80 प्र.श. मजदूरों के ऊपर 500 रुपये से लेकर 8000 रुपये तक का कर्ज था। इनमें से कुछ ने यह कर्ज अपने उद्योग की साख समिति से लिया था और अन्यों ने बहुत ऊंची ब्याज की दर पर लेन-देन करने वाले बाहरी लोगों से लिया था। सभी श्रमिकों ने ऋणग्रस्तता का कारण यही बताया कि उनकी आमदनी से उनका जीवन निर्वाह नहीं होता इन मजदूरों की आमदनी कम से कम 300 रुपये तथा अधिकतम 850 रुपये थी। इनमें से अधिकतर श्रमिक पान तम्बाकू खाने वाले सिगरेट बीड़ी पीने वाले, शराब पीने वाले व जुआ खेलने वाले थे।

  1. त्यागपत्र और कार्यमुक्ति (Resignations and Dismissals) : भारतीय श्रमिकों की एक यह भी प्रमुख समस्या है कि एक स्थान पर स्थायी रूप से नौकरी नहीं कर पाते। भारतीय उद्योगों में कर्मचारोिं का परिवर्तन बहुत जल्दी-जल्दी होता है। अवकाश प्राप्त करने पर तो सभी को औद्योगिक सेवा से मुक्त होना पड़ता है, किन्तु कठिन समस्या यह होती है कि छोटी-छोटी बातों पर या तो श्रमिक स्वयं त्याग पत्र देकर चले जाते हैं अथवा प्रबन्ध उन्हें निकल देता है। इसके फलस्वरूप श्रमिकों की कुशलता में वृद्धि नहीं हो पाती, उत्पादन की मात्रा और गुणात्मकता दोनों कम हो जाती है तथा अनावश्यक औद्योगिक झगड़ों को बढ़ावा मिलता है। इस फरबदल के कारण श्रमिकों में एकता भी स्थापित नहीं होती। ग्रामीण परिवार और भूमि से जुड़ा होने के कारण श्रमिक खेतों की कटाई और बुआई आदि के समय त्योहार मनाने के लिए और शादी विवाह आदि के अवसर पर लम्बी छुट्टी ले लेते हैं। छुट्टी न मिलने पर या तो वह त्यागपत्र दे देता है अथवा उसे निकाल दिया जाता है। श्रमिक संघों के नेता कभी-कभी गलत ढंग से श्रमिकों को बहला-फुसलाकर उचित या अनुचित हड़तालों में भाग लेने के लिए मजबूर करते हैं। ऐसी अवस्था में श्रमिक का वेतन कट जाता है और उसे मालिकों के दमन का शिकार होना पड़ता है। अनेकों की नौकरी चली जाती है। फिर बदल का एक अन्य कारण भिन्न-भिन्न उद्योगों में वेतन और सुविधाओं की भिन्नता होना भी है। प्रायः हर श्रमिक अवसर पाते ही एक उद्योग में नौकरी छोड़कर दूसरे ऐसे उद्योग में चला जाता है, जहाँ वेतन या सुविधाएं अधिक होती है।
  2. आवास समस्या (Housing problem) : औद्योगिक केन्द्रों में मकानों की बहुत कमी होती है। बाहर से आकर काम करने वाले श्रमिकों के अलावा की कोई व्यवस्था नहीं होती। औद्योगिक केन्द्र और नगर बढ़ते जा रहे हैं उनके अनुरूप श्रमिकों की संख्या में निरन्तर वृद्धि होती है। उनकी तुलना में मकान बहुत कम है। इस बात को न तो उद्योगपति महत्व देते हैं और न सरकार सोचती है कि उद्योगों को प्रारम्भ करने के लिए हजारों की संख्या में जो मजदूर जमा होंगे, उनके रहने की क्या व्यवस्था की जायेगी। इसका परिणाम यह हुआ है कि मजदूर वर्ग गन्दी बस्तियों में रहता है, जहाँ दरिद्रता, व्यभिचार और सामाजिक बुराइयों के साथ-साथ अनेक रोगों का भी पोषण औरहोता है। बड़े-बड़े औद्योगिक केन्द्रों में तो एक-एक कमरे में कई- कई परिवार होते है। न उनमें हवा की व्यवस्था है न रोशनी की। छतों पर टीन और छप्पर होते हैं। चारो ओर गन्दा पानी जमा रहता। सच कहा जाये तो ये मजदूर बस्तियां नरक का प्रतीक बन गयी है। महानगरों में अभी भी 13 प्रतिशत लोग झोपड़ियों में और 15 प्रतिशत लोग कच्चे मकानों में रहते हैं। इस समय भारतवर्ष में झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले लोगों की संख्या तीन करोड़ से अधिक है। श्रमिकों के कल्याण के लिए उचित और संतोषजनक आवास व्यवस्था किये बिना औद्योगिक विकास के वांछित परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं।
  3. भर्ती के दोषपूर्ण तरीके (Inappropriate Methods of Recruitment) : भर्ती के दोषों के सम्बन्ध में श्रमिकों की भर्ती की विवेचना में काफी प्रकाश डाला जा चुका है। औद्योगिकरण के प्रारम्भिक चरण में श्रमिकों की कमी थी। अतः मध्यस्थों के द्वारा भर्ती की जाती थी। ये मध्यस्थ प्रायः स्वयं भी कारखाने में काम करते थे और श्रमिक वर्ग पर नियंत्रण करने और उनके कार्यों पर निगरानी रखने के लिए जमादार या टंडेल आदि के रूप में इनकी नियुक्ति होती थी। ये मध्यस्थ ग्रामीण क्षेत्रों से मजदूरों की भर्ती करते थे और नौकरी पर लगवाने से पहले और नौकरी पर लगने के बाद भी उनसे पैसा ऐंठते थे। जब ये मध्यस्थ के समाप्त कर दिये गये, किन्तु भर्ती में भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ है। विभिन्न उद्योगों में नौकरी दिलाने वाले श्वेतवसन दलाल (White collar agents) बढ़ गये हैं, जो औद्योगिक संस्थानों में काम करते है। अथवा राजनीतिक प्रभाव रखते हैं।
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Pankaja Singh

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