विपणन प्रबन्ध

संवर्द्धन मिश्रण का महत्व | Importance of Enhancement Mixing in Hindi

संवर्द्धन मिश्रण का महत्व | Importance of Enhancement Mixing in Hindi

संवर्द्धन मिश्रण का महत्व

संवद्धन सम्मिश्रण का प्रमुख महत्व निम्न प्रकार है-

  1. वितरण-माध्यमों का विकास (Development of Distribution Channel) – वर्तमान समय में वितरण माध्यमों का बहुत अधिक विकास हुआ है और निर्माता तथा उपभोक्ता के बीच कई कड़ियाँ आ गयी हैं। अतः निर्माता के लिए यह आवश्यक है कि वह ऐसी नीति अपनाएँ जिससे उनकी सूचनाएँ समय-समय पर उपभोक्ताओं को ही न मिले बल्कि मध्यस्थों को भी मिल सकें। एक निर्माता थोक विक्रेता को सूचित करता है, थोक विक्रेता फुटकर विक्रेता को और फुटकर विक्रेता उपभोक्ता को सूचित करता है। इस प्रकार वितरण माध्यमों के विकास ने संवर्द्धन व संचार की क्रियाओं के महत्व को बढ़ा दिया है।
  2. उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच अधिक दूरी (Long Distance Between Producers and Consumers)- उपभोक्ता और उत्पादकों के बीच दूरी दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है क्योंकि आज विभिन्न वस्तुओं के बाजार राष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अन्तर्राष्ट्रीय होते जा रहे हैं। संवर्द्धन या संचार क्रियाएँ उन दोनों का मिलाने में सहायक होती हैं।
  3. प्रतियोगिता (Competition)- आज के युग को प्रतियोगिता का युग कहा जाता है क्योंकि प्रत्येक क्षेत्र में प्रतियोगिता पायी जाती है। एक उद्योग दूसरे उद्योग से प्रतियोगिता करता है। एक ही उद्योग में बहुत सी संस्थाएँ होने के कारण भी उनमें आपस में प्रतियोगिता होती है। इस प्रतियोगिता का संवर्द्धन पर काफी प्रभाव पड़ता है। आजकल निर्माता आवश्यकता की ही पूर्ति नहीं करता बल्कि ग्राहकों को मनोविज्ञान की भी पूर्ति करता है। इसलिए प्रतियोगिता से प्रभावशाली ढंग से निपटने के लिए संवर्द्धन की क्रियाओं को अपनाया जाना आवश्यक है। ग्राहकों की माँग तो सदा ही सुस्त रहती है, प्रतियोगी निर्माता का काम उस माँग को उभारना व जगाना है। इस प्रकार प्रतियोगिता ने संवर्द्धन कार्यक्रम या संचार सम्मिश्रण को अपनाने के लिए बाध्य कर दिया है जो वस्तुओं के विपणन में काफी सहयोग प्रदान करता है।
  4. आर्थिक मन्दी (Economic Recession)- व्यापार जगत में जब मंदी आती है तो वस्तुओं का विक्रय बहुत कम हो जाता है। ऐसी हालत में संवर्द्धन व संचार सुविधाएँ ही विक्रय को बनाए रखने में सहायक होती हैं जिससे विपणन क्रियाएँ चलती रहती हैं।
  5. उच्च जीवन-स्तर (High Standard of Living)- अधिकाधिक वस्तुओं को काम में लाना ही उच्च रहन-सहन के स्तर का प्रतीक है। संवर्द्धन उन वस्तुओं के बारे में सूचनाएँ देता है जिनकी जानकारी उपभोक्ता को नहीं है। जब उपभोक्ता को नयी-नयी वस्तुओं की जानकारी हो जाती है तो वह उनको क्रय करके अपने जीवन स्तर को उच्च बना लेता है।
  6. संवर्द्धन व्यय (Promotional Expenses) – एक वस्तु के विपणन व्यय उस वस्तु के उत्पादक व्यय से कहीं अधिक होते हैं। इन विपणन व्ययों में संवर्द्धन व्यय भी शामिल हैं।
  7. रोजगार (Employment)- यदि वस्तुओं की माँग कम होती है तो व्यवसाय की प्रगति रुक जाती है और निर्माता को कर्मचारियों की छँटनी करनी पड़ती है। संवर्द्धन विक्रय को बनाए रखने में सहायक होता है जिससे रोजगार सुविधाएँ या तो ज्यों की त्यों बनी रहती हैं या उनमें वृद्धि होती है और कर्मचारियों की छँटनी करने की आवश्यकता नहीं होती।
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Pankaja Singh

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