विपणन प्रबन्ध

सेवाओं का विपणन | सेवाओं की मुख्य विशेषतायें तथा विपणन

सेवाओं का विपणन | सेवाओं की मुख्य विशेषतायें तथा विपणन | Marketing of Services in Hindi | Key Features and Marketing of Services in Hindi

सेवाओं का विपणन

(Marketing of Services)

फिलिप कोटलर के अनुसार, “सेवा कोई कर्म या निष्पादन है जो एक दूसरे पक्ष को प्रस्तुत कर सकता है, जो मुख्यतया अमूर्त होता है तथा जो किसी वस्तु के स्वामित्व में परिवर्तित नहीं होती है।” इस प्रकार सेवा एक कर्म या कार्य है। इसमें दो पक्ष होते हैं। एक पक्ष दूसरे पक्ष को यह सेवा प्रस्तुत करता है। यह प्रस्तुति किसी मूर्तवान वस्तु की नहीं होती है और न इसमें किसी वस्तु का लेन-देन होता है। उदाहरण के लिए जब हम हवाई जहाज से यात्रा करते हैं तो यह एक सेवा है। इसमें किसी वस्तु का आदान-प्रदान नहीं होता है। जब हम गन्तव्य स्थान पर पहुँच जाते हैं तो हवाई जहाज की कम्पनी का कार्य पूरा हो जाता है। इसी प्रकार जब हम किसी होटल में ठहरते हैं तो होटल सेवा देने वाली संस्था है। जब तक हम वहाँ रहते हैं वे बराबर आपको अपनी सेवा प्रस्तुत करते रहते हैं, लेकिन जैसे ही हम होटल छोड़ देते हैं होटल वाले का काम पूरा हो जाता है।

सेवाओं की मुख्य विशेषतायें तथा विपणन

(Main Characteristics of Services and Marketing)

सेवाओं की चार मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं-

  1. अमूर्तवानता- सेवाओं की विशेषता है कि यह भौतिक या मूर्तवान नहीं होती हैं । न तो इन्हें देखा जा सकता है, न चखा जा सकता है, न सुना जा सकता है और न सूंघा जा सकता है। हाँ उसके द्वारा दी जाने वाली क्वालिटी सेवा से इसको पहचना जा सकता है। यदि कोई बैंक अपने को ‘अच्छी सेवा’ की श्रेणी में रखना चाहता है तो वह बैंक के भीतर व बाहर सफाई रखती है। ग्राहक के आने एवं जाने को इस प्रकार नियमित किया जाता है कि उसे अच्छा लगे तथा लाइन में खड़ा होने पर उसको अपने काम के लिए कम-से-कम समय लगे। इसके लिए बैंक में पर्याप्त कर्मचारी रखे जाते हैं। साथ ही आवश्यक मशीनें एवं कम्प्यूटर आदि भी उचित संख्या में होते हैं। संचार सामग्री भी पर्याप्त मात्रा में होती है जिससे ग्राहक के प्रश्नों का उत्तर समुचित ढंग से उसे मिल सके।
  2. नाश्वानता- सेवाओं को रोककर स्टॉक के रूप में नहीं रखा जा सकता है। इसीलिए यदि मांग अधिक होती है तो सेवाओं में नाशवानता कोई समस्या नहीं होती है, लेकिन जब मांग कम होती है तो सेवा संस्था के लिए समस्या पैदा हो जाती है। उदाहरण के लिए जब होटल शत प्रतिशत भरी है तो नाशवानता नहीं है लेकिन जब होटल में कमरे खाली हैं तो नाशवानता की समस्या है।
  3. अविच्छेद योग्य- सेवाओं की तीसरी विशेषता है कि यह एक साथ पैदा होती है एवं साथ साथ उपभोग कर ली जाती है जबकि वस्तु पहले पैदा की जाती है फिर उसको स्टॉक में रखा जाता है तदुपरान्त वितरकों के माध्यम से उपभोक्ता तक पहुँचती है तभी उसका उपभोग होता है।

सेवा देने वाली संस्था के सामने सेवा प्राप्त करने वाले ग्राहक होते हैं। अतः इनमें बातचीत होना विपणन का एक महत्वपूर्ण अंग है। इसलिए सेवा देने वाले कर्मचारी इतने प्रशिक्षित होने चाहिए कि उनकी सारी बातों का कम से कम समय में उत्तर दे सकें।

  1. भिन्नता- सेवाओं की चौथी विशेषता है कि इनमें भिन्नता होती है। जैसे कोई डाक्टर ऑपरेशन में कुशल होता है तो कोई उतना कुशल नहीं होता है। इसलिए पहले डॉक्टर पर अधिक मरीज पहुँचते हैं जबकि दूसरे डॉक्टर पर कम। इसमें सेवा प्राप्त करने वाला पहले से ही जाँच पड़ताल कर लेता है, तभी वह सेवा के लिए उसे चुनता है।

सेवा देने वाली संस्थाओं को अपनी सेवाओं का प्रमापीकरण कर देना चाहिए। इसके लिए पहले से ही एक विवरण छापकर ग्राहक को दे देना चाहिए। साथ ही ग्राहक संतुष्टि को भी मापने का प्रयास करना चाहिए। इसके लिए ग्राहकों से शिकायतें व सुझाव भी मांगे जाने, चाहिए।

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Pankaja Singh

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