विपणन प्रबन्ध

विज्ञापन का अर्थ | विज्ञापन की परिभाषा | विज्ञापन के कार्य

विज्ञापन का अर्थ | विज्ञापन की परिभाषा | विज्ञापन के कार्य | Meaning of Advertisement in Hindi | Definition of Advertisement in Hindi | advertising work in Hindi

विज्ञापन का अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning & Definition of Advertisement)

विज्ञापन दो शब्दों से मिलकर बना है, विज्ञापन। ‘वि’ का अर्थ है विशेष और ‘ज्ञापन’ का अर्थ है ज्ञान कराना अर्थात् विशेष ज्ञान कराने को ही विज्ञापन कहते हैं। साधारण भाषा में विज्ञापन का आशय वस्तु के सम्बन्ध में, विशेष जानकारी देने से लगाया जाता है। परन्तु यह विचारधारा अपने आप में पूर्ण नहीं है। आधुनिक युग में विज्ञापन का क्षेत्र व्यापक होता जा रहा है। वर्तमान समय में विज्ञापन के अन्तर्गत उन सभी क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है जिनके द्वारा जनता को वस्तुओं एवं सेवाओं के सम्बन्ध में जानकारी देने के साथ-साथ उन्हें उसे खरीदने के लिए प्रेरित भी किया जाता है।

वुड के अनुसार, “विज्ञापन जानने, स्मरण रखने तथा कार्य करने की एक विधि है।”

व्हीलर के अनुसार, “विज्ञापन लोगों को क्रय करने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से विचारों, वस्तुओं तथा सेवाओं का अवैयक्तिक प्रस्तुतीकरण है जिसके लिए भुगतान किया जाता है।”

रिचर्ड बसकिर्क के अनुसार, “विज्ञापन एक परिचित प्रायोजक द्वारा विचारों, वस्तुओं या सेवाओं के अवैयक्तिक प्रस्तुतीकरण या प्रवर्तन का ढंग है जिसके लिए भुगतान किया गया है।”

संक्षेप में, समस्त साधन जिनके द्वारा दर्शन मात्रा या मौखिक संदेश जनता तक पहुँचाए जा सके, जिनके द्वारा जनता को वस्तु के लिए लालायित किया जा सके या जनता किसी अन्य विशेष विचारों से किसी संस्था या व्यक्तियों के समूह के प्रति झुक सके, विज्ञापन कहलाते हैं।

विज्ञापन के कार्य

(Functions of Advertisement)

विज्ञापन के द्वारा व्यापारिक, सामाजिक, मनोवैज्ञानिक एवं आर्थिक कार्य सम्पन्न किये जाते हैं। इनका वर्णन निम्नलिखित हैं-

I. व्यापारिक कार्य (Commercial Functions)

  1. अधिक से अधिक ग्राहक बनाना- विज्ञापन के द्वारा अधिक से अधिक ग्राहक बनाने के लिए जनता को वस्तु या सेवा के विषय में शिक्षित किया जाता है एवं फैशन का प्रचार किया जाता है।
  2. बिक्री का बीमा- वस्तु का निरन्तर विज्ञापन कराते रहने से विज्ञापन वस्तु के प्रति ग्राहकों के मस्तिष्क में आसक्ति उत्पन्न हो जाती है। अतः उस वस्तु को छोड़कर अन्य खरीदने के लिए ग्राहक को कई बार सोचना पड़ता है।
  3. मध्यस्थों की सहायता- वस्तु के विज्ञापन द्वारा, थोक एवं फुटकर विक्रेताओं को वस्तु को अपने स्टॉक में रखने का प्रेरणा मिलती है, क्योंकि वस्तु का निरन्तर विज्ञापन होने से जनता को वस्तु के सम्बन्ध में पहले से ही जानकारी रहती है और मध्यस्थों का काम आसान हो जाता है।
  4. विक्रय में एकता लाना- विज्ञापन के द्वारा यह आसानी से सिद्ध कर दिया जाता है कि वस्तु हर मौसम के लिए उपयोगी है। उदाहरण के लिए चाय के सम्बन्ध में यह विज्ञापन करायें कि “हमें चाय पीने से आती नहीं सुस्ती, चाहे गर्मी हो या सर्दी।” यहीं कारण है कि आजकल चाय गर्मी और सर्दी दोनों मौसमों में प्रयोग की जाने लगी है। इसी प्रकार पंखों के सम्बन्ध में मौसमी छूट घोषित करके और इसका विज्ञापन कराकर सर्व के मौसम में भी उनकी बिक्री की जा सकती है।
  5. ग्राहकों की रूचि बनाए रखना- जिस वस्तु का ग्राहक उपयोग कर रहे हैं, उसके गुणों का बार-बार प्रचार करके ग्राहकों की उस वस्तु के सम्बन्ध में रुचि बनायी रखी जा सकती है। जैसे- कोलगेट, क्लोज अप, फोरहेन्स, प्रोमिस दूध पेस्ट के लिए निरन्तर विज्ञापन किये जाते हैं।
  6. विक्रय बाधाओं को दूर करना- विज्ञापन द्वारा विक्रय बाधाओं का सरलता पूर्वक सामना किया जा सकता. उदाहरण के लिए विज्ञापन द्वारा वस्तु के विपक्ष में फैलाये गये मिथ्यापूर्ण विचारों का खण्डन किया जा सकता है, स्थानापत्र वस्तुओं के हतोत्साहित किया जा सकता है, वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता लायी जा सकती है और संस्था के ट्रेडमार्क का प्रचार किया जा सकता है।
  7. कर्मचारियों के आत्म सम्मान में वृद्धि- विज्ञापन के द्वारा संस्था के प्रबन्धकों एवं कर्मचारियों में आत्मविश्वास का विकास होता है।
  8. कुशल कर्मचारियों की प्राप्ति- विज्ञापन द्वारा कुशल कर्मचारी प्राप्त किये जा सकते हैं।
  9. पूँजी प्राप्त करने में सहायक- कम्पनियाँ जनता को विज्ञापन द्वारा अंश एवं ऋण पत्र खरीदने के लिए आमन्त्रित करती हैं। जनता इस प्रकार की जानकारी के आधार पर कम्पनी के अंश या ऋण पत्र खरीद लेती है।

II. सामाजिक कार्य (Social Functions) –

  1. आशावादी वातावरण- विज्ञापन द्वारा समाज को नयी-नयी वस्तुओं से अवगत कराया जाता है जिससे समाज में आशावादी वातावरण उत्पन्न होता है।
  2. जीवन स्तर का विकास- विज्ञापन के द्वारा समाज को नयी-नयी वस्तुओं के सम्बन्ध में जानकारी मिलती है। इससे समाज में नयी वस्तुओं का प्रयोग बढ़ने लगता है और इसके परिणामस्वरूप जीवन स्तर का विकास होता है।
  3. सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति- विज्ञापन द्वारा अनेक सामाजिक कार्य आसानी से सम्पन्न किये जा सकते हैं, जैसे- जीवन साथी का चयन, नौकरी की प्राप्ति, आदि।

III. मनोवैज्ञानिक कार्य (Psychological Functions) –

  1. अधिक कार्य की प्रेरणा प्रदान करना- ग्राहकों को विज्ञापन वस्तु को खरीदने के लिए आवश्यक धनराशि जुटाने हेतु अधिक कार्य करने के लिए प्रेरणा मिलती है।
  2. वस्तु के प्रति विश्वास- जिस वस्तु का विज्ञापन निरन्तर होता रहता है, उस वस्तु के प्रति जनता का विश्वास बढ़ जाता है।
  3. आर्थिक कार्य (Economic Functions) –
  4. वस्तु की किस्म पर नियन्त्रण – जिस वस्तु का निरन्तर विज्ञापन कराया जाता है, उत्पादक उस वस्तु के गुणों को बनाये रखने का प्रयत्न करता है, अन्यथा ग्राहकों पर उसका विपरीत प्रभाव पड़ सकता है।
  5. उत्पादकता बढ़ाना- विज्ञापन द्वारा ग्राहकों की आवश्यकताओं में वृद्धि की जाती है। मूल्य सूची का प्रचार करके वस्तुओं के मूल्य में स्थिरता लायी जाती है और वस्तु के प्रति विश्वास बढ़ जाता है। इन सबका सम्मिलित प्रभाव यह होता है कि वस्तु की मांग बढ़ जाती है और बढ़ी हुई माँग की पूर्ति करने के लिए उत्पादकता में वृद्धि होती है।
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Pankaja Singh

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