अर्थशास्त्र

कीन्सोत्तरीय विचारधाराएँ | कीन्स की निरपेक्ष आय परिकल्पना | Keynes’s Absolute Income Hypothesis in Hindi

कीन्सोत्तरीय विचारधाराएँ | कीन्स की निरपेक्ष आय परिकल्पना | Keynes’s Absolute Income Hypothesis in Hindi

कीन्सोत्तरीय विचारधाराएँ

आय-उपभोग के मध्य सम्बन्ध हेतु कीन्सोत्तर अथवा कीन्स के बाद की विचारधाराएँ बताती हैं कि अल्पकालिक उपभोग फलन का ढाल दीर्घकालिक उपभोग फलन ढाल की अपेक्षा कम होता है। दोनों महायुद्धों के बीच की समय अवधि में जिन अर्थशास्त्रियों ने अमेरिका के लिए उपभोग फलन का अनुमान किया है उन्होंने कीन्स के इस मत का अनुमोदन किया है कि दीर्घकाल में भी आय के अनुपात में उपभोग व्यय नहीं बढ़ पाता है। फलतः जब आय बढ़ती है तो औसत उपभोग प्रवृत्ति घटती हैं। इस उपभोग फलन को C = a + bY के रूप में व्यक्त किया गया है जिसमें a >o तथा o<b<1 की मान्यताएं ली गईं। इस फलन में b को MPC या सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति के रूप में लिया गया है तथा अल्प एवं दीर्घकालीन सीमान्त उपभोग प्रवृत्ति को समान गया है। उपर्युक्त अवधि में जितने भी अध्ययन किये गये हैं, उन सभी से यही निष्कर्ष प्राप्त हुआ है। आर्थर स्मिथीस एवं अन्य अर्थशास्त्रियों ने इसी प्रकार के एक फलन के आधार पर अमरीकी अर्थव्यवस्था के लिए मांग का पूर्व-अनुमान प्रस्तुत किया है। यह उपभोग फलन यह बताता है कि आय एवं उपभोग के बीच दीर्घकालिक सम्बन्ध अनुपातिक नहीं है।

इस प्रकार के कीन्सवादी उपभोग फलन को बाद में अनुपयोगी घोषित कर दिया गया था क्योंकि द्वितीय युद्धोत्तर अवधि (1946-1947) में उपभोग का स्तर सरल उपभोग फलन C = a + by द्वारा पूर्व-अनुमानित स्तर से बहुत ऊंचा पाया गया था। इस सरल उपभोग फलन को अस्वीकार करने के और भी कई कारण थे। सरल उपभोग फलन C = a + bY का आशय यह है कि उपभोग एवं आय का अनुपात (C/Y) आय में वृद्धि के साथ-साथ घटता जाता है, अर्थात् आय के सम्बन्ध में उपभोग-व्यय का प्रतिशत कम होता जाता है। इस आधार पर आय के स्तर को स्थिर बनाए रखने हेतु आय बढ़ने के साथ निवेश का अनुपात बढ़ना चाहिए। युद्ध-पश्चात् (post-war) काल में पूर्ण रोजगार के लिए, उपभोग तथा आय के मध्य गैर-आनुपातिक सम्बन्ध के अनुसार निवेश का स्तर बहुत ऊंचा होना जरूरी था। परन्तु अनुभव के आधार पर यह सिद्ध हो गया था कि सरकारी व्यय में थोड़ी भी वृद्धि होने मूल्य वृद्धि को प्रोत्साहन मिलने लगा था। आय तथा उपभोग के मध्य गैर-आनुपातिक सम्बन्धों पर सबसे कड़ा प्रहार नोबिल पुरस्कार प्राप्तकर्ता अर्थशास्त्री साइमन कुजनेत्स ने किया था। कुजनेत्स ने अमरीकी अर्थव्यवस्था के लिए 1869- 1929 की अवधि के आंकड़ों के आधार पर राष्ट्रीय आय एवं उपभोग की प्रवृत्ति का विश्लेषण कि इस अवधि में आय चारगुनी होने पर भी उपभोग एवं राष्ट्रीय आय करके यह बताया है कि अनुपात स्थिर रहा था। बाद में गोल्डस्मिथ ने कुजनेत्स के निष्कर्षों का अनुमोदन किया था। गोल्डस्मिथ ने व्यक्तिगत आय एवं उपभोग की प्रवृत्ति का अध्ययन करने के बाद यह बताया कि बचत की एक प्रमुख विशेषता यह है कि दीर्घकाल में कुल बचत एवं कुल आय का अनुपात 0.125 पर स्थिर रहता है। इसका अर्थ है कि दीर्घकाल में उपभोग एवं आय का अनुपात (C/Y) 0.875 पर स्थिर रहता है।

यद्यपि उपभोग आय अनुपात (C/Y) दीर्घकाल में स्थिर रहता है परन्तु परिक्षेत्री (Cross-section) आंकड़ों से यह ज्ञात होता है कि जैसे-जैसे आय बढ़ती है वैसे- वैसे यह अनुपात (C/Y) घटता जाता है। इसके अलावा अध्ययन से यह भी पता चलता है कि उपभोग-आय अनुपात  व्यापार चक्र की अवधि में घटता-बढ़ता रहता है। मामूली मन्दी के समय उपभोग में अनुपात से कम कटौती होती है और कभी-कभी आय घटने पर भी उपभोग व्यय बढ़ जाता है। संक्षेप में, अनुभव मूलक तथ्यों से स्पष्ट होता है कि दीर्घकाल में आय तथा उपभोग के बीच आनुपातिक सम्बन्ध होता है जबकि अल्पकाल में यह सम्बन्ध गैर-आनुपातिक पाया जाता है। अल्पकालिक एवं दीर्घकालिक उपभोग फलनों का चित्रण प्रस्तुत करता है। इस चित्र में aa, bb, dd रेखाएं अल्पकालिक उपभोग फलन है जो यह बताते हैं कि आय में वृद्धि होने के साथ-साथ उपभोग एवं आय का अनुपात C/Y घटता जाता है। दीर्घकालिक उपभोग फलन की रेखा OC = bY है तथा इस पर आय एवं उपभोग व्यय का अनुपात स्थिर रहता है।

इस प्रकार 1941 के पश्चात् कीन्स का उपभोग फलन गलत सिद्ध हुआ क्योंकि युद्धोत्तर काल में परिवारों ने अपनी उपभोक्ता वस्तुओं की विलम्बित माँग हेतु तरल सम्पत्तियों में परिणत कर लिया। अध्ययन की सुविधा के लिए आय उपभोग के इन सिद्धान्तों के निम्नलिखित चार परिकल्पनाओं से सम्बोधित किया जा सकता है-

(1) कीन्स की निरपेक्ष आय परिकल्पना

(Keynes’s Absalute Income hypothesis)

(2) ड्यूसनबरी की सापेक्ष आय परिकल्पना

(Dussenberry’s relative income hypothesis)

(3) फ्रीडमैन की स्थायी आय परिकल्पना

(Friedman’s Permanent income hypothesis)

(4) एण्डो तथा मोदिग्ल्यानी की जीवन-चक्र परिकल्पना

(Ando and Modigliani’s Life-cycle hypothesis)

कीन्स की निरपेक्ष आय परिकल्पना

(Keynes’s Absolute Income Hypothesis)

केन्ज के ‘उपभोग आय संबंध’ को निरपेक्ष आय परिकल्पना नाम दिया गया है जो बताता है कि जब आय बढ़ती है, तो उपभोग भी बढ़ता है परन्तु वह आय में वृद्धि की अपेक्षा कम बढ़ता और विलोमश: भी। इसका मतलब है कि उपभोग तथा आय का सम्बन्ध अननुपातिक है। जेम्स टोबिन तथा आर्थर स्मिथीज ने अलग-अलग अध्ययनों में इस परिकल्पना का परीक्षण किया और इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि उपभोग तथा आय में अल्पकालीन सम्बन्ध अननुपातिक है, परन्तु काल- श्रेणी (time-series) आंकड़ों से पता चलता है कि इन दोनों का दीर्घकालीन सम्बन्ध समानुपातिक है। उत्तरोक्त उपभोग आय’ व्यवहार अल्पकालीन अननुपातिक उपभोग फलन के ऊपर को विचलन अथवा सरकने के माध्यम से होता है जिसके लिए आय से भिन्न कारण उत्तरदायी होते हैं। इन कारणों की चर्चा आगे की जा रही है।

प्रथम, प्रोफेसर टाबिन ने इस परिकल्पना का परीक्षण करने के लिए नीग्रो तथा श्वेत परिवारों के बजट अध्ययनों में परिसम्पत्ति धारण शामिल किये। वह इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि यदि परिवारों के परिसम्पत्ति धारणों में वृद्धि होती है, तो उनकी उपभोग की प्रवृत्ति बढ़ने लगती है जसके परिणामस्वरूप उनका उपभोग फलन ऊपर को सरक जाता है। दूसरे, द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद से, कई प्रकार की नई घरेलू उपभोक्ता वस्तुएं बहुत तेजी से व्यवहार में आई हैं। इस तरह की आवश्यक वस्तुओं के प्रचलन से उपभोग फलन ऊपर को सरक जाता है। तीसरे, युद्ध के बाद की अवधि से, शहरीकरण की प्रवृत्ति बढ़ती रही है। ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों की ओर जनसंख्या की इस गति से उपभोग फलन ऊपर की आरे सरका है क्योंकि खेत पर काम करने वालों की अपेक्षा शहरी मजदूरों की उपभोग प्रवृत्ति अधिक होती है। चौथे, दीर्घकालीन पर्यन्त, कुल जनसंख्या में बूढ़े लोगों की प्रतिशतता निरन्तर बढ़ती रही है। यद्यपि बूढ़े लोग कमाई नहीं करते, फिर भी वे वस्तुओं का उपभोग तो करते ही हैं। परिणामतः उनकी संख्या बढ़ने से उपभोग फलन ऊपर को सरका है।

“निरपेक्ष आय सिद्धान्त के अनुसार, इस तरह के कारणों ने उपभोग फलन को ऊपर की ओर लगभग उतना ही सरकाया है जितना कि दीर्घकालीन में उपभोग तथा आय के बीच समानुपातिक सम्बन्ध स्थापित करने के लिए आवश्यक है और इस प्रकार उसे ऐसा प्रतीत होने से रोका है जो अन्यथा केवल आय के आधार पर प्रत्याशित अननुपातिक संबंध प्रतीत होता है।”

निरपेक्ष आय परिकल्पना को चित्र में स्पष्ट किया गया है जहां C1 दीर्घकालीन उपभोग फलन है, जो कि, जैसे-जैसे हम दीर्घकालीन वक्र के साथ-साथ चलते हैं वैसे-वैसे, उपभोग तथा आय के बीच समानुपातिक सम्बन्ध को प्रकट करता है।

उदाहरणार्थ, इस वक्र A तथा B  बिन्दुओं पर APC तथा MPC बराबर  हैं। CS1 तथा CS2 अल्पकालीन उपभोग फलन हैं। परन्तु जिन कारणों का ऊपर उल्लेख किया जा चुका है, उनके कारण ये उपभोग फलन दीर्घकालीन उपभोग फलन C1 के साथ-साथ बिन्दु A से बिन्दु B की ओर ऊपर को सरकने लगते हैं। परन्तु Cs1 तथा Cs2 अल्पकालीन उपभोग फलनों की बिन्दुकित भाग के साथ गति उपभोग को आय में वृद्धि के अनुपात में नहीं बढ़ाएगी।

इस सिद्धान्त का बड़ा गुण यह है कि यह आय को छोड़कर उन अन्य कारकों पर बल देता है जो उपभोक्ता व्यवहार को प्रभावित करते हैं। परन्तु इसकी कमी यह है कि यह अननुपातिक उपभोग फलन की मान्यता लेकर चलता है। जैसा कि प्रोफेसर शपीरो ने लक्ष्य किया है, “अब अधिकाधिक अर्थशास्त्री यह महसूस करने लगे हैं कि आधारभूत उपभोग फलन समानुपातिक होता है जिसका मतलब निरपेक्ष आय परिकल्पना के प्रमुख सिद्धान्त को नकारना है।”

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Pankaja Singh

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