अर्थशास्त्र

अल्पाधिकार | अल्पाधिकार की विशेषताएँ | अल्पाधिकार व वर्गीकरण

अल्पाधिकार | अल्पाधिकार की विशेषताएँ | अल्पाधिकार व वर्गीकरण

अल्पाधिकार

अल्पाधिकार अपूर्ण प्रतियोगिता का एक महत्त्वपूर्ण रूप है। अल्पाधिकार उस स्थिति को कहा जाता है जिसमें एक वस्तु के उत्पादक अथवा बेचने वाली फर्मे थोड़ी सी होती हैं। अन्य शब्दों में, जबकि एक पदार्थ के दो अथवा दो से अधिक (परन्तु बहुत अधिक नहीं) उत्पादक अथवा विक्रेता हों तो अल्पाधिकारी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। अल्पाधिकार को कई बार ‘कुछ में प्रतियोगिता’ (Competition Among the Few) भी कहा जाता है। अल्पाधिकार का सरलतम रूप द्वि- अधिकार (Duopoly) है जिसमें एक पदार्थ के केवल दो उत्पादक अथवा विक्रेता होते हैं : द्वि- अधिकार के विश्लेषण से वे सब आधारभूत समस्याएँ सामने आ जाती हैं जो कि दो से अधिक फर्मों वाली अल्पाधिकारी स्थितियों की व्याख्या करने में आती हैं।

यद्यपि कुछ या अधिक फर्मों के मध्य कोई निश्चित सीमा निर्धारण करना कठिन है किन्तु यदि एक पदार्थ के उत्पादकों अथवा विक्रेताओं की संख्या दो से दस तक हो तो इस स्थिति को अल्पाधिकार कहा जाता है। जब कुछ विक्रेताओं के पदार्थ समान हों तो उसे बिना पदार्थ विभेदीकरण के अल्पाधिकार (Oligopoly without Product Differentiation) शुद्ध अल्पाधिकार (Pure Oligopoly) कहा जाता है। दूसरी ओर, जब विभिन्न विक्रेताओं या फर्मों के पदार्थ विभेदीकृत परन्तु एक-दूसरे से निकट स्थानापन्न हैं तो इसको पदार्थ विभेदीकरण सहित अल्पाधिकार (Oligopoly with Product Differentiation) अथवा अपूर्ण अल्पाधिकार (Imperfect Oligopoly) अथवा विभेदीकरण अल्पाधिकार (Differentiated Oligopoly) कहा जाता है।

अल्पाधिकार की विशेषताएँ

(Characteristics of Oligopoly)

अल्पाधिकारी स्थिति में कुछ इस प्रकार की विशेषताएँ होती हैं जो अन्य बाजार स्थितियों में देखने में नहीं आतीं। यहाँ हम इसकी कुछ विशेषताओं का वर्णन करते हैं।

(1) परस्पर निर्भरता (Interdependence)- अल्पाधिकार की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता उद्योग की कुछ फर्मों द्वारा निर्णय करने में पारस्परिक निर्भरता है। इसका कारण यह है कि जब प्रतियोगियों की संख्या कम होती है तो एक फर्म द्वारा किये गये कीमत, उत्पादन, पदार्थ आदि । सम्बन्धी परिवर्तनों का प्रत्यक्ष प्रभाव प्रतिद्वन्द्वियों के लाभों पर पड़ता है, जो प्रतिक्रिया स्वरूप अपनी कीमतों, उत्पादन तथा पदार्थों में जैसी भी आवश्यकता हो परिवर्तन करते हैं। इस प्रकार एक अल्पाधिकारी उद्योग में जब कोई फर्म कीमत में कमी करती है, अपने पदार्थ का नया मॉडल प्रस्तुत करती है अथवा विज्ञापन कार्यक्रम तेजी से प्रारम्भ करती है तो निश्चय ही इसकी प्रतिद्वन्द्वी फर्म भी बदले में इसी प्रकार की क्रियाएँ करती हैं। अत: इस स्थिति में एक उत्पादक को यह स्वीकार करना होता है कि कीमत, उत्पादन तथा विज्ञापन आदि के सम्बन्ध में उसके प्रतिद्वन्द्वी के निर्णय, इन चरों के सम्बन्ध में, उसके व्यवहार पर निर्भर होते हैं। एक अल्पाधिकारी फर्म द्वारा निर्णय लेते समय यह ध्यान रखना होता है कि उसके निर्णयों के प्रतिक्रिया स्वरूप उसके प्रतिद्वन्द्वी की प्रतिक्रियाएँ किस प्रकार की होंगी। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि अल्पाधिकारी फर्म को केवल समस्त उद्योग के पदार्थ की बाजार माँग को ही ध्यान में नहीं रखना होता बल्कि इसको यह भी ध्यान में रखना होता है कि उसकी क्रियाओं या निर्णयों पर उद्योग की अन्य फर्मों की प्रतिक्रियाएँ क्या होंगी? चूँकि अन्य फर्मों की सम्भावित प्रतिक्रियाएँ एक से अधिक प्रकार की हो सकती हैं, इसलिए अल्पाधिकार में कीमत तथा निर्धारण का निश्चित एवं निर्दिष्ट समाधान प्रस्तुत करने के लिए पहले हमको अन्य फर्मों की प्रतिक्रियाओं के बारे में कुछ मान्यताएं निर्धारित करनी होती हैं।

(2) विज्ञापन तथा विक्रय लागतों का महत्त्व (Importance of Advertising and Selling Costs)-अल्पाधिकारियों की परस्पर-निर्भरता का एक प्रत्यक्ष प्रभाव यह है कि विभिन्न फर्मों को बाजार में अपना हिस्सा बढ़ाने या वर्तमान हिस्से में कमी न होने देने के लिए आक्रामक व बचाव के बाजार-शस्त्रों का प्रयोग करना होता है। इसके लिए विभिन्न फर्मों को विज्ञापन तथा बिक्री प्रोत्साहन के अन्य तरीकों के लिए काफी विक्रय लागत करनी पड़ती है। प्रो० बॉमल ने ठीक ही कहा, “अल्पाधिकार में ही विज्ञापन बहुत महत्त्वपूर्ण बन जाता है।” पूर्ण प्रतियोगिता में एक व्यक्तिगत फर्म द्वारा विज्ञापन व्यर्थ है क्योंकि दी हुई कीमत पर वह वस्तु की जितनी मात्रा चाहे बेच सकती है। एकाधिकारी को भी प्रतियोगी विज्ञापन की आवश्यता नहीं है क्योंकि वह पदार्थ का एकमात्र विक्रेता होता है। सम्भव है एकाधिकारी को उस समय विज्ञापन की आवश्यकता पड़े जबकि वह अपने पदार्थ के नये मॉडल के बारे में जनता को अवगत कराना चाहता है अथवा वह उन सम्भावी उपभोक्ताओं को आकर्षित करना चाहता है जो अब तक उसके पदार्थ का उपभोग नहीं कर रहे हैं । एकाधिकारिक प्रतियोगिता में वस्तु विभेदीकरण के कारण विज्ञापन का महत्त्वपूर्ण स्थान है; परन्तु फिर भी इतना नहीं जितना अल्पाधिकार में। “अल्पाधिकार में विज्ञापन जीवन-मृत्यु का प्रश्न बन जाता है क्योंकि जो फर्म अपने प्रतियोगियों के समान विज्ञापन नहीं कर सकती उसके उपभोक्ता प्रतियोगी उत्पादकों के पास जाने लगते हैं।”

इस बात को ध्यान में रखते हुए कि अल्पाधिकारी उद्योग में एक फर्म विज्ञापन लागत, पदार्थ की क्वालिटी, कीमतों, उत्पादन आदि में परिवर्तन करके प्रतियोगिता करती है, इसमें प्रतियोगी दशाओं की उपस्थिति को अस्वीकृत नहीं किया जा सकता। एक अल्पाधिकारी स्थिति में जो प्रतियोगिता होती है वह पूर्ण प्रतियोगिता के समान शान्तिपूर्ण स्थिति के समान नहीं होती जिसमें कोई युद्ध इसीलिए नहीं होता क्योंकि कोई भी इतना शक्तिशाली नहीं है कि शान्ति भंग कर सके। इसके विपरीत, अल्पाधिकारी के लिए वास्तविक प्रतियोगिता का सामना करना है अर्थात् जीवन में निरन्तर संघर्ष, प्रतियोगी के विरुद्ध प्रतियोगी। इस प्रकार की प्रतियोगिता केवल अल्पाधिकार में ही होती है।

(3) समूह व्यवहार (Group Behaviour)- पूर्ण प्रतियोगिता, एकाधिकार तथा एकाधिकारिक प्रतियोगिता (फर्मों को अधिक संख्या के साथ) के सिद्धान्तों में मानव व्यवहार से सम्बन्धित उपयुक्त मान्यताएँ निर्धारित करने में कोई कठिनाई नहीं आती। पूर्ण प्रतियोगिता तथा एकाधिकारिक प्रतियोगिता (फर्मों की अधिक संख्या की स्थिति में) में अर्थशास्त्री यह मान लेते हैं। कि व्यापारिक फर्में इस प्रकार से व्यवहार करती हैं कि उनके लाभ अधिकतम हों। अधिकतम लाभ की मान्यता इन स्थितियों में, जहाँ विशाल संख्या में व्यक्ति (उत्पादक तथा उपभोक्ता) होते हैं और फर्मों में कोई पारस्परिक निर्भरता नहीं होती सामान्य रूप से अच्छे परिणाम प्रदान करती है। दूसरी ओर, एकाधिकारी सिद्धान्त केवल एक व्यक्ति का वर्णन करता है और यह मान्यता करना भी अनुचित न होगा कि वह अपने लाभ अधिकतम करना चाहता है।

परन्तु अल्पाधिकारी सिद्धान्त व्यक्तियों की विशाल संख्या अथवा व्यक्तिगत व्यवहार का नहीं बल्कि समूह व्यवहार का सिद्धान्त है और अल्पाधिकारी के सम्बन्ध में लाभ अधिकतम करने की मान्यता बहुत उचित नहीं है। एक समूह में थोड़ी फ होती हैं जो कि बहुत अधिक परस्पर निर्भर होती हैं। आर्थिक व सामाजिक विज्ञान की वर्तमान स्थिति को ध्यान में रखते हुए समूह व्यवहार का सामान्य रूप से स्वीकृत कोई सिद्धान्त नहीं है। क्या एक समूह के विभिन्न सदस्य सामान्य हितों को प्राप्त करने के लिए परस्पर सहयोग करते हैं अथवा अपने व्यक्तिगत हितों की प्राप्तियों के लिए आपस में संघर्ष करते हैं? क्या समूह का कोई नेता है? यदि है, तो वह अन्य को अपनी आज्ञा- पालन के लिए किस प्रकार तैयार करता है? ये कुछ प्रश्न हैं जिनका उत्तर समूह-व्यवहार के सिद्धान्त द्वारा प्राप्त करने का प्रयत्न किया जाता है।

(4) अल्पाधिकारी के माँग वक्र की अनिरधार्य स्वरूप (Indeterminatoness of Demand Curve facing an oligopolist)-  अन्य मुख्य विशेषता यह है कि ने अल्पाधिकारी जिस माँग वक्र का सामना करता है वह अनिश्चित होता है। माँग वक्र यह बताता है कि विभिन्न कीमतों पर फर्म अपनी वस्तु की कितनी मात्राएँ बेच सकती है। पूर्ण प्रतियोगिता की स्थिति में एक व्यक्तिगत फर्म का माँग वक्र निश्चित तथा दिया हुआ होता है। पूर्ण प्रतियोगिता में ़एक प्रतियोगी फर्म समान पदार्थ का उत्पादन करने वाली बहुत अधिक फर्मों में से एक होती है, और यह अपने व्यक्तिगत प्रयत्नों द्वारा पदार्थ की कीमत को प्रभावित नहीं कर सकती। इसलिये पूर्ण प्रतियोगिता में एक फर्म जिस माँग वक्र का सामना करती है वह दिये हुए कीमत स्तर पर पूर्णतया लोचदार होता है। दूसरी ओर, एक एकाधिकारी जिस पदार्थ का उत्पादन करता है उसके स्थानापन्न लगभग नहीं के बराबर होते हैं। इसलिए, एकाधिकारी इस बात की उपेक्षा कर सकता है कि उसके कीमत परिवर्तनों के क्या प्रभाव उसके दूर के प्रतियोगी पर पड़ेंगे और इसलिए एकाधिकारी के लिए भी माँग वक्र दिया हुआ तथा निश्चित होता है जो कि उसके पदार्थ के लिए उपभोक्ताओं की माँग पर निर्भर करता है। एकाधिकारिक प्रतियोगिता की दशा में, जहाँ पर बड़ी संख्या में फर्मे होती हैं, और जिन पदार्थों का वे उत्पादन करती हैं, वे एक-दूसरे के निकट स्थानापन्न होते हैं। किन्तु एकाधिकारिक प्रतियोगिता में फर्मों की संख्या बहुत अधिक होने के कारण एक व्यक्तिगत फर्म द्वारा किये गये कीमत परिवर्तनों के प्रभाव उसके प्रतियोगियों पर नाममात्र के होंगे इसलिए इनका माँग वक्र निश्चित होता है। परन्तु फर्मों की परस्पर निर्भरता के कारण माँग वक्र अनिश्चित होता है, किन्तु माँग पर कैसा प्रभाव पड़ेगा यह ज्ञात न होने से माँग वक्र को निश्चित रूप से नहीं बताया जा सकता।

(5) एकाधिकारी शक्ति- यद्यपि एकाधिकार फर्म सम्पूर्ण उद्योग के लिए एक फर्म नहीं होती है परन्तु फिर भी बाजार में अल्पाधिकार फर्म की स्थिति एकाधिकार फर्म के समान होती है।

(6) विक्रेताओं का अल्पसंख्यक स्वरूप- अल्पाधिकार की दूसरी विशेषता उद्योग में अल्पसंख्या में विक्रेताओं का होना है। परन्तु केवल विक्रेताओं की संख्या के आधार पर अल्पाधिकार तथा एकाधिकार में अन्तर करना उपयुक्त नहीं है क्योंकि विक्रेताओं की संख्या वस्तु के प्रकार तथा क्षेत्रों आदि पर निर्भर होती है। यह अन्तर तो विक्रेता की मानसिक स्थिति पर निर्भर होता है जब विक्रेता उत्पादन की मात्रा उत्पादित वस्तु के गुण तथा कीमत आदि पर अपना प्रभाव डाल सकता है तो बाजार की स्थिति अल्पाधिकारी की हो जाती है अन्यथा नहीं।

(7) अन्योन्याश्रित संवेदनशील प्रक्रियाएँ- अल्पाधिकार के अन्तर्गत एक विक्रेता को अपनी क्रियाओं के हेतु उत्पन्न अन्य विक्रेताओं की प्रतिक्रियाओं को ध्यान में रखना पड़ता है। पूर्ण स्पर्धा के अन्तर्गत विक्रेता को इसका ध्यान रखने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि प्रत्येक विक्रेता अत्यधिक विक्रेताओं में से एक होता है। इसलिए उसकी क्रियाओं का प्रभाव अन्य विक्रेताओं पर अधिक नहीं पड़ सकता है। एकाधिकार में विक्रेता को इस सम्बन्ध में विचार करने की कोई आवश्यकता नहीं होती है क्योंकि उद्योग में दूसरे विक्रेता होते ही नहीं हैं। इस प्रकार पूर्ण स्पर्धा तथा एकाधिकार के अन्तर्गत विक्रेता को अपनी क्रियाओं के विक्रेताओं पर पड़ने वाले प्रभावों तथा उन विक्रेताओं की प्रतिक्रियाओं के बारे में सोचने की आवश्यकता नहीं है। इसके विपरीत अल्पाधिकार के अन्तर्गत व्यक्ति विक्रेता को अपनी नीतियों ने अपने प्रतिद्वन्द्वियों पर पड़ने वाले प्रभावों तथा उनकी प्रतिक्रियाओं का ध्यान रखना पड़ता है।

अल्पाधिकार व वर्गीकरण

(Classification of Oligopoly)

अल्पाधिकार बाजार को पृथक्-पृथक् दृष्टिकोणों से निम्नवत् वर्गीकृत किया जा सकता है-

अल्पाधिकार का वर्गीकरण

व्यावहारिक दृष्टिकोण से अल्पाधिकार के प्रमुख स्वरूपों का अध्ययन निम्न रूप में किया जा सकता है-

(I) गठबन्धनहीन अल्पाधिकार (Non Collusive Oligopoly)

(a) चैम्बरलिन मॉडल (Chamberlin Model)

(b) विकुंचित माँग वक्र मॉडल (Kinked Demand Curve Model)

(II) गठबन्धन युक्त अल्पाधिकार (Collusive Oligopoly)

(a) पूर्ण गठबन्धन अथवा कार्टेल (Perfect Collusionoer Cartel)

(b) अपूर्ण गठबन्धन अथवा कीमत नेतृत्व (Imperfect Collusionor Prica

Leadership)

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Pankaja Singh

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