शिक्षाशास्त्र

कम्प्यूटर संचालित मूल्यांकन | कम्यूटर प्राविधानित मूल्यांकन | कम्प्यूटर प्रावधानित मूल्यांकन की अवधारणा आवश्यकता एवं महत्व

कम्प्यूटर संचालित मूल्यांकन | कम्यूटर प्राविधानित मूल्यांकन | कम्प्यूटर प्रावधानित मूल्यांकन की अवधारणा आवश्यकता एवं महत्व | Computer Aided Evaluation in Hindi | Computer Provisional Assessment in Hindi | Concept, need and importance of computer aided assessment in Hindi

कम्प्यूटर संचालित मूल्यांकन कम्यूटर प्राविधानित मूल्यांकन (Computer Managed Evaluation)

शिक्षा में मूल्यांकन का बहुत अधिक महत्व है क्योंकि बिना मूल्यांकन के अअध्यापक अपन अध्यापन की सफलता को नहीं जान पाता है तथा वह अंधेरे में तीर मारने जैसा काम करता है। परीक्षाओं में बालक की उपलब्धियों को जानने तथा उन्हें प्रोत्साहन प्रदान ककरने का कार्य मूल्यांक द्वारा ही सम्भव है। अध्यापक स्वयं अपने कार्यों का मूल्यांकन करता है।

मूल्यांकन के क्षेत्र में नवीन अवधारणायें प्रकाश में आयी हैं और सतत् मूल्यांकन की विचारधारा पर जोर दिया जा रहा है। आजकल मूल्यांकन का स्वरूप इतना विस्तृत एवं जटिल हो गया है कि यह स्वयं में एक समय लेने वाला एवं श्रम साध्य कार्य हो गया है। छात्र प्रगति के प्रतिदिन, प्रति महीना और प्रतिवर्ष तक का रिकार्ड रखना, उसके विभिन्न विषयों, क्षमताओं और रुचियों तथा अन्य व्यक्तिगत गुणों का सतत् संचयन तथा उससे विभिन्न प्रकार से विश्लेषित करके विभिन्न परिणाओं को प्राप्त करना एक जटिल एवं दुरूह कार्य है। यह अपेक्षा की जाती है कि बालकों से सम्बंधित विभिन्न चरों के सतत् विश्लेषण से इस प्रकार के परिणाम प्राप्त होते हैं जिनके आधार पर बालकों को अपेक्षाकृत अधिक उपलब्धि के लिए निर्देशन दिये जा सकते हैं। अध्यापक भो इन परिणाम के आधार पर शिक्षण कार्य में सुधार कर सकते हैं।

शिक्षा के क्षेत्र में होने वाले शोधों ने बालक से सम्बन्धित विभिन्न मनोवैज्ञानिक एवं भौतिक चरों के उनके शैक्षणिक उपलब्धि पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन किया है। इन शोधों से तभी हम लाभान्वित हो सकते हैं जब हम बालक के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी संचित रखें तथा आवश्यकतानुसार उनका विश्लेषण करके परिणाम प्राप्त कर सकें। संगणकों का प्रयोग इस कार्य के लिये सफलतापूर्वक किया जा सकता है। हम जानते हैं कि संगणक या कम्प्यूटर की स्मृति असीमित हैं। अतः बालकों के सम्बन्ध में विभिन्न जानकारियाँ इसमें संचित की जा सकती है तथा आवश्यकतानुसार उन्हें इस्तेमाल किया जा सकता है। मूल्यांकन के क्षेत्र में कम्प्यूटर का उपयोग निम्नलिखित प्रकार से महत्वपूर्ण है।

  1. कम्प्यूटर प्रत्येक छात्र के विषय में सम्पूर्ण जानकारी एकत्रित कर सकता है। छात्र को बुद्धि लब्धि, उसका व्यक्तित्व, उसका आकांक्षा स्तर, आदि की जानकारी संगणक में एकत्रित की जा सकती है तथा आवश्यकतानुसार उसका प्रयोग किया जा सकता है।
  2. छात्र ने अपने शैक्षिक प्रयासों द्वारा, शिक्षा के उद्देश्यों को कहाँ तक प्राप्त किया है ? इसका परीक्षण कम्प्यूटर शीघ्रता से एवं शुद्धता से कर सकता है।
  3. अध्यापकों को अपने शिक्षण का फीड बैक भी कम्प्यूटर की मदद से शीघ्र मिल सकता है जिससे कि अपने अनुदेशन में सुधार कर सकते हैं।
  4. छात्रों का प्रगति विवरण पत्र कम्प्यूटर की मदद से बनाने और संचित करने से वह अधिक सूचनापूर्ण एवं शुद्ध होगा।
  5. अंकों के आधार पर मेह का विभाजन शुद्धता से किया जा सकता है।
  6. छात्रों की उपलब्धि का कार्य तथा प्रतिवर्ष छात्रों की प्रगति या अवनति का रेकार्ड रखना कम्प्यूटर की मदद से अच्छी तरह सम्भव है। विद्यालयी प्रशासन में इस प्रकार यह बहुत सहायक हो सकता है। आवश्यकता पड़ने पर प्राचार्य किसी छात्र की उपलब्धियों को तुरन्त ज्ञात कर सकता है।
  7. छात्रों की एक-दूसरे से तुलना तथा विभिन्न विद्यालयों से यदि बालकों के प्राप्तांको का स्कैनिंग तथा तुलना का कार्य कम्प्यूटर की मदद से आसानी से हो सकता है।

कम्प्यूटर की प्रक्रिया हार्डवेयर तथा सॉफ्टवेयर दोनों उपागमों पर आधारित है। इस प्रक्रिया को प्राथमिक एवं उच्चस्तर दोनों के लिये समान रूप से प्रयुक्त किया जाता है। विशाल सूचना में वे भण्डार को संचित एवं व्यवस्थित करना तथा उन्हें अभिक्रमित रूप से गठित करना सॉफटवेयर (Software) प्रक्रिया के अंतर्गत आता है। इस प्रकार की अभिक्रमित सामग्र को अनुदेशन हेतु प्रस्तुव संकलन में किया जाता है, वह Hardware हार्ड वेयर प्रक्रिया के अन्तर्गत आता है।

शिक्षण-अधिगम का नियोजन करना- शिक्षण में नियोजन एक ऐसा तत्व है जिसके अभाव में शिक्षण तकनीकी की सम्पूर्ण व्यवस्था हो असफल हो जायेगी। अतः आवश्यकता इस बात की है कि सम्पूर्ण शैक्षिक स्वरूप का यथोचित नियोजन किया जाये। यह शैक्षिक तकनीकी का ही एक कार्य है।

शिक्षण-अधिगम एवं छात्र का सम्पूर्ण विकास करना- शिक्षण नियोजन के साथ-साथ यह भी आवश्यक है कि शिक्षण इस प्रकार से दिया जाय कि बालक का सर्वांगीण विकास हो सके, और शिक्षण-अधिगम के सम्पूर्ण अवयवों से भली-भांति परिचित हो सके।

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Pankaja Singh

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