शिक्षाशास्त्र

उपग्रह दूरदर्शन अनुदेशनात्मक प्रयोग | उपग्रह दूरदर्शन प्रयोग के उद्देश्य | उपग्रह दूरदर्शन योजना द्वारा शैक्षिक कार्यक्रम | उपग्रह दूरदर्शन योजना का महत्व | उपग्रह दूरदर्शन योजना की उपयोगिता

उपग्रह दूरदर्शन अनुदेशनात्मक प्रयोग | उपग्रह दूरदर्शन प्रयोग के उद्देश्य | उपग्रह दूरदर्शन योजना द्वारा शैक्षिक कार्यक्रम | उपग्रह दूरदर्शन योजना का महत्व | उपग्रह दूरदर्शन योजना की उपयोगिता

उपग्रह दूरदर्शन अनुदेशनात्मक प्रयोग

(Satellite Instructional Television Experiment (SITE)

भारतवर्ष में उपग्रह द्वारा शिक्षा प्रदान करने का सर्वप्रथम प्रयोग जुलाई 1975 में किया गया और इसके अन्तर्गत छः राज्यों में उपग्रह के माध्यम से दूरदर्शन द्वारा शिक्षा का प्रावधान  किया गया है। ये प्रमुख राज्य थे- आन्ध्र प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, उड़ीसा एवं राजस्थान। इसके द्वारा ग्रामीण अंचल में रहने वाले लोगों को अनौपचारिक रूप से शिक्षा प्रदान की जाने   की योजना बनाई गई और 2400 गाँवों को इस कार्य के लिए चुना गया तथा इनमें विभिन्न प्रकार के कार्यक्रमों का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम में लिखने-पढ़ने के अतिरिक्त कृषि, स्वास्थ्य शिक्षा, स्वच्छता आदि कार्यक्रम भी सम्मिलित किये गये। इसमें 5 से 12 वर्ष तक के आयु वर्गों वाले बालकों को सम्मिलित किया गया था। ये कार्यक्रम प्रातः एवं सायं दोनों समयों पर प्रसारित किये जाते थे। इन कार्यक्रमों में छात्रों ने काफी रुचि दिखाई परन्तु अमेरिका से अनुबन्ध समाप्त हो जाने के कारण इस कार्यक्रम को रोक दिया गया। इस प्रकार 1980 तक उपर्युक्त प्रदेशों के 9000 ग्रामों में यह प्रोप्राम विकसित किया गया।

उपग्रह दूरदर्शन प्रयोग के उद्देश्य

(Objectives of Site)

उपग्रह दूरदर्शन एक अत्याधुनिक सम्प्रेषण भाध्यम एवं प्रयोग है। इस प्रयोग योजना के अनेकों उपयोग हैं-

  1. प्रभावशाली सामूहिक सम्प्रेषण (Mass-Media) में इसके प्रयोग का विशेष महत्व एवं योगदान है।
  2. प्रामीण क्षेत्रों के लिए दूरदर्शन का अनुदेशनात्मक प्रणाली के लिए विशेष उपयोग करना।
  3. बालकों एवं प्रौढ़ शिक्षा के लिए, प्रामीण क्षेत्र के विकास हेतु उपग्रह दूरदर्शन योजना का व्यावहारिक उपयोग करना ।
  4. आर्थिक तथा सामाजिक राष्ट्रीय विकास हेतु उपमह दूरदर्शन योजना का व्यावहारिक उपयोग करना ।

उपग्रह दूरदर्शन योजना द्वारा शैक्षिक कार्यक्रम

(Educational Programme Through Satellite Television)

उपग्रह दूरदर्शन योजना के प्रयोगात्मक निष्कर्षो से यह बात प्रामाणिक रूप से सिद्ध हो चुका है कि अनुदेशन एवं सम्प्रेषण माध्यम (Communication Media) में सुधार तथा  प्रभावशीलता का समावेश किया जा सकता है। इन विधियों का प्रयोग विकसित राष्ट्रों में बहुतायत से किया जाता है। इसके महत्व को हम निम्नलिखित बिन्दुओं के रूप में समझा सकते हैं-

  1. प्रत्ययों, कौशल, भाषा शिक्षण तथा सामाजिक व्यवहारों के विकास में वांछनीय सुधार करना।
  2. सामाजिक परिवर्तनों तथा वैज्ञानिक प्रगति के प्रति सही दृष्टिकोण का विकास करना।
  3. स्वास्थ्य, यादवों तथा सौन्दर्यानुभूति के गुणों को विकसित करना।
  4. शैक्षिक योजनाओं तथा शैक्षिक तकनीकी के प्रति घनात्मक अभिवृत्तियों एवं अभिरुतियों का विकास करना।
  5. अनुदेशनात्मक कौशलों का विकास करना।
  6. शैक्षिक योजनाओं के प्रति उचित एवं वांछनीय दृष्टिकोण का विकास करना।
  7. छात्रों में अपेक्षित स्वभाव का विकास करना।

उपग्रह दूरदर्शन योजना का महत्व

(Importance of Satellite Television)

  1. विकसित राष्ट्रों के घरेलू कार्यों में इसका विशेष योगदान है।
  2. भारत में उपग्रह दूरदर्शन योजना का विकास सम्पूर्ण राष्ट्र की शिक्षा के लिए किया जा रहा है। जिससे प्रामीण क्षेत्रों को सामूहिक माध्यम शिक्षा (Mass Media Education) के लिए उपयोग किया जा सकेगा।
  3. ग्रामीण जनसंख्या के आर्थिक तथा सामाजिक विकास हेतु प्रयुक्त किया जा सकेगा।
  4. प्रामीण जनसंख्या को शैक्षिक ज्ञान की जानकारी प्रदान की जा सकेगी।
  5. इस योजना का उपयोग आर्थिक विकास से परे सामाजिक मूल्यों के विकास में किया जा सकेगा।

उपग्रह दूरदर्शन योजना की उपयोगिता

(Use of Satellite Television Programme)

उपग्रह दूरदर्शन योजना के उपयोग के लिए निम्नलिखित सुझाव दिये गये है.

  1. इसका प्रयोग कक्षा के अन्दर एवं बाहर दोनों स्थानों पर किया जा सकता है।
  2. इस योजना के माध्यम से विभिन्न विषयों सम्बन्धी विशिष्ट ज्ञान का प्रसारण किया जा सकता है।
  3. प्रौढ़ शिक्षा एवं अनौपचारिक के शिक्षा के क्षेत्र में उपग्रह शिक्षण प्रभावी एवं दूरगामी प्रभाव डालता है।
  4. राष्ट्रीय एवं सामाजिक विकास के लिए तथा परिवर्तन हेतु इस योजना का प्रयोग किया जा सकता है।
  5. दिन-प्रतिदिन की समस्याओं के समाधान के लिए वैज्ञानिक दृष्टिकोण के विकास में उपयोग किया जा सकता है।
  6. पत्राचार पाठ्यक्रम, सामूहिक शिक्षा योजना, खुला विश्वविद्यालय प्रसारण योजना आदि में उपमह दूरदर्शन योजना को प्रभावशाली ढंग से प्रयुक्त कर सकते हैं।

उपग्रह दूरदर्शन योजना को निम्नांकित क्षेत्रों में प्रयुक्त किया जा सकता है-

(अ) अनुदेशनात्मक एवं शैक्षिक योजना में प्रभावशाली अधिगम परिस्थितियाँ उत्पन्न करने हेतु।

(ब) सेवारत अध्यापक प्रशिक्षण कार्यक्रम में।

(स) कृषि योजनाओं के प्रसारण एवं विकास में।

(द) प्रौढ़ शिक्षा एवं अनौपचारिक शिक्षा योजनाओं में।

भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह

(Indian National Satellite, B)

भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह को 30 अगस्त 1983 को छोड़ा गया था और यह 15 अक्टूबर 1983 से सक्रिय भूमिका निभा रहा है। इसके आधार पर एक ओर जहाँ शिक्षा जगत में नवीन प्रयोग किये जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर इसका प्रयोग मनोरंजन, प्रचार, मौसन, भूगर्भीय खोजों आदि में किया जा रहा है। हमारे राष्ट्र में इसका उपयोग अनौपचारिक शिक्षा के क्षेत्र में भी किया जा रहा है। परिवार नियोजन, अस्पृश्यता, साक्षरता अभियान, नैतिक शिक्षा आदि कार्यक्रमों को इसी उपग्रह के माध्यम से दूरदर्शन पर प्रचारित एवं प्रसारित किया जाता है तथा भारत सरकार की योजनानुसार 1984 तक 180 दूर दर्शन केन्द्रों का जाल समस्त भारत में फैलाने का प्रावधान है। दूर दर्शन ने 15 सितम्बर 1984 को प्रथम रजत जयन्ती मनायी थी। शिक्षा के क्षेत्रों में इनसैट का उपयोग विज्ञान की महान उपलब्धियों में से एक है। यह शिक्षा तकनीकी के क्षेत्र में एक चमत्कारिक प्रयोग है। इसके द्वारा कृषि उत्पादन की शिक्षा, स्वास्थ्य शिक्षा, जन शिक्षा एवं राष्ट्रीय शिक्षा, राष्ट्रीय एकता की शिक्षा, पर्यावरण शिक्षा, जनसंख्या शिक्षा, सांस्कृतिक शिक्षा तथा व्यावसायिक एवं जनापयोगी शिक्षा की व्यवस्था की गयी है।

इस प्रकार व्यापक रूप में उपग्रह शिक्षा के निम्नलिखित उपयोग हैं-

  1. यह आधुनिक समय में व्यापक साक्षरता अभियान का अभिन्न अंग बना हुआ है तथा उसके प्रचार एवं प्रसार में सक्रिय योगदान प्रदान कर रहा है।
  2. यह औपचारिक शिक्षा योजनाओं को शिक्षा से वंचित रहने वाले बच्चों एवं वयस्क के लिये प्रबन्ध कर रहा है।
  3. यह आधुनिक समय में सामुदायिक शिक्षा का भी परिचायक तथा सहायक तत्व है।
  4. प्रामीण अंचलों के लिए अलग से कार्यक्रम सम्पादित तथा विकसित किये जाते हैं। जिसमें उन्हें पशुपालन, खाद, नवीन बीज, नवीन उपकरण, मौसम के अनुरूप फसलों का चयन मृदा परीक्षण, फसल रोग विज्ञान आदि नवीन विधाओं से परिचित कराया जाता है।
  5. ग्रामीण महिलाओं को राष्ट्र की मुख्य धारा में जोड़ने के उद्देश्य से उनके लिए भी व्यापक शिक्षा योजनायें प्रसारित की जाती हैं-जैसे-पोषण, शिक्षा, सामाजिक कुरीतियाँ, बालकों का लालन-पालन, छोटे बच्चों एवं प्रसूती रोगी की सेवा, रोगों को घरेलू उपचार, पंचायत राज्य, महिलाओं के उत्तरदायित्व, उनके लिए राष्ट्रीय योजनायें, एवं सम्बन्धित कानून आदि का अनौपचारिक तथा व्यावहारिक ज्ञान प्रदान किया जाता है।
  6. संक्षिप्त में कह सकते हैं कि इनसैट सामाजिक, मानसिक परिवर्तन की एक उत्तम कसौटी के रूप में कार्य करता है।

जन माध्यमों की कक्षीय उपयोगिता

(Uses of Mass Media in Class Room)

कक्षीय परिस्थितियों में अधिकतर शिक्षण-अधिगम की प्रभावशील को परिस्थितियों उत्पन्न करने के लिए शिक्षा तकनीकी के जनमाध्यमों का प्रयोग एक उत्तम साधन है। नवीन राष्ट्रीय शिक्षा नीति 1986 में भी इस ओर काफी ध्यान दिया गया है तथा समस्त प्रकार के औपचारिक एवं अनौपचारिक शिक्षा में आमूल-चूल परिवर्तन का निर्णय लिया गया है।

इस तथ्य का महत्व आज की उपग्रह शिक्षा के युग में यकायक ही बढ़ गया हो ऐसा कहना ठीक प्रतीत नहीं होता। क्योंकि शिक्षा के जन माध्यमों के प्रयोग की विस्तार के साथ सिफारिश सर्वप्रथम भारतीय शिक्षा आयोग (1964-66) ने अपने तीन लम्बे अनुभागों में की है। इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में भारतीय शैक्षिक तकनीको संघ (1968) शैक्षिक तकनीकी केन्द्र, एन.सी.ई.आर टी. नई दिल्ली (1973) में भी इन्हें राष्ट्रव्यापी रूप देने में पहल की है। अतः आजकल देश में सॉफ्टवेयर तथा हार्डवेयर का उपयोग उत्तरोत्तर बढ़ता ही जा रहा है। सॉफ्टवेयर के अन्तर्गत बालकों के शैक्षिक व्यवहार का परिमार्जन एवं वांछनीय, परिवर्तन लाये जाते है। ये सभी सिद्धान्न मनोविज्ञान एवं उसके अधिगम-शिक्षण सम्बन्धी नियमों का अनुसरण करते हैं। जैसे अभिक्रमित एवं अधिगम, शिक्षण प्रतिमान, सूक्ष्म शिक्षण, दृश्य-श्रव्य सामग्री का अधिकाधिक प्रयोग आदि।

हार्डवेअर उपागमों के अन्तर्गत दूर दर्शन, वी.सी.आर, टेपरिकार्डर, फिल्म प्रोजेक्टर, एपीडायस्कोप तथा ओवर हैड प्रोजेक्टर आदि वैज्ञानिक एवं प्रक्षेपी यन्त्रों का प्रयोग किया जाता है। शिक्षण-अनुदेशन को इस व्यवस्था को कम्प्यूटर प्रयोगों ने पूर्ण रूपेण परिवर्तित कर दिया है तथा वे राज्य स्तर के मॉडल इन्स्टीट्यूशन तथा नवोदय विद्यालय, पब्लिक विद्यालय की कक्षाओं में छा गये हैं।

यद्यपि ये साधन अत्यधिक मंहगें, वैज्ञानिक रूप से क्लिष्ट तथा उपयोग के लिए कठिन कौशलों की अपेक्षा रखते हैं। किन्तु राष्ट्रीय शिक्षा नीतियों के अन्तर्गत अध्यापक प्रशिक्षण, हार्डवेअर अनुदानों आदि की व्यवस्था कर इन्हें बहुत अधिक महत्व प्रदान किया जा रहा है।

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ये शिक्षण-अधिगम की महत्वपूर्ण विधायें होते हुये भी भारतीय परिवेश के शिक्षा के आर्थिक दृष्टिकोण से स्वास्थ्यप्रद अधिक नहीं है। आवश्यकता अभी भी हमारी स्वनिर्माण क्षमता, सृजन शीलता तथा सॉफ्ट वेअर साधनों को जनमाध्यमों में परिवर्तित करके प्रयोग करने की क्षमताओं पर निर्भर करती है।

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Pankaja Singh

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