शिक्षाशास्त्र

शिक्षा में कम्प्यूटर | कम्प्यूटर की संरचना | कम्प्यूटर सहयुक्त अनुदेशन | कम्प्यूटर सहअनुदेशन की आधारभूत मान्यताएँ | कम्प्यूटर सह-अनुदेशन की कार्यप्रणाली | कम्प्यूटर सह अनुदेशन की समस्याएँ

शिक्षा में कम्प्यूटर | कम्प्यूटर की संरचना | कम्प्यूटर सहयुक्त अनुदेशन | कम्प्यूटर सहअनुदेशन की आधारभूत मान्यताएँ | कम्प्यूटर सह-अनुदेशन की कार्यप्रणाली | कम्प्यूटर सह अनुदेशन की समस्याएँ | Computer in Education in Hindi | Structure of Computer in Hindi | Computer Aided Instruction in Hindi | Basic beliefs of computer co-instruction in Hindi | Methodology of Computer Co-Instructional in Hindi | problems of computer aided instruction in Hindi

शिक्षा में कम्प्यूटर

बीसवीं शताब्दी की अनेक महत्वपूर्ण खोजों में ‘कम्प्यूटर’ भी एक है। कम्प्यूटर’ एक ऐसा साधन/उपाय है जो कि जानकारी को स्वीकार करता है, उस पर कार्यवाही (Processing) प्रक्रिया लगता है तथा इस प्रकार प्राप्त नई जानकारी को उचित रूप में उपयोगकर्ता को पहुंचाता है।

अधिकतर आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर जिनका कि उपयोग शैक्षिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है, डिगिटल (अंगुली प्रकार के) कम्प्यूटर होते हैं। डिगिटल प्रकार के कम्प्यूटर वे कम्प्यूटर है जिनमें जानकारी पर कार्यवाही करने से पूर्व उसे डिगिटल रूप में परिवर्तित की जाती है। इस डिगिटल रूप में केवल दो संकेतों 0 तथा 1 का प्रयोग होने वाली द्विगुण अंक प्रणाली का प्रयोग होता है। दूसरी प्रकार के कम्प्यूटर जिसमें कि आंकड़ों या दो हुई जानकारी पर कार्यवाही से पूर्व डिगिटल रूप में परिवर्तित नहीं की जाती है, उसे एनालांग कम्प्यूटर के नाम से जाना बाता है। इस दूसरी प्रकार के कम्प्यूटर का तकनीकी एवं वैज्ञानिक जैसे विशिष्ट क्षेत्रों में उपयोग किया जाता है।

अंगुली (डिगिटल) कम्प्यूटर को पुनः तीन प्रकार के कम्प्यूटरों में प्रायः विभक्त किया जा सकता है। (1) मुख्य फ्रेम कम्प्यूटर, (2) मिनी कम्प्यूटर, (3) माइक्रो कम्प्यूटर । मुख्य फ्रेम कम्प्यूटर बहुत बड़े आकार को अधिक कीमत की मशीन है। इसके लिए एक विशेष प्रकार के कमरे की आवश्यकता होती है या इसके प्रयोग के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित विशेषज्ञों का होना आवश्यक होता है। मिनी कम्प्यूटर मूलभूत रूप से मुख्य फ्रेम कम्प्यूटर का एवं सस्ता रूप है। इस प्रकार के कम्प्यूटर का प्रयोग मुख्य रूप से छोटी-छोटी फैक्टरियों या कालेजों या बड़ी औद्योगिक इकाई के किसी एक विभाग में होता है। माइक्रो कम्प्यूटर एक लघु, मेज के ऊपर रखी जाने वाली डेस्कटाप मशीन मात्र है। कीमत के हिसाब से यह सस्ती मशीन है तथा इसका उपयोग अनेक कार्यों के लिए किया जा सकता है। इसे गणना के साधारण उपयोग से लेकर शब्द संरचना (word proccssing) एवं इन्टर-एक्टिव वोडियो (Interactive Video) जैसे विशिष्ट कार्य के उपयोग के लिए प्रयोग किया जा सकता है। इस प्रकार को कम्प्यूटर मशीन का उपयोग आजकल हमारे देश के स्कूलों, कालेजों, औद्योगिक संस्थानों आदि में दिन-प्रतिदिन बढ़ता चला जा रहा है। निम्न चित्र में इस प्रकार कम्प्यूटर का चित्र  प्रदर्शित किया गया है।

कम्प्यूटर की संरचना

सभी कम्प्यूटरों में, नीचे दिखाये चित्र के अनुसार, तीन आधारभूत प्रणालियाँ होती हैं।

इन पुट प्रणाली

केन्द्रीय कार्य- वाही प्रणाली

आउट पुट प्रणाली

चित्र-कम्प्यूटर प्रणाली का एक साधारण रेखाचित्र

(1) इनपुट प्रणाली (Input System)- कम्प्यूटर की इनपुट प्रणाली वह प्रणाली है जहाँ से जानकारी या आंकड़ों को अंदर कम्प्यूटर में भेजा जाता है। यह जानकारी दो प्रकार की हो सकती है- कम्प्यूटर को निर्देश तथा आंकड़े। कम्प्यूटर को निर्देश, कम्प्यूटर प्रोपाम के माध्यम से दिये जाते हैं। ग्रह कम्प्यूटर प्रोग्राम एक विशेष सांकेतिक भाषा में लिखा जाता है, जिसे प्रोग्रामिंग (Programming Language) के नाम से जाना जाता है। कम्प्यूटर की अनेक प्रकार की प्रोमामिंग भाषायें होती हैं। इस प्रोग्रामिंग भाषा का इस्तेमाल कम्प्यूटर की प्रकृति एवं कम्प्यूटर द्वारा लिये जाने वाले कार्य की प्रकृति पर निर्भर करता है। आंकड़े कम्प्यूटर को दी जाने वाली  वह जानकारी या सामग्री है, जिस पर कि कम्प्यूटर को कार्य करना है। दोनों प्रकार की जानकारी कम्प्यूटर को अनेक प्रकार से दी जा सकती है, लेकिन इन सभी में सबसे प्रचलित तरीका है- की बोर्ड (Key Board) के माध्यम से जानकारी देना। यह बोर्ड एक टाइपराइटर की तरह दिखने वाली मशीन होती है जिसके द्वारा कम्प्यूटर को निर्देश या आंकड़े दिये जा सकते हैं। कम्प्यूटर में निर्देश एवं आँकड़ों को पंच कार्ड या टेप, मैगनेटिक टेप या डिस्क या संकेत जिन्हें कि अनेक आप्टिकल स्केनिंग माध्यम की सहायता से पढ़ा जा सकता है, के द्वारा भी दी जी सकती है। प्राफीकल जानकारी या आंकड़ों को भी प्राफिक्स टेबलेट्स (graphics tablets) तथा डिजिटाइर्बर (digitizers) का प्रयोग करके कम्प्यूटर को दिया जा सकता है।

(2) केन्द्रीय कार्यवाही प्रणाली (Central Processing System)- कम्प्यूटर की दूसरी महत्वपूर्ण प्रणाली केन्द्रीय कार्यवाही प्रणाली है। यह प्रणाली वह प्रणाली है जहाँ कम्प्यूटर की इनपुट प्रणाली में रखी गई जानकारी या आंकड़ों पर कार्यवाही होती है। इस प्रणाली में तीन प्रमुख उप-प्रणालियाँ होती है-

(अ) याददाश्त प्रणाली (Memory System) – जहाँ जानकारी एवं आँकड़ों को सांकेतिक रूप में इकट्ठा किया जाता है।

(ब) अंकगणितीय एवं तार्किक प्रणाली (Arithmetic & Logical Unit) – जहाँ प्रामाणिक अंकगणितीय एवं तार्किक प्रक्रियाओं को सांकेतिक रूप में इकट्ठी की गयी जानकारी या आँकड़ों पर प्रयुक्त किया जाता है।

(स) नियंत्रण प्रणाली (Control Unit)- जो कि केन्द्रीय कार्यवाही प्रणाली के सभी कार्यों को संचालित करती है।

(3) आउटपुट प्रणाली- कम्प्यूटर द्वारा प्राप्त आउटपुट को तीन विभिन्न प्रकार से प्रदर्शित किया जा सकता है-(अ) सर्वप्रथम इसे हार्ड कापी (Hard Copy) के तौर पर तैयार किया जा सकता है। हार्ड कापी लाइन प्रिंटर या ग्राफीकल प्लोटर (Graphical Plotter) की सहायता से कागज पर छपी जानकारी है। (ब) दूसरा, इसे सॉफ्ट कापी के तौर पर तैयार किया जा सकता है। सॉफ्ट कापी के पर जानकारी को स्क्रीन पर प्रदर्शित किया जा सकता है। (स) तीसरी, इसे सांकेतिक सूचकों के तौर पर तैयार किया जा सकता है।

कम्प्यूटर सहयुक्त अनुदेशन

यह एक कठोर उपागम है। इसका प्रयोग शिक्षा जगत में किया जाने लगा है। इसका प्रादुर्भाव सन् 1961 में इलिन्वायस विश्वविद्यालय में किया गया और इसका सुधरा हुआ रूप सन 1956 में स्टेन फोर्ट विश्वविद्यालय के पैट्रिक सुपेस (Patric Suppes) ने किया, जिसमें स्कूलों बच्चों के लिये वाचन करने एवं गणित पर एक प्रतिमान का निर्माण किया। इस प्रकार से कालान्तर में कम्प्यूटर सह अनुदेशन की शैली का प्रसार होता गया। इस प्रकार के कम्प्यूटर के निर्माण के पीछे शिक्षा तकनीशियनों का दो विचार था। प्रथम यह कि शिक्षा प्रक्रिया में तकनीकी उपकरणों का प्रयोग किया जाय तथा द्वितीय विचार यह था कि शिक्षण विधियों, प्रविधियों, सिद्धान्तों को और प्रभाजी ढंग से लागू करना ।

कम्प्यूटर सहअनुदेशन की आधारभूत मान्यताएँ

उपर्युक्त विवरण के आधार पर इसकी मान्यताएँ निम्नलिखित है-

(1) इसके द्वारा छात्रों के शैक्षिक क्षेत्र गुणात्मक एवं परिणामात्मक दोनों प्रकार की समस्याओं का समाधान किया जा सकता है।

(2) इसके द्वारा छात्र व्यक्तिगत रुचि एवं रुझान के अनुसार प्रतिपुष्टि को प्राप्त कर सकता है।

(3) इस प्रकार के कम्प्यूटर द्वारा अभिगमकर्ता द्वारा अधिगम एवं परीक्षण के समय उसके द्वारा किये गये व्यवहार को स्वतः रिकार्ड किया जाता है। तदनुसार शिक्षक छात्र के लिये भावी रणनीति तैयार करता है।

(4) इसकी एक मान्यता यह भी है कि विषय एवं विषय-वस्तु को विभिन्न विधियों के माध्यम से प्रस्तुत करने क्षमता प्रस्तुत करता है।

कम्प्यूटर सह-अनुदेशन की कार्यप्रणाली

शैक्षिक तकनीकी के अन्तर्गत कम्प्यूटर ‘मशीन उपागम तथा भीतर संचित अभिक्रम “नवनीय उपागम” की श्रेणी में आता है। इस प्रकार शिक्षण दोनों प्रकार के उपागम को उपयोग करता है। इसमें छात्र में पूर्व व्यवहार, पूर्व अनुभव एवं प्रारम्भिक व्यवहार के आधार पर कम्प्यूटर निर्णय लेता है। अतः इस प्रकार अनुदेशन-क्रिया के अन्तर्गत कम्प्यूटर के अधोलिखित कार्यों को करता है-

(1) कार्डों एवं चुम्बकीय टेप पर सूचनाओं एवं अभिक्रमों को संग्रहित करता है।

(2) इस प्रकार से संग्रहीत सूचनाओं एवं अभिक्रमों में से प्रत्येक छात्र के लिये उपयुक्त सूचनाओं का ध्यान करता है।

(3) सूचनाओं का सम्प्रेषण विद्युत टंकण मशीन की सहायता से किया जाता है।

कम्प्यूटर संयुक्त अनुदेशन के विशेषज्ञ-

कम्प्यूटर संयुक्त अनुदेशन के प्रविधि के लिये किसी संस्था को निम्नलिखित विशेषज्ञों की आवश्यकता पड़ती है-

(1) अभिक्रम लेखक- इसके लिये कम्प्यूटर की भाषा जवाला मनोविज्ञान का ज्ञाता, अधिगम सिद्धान्तों को समझने वाला, बालक की आयु के अनुसार प्रक्रिया को समझने वाला आदि प्रकार के विशेषतायुक्त अभिलेखक को होना चाहिये।

(2) कम्प्यूटर अभियन्ता- इसके लिये एक ऐसा व्यक्ति हो जो कम्प्यूटर की तकनीकी भाषा, उपयोग, कार्यप्रणाली, रचना एवं सिद्धान्तों आदि से भली-भाँति अनुवाद कर सके। उसमें कम्प्यूटर भाषा का अनुवाद करने की क्षमता होतदनुसार रूप-रेखा का निर्माण कर सके।

(3) प्रणाली प्रचालक- कम्प्यूटर एवं कर्ता के बीच एक कड़ी होती है जो कम्प्यूटर के संचालन की सारी जिम्मेदाने को वहन करता है। वह डाटा वेस का उपयोग करता है, त्रुटियों का पता लगाकर सुधारता है तथा कम्प्यूटर की सारा कार्य प्रणाली को संचालित एवं नियन्त्रित करती है।

कम्प्यूटर द्वारा प्रदत्त शिक्षण प्रक्रिया-

अद्यतन खोजों के अनुसार 30 छात्रों के वैयक्तिक भिन्नता के आधार पर 30 प्रकार के अभिक्रमों को प्रस्तुत किया जा सकता है। यह जानकारी लारेन्स स्टूलरों एवं डेनियल डेविस ने दिया। इन्होंने कम्प्यूटर के शिक्षण प्रक्रिया को दो पक्षों में बांटा है-

(1) पूर्वअनुवर्ग शिक्षण पक्ष- इस वर्ग के अन्तर्गत विशिष्ट उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है तथा इसके लिये विशिष्ट का चयन उसके पूर्व व्यवहार के आधार पर किया जाता है !

(2) अनुवर्ग शिक्षण पक्ष- इस वर्ग में किसी एक छात्र का चयन किया जाता है उसे चुने गये अभिक्रम को कम्प्यूटर द्वारा छात्र के सम्मुख प्रस्तुत किया जाता है जिससे वह सीखता है और अन्त में उसका कम्प्यूटर द्वारा मूल्यांकन किया जाता है।

उपरोक्त दोनों पक्षों के कार्यों को कम्प्यूटर द्वारा निम्नलिखित दो सोपानों द्वारा प्रस्तुत किया।

अशिक्षित जनसंख्या का चयन- सर्वप्रथम कार्ड पर छात्र की शैक्षिक योग्यता, शैक्षिक उपलब्धि तथा पूर्ण-व्यवहारों को अंकित कर कम्प्यूटर में भर दिया जाता है, कम्प्यूटर छात्र की पूर्ण-परीक्षा लेता है, ताकि उसमें पूर्ण-व्यवहारों के स्तर की जांच हो सके पूर्ण परीक्षा में सफलता प्राप्त होने पर कम्प्यूटर छात्र के शैक्षिक स्तर को निश्चित करता है। तदनुसार कम्प्यूटर छात्र का पुनः परीक्षण कर उसका विश्लेषण एवं मूल्यांकन करता है। प्राप्त स्तर के अनुसार कम्प्यूटर अभिक्रम को चयनित करता है, और यदि छात्र के स्तर का अभिक्रम कम्प्यूटर में संग्रहित नहीं रहता तो कम्प्यूटर छात्र को अयोग्य घोषित कर देता है।

(2) अधिक्रम का प्रस्तुतीकरण तथा अधिगम नियन्त्रण- इस प्रकार के शिक्षण में. कम्प्यूटर एक साथ 30 छात्रों को पाठ्य वस्तु से सम्बन्धित 30 अभिक्रमों को प्रस्तुत करता है। कम्प्यूटर के अन्तर्गत विद्युत टंकण मशीन या टेप द्वारा सूचनाओं को सम्प्रेषित किया जाता हो यदि छात्र किसी भी दशा में त्रुटिपूर्ण अनुक्रिया करता है तो कम्प्यूटर अनुदेश बदल देता है। इसके द्वारा अभिक्रमित अनुदेशन ही नहीं प्रस्तुत किया जाता तरन् कम्प्यूटर छात्र के व्यवहार को भी नियंत्रित करता है।

कम्प्यूटर सह अनुदेशन की समस्याएँ

(1) इस प्रणाली के अन्तर्गत टेली टाइप पर उत्तरों को टाइप करना होता है। ध्वनि अथवा लेखन के आधार पर न तो छात्रों की अनुक्रिया का अवसर ही प्राप्त होता है और न ही कम्प्यूटर के द्वारा इस आधार पर छात्रों की अनुक्रियाओं को विश्लेषित करने की क्षमता है।

(2) इस प्रणाली के द्वारा छात्रों का केवल जानात्मक स्तर पर ही विकास सम्भव है। इस प्रकार कक्षा में छात्र और अध्यापक की अन्तक्रिया के आधार पर तथा परम्परागत विधि के द्वारा ही छात्रों का संवेगात्मक विकास किया जा सकता है। कम्प्यूटर के द्वारा इस दिशा में कोई योगदान प्राप्त नहीं होता है।’

(3) कम्प्यूटर के द्वारा मात्र बहुविकल्पी प्रश्नों के आधार पर न तो छात्रों को समस्त सूचनाएँ दी जा सकती हैं और न ही उनके मन में उत्पन्न समस्त कठिनाइयों को समझा जा सकता है। छात्रों को अनेक शैक्षिक व मनोवैज्ञानिक समस्याएँ केवल कम्प्यूटर के द्वारा ही हल नहीं की जा सकती हैं।

(4) भाषा सम्बन्धी योग्यताओं का विकास प्रत्येक छात्र के लिए परम आवश्यक होता है, परन्तु कम्प्यूटर के द्वारा भाषा सम्बन्धी योग्यताओं का विकास किया जाना अत्यन्त कठिन है।

(5) कम्प्यूटर प्रणाली द्वारा अधिगम में छात्रों को अधिक, थकान का अनुभव होता है। इसका कारण यह है कि यह विधि रुचिकर होते हुए भी छात्रों से अधिक तल्लीनता व सक्रियता की अपेक्षा करती है।

(6) नियन्त्रित अधिगम परिस्थिति में छात्रों को दीर्घ समय तक रहकर अधिगम करना होता है तथा प्रत्येक स्थिति में यन्त्र की कार्य प्रणाली के अनुकूल तत्पर रहना होता है। कुछ क्षणों के लिए यदि छात्र अपना ध्यान केन्द्रित नहीं कर पाते तो उन्हें सम्बन्धित सूचनाओं का अधिगम नहीं हो पाता है, परन्तु यह सम्भव नहीं है कि प्रत्येक छात्र सम्पूर्ण समय तक तल्लीन रहकर अधिगम कर सकें।

सम्भावनाएँ- भारत एक विकासशील देश है। यहाँ की आर्थिक स्थिति शोचनीय है। यहाँ शिक्षा पर पैसा भी कम खर्च किया जाता है। इस प्रकार की प्रणाली का प्रयोग अत्यन्त व्ययसाध्य है। यही कारण है कि उसका प्रयोग उच्च संस्थाओं में ही किया जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में इस  प्रणाली का प्रयोग केवल समृद्ध देश ही कर चुके हैं। वर्तमान समय में, हमारे देश में भी सम्भावनाओं पर किया जा रहा है। परन्तु भारत में इसका प्रयोग करने से पूर्व पश्चिमी देशों में उसके उपयोग व सीमाओं के अध्ययन के आधार पर निर्णय करना आवश्यक है जिससे इस प्रणाली पर होने वाले व्ययभार तथा इसके उपयोगों के मध्य सामंजस्य स्थापित किया जा सके।

भारत में इसके प्रयोग से पूर्व, इसकी समस्त योजना तैयार करना, अध्यापकों को इस प्रणाली को स्वीकारने हेतु तत्पर बनाना, अध्यापकों को इसके संचालन हेतु प्रदर्शित करना, कक्षागृहों को आवश्यक रूप से संशोधन करना, सम्बन्धित शोध कार्यों को पूर्ण करना व इन यन्त्रों को व्यापक स्तर पर उपलब्ध कराना भी एक जटिल कार्य है।

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Pankaja Singh

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